Thursday, May 13, 2010

ज़िन्दगी के सफ़र के अगले पड़ाव की ओर....

एक हफ्ते में सब कुछ बदल गया! सत्रह तारिख को ट्रांसफर ऑर्डर आया....कल यहाँ से रिलीव हो गयी और कल जाकर नयी जगह ज्वाइन करना है! डी.एस.पी. रेल भोपाल से अब सिटी एस. पी. विदिशा.......नयी जगह जाने की स्वाभाविक उत्कंठा और उत्साह भी है पर भोपाल छोड़ने का दुःख भी हो रहा है! भोपाल एक ऐसा शहर है की इससे प्यार हो ही जाता है! हर बार ट्रांसफर के समय ऐसी ही अजीब सी मन स्थिति हो जाती है! खैर अच्छी बात ये है की विदिशा भोपाल से केवल पचास किलो मीटर दूर है! आना जाना लगा रहेगा! और दूसरी अच्छी बात ये है की विदिशा जिले में मैं मैंने ट्रेनी डी.एस,पी. की तरह काम किया है आज से नौ साल पहले....तो जानी पहचानी जगह...जाने पहचाने लोगों के बीच दोबारा जाना अच्छा ही लगता है! अभी पैकिंग...शिफ्टिंग..का सारा काम बाकी है! शायद एक महीना लग जाये पूरी तरह सेट होने में! कुछ दिन पहले एक नज़्म लिखी थी! आज के लिए वही....शायद फिर कुछ दिनों तक नियमित आना न हो पाए......




वो मुझे मिला था
एक आवारा बादल की तरह
जो घर की छत पर कुछ पलों को
सुस्ताने रुक गया हो

ऐसे ही ठहर गया था वो
मेरे दरिया के मुहाने पर
मैंने अपनी रूह के पानी से भिगोया था उसे
बिना जाने ...ये पानी न जाने कहाँ बरसेगा

वो ऊपर अपने आसमान में टंगा था
और उसका अक्स मेरे अन्दर समाया था
वो ठहरा रहा...
रात उबासियाँ लेती रही
हम एक दुसरे की ज़मीन नापते रहे
जन्मों का हिसाब पलों में समेटते रहे
न वादों की पायल
न कसमों की जंजीर
बस इश्क की बिंदिया मेरे माथे झिलमिलाई थी
हम एक दुसरे के बदन में जागते रहे
चाँद का तिलिस्म टूटने तक

न जाने कहाँ बरसा होगा वो
न जाने क्या घटा इन पलों में
बस इतना जाना...उसके जाने के बाद
वो अपनी रूह मेरी ज़मीन पर बिछा कर चला गया था
जिस पर मेरा इश्क आराम करता है

35 comments:

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर रचना ।
बहुत गहरे भाव । बढ़िया प्रेम अनुभूति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वो अपनी रूह मेरी ज़मीन पर बिछा कर चला गया था
जिस पर मेरा इश्क आराम करता है

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं...

सुन्दर अभिव्यक्ति..

Arvind Mishra said...

स्थानांतरित नए जगह के लिए शुभकामनाएं ! नज्म भावप्रवण !

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत बधाई विदिशा स्थानान्तरण की ।
बहुत ही सुन्दर कविता ।
याद पड़ता है कि आपसे झाँसी पोस्टिंग के समय बातचीत हुयी थी । मैं वहाँ सीनियर डीसीएम था ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप को पदोन्नति के लिए बधाई! विदिशा वासियों के भाग्य से रश्क हो रहा है।

दिलीप said...

bahut sundar....sathsath badhai bhi...

M VERMA said...

वो अपनी रूह मेरी ज़मीन पर बिछा कर चला गया था
जिस पर मेरा इश्क आराम करता है
क्य्य्य्य्य्या अहसास है
बेहद खूबसूरत

अन्तर सोहिल said...

नज्म नहीं पढी जी
अच्छी ही होगी
शुभकामनायें
आप भोपाल में रहें या विदिशा में ब्लाग तो पढने को मिलेगा ही

प्रणाम

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं...

सुन्दर अभिव्यक्ति..

सतीश पंचम said...

सुंदर नज्म है।

नई पोस्टिंग के लिए बधाई।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

Transfer ke liye badhaiyan... jahan training lete hain wahan se kuch alag hi lagaav ho jata hai kyunki ek seedhi ki shuruaat wahin se hoti hai...

khoobsoorat nazm.. ekdam khaalis gulzaarish touch liye hue.. waah aawara badal, rooh ka paani, raat ki ubasiyan, chaand ka tilism, fir rooh ki mat/ bed ... saare bimb behad khoobsoorat..

डिम्पल मल्होत्रा said...

चाँद का तिलिस्म इतनी आसानी से नहीं टूटता,कोई जगह हो,कोई शहर हो,कोई उम्र हो ये बना रहता है.तिलिस्मी कविता..

Abhishek Ojha said...

जीवन के अलग-अलग मोड़ों पर जहाँ-जहाँ रहना होता है सबसे एक अलग तरह का लगाव पैदा हो जाता है ! फिर यादें तो रहेंगी ही साथ. एसपी साहिबा को मुबारकबाद.

Anonymous said...

bahut bahut badhai nayi jagah jaaane aur promotion ki bhi..
purani jaghein to yaad aati hi hain.......
ummeed hai mere blog par bhi aapke darshan honge...
http://i555.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यह पोस्ट चर्चा मंच पर ली गयी है ...

http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html

रश्मि प्रभा... said...

ishq ki jhilmilati bindi bahut achhi lagi

स्वप्निल तिवारी said...

zabardast nazm.......amrita pritam ki khushbu aa rahi hai isse.... kai achhe punches hain is nazm me...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

प्यार पर बहुत सुन्दर रचना ... ट्रान्सफर के समय थोड़ी तकलीफ ज़रूर होती है ... पर आपकी किस्मत अच्छी है ... ट्रान्सफर केवल ५० किलोमीटर पर ही है ...

Mrityunjay Kumar Rai said...

भावना पूर्ण

http://madhavrai.blogspot.com/

http://qsba.blogspot.com/

दिगम्बर नासवा said...

न जाने कहाँ बरसा होगा वो
न जाने क्या घटा इन पलों में
बस इतना जाना...उसके जाने के बाद
वो अपनी रूह मेरी ज़मीन पर बिछा कर चला गया था
जिस पर मेरा इश्क आराम करता है

लाजवाब और खूबसूरत एहसास सिमिट आए हैं इन पंक्तियों में ... बहुत खूब ....

डॉ .अनुराग said...

अरसे बाद तुम्हारी नज़्म पढ़ी है .इस मूड से जबरदस्ती बचकर निकला हूँ.....कुछ हाथ इसमें दुनियादारी ओर जिम्मेवारियो का भी है .....नए शहर के आसमान में शायद कुछ ओर रंग मिले....

Avinash Chandra said...

bahut khubsurat nazm hui hai

वो अपनी रूह मेरी ज़मीन पर बिछा कर चला गया था
जिस पर मेरा इश्क आराम करता है

behtareen panktiyaan

रवि रतलामी said...

अरे! यह तो वाकई दुखद है.
भोपाल में थीं, तो लगता था कि कभी भी मुँह उठाकर मिल लेंगे - ये बात अलग है कि मुलाकातें नगण्य सी रहीं... पर इस बात का अहसास रहता था कि बस, पास में ही तो हैं...

बहरहाल, नए कार्यभार के लिए शुभकामनाएँ. ट्रांसफर का दर्द, उससे संबंधित तकलीफ़ें क्या होती हैं, यह तो ख़ैर हमें भी पता है....

Sanjeet Tripathi said...

kafi der se pahucha mai, shubhkamnayein new posting ke liye, ab tak to shayad aapne join bhi kar liya hoga vidisha me.

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

कडुवासच said...

हम एक दुसरे के बदन में जागते रहे
चाँद का तिलिस्म टूटने तक

....अदभुत भाव ..... बेहद रोमांटिक रचना ..... प्रेम-मिलन का अदभुत संगम.... प्रसंशनीय रचना, बहुत बहुत बधाई !!!!

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं...

सुन्दर अभिव्यक्ति..

sonia_shish said...

Happy 2 know that police can write poems/songs.If someone can/able to read own destiny (based on own background and other related..)he can settled/be happy anywhere.

sonia_shish said...

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