एक हफ्ते में सब कुछ बदल गया! सत्रह तारिख को ट्रांसफर ऑर्डर आया....कल यहाँ से रिलीव हो गयी और कल जाकर नयी जगह ज्वाइन करना है! डी.एस.पी. रेल भोपाल से अब सिटी एस. पी. विदिशा.......नयी जगह जाने की स्वाभाविक उत्कंठा और उत्साह भी है पर भोपाल छोड़ने का दुःख भी हो रहा है! भोपाल एक ऐसा शहर है की इससे प्यार हो ही जाता है! हर बार ट्रांसफर के समय ऐसी ही अजीब सी मन स्थिति हो जाती है! खैर अच्छी बात ये है की विदिशा भोपाल से केवल पचास किलो मीटर दूर है! आना जाना लगा रहेगा! और दूसरी अच्छी बात ये है की विदिशा जिले में मैं मैंने ट्रेनी डी.एस,पी. की तरह काम किया है आज से नौ साल पहले....तो जानी पहचानी जगह...जाने पहचाने लोगों के बीच दोबारा जाना अच्छा ही लगता है! अभी पैकिंग...शिफ्टिंग..का सारा काम बाकी है! शायद एक महीना लग जाये पूरी तरह सेट होने में! कुछ दिन पहले एक नज़्म लिखी थी! आज के लिए वही....शायद फिर कुछ दिनों तक नियमित आना न हो पाए......
वो मुझे मिला था
एक आवारा बादल की तरह
जो घर की छत पर कुछ पलों को
सुस्ताने रुक गया हो
ऐसे ही ठहर गया था वो
मेरे दरिया के मुहाने पर
मैंने अपनी रूह के पानी से भिगोया था उसे
बिना जाने ...ये पानी न जाने कहाँ बरसेगा
वो ऊपर अपने आसमान में टंगा था
और उसका अक्स मेरे अन्दर समाया था
वो ठहरा रहा...
रात उबासियाँ लेती रही
हम एक दुसरे की ज़मीन नापते रहे
जन्मों का हिसाब पलों में समेटते रहे
न वादों की पायल
न कसमों की जंजीर
बस इश्क की बिंदिया मेरे माथे झिलमिलाई थी
हम एक दुसरे के बदन में जागते रहे
चाँद का तिलिस्म टूटने तक
न जाने कहाँ बरसा होगा वो
न जाने क्या घटा इन पलों में
बस इतना जाना...उसके जाने के बाद
वो अपनी रूह मेरी ज़मीन पर बिछा कर चला गया था
जिस पर मेरा इश्क आराम करता है
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
4 years ago