जब जब हिज्र का सावन आता है
तन्हाई के बादल घिर आते हैं
और दिल की गीली ज़मीन पर
सोया हुआ तेरी यादों का बीज
अंकुरित हो उठता है...
आँखों के मानसून से
भीग उठती है मेरे दिल की कायनात
वक्त की गर्द से ढकी
मेरी मोहब्बत का ज़र्रा ज़र्रा
चमक उठता है धुलकर
और तब
तेरे और मेरे बीच
नहीं रहता वक्त का फासला
रूहें मिलती हैं पूरी शिद्दत से
और मोहब्बत को मिलते हैं
नए मायने....
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
2 comments:
भाव अच्छे हैं, लिखते रहें, शुभकामनाऐं.
bahut khubsurat
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