ग़म की फितरत मुझे सताने की
मेरी भी जिद उसे हराने की
छुपा न पाओगे आँखों की नमी
छोड़ो कोशिश ये मुस्कुराने की
दिल तुम्हारा है सच्चे मोती सा
क्या ज़रूरत तुम्हे खजाने की
टूट कर चाहना फिर मर जाना
यही तकदीर है परवाने की
सीने की कब्र में मुर्दा दिल है
न करो जिद मुझे जिलाने की
खेत छूटे, न रोज़गार मिला
ये सजा है शहर में आने की
मुफलिसी में तुझे पुकारा है
ठानी है तुझको आजमाने की
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
1 comments:
अच्छी कवितायें हैं।
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