बचपन हमारे बराबर कद के थे दोस्त
आज तुम इतने ऊंचे हो गए हो
कि मेरे हाथ नहीं पहुँचते तुम तक
हम दोनों ने विस्तार किया
मैंने समंदर की तरह
तुमने आसमान की तरह...
मैंने अपनी मौजों को बहुत उछाला पर
खाली हाथ वापस आ गयीं
तुम्हे छू भी नहीं पायी
तुम्ही झुक कर मुझे गले लगा लो दोस्त
जैसे उफक पर आकर
आसमान समंदर के गले लगता है...
तुम्हारे लिए
-
मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
1 comments:
कविता स्वयं में वह उफक ही है.. पल्लवी जी। अच्छा लगा आपको पढ़ कर।
Post a Comment