पूनम की रात आँगन में आया न करो
चांदनी को इस तरह लजाया न करो
मुझ जैसे लोग हो न जाये बदगुमा कही
बेवजह ही तुम यूं मुस्कुराया न करो
जो खुद ही बिखरा है,किसी को क्या देगा
टूटते तारे को यूं आजमाया न करो
माना कि तेरे दर्द ने कुछ शेर दे दिए
पर बहुत हुआ अब और सताया न करो
खाता पे मेरी मुझसे नाराज़ भी नहीं
अपने दीवाने को यूं पराया न करो
मैं संग हो गया तो कौन पूछेगा तुझे
ऐ खुदा मुझको इतना रुलाया न करो
टूटेंगी तो सीधे आँखों में चुभेंगी
ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
1 comments:
yah ghazal anmol hai... sundar shabd iske aage nirthak hai... yah adwiteey hai...
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