दीवार कहाँ बोलती है कुछ
बस सहती रहती है ....
कीलों और हथौडों के वार से
होती रहती है ज़ख्मी बार बार,लगातार
वो अपने ज़ख्म दिखाए भी तो किसे
ज़ख्म देने वाले उसके अपने ही तो हैं
वो ही,जिन्होंने बनाया है उस दीवार को
बदलते है लोग और
बदलता जाता है दीवार का रंग भी
सजती और रंगती रहती है उसके खरीदार की पसंद से
काश कोई हो जो झाँक सके
उसकी दरारों के परे..
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
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