बिखरे ख़्वाबों को सीने से लगा रखा है
हमने वीरानों में आशियाना बना रखा है
ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है
मिठास मोहब्बत की उसके नाम करके
आँखों के खारेपन को बचा रखा है
धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है
रूठ के बैठे हैं आज हमसे वो
दरबार रकीबों का लगा रखा है
होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है
लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है
संग हो न जाए बदगुमान कहीं
हमने मंदिर में आइना लगा रखा है
नंगे पाँव चुभ जाए न खार कहीं
तेरे लिए ही चिराग-ए-चाँद जला रखा है
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
1 comments:
होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है
लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है
bap re.....itna dard hai isame.
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