शाम है ग़मगीन रात भी उदास है
साए तेरी यादों के मेरे आसपास हैं
शब भर गुजार आया मयखाने के अन्दर
बुझती नहीं है फिर भी ये कैसी प्यास है
ये दिल भी तो कमबख्त मेरी मानता नहीं
जो जा चूका है दूर उसी की तलाश हैy
सीखा कहाँ से तुमने ग़म में भी मुस्कुराना
जीने की ये अदा तो बस फूलों के पास है
उसके देखने से हुआ इश्क का गुमान
अल्लाह जाने सच है या मेरा कयास है -
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
4 years ago
1 comments:
sach hai sach me.
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