कल देखा....
एक दादाजी को
पार्क वीरान होने के बाद
शाम के धुंधलके में
झूला झूलते...
एक आंटी को
बस में खिड़की वाली सीट के लिए
पडोसन से झगड़ते...
एक पिता को
बेटे के सोने के बाद
उसकी ड्राइंग बुक से देखकर
ड्राइंग बनाने की कोशिश करते...
एक पत्नी को
मेले में अपने पति से
गुब्बारे लेने की जिद करते....
एक कंपनी के मैनेजर को
सेमिनार में
लेक्चरर का कार्टून बनाते...
अपनी माँ को
सर्दी जुकाम में
आइस क्रीम न देने पर
मुंह फुलाते...
सच ही तो है
बचपन भले ही चला जाये
बचपना कहाँ जाता है
और शायद यही तो है
जो इंसान की मासूमियत
खोने से बचाता है
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
1 comments:
ek ek baat sau feesadi sacchi..
Bahut Badhiya..
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