फिर किसी राहगुज़र पर शायद...
वो कभी मिल सकें मगर शायद.........
आज ये ग़ज़ल मुझे न जाने किस दुनिया में ले गयी! सारे वो चेहरे जिनके साथ कभी न कभी जिंदगी के बहुत खूबसूरत पल बिताये हैं, अचानक से जेहन में कौंध गए! जिन दोस्तों के बिना शायद ये जिंदगी ऐसी न होती जैसी आज है! आज भी जब दोस्ती की बात चलती है तो ये सब बहुत याद आते हैं मगर आज इस दुनिया की भीड़ में न जाने कहाँ गुम हो चुके हैं! न कोई पता...न ठिकाना! न ये पता की आज ये क्या कर रहे हैं!लेकिन यादों में उसी तरह ताज़ा हैं जैसे बरसों पहले थे! माधवी, ऋचा, जीतू ,मंजूषा ....आज तुम सब बहुत याद आ रहे हो! कहाँ हो यार तुम सब? वापस आ जाओ तो शायद फिर से लाइफ रिवाइंड हो जाए!
माधवी....तुम मेरी पहली पक्की सहेली थी! मुरैना के स्कूल में हमने एक साथ पहली क्लास में एडमिशन लिया था! तुम मेरी पहली दोस्त बनी थीं! आज तुमसे अलग हुए शायद पच्चीस साल हो गए ....अब शायद सामने भी आ जोगी तो नहीं पहचान पाऊँगी! मुझे अभी तक तुम्हारा चौथी कक्षा वाला चेहरा याद है! और तुम्हारे चिडिया के घोंसले जैसे घने घने बाल...हम सब तुम्हे चिढाया करते थे लेकिन दरअसल तुम्हारे बाल हम सबसे अच्छे थे ...! आज भी जब कभी मुरैना जाना होता है तो तुम्हारी दुकान " कुमार रेडियोज़" को ढूंढती हूँ जहां ये पहले हुआ करती थी! पर शायद इतने सालों में तुम्हारी दुकान भी बदल गयी होगी! कभी सोचती हूँ की अचानक कभी तुम अपनी दूकान के बाहर दो बच्चों के साथ खड़ी नज़र आ जोगी....हो सकता है तुम्हारी बेटी आज बिलकुल वैसी ही हो जैसी तुम क्लास फोर्थ में थीं!
और ऋचा तुम कहाँ चली गयीं यार? तुम मंडला में अपने बारहवी क्लास के ग्रुप की सबसे क्यूट लड़की और मेरी बहुत प्यारी दोस्त! तुम्हे याद है हब सब फ्रेंड्स अक्सर एक साथ होते थे तो कहते थे कि आज से पंद्रह साल बाद हम सब एक बार फिर इकट्ठे होंगे! लेकिन ये सब प्लान जो मासूमियत और बेफिक्री के आलम में बनते हैं....दुनियादारी में उलझकर हमें याद भी नहीं रहते! और लोगों का तो फिर भी मुझे पता है कि वो लोग कहाँ है मगर तुम्हारे बारे में कुछ पता नहीं है! तुम पढाई में बहुत तेज़ थीं , हो सकता है आज तुम किसी बहुत अच्छी जगह पर होगी! तुम्हारे साथ की गयी सारी शरारतों को आज भी मैं मुस्कराहट के साथ याद करती हूँ! आ जाओ यार...एक बार फिर से वो सारी शरारतें दोहराने का मन कर रहा है!
और जीतू....तुम तो ऐसे गायब हो गए यार कि ढूंढ ढूंढ कर हम थक गए तुम्हे! तुम मुझे उस वक्त मिले जब पढाई ख़त्म करके हम लोग कैरियर की चिंता में डूबे हुए थे! कम्पयूटर क्लास में हुई हमारी पहचान कितनी अच्छी दोस्ती में बदल गयी थी! मैं तो जल्द ही कम्पयूटर से ऊब गयी थी लेकिन तुम उसी में आगे बढ़ना चाहते थे!मैंने पी.एस.सी. की तैयारी की और तुम्हारे ख्वाब अपना काम शुरू करने का था! शाजापुर में बिताये हुए चार साल तुम्हारे ज़िक्र के बिना पूरे नहीं होंगे! दिन भर की थकान के बाद शाम को तुम्हारे साथ बैठ के हँसना बहुत सुकून भरा लगता था! मैं और गड्डू जब भी एक साथ होते हैं...तुझे ज़रूर याद करते हैं! मेरा नंबर तो वही है यार....कभी कॉन्टेक्ट करने की कोशिश क्यों नहीं करते! अगर कंट्रोल रूम से भी मांगोगे तो मेरा नंबर मिल जाएगा! अचानक तुम्हारा इस तरह गायब होना हमें नहीं भय! बस अब जल्दी से वापस आ जाओ....
तुम सब दोस्तों को मैंने कितना ढूँढा.....ऑरकुट पर तलाशा इस उम्मीद के साथ की यहाँ तो तुम हंड्रेड परसेंट मिल ही जाओगे! मगर कितने आउट डेटेड हो यार! यहाँ भी नहीं हो! अब ब्लॉग तो क्या ही पढ़ते होगे तुम लोग! पर मैं भी उम्मीद कहाँ छोड़ने वाली हूँ! पता है...जब कभी रेलवे स्टेशन पर जाती हूँ चैकिंग करने तो आँखें भीड़ में इधर उधर कुछ खोजती रहती हैं! शायद कभी अचानक तुममे से कोई मिल जाए....और " अरे तू..." कहते हुए हम गले लग जाएँ!
वो जो बिछडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ ......
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद.....
वो कभी मिल सकें मगर शायद.........
आज ये ग़ज़ल मुझे न जाने किस दुनिया में ले गयी! सारे वो चेहरे जिनके साथ कभी न कभी जिंदगी के बहुत खूबसूरत पल बिताये हैं, अचानक से जेहन में कौंध गए! जिन दोस्तों के बिना शायद ये जिंदगी ऐसी न होती जैसी आज है! आज भी जब दोस्ती की बात चलती है तो ये सब बहुत याद आते हैं मगर आज इस दुनिया की भीड़ में न जाने कहाँ गुम हो चुके हैं! न कोई पता...न ठिकाना! न ये पता की आज ये क्या कर रहे हैं!लेकिन यादों में उसी तरह ताज़ा हैं जैसे बरसों पहले थे! माधवी, ऋचा, जीतू ,मंजूषा ....आज तुम सब बहुत याद आ रहे हो! कहाँ हो यार तुम सब? वापस आ जाओ तो शायद फिर से लाइफ रिवाइंड हो जाए!
माधवी....तुम मेरी पहली पक्की सहेली थी! मुरैना के स्कूल में हमने एक साथ पहली क्लास में एडमिशन लिया था! तुम मेरी पहली दोस्त बनी थीं! आज तुमसे अलग हुए शायद पच्चीस साल हो गए ....अब शायद सामने भी आ जोगी तो नहीं पहचान पाऊँगी! मुझे अभी तक तुम्हारा चौथी कक्षा वाला चेहरा याद है! और तुम्हारे चिडिया के घोंसले जैसे घने घने बाल...हम सब तुम्हे चिढाया करते थे लेकिन दरअसल तुम्हारे बाल हम सबसे अच्छे थे ...! आज भी जब कभी मुरैना जाना होता है तो तुम्हारी दुकान " कुमार रेडियोज़" को ढूंढती हूँ जहां ये पहले हुआ करती थी! पर शायद इतने सालों में तुम्हारी दुकान भी बदल गयी होगी! कभी सोचती हूँ की अचानक कभी तुम अपनी दूकान के बाहर दो बच्चों के साथ खड़ी नज़र आ जोगी....हो सकता है तुम्हारी बेटी आज बिलकुल वैसी ही हो जैसी तुम क्लास फोर्थ में थीं!
और ऋचा तुम कहाँ चली गयीं यार? तुम मंडला में अपने बारहवी क्लास के ग्रुप की सबसे क्यूट लड़की और मेरी बहुत प्यारी दोस्त! तुम्हे याद है हब सब फ्रेंड्स अक्सर एक साथ होते थे तो कहते थे कि आज से पंद्रह साल बाद हम सब एक बार फिर इकट्ठे होंगे! लेकिन ये सब प्लान जो मासूमियत और बेफिक्री के आलम में बनते हैं....दुनियादारी में उलझकर हमें याद भी नहीं रहते! और लोगों का तो फिर भी मुझे पता है कि वो लोग कहाँ है मगर तुम्हारे बारे में कुछ पता नहीं है! तुम पढाई में बहुत तेज़ थीं , हो सकता है आज तुम किसी बहुत अच्छी जगह पर होगी! तुम्हारे साथ की गयी सारी शरारतों को आज भी मैं मुस्कराहट के साथ याद करती हूँ! आ जाओ यार...एक बार फिर से वो सारी शरारतें दोहराने का मन कर रहा है!
और जीतू....तुम तो ऐसे गायब हो गए यार कि ढूंढ ढूंढ कर हम थक गए तुम्हे! तुम मुझे उस वक्त मिले जब पढाई ख़त्म करके हम लोग कैरियर की चिंता में डूबे हुए थे! कम्पयूटर क्लास में हुई हमारी पहचान कितनी अच्छी दोस्ती में बदल गयी थी! मैं तो जल्द ही कम्पयूटर से ऊब गयी थी लेकिन तुम उसी में आगे बढ़ना चाहते थे!मैंने पी.एस.सी. की तैयारी की और तुम्हारे ख्वाब अपना काम शुरू करने का था! शाजापुर में बिताये हुए चार साल तुम्हारे ज़िक्र के बिना पूरे नहीं होंगे! दिन भर की थकान के बाद शाम को तुम्हारे साथ बैठ के हँसना बहुत सुकून भरा लगता था! मैं और गड्डू जब भी एक साथ होते हैं...तुझे ज़रूर याद करते हैं! मेरा नंबर तो वही है यार....कभी कॉन्टेक्ट करने की कोशिश क्यों नहीं करते! अगर कंट्रोल रूम से भी मांगोगे तो मेरा नंबर मिल जाएगा! अचानक तुम्हारा इस तरह गायब होना हमें नहीं भय! बस अब जल्दी से वापस आ जाओ....
तुम सब दोस्तों को मैंने कितना ढूँढा.....ऑरकुट पर तलाशा इस उम्मीद के साथ की यहाँ तो तुम हंड्रेड परसेंट मिल ही जाओगे! मगर कितने आउट डेटेड हो यार! यहाँ भी नहीं हो! अब ब्लॉग तो क्या ही पढ़ते होगे तुम लोग! पर मैं भी उम्मीद कहाँ छोड़ने वाली हूँ! पता है...जब कभी रेलवे स्टेशन पर जाती हूँ चैकिंग करने तो आँखें भीड़ में इधर उधर कुछ खोजती रहती हैं! शायद कभी अचानक तुममे से कोई मिल जाए....और " अरे तू..." कहते हुए हम गले लग जाएँ!
वो जो बिछडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ ......
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद.....