Wednesday, September 21, 2011

happy birth day papa...

डियर पापा... ये मेरा आपको लिखा पहला खत है! सालों से बहुत कुछ मन में है जो कहना चाहती थी पर कैसे कहती.. जो आप तक पहुँच पाता? आज आप होते तो चौंसठ साल के होते! क्या कहूँ...कहाँ से शुरू करूँ समझ नहीं प् रही हूँ! बस इतना पता है कि आज मैं आपसे ढेर सारी बातें करना चाहती हूँ... वो जो आपके जाने के बाद हुआ उसके बारे में...और वो भी जो आपके रहते भी आपसे कभी न कह सकी! पापा आपको पता है.. आपके जाने के बाद मैंने आपको अपने ज्यादा करीब महसूस किया है! पता नहीं क्या सिस्टम है हमारे यहाँ कि हम अपने पिता से कभी दोस्ती का रिश्ता नहीं रख पाते! एक संकोच..एक भय हमेशा मैंने भी महसूस किया! कई बार मन करता था कि अच्छा रिज़ल्ट आने पर दौडकर आपके गले लग जाऊ मगर हमेशा एक दूरी सी बनी रही!जैसा लाड मम्मी को कर सकते थे ..आपको कभी न कर पाए! सम्मान हमेशा प्यार पर हावी रहा!अपने मन की बातें कभी खुल कर हम चारों आपसे कभी न कह सके! मगर आपके जाने के बाद जैसे सारी गांठें खुल गयीं! हमारे रिश्ते को हर भय ..हर संकोच से आज़ादी मिल गयी!

जब आप गए तो अचानक से दुनिया वीरान हो गयी! लगा जैसे ..हम सब एक दूसरे के साथ रहते हुए भी बिलकुल अकेले हैं! पर वक्त के साथ धीरे धीरे हम सहज हुए और एक दिन अचानक महसूस हुआ... जैसे आप कहीं नहीं गए हैं! बल्कि अब मेरे और ज्यादा करीब आ गए हैं! मैंने हर बुरे समय में आपको याद किया...आपसे मदद मांगी और आपसे दिल की सारी बातें कहकर ..आपके सामने रोकर हलकी हो गयी! हर बार लगा..मानो आप मेरे बालों को सहला रहे हैं और मुझे नींद आ गयी! मुझे अब खुद पर आश्चर्य होता है...कभी कोई अंधविश्वास न मानने वाली मैं अब ये यकीन करने लगी हूँ कि दुनिया से जाने वाले लोग सितारे बन जाते हैं.. कई बार मैं आसमान को एकटक देखती हूँ और आप हँसते हुए मुझे नज़र आते हो! पुनर्जन्म की कोई बात करता है तो मुझे लगता है अगर आप वापस इस दुनिया में आये होगे तो इस वक्त ग्यारह साल के होगे! सोचकर मुस्कुरा पड़ती हूँ मैं!

पापा...आपकी तस्वीर कमरे में है मगर हम उस पर फूलमाला नहीं टांगते हैं! क्योकि आप कहीं नहीं गए हो... बस मिस्टर इण्डिया की तरह इनविजिबल हो गए हो! हम आपको महसूस कर सकते हैं...आपसे बात कर सकते हैं और आपको सुन सकते हैं! पापा एक बचकानी बात कहूँ... आपके जाने के बाद न जाने क्यों मुझे लगता था कि आप जहां भी होगे बहुत अकेले होगे! क्योंकि आपके सारे दोस्तों ..परिवार वालों में आप ही सबसे पहले गए! इसलिए आपके एक दोस्त जब इस दुनिया से गए तो मुझे लगा जैसे अब आपको वहाँ कंपनी मिल गयी होगी और आप पहले की तरह ठहाके लगा रहे होगे! और अब तो अम्मा..बब्बा भी आपके साथ होंगे न! आप फिर से विथ फैमिली रह रहे होगे न :)

पापा... मैं जानती हूँ मैंने कई बार आपका दिल दुखाया! और कभी माफ़ी नहीं मांग पाई! पर जिस तरह अचानक आप चले गए उससे मैं एक बात सीखी कि माफ़ी मांगने में एक पल की देर भी नहीं करना चाहिए! वैसे मैं जानती हूँ कि आपने मुझे कब का माफ कर दिया है पर फिर भी आज दोबारा आपसे अपनी हर गलती की माफ़ी मांगती हूँ! ये सोचकर कि ये खत आप तक ज़रूर पहुंचेगा! कौन जाने कोई सैटेलाईट वहाँ भी तरंगे भेजती हो! और आप मेरा ब्लॉग वहाँ मेंहदी हसन कि ग़ज़ल गुनगुनाते हुए पढते हो!

पापा.. हम सब आपको बहुत बहुत प्यार करते हैं! मिन्नी की शादी में हम सबने आपको बहुत मिस किया! हांलाकि एक दूसरे से किसी ने कुछ नहीं कहा! पापा..मैं आपको हमेशा परेशान करती रहूंगी और अपनी सारी बेसिर पैर की बातें सुनाकर आपका सर खाती रहूंगी! हाँ..मैं बिलकुल सेंटी नहीं हो रही हूँ आपके जन्मदिन पर!मुस्कराहट के साथ आपको ये खत लिख रही हूँ!आप भी मुस्कुरा कर ही पढ़िए! happy birth day papa... i love u.

आपको आपके जन्मदिन पर आपकी पसंद की एक ग़ज़ल भेज रही हूँ! सुनिए और भगवान को भी सुनाइये... .

Friday, June 3, 2011

बरसात...तुम ..आखिरी मुलाक़ात..और थोड़ी सी मैं भी

बारिश में हिचकी क्यों आती है... कई साल पहले तुमने ये सवाल पूछा था! "मुझे क्या पता...तुम्हे बारिश से एलर्जी होगी ज़रूर!" मैंने तुम्हारे सवाल को हंसी में घोल दिया था!
आज यही सवाल मुझे तुमसे पूछने का मन कर रहा है " तुम बताओ न..बारिश में हिचकी क्यों आती है?"


कितनी अजीब सी बात है न कभी जिस जगह हम दूसरे को खड़ा देखते हैं... खुदा के हिसाब किताब में हमें भी उस जगह पर कभी न कभी ज़रूर खड़े होना पड़ता है! तब बीता हुआ वक्त बहुत तेज़ी से जिस्म और दिमाग में सरगोशी करता है! तुम्हारी हिचकियों की वजह का नाम भी मैं जानती थी इसलिए जानकर भी जवाब देने से बचती थी... मगर मेरी हिचकियों की वजह तुम हो.. तुम ये कभी जान न पाओगे !

साल पे साल बीतते जाते हैं.. हम मशीन या कभी कभी उससे कुछ ज्यादा की तरह जिंदगी जीते या यूं कहो जिंदगी को काटते जाते हैं! पर हैरत होती है सोचकर कि इन गुज़रे सालों का एक आवारा लम्हा मशीन से इंसान बना जाता है!ऐसे लम्हों की दिमागी स्तर पर कोई कीमत नहीं...मगर दिल के अनमोल खजाने तो यही हैं बस! तुम पढ़ते तो सोचते जाने क्या क्या लिख रही है!

बरसात रुकने का नाम नहीं ले रही है और हिचकी भी... तुम कहते थे ना कि जिंदगी में अगर तुम तकलीफ में होगी तो ये बात मुझे किसी और से पता नहीं चलना चाहिए! मैं सुनकर कितनी खुश हुई थी... इसलिए नहीं कि तुम मेरा दुःख बांटने आओगे बल्कि इसलिए कि अपने दर्द को तुमसे बात करने की वजह बना लूंगी मैं! पर इस लम्बे अरसे में तुमसे बात न हुई... तुम कहीं ये तो नहीं सोचते कि इतने साल मैं रोई ही नहीं?

जब बारिश आती है तो कुछ काटता है..! न मालूम क्या... शायद आंसू ही पैने हो जाते हों!



" काले घुमड़ते बादलों में छुपकर कोई रोता है क्या...?" ये तुम्हारा दूसरा सवाल था बारिश पर!
" कोई नहीं रोता... बच्चे बादलों में एक दूसरे पर गुब्बारे फोड़ते हैं!" फिर से सवाल को हंस के उड़ाया था मैंने! शायद आज तुम अपने बच्चों के साथ बारिश में खेलते हुए मेरी बात याद करते होगे और सोचते होगे...कितना सही कहती थी मैं! और मैं तुम्हारा सवाल याद करके सोचती हूँ...तुम ही सही थे!
आज ये सवाल मैं पूछना चाहती हूँ..मगर किससे पूछूं ?


बारिश की बूंदों के साथ तुम घुलते जाते हो मेरे अन्दर! शायद यही वजह होती है मेरे बारिश में भीगने की और कभी कभी नहीं भीगने की! बारिश मुझे बहुत अच्छी लगती है...ये मुझे खुद से मिलाती है , तुमसे मिलाती है!तुम रोज़ नहीं आ सकते इसलिए बारिश.. तुम रोज़ आ जाया करो!

बारिश तेज़ हो रही है...और तेज़! और तुम याद आ रहे हो ..तेज़ और तेज़! कभी ऐसी ही किसी बरसात में तुम्हे जीते हुए एक नज़्म लिखी थी...

जेहन से जाती ही नहीं
वो भीगी शाम
छलक उठी थी
अश्कों में डूबकर


याद है मुझे तुम्हारी ठंडी छुअन
जिसके एहसास से मैं
आज भी सिहर उठती हूँ


उफ़,तुम्हारी वो सिसकियाँ
सीधे दिल में उतर रही थीं
पूरे पहर खामोश थे हम
और शाम गीली हों रही थी

अरसा बीत गया...
पर माज़ी की वो भीगी शाम
खिंची चली आई है
मेरे आज का सिरा पकड़कर
यूं तो जिस्म सूखा है पर
रूह तो आज तक भीगी हुई है

शायद आखिरी मुलाकातें ऐसी ही होती हैं....

Saturday, May 28, 2011

दर्द बांटना कूल डूड के डैड का...

आजकल संतोष को न जाने क्या हो गया है... शर्मा जी का सन्तू! प्यारा सा...सीधा सादा बच्चा!इस साल टेंथ में आया है सन्तू! अगर शर्मा जी को पता होता की ये दसवी कक्षा इतनी खतरनाक होती है तो हनुमान जी की कसम चाहे जो करना पड़ता...सन्तू को दसवी में घुसने ही न देते! चाहे घूस देकर फेल ही क्यों न करवाना पड़ता! शर्माइन भी इन दिनों भौचक्की सी बस सन्तू के नित बदलते रूप और हरकतों को ही निहारती रहती ! उनका भोला भाला सन्तू साइड से मांग निकालता था॥रोज़ बालों में तेल डालता था... पापा को पापा और मम्मी को मम्मी कहता था... मोहल्ले के बाकी भले बच्चों जैसे कपडे पहनता था! दसवी में आते ही न जाने कौन सी आफत आ गयी ..ये शर्मा शर्माइन रात रात भर जागकर मंथन करने पर भी नहीं समझ सके !

सन्तू ने न जाने क्या लगाकर बालों को कटी फसल के ठूंठ की तरह खड़ा कर लिया जींस के पैंट फाड़कर इतने बड़े छेद बना लिए कि सन्तू के कटे छिले घुटने उसमे से खीसें निपोरते नज़र आते और बैठने पर तो अपने समग्र रूप में दर्शन देते! सन्तू की जींस इतनी नीचे बंधने लगी कि हमेशा शर्मा जी को उसके निपकने की आशंका घेरे रहती ! अपने दोस्तों के सामने शर्मा जी सन्तू के आने मात्र से घबरा उठते ..कहीं इन्ही के सामने सन्तू की फटी जींस सरक गयी तो खामखा सब हसेंगे! बोलेंगे कि शर्मा लड़के को नाप की साबुत जींस भी नहीं दिला सकता! शर्मा जी समझ न पाते की आखिर ये जींस सन्तू की कमर की हड्डियों पर किस प्रकार से अटकी रहती है! उधर शर्माइन ये सोचसोच कर परेशान कि उसके लाडले बेटे के रेशमी बाल किसके भय से इस प्रकार खड़े हो गए हैं! एक बार उन्होंने बड़े प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरा तो खुरखुरा सा एहसास पूरे शरीर में दौड़ गया...पर ये बालों को खड़ा किस प्रकार करता है ये जिज्ञासा उन्हें लगातार बनी रही!हर बार उनकी सोच एक वस्तु पर आकर ख़तम हो जाती थी....चाशनी!उन्होंने उसके बाद घर में गुलाब जामुन ही नहीं बनाये! चाशनी के अभाव में भी बाल उसी प्रकार ठूंठ से खड़े रहे!

अब वे मम्मी से मॉम बन गयीं थीं! और शर्मा जी जीते जी " डैड" !बहन " सिस " और भैया " ब्रो " में तब्दील हो चूका था! हमेशा से अंग्रेजी में कमज़ोर सन्तू दो चार वर्ड्स सीख आया था और पूरे घर में वही शब्द मन्त्रों की तरह गूंजते रहते थे! ये वर्ड्स थे " oh shit.. fuck...yup...nope..etc! नीले रंग के ग्लास वाला सस्ता चश्मा लगाने लग गया ! शर्मा जी को अपना सन्तू अब पूरा चुरकट नज़र आता ! कल तो टीशर्ट पर लिखा था " f c u k " अक्षरों को उलट पुलट कर लिख देने से मतलब थोड़े न बदल जाता है!पढ़कर शर्मा जी के मुंह से चाय फचक के बाहर आ गयी!शर्मा जी सच्ची में शर्मा गए! ये छोकरा ऐसी टीशर्ट पहनकर मोहल्ले भर में मंडराएगा... क्या इज्जत रह जाएगी उनकी! शर्मा जी भारी विचलित हो गए! शर्माइन अंग्रेजी नहीं जानती इसलिए विचलित नहीं हुई!
अब सन्तू दिन भर चुइंगम चबाता... एक गिटार जाने किस कबाड़ी से खरीद लाया...मौके बमौके उसे उठाकर टनटनाने लगता! जब भी संतू गिटार को उठाने जाता..गिटार के मन में घनघोर हाहाकार मच जाता! उसके सारे तार त्राहि त्राहि कर उठते! गिटार सोचता काश ईश्वर ने उसे लकड़ी की बजाये मांस पेशियों का बनाया होता तो अपने सारे तार हंटर की तरह संतू की पीठ पर बरसा देता! पर गिटार अपना सर धुनता रह गया और संतू ने उसकी ऐसी तैसी करने में कोई कसर नहीं रखी! पूरे घर में कर्कशता का ऐसा भयंकर माहौल बनता कि छत पर बरसों से डेरा जमाये कौवे घबरा कर संतू को गाली बकते कूच कर गए!कौए से उसका कर्कशता का मैडल छीना जा चुका था जो कि सदियों से उसी के पास शोभायमान था! संतू को इस रूप में देखकर मोहल्ले के गधे प्रसन्न होकर तीन ताल में ढेंचू ढेंचू करने लगते!वे अपने समाज में एक नए सदस्य के आगमन से खुश थे! वे सभी संतू के घर से बाहर निकलते ही मोहल्ले के पार्क में लोट लोट कर अपनी ख़ुशी का इज़हार करते!
शर्मा जी ने जब भी इस घोर परिवर्तन का कारण पूछा तो सन्तू ने बड़ी स्टाइल में जवाब दिया " टेक अ चिल पिल डैड... नाउ आय ऍम अ कूल डूड " और पैर घिसटाता हुआ निकल लिया घर के बाहर! शर्मा जी आँखें फाड़े कूल डूड को देखते रहे...फिर माथा पकड़ कर बैठ गए!

दो दिन पहले शर्मा जी हमारे घर पधारे! दुआ सलाम के पश्चात हमने शर्मा जी से कुशल क्षेम पूछा!! शर्मा जी का रोना निकल गया!अब आप सभी को तो पता है कि कहीं दर्द मिल जाये और हम उसे न बांटे तो हमारा तो खाना ही हज़म न हो! शर्मा जी के कंधे पर ज़रा सा हाथ रखते ही सारा दर्द टपक कर बाहर आ गया! अई शाबाश...मज़ा आ गया दर्द सुनकर क्योकी इसकी दवा हमारे पास थी! हमने शर्मा जी के कान में कुछ खुसुर फुसुर की! शर्मा जी की सुबकियां कम होती गयीं...अंत में सिर्फ नाक बज रही थी ...शर्मा जी प्रसन्न भाव से हमारे घर से रुखसत हुए!

शर्मा जी की हमसे मुलाकात क्या हुई...बेचारे सन्तू के बुरे दिन शुरू हो गए! अगले दिन शर्मा जी ने एक हफ्ते के लिए शर्माइन को मायके भेज दिया! शर्माइन तैयार हो गयीं! जाते जाते सब बच्चों के सर पर हाथ फेरा पर सन्तू के बालों के पास हाथ के आते ही पिछले अनुभव से सहमी उंगलियाँ बगावत कर गयीं! शर्माइन गाल पे हाथ फेरकर मायके निकल लीं!

अब शर्मा जी अपने फॉर्म में आ गए! और हमारे बताये हुए आइडिये के अनुसार तैयार होकर अपनी कूल संतान का इंतज़ार करने लगे! घंटे भर बाद सीटी बजाता हुआ संतू घर में दाखिल हुआ! साथ में चार कूल डूड और भी थे! सारे के सारे खिसकते पैंटों के साथ सोफों पर धमक गए!आज पहली बार शर्मा जी संतू के दोस्तों के आने से प्रसन्न हुए! सारे डूड मिलकर मौज मस्ती में लिप्त थे तभी शर्मा जी ने ड्राइंग रूम में एंट्री मारी...! अपने पिता को देखकर संतू घबरा गया.. उसके मुंह और नाक से स्प्राइट निकल कर बाहर आ गया! बार बार आँखें मलता...कभी थूक गटकता पिता के नए रूप को देखता रहा! संतू के दोस्त भी सोफों पर तन के बैठ गए और एक दूसरे को कोहनी मारने लग गए! शर्मा जी एक नए अवतार में खड़े थे! गोवा में नारियल के पेड़ और समंदर किनारे नहाती लड़की के फोटो वाली टीशर्ट के साथ एक बेरंगा सा बरमूडा जो कि घुटनों पर से फाड़ा गया था ठीक संतू की जींस की तरह! सर पर एक हैट और बड़े बड़े सुनहरे से बालों का एक गुच्छा !
" ये क्या हो गया आपको डैड" संतू ने विचलित होकर पूछा! उसे बड़ी शर्म महसूस हुई अपने दोस्तों के सामने अपने पूज्य पिता को ऐसे चुरकट बने देखकर!
" नो डैड सन...नॉव आई एम् अ कूल डैड! टेक अ चिल पिल सन! यू कैन कॉल मी हैरी!" शर्मा जी जो कि हरि प्रसाद नाम से जाने जाते हैं, अपने नाम का नवीन प्रयोग कर रहे थे!
संतू अकबका गया...उसके होश फाख्ता हो गए.... उसे काटो तो खून नहीं! संतू के दोस्त एक दूसरे को नोच नोच कर सन्तू के डैड का मज़ाक उड़ा रहे थे!और थोड़ी देर में वानरों के समान दांत दिखाते हुए खी खी करने लगे!संतू अब बुरा मान गया और जल्दी से दोस्तों को घर से चलता कर दिया!
" डैड ये सब क्या है....आपकी वजह से मैं कहीं मुंह दिखने लायक नहीं रहा! मेरे दोस्तों के सामने आपने मेरी नाक कटा दी" सन्तू रूआसा सा हो गया!
" कुछ नहीं बेटा... जब तू मॉडर्न बन सकता है तो तेरे डैड भी तो बन सकते हैं! मैं तो सोच रहा था की तू बड़ा खुश होगा" शर्मा जी अपनी सफलता पर बमुश्किल अपनी मुस्कान छुपाते हुए बोले!
" पिताजी...आप कृपा करके वैसे ही बन जाइए जैसे थे"
" नहीं सन... अब तो मुझमे और जोश आया है.. आगे देखना मैं और क्या क्या करता हूँ" शर्मा जी " पिताजी" शब्द सुनकर और जोश में आ गए!
सन्तू घबरा गया पर कुछ नहीं बोला सिटपिटा कर अपने कमरे की ओर प्रस्थान कर गया! आज की मॉडर्न औलादें खुद भले ही मॉडर्न होने के नाम पर दुनिया के सात अजूबों में अपना नाम दर्ज करने की प्रतियोगिता में भिड़ जाएँ मगर इन्हें अपने माता पिता एकदम टिपिकल माता पिता के अवतार में ही चाहिए!शर्मा जी के इस रूप ने संतू की बैंड बजा के रख दी थी!

अगले दिन शर्मा जी ने तडके ही अपने पुराने सन्तू को वापस प्राप्त किया! शर्मा जी ने हमें धन्यवाद ज्ञापित किया! हमने मुस्कुराकर गर्वित भाव से स्वीकार किया! गिटार ने चैन की सांस ली! कौआ सपरिवार वापस छत पर निवास करने लगा! गधों में मातम छा गया और शर्माइन ने आते ही अपने लाल के रेशमी बालों में उंगलियाँ फेरकर तसल्ली की सांस ली!
तो सज्जनों इस प्रकार हमारी एक नेक सलाह से इस प्रकरण का सुखान्त हुआ... हमारा दर्द बांटना सार्थक हुआ!

Thursday, May 19, 2011

वो किसी मुकम्मल ग़ज़ल में एक बे-बहर शेर की तरह था


वो अलग था,सबसे अलग
सारे भाई बहन जब परीक्षा की तैयारी में
हलकान हो रहे होते
वो छत पर आम की गुठली चूसता
माउथ ऑर्गन बजा रहा होता

जब स्कूल के दोस्त लड़कियों के नमक की बातें करते
वो गुड्डी, रिंकी, लाली और
चुनमुन के साथ नहर किनारे
साइकल रेस लगा रहा होता...


जब सारा मोहल्ला दुर्गा जी की झांकियां सजाने में
जन्माष्टमी के भजन गाने में और
गणेश जी का चंदा इकठ्ठा करने में पगलाया रहता
वो गली के पिछवाड़े
दो पिल्लों को अपने मुंह को
चाटने दे रहा होता

जब सब लड़के अपना रिजल्ट देखने
बोर्ड के आगे सर फुटौव्वल कर रहे होते
वो माँ के धोये निचोड़े कपडे
आँगन में डोरी पर फैला रहा होता

वो मुश्किल से सेकण्ड डिविज़न पास होता
वो गणित की किताब में मंटो को छुपाये रहता
पिता कहते कि वो अटपटे ढंग का लड़का था
माँ कुछ नहीं कहती
पर हैरानी से कभी उसे
कभी बाकी बच्चों को देखती रहती

एक दिन ग़ालिब ने कहा
वो किसी मुकम्मल ग़ज़ल में
एक बे-बहर शेर की तरह था
ऐसा शेर जिसमे शायर ने
अपने ख़याल नहीं बल्कि
अपने ख्वाब और रूह डाली थी...
और वही ग़ज़ल का
मतला भी था....

Thursday, May 5, 2011

एक सरकारी फ़ाइल की आत्मकथा


मैं एक सरकारी दफ्तर की फ़ाइल हूँ!मैं शासन को चलाने में महत्वपूर्ण योगदान देती हूँ!बल्कि यूं समझो की मेरे बिना कोई सरकार चल ही नहीं सकती!मैं आगे बढती हूँ तो सरकारी कामकाज आगे बढ़ता है!अगर मैं रुक जाऊ तो काम भी रुका समझो...सरकार का नहीं जी, जनता का!

मैं धनाकर्षण बल के सिद्धांत पर कार्य करती हूँ!और मेरा ईंधन भी यही है!यदि मेरा पेट नोटों से भरा रहता है तो मेरी गति देखने योग्य होती है!मैं निर्धारित समय सीमा में गंतव्य स्थान तक पहुँच जाती हूँ!गरीब गुरबों को मुझसे दूरी बनाकर रखना चाहिए!जैसे जैसे मुझ पर भार बढ़ता जाता है मैं एक टेबल से दूसरी टेबल पार करती हुई बड़े साहब की टेबल पर पहुँच जाती हूँ!जिनके पास धन नहीं है उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है!धनाभाव में किसी मिनिस्टर या बड़े अधिकारी की एप्रोच से भी काम चल सकता है!पर ऐसे में मेरे मालिक " मेरे बाबू " ज्यादा खुश नहीं होते!

सिद्धांत के मामले में कभी समझौता नहीं करती!मेरे लिए अमीर, गरीब, लाचार , अपंग सब बराबर हैं!बिना सेवा के मैं भी किसी की सेवा नहीं करती! कभी कभी कोई बेवकूफ किस्म का बाबू या अधिकारी मुझे बिना वजन के ही आगे बढाने की कोशिश करता है! किन्तु शीघ्र ही ऐसे बेवकूफ मुसीबत में फंस जाते हैं और उनके खिलाफ गुमनाम शिकायतों का सिलसिला शुरू हो जाता है!लेकिन मैं जानती हूँ ,ये गुमनाम लोग मेरे भ्रष्ट आका ही होते हैं जो ऐसे ईमानदार बेवकूफों को अपने रास्ते से हटाना भली प्रकार जानते हैं!जल्दी ही ऐसे लोग लाइन पर आ जाते हैं और दोबारा लीक से हटने का साहस नहीं करते!

एक राज की बात और बताऊँ...मैं केवल जनता को ही नहीं बल्कि शासकीय कर्मचारियों को भी नहीं बख्शती!पेंशन, अवकाश, जी.पी,एफ. और यात्रा देयक सम्बन्धी कार्य के लिए यदि मुझ पर वजन न रखा जाये तो मैं दफ्तर की अलमारी के ऊपर धूल खाती देखी जा सकती हूँ!कई लोग ऐसे भी हैं जो आज के युग में गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने की मूर्खता करते हैं और व्यवस्था के आगे घुटने नहीं टेकते !मैं ऐसे ही एक महाशय का किस्सा आपको सुनाती हूँ! एक सज्जन पिछले पंद्रह वर्षों से रिटायरमेंट के बाद अपने धन की प्राप्ति हेतु मेरे दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं!जितना धन उन्होंने पंद्रह वर्षों में टैम्पो से मेरे दफ्तर के चक्कर लगाने में, जगह जगह अपनी समस्या के निराकरण के लिए आवेदन देने में , गर्मी में बीमार पड़कर अपना इलाज करने में और चप्पलें घिसने पर नयी चप्पलें खरीदने में खर्च किया, उतना अगर मुझ पर रख देते तो मैं कब की आगे बढ़ गयी होती!ये द्रष्टान्त मैंने इसलिए सुनाया ताकि भविष्य में कोई ऐसी गलती न करे!

कभी कभी मुझ पर संकट आती है जब " सूचना का अधिकार " टाइप के क़ानून बन जाते हैं!उस समय मेरे आका लोग थोड़े परेशान नज़र आते हैं!किन्तु कुछ ही दिनों में ये बुद्धिमान लोग इसका उपाय भी निकाल लेते हैं!तरह तरह के क़ानून, प्रक्रिया और आपत्ति निकालकर मुझे महीनों घुमाया जाता है!

जब तक बाबूराज है तब तक मैं इसी तरह दफ्तरों में लाल फीते में बंधी सजती रहूंगी!अगर इससे ज्यादा जानने की इच्छा है तो कृपया मेरे मालिक के पास आइये, एक चाय के साथ एक समोसा खिलाइए और उनकी ठंडी जेब को गर्म कीजिये!हर प्रकार की जानकारी मय समाधान के आपको उपलब्ध करा दी जायेगी!अच्छा तो अब मैं चलती हूँ...कहीं मेरे मालिक ने देख लिया की मैं फ़ोकट में अपने बारे में इतनी जानकारी दे रही हूँ तो मेरे लिए मुसीबत हो जायेगी... राम राम!

Saturday, April 23, 2011

एक मुलाकात दस साल बाद...


कैसा लगेगा पूरे दस साल बाद मिलना... क्या सब कुछ वैसा ही होगा जैसा दस साल पहले था? वो कितना बदला होगा..शायद थोडा मोटा हुआ होगा और हाँ थोड़े बाल भी उड़ गए होंगे...पहले ही कम थे बाल! उफ़ एक सेकण्ड में न जाने कितने ख़याल...सोच का दायरा दिमाग की सीमाओं से बाहर फैलने लग जाता है कभी कभी! आज शाम ६ बजे सी.सी.डी. में हम फिर से एक दूसरे के साथ होंगे...वो सोचती जा रही है है और अलमारी में से कपडे निकाल कर बिस्तर पर गिराती जा रही है... अचानक उसके हाथ में हलकी पीली शिफौन आ गयी है...
हलकी पीली शिफौन की साड़ी.... उसके जन्मदिन पर उसने लाकर दी थी!
" लगता है... चांदनी की श्रीदेवी का असर अब तक है?" उसने चुटकी ली थी..
पीली साड़ी उसने छांट कर अलग निकाल ली है... मैचिंग की पतली पतली एक दर्जन चूड़ियाँ भी और पीले इयर रिंग भी! पर अचानक न जाने क्या दिमाग में आया..साडी वापस अलमारी में रख डी है! नहीं नहीं... इसे देखकर खामखा सोचेगा कि मैं अभी तक..! उसने एक लखनवी पिंक कुर्ती और सफ़ेद चूड़ीदार निकाल लिया है!
वह भी शाम की तैयारी कर रहा है!उसके पास मिकी की दी हुई कोई शर्ट नहीं है!
मिकी... अरसे बाद ये नाम कौंधा है जेहन में! वो मिकी माउस और खुद डोनाल्ड डक! वो जोर से हंस पड़ा है.. शाम की तैयारी में और उत्साह आ गया है! उसने दराज खोली है और टाइटन की एक गोल्डन घडी निकाली है! अपनी पहली तनख्वाह से मिकी घडी लायी थी! बस यही चीज़ बाकी रह गयी है... घडी थोड़ी बदरंग हो गयी है...चलेगा! मगर ये तो टिक टिक भी नहीं कर रही है... वो थोड़ी देर सोचता है ... चलेगा! उसे मालूम होना चाहिए की मैं आज भी....!

उसने तय किया है कि वो थोडा लेट ही जाएगी... बिलकुल टाइम पर पहुँचने से लगेगा मानो मरी जा रही हूँ मिलने के लिए... ठीक छै बजे घर से निकलूंगी... छै बीस पर वहाँ पहुँच जाउंगी! कोई गिफ्ट ले जाना ठीक रहेगा या नहीं? ठीक है...एक किताब रख लेती हूँ ..माहौल देखकर सोचूंगी! पर कौन सी किताब... नज़्म या कहानियाँ या फिर कोई नोवेल..? बुक स्टोर पर जाकर वो अम्रता प्रीतम की कोई नज्में उठाती है फिर वापस रख देती है! इसके बाद उषा प्रियंवदा का कोई उपन्यास चुनती है...न जाने क्या सोचकर वापस रख देती है! आखिर में सोच विचार कर रौंडा बर्न की " सीक्रेट " उठा लेती है और जल्दी से बुक स्टोर से वापस निकल आती है!
" मिकी..तुम मेरे लिए सिर्फ रोमांटिक नोवेल ही लाया करो यार...मालूम है क्यों.. क्योकी इन कहानियों में कई जगह पर मैं तुम्हारी और मेरी झलक पा लेता हूँ" उसका दिमाग उसकी ऊँगली पकड़कर उसे दस साल पीछे खींचे ले जा रहा है!

शाम छै बजे...सी.सी.डी.- वो दस मिनिट पहले से आकर बैठा हुआ है! उसे पता है मिकी साड़े छै से पहले नहीं आएगी!मिकी कैसी दिखने लगी होगी? ज्यादा मोटी नहीं हुई होगी...बाल कुछ सफ़ेद हुए होंगे पर ज़रूर कलर करती होगी..बाल अभी भी एक पोनीटेल में बंधे होंगे..
सामने से मिकी आती हुई दिख गयी है! वो अपने दिल को ज्यादा तेज़ न भागने की सलाह देता है!
" हाय...कैसे हो?
ठीक..तुम कैसी हो
अच्छी हूँ...
घर में सब कैसे हैं..मतलब तुम्हारे हसबैंड वगेरह..." इस प्रश्न को पूछना नहीं चाहता था वो!
" सब ठीक है.. मेरी एक बेटी भी है चार साल की...इशिता , बहुत शरारती है! फोटो दिखाऊं? " कहते कहते मिकी ने अपना मोबाइल निकाल लिया है! वो बेहद अनिच्छा से फोटो देखता है! इशिता अकेली नहीं है..अपने पापा की गोद में है! मिकी का चेहरा भी फक हो गया है...उसे ये फोटो नहीं दिखानी चाहिए थी!
वो कॉफ़ी का ऑर्डर देने उठ खड़ा हुआ है...! मिकी नज़र बचाकर देखती है! अभी भी हैंडसम है...न मोटा हुआ है और न गंजा! उसके बिखरे बिखरे बाल हमेशा से उसे बहुत अच्छे लगते हैं! वही उन्हें संवारती रहती थी और थोड़ी देर बाद खुद बिखेर देती थी!
' तुम्हारे घर में सब कैसे हैं.." मिकी ने सिर्फ औपचारिकता अदा की है!
" अच्छे हैं... नेहा है और सात साल का बेटा अंकुर"
न जाने क्यों अचानक मिकी के दिमाग में आया है कि वह नेहा के बारे में जाने... खासकर ये जाने कि वो उसके साथ ज्यादा खुश था या नेहा के साथ?" चलो छोडो..और बताओ जिंदगी कैसी चल रही है?" मिकी का ध्यान टूटा है
कॉफ़ी आ गयी है...दोनों खामोश बैठे कॉफ़ी के सिप ले रहे हैं! कितना कुछ सोचकर आये थे..ये बात करेंगे, वो बात करेंगे! मगर इतना असहज ..इतना औपचारिक सा लग रहा है सब!
दोनों को महसूस हो रहा है कि दस साल पहले वाला रिश्ता दिल के किसी कोने में आज भी महफूज़ है पर शायद वक्त के साथ दोनों बदल गए हैं!
मिकी की नज़र उसकी घडी पर पड़ी है..." ये वही घडी है न?"
" हाँ..." वो थोडा संकोच से भर गया है बताते हुए!
" अब तक चल रही है...?" मिकी हैरत से पूछ रही है जिसमे हैरत कम और ख़ुशी ज्यादा है!
" हाँ..हाँ..घड़ियों का क्या बिगड़ता है..." उसने जल्दी से घडी को शर्ट की स्लीव के नीचे कर लिया है! कहीं झूठ न पकड़ा जाए!
मिकी सोच रही है ...घडी अब तक संभाल कर रखी है!क्या जाने और भी चीज़ें अब तक सहेज कर रखी होंगी...उसे एक संतुष्टि का एहसास हुआ!
" देखना हम अगर कभी अलग भी हो गए तो मैं तुम्हारी एक एक चीज़ को संभल कर रखूंगी..बैंक के लॉकर में" मिकी अक्सर उससे कहती थी! याद करके उसे हलकी सी हंसी आ गयी! आज उसके पास एक भी चीज़ नहीं है..शादी के पहले सब कुछ जला दिया था!और फिर घंटों रोई थी!

दोनों के बीच ख़ामोशी का एक पुल बना हुआ है जिससे दोनों जुड़े हुए हैं!

" अरे ये हर ऊँगली के नेल्स में अलग अलग रंग की नेल पॉलिश क्यों लगा रखी है..." वह गौर से उसकी रंग बिरंगी उंगलियाँ देखते हुए मुस्कुरा उठा है!
" आजकल यही फैशन है..." मिकी कुछ झेंप गयी है!
वो अभी भी मुस्कुरा रहा है...अब वो भी मुस्कुराने लगी है! माहौल कुछ हल्का हो गया है!

" " तुम अब भी सुन्दर लगती हो...बिलकुल नहीं बदली हो"
मिकी सुनकर फिर से झेंपी है! फिर संभलकर कहती है!" तुम भी नहीं बदले हो..."

मिकी का ध्यान टूटा है मोबाइल की घंटी से... शायद नेहा का फोन है! वो उठकर दूर चला गया है!मिकी को भी इशिता की याद आने लगी है! स्कूल से आकर डांस क्लास गयी होगी..और अब लौटकर दादी के हाथ से नाश्ता खा रही होगी!कॉफ़ी भी ख़तम हो चुकी है और उसने घडी पर निगाह डाली है...साड़े सात बज रहे हैं!वो बात करके लौट आया है...
" अब चलती हूँ मैं...देर हो रही है"
' हाँ..चलना चाहिए" उसने और रुकने को नहीं बोला है!
मिकी चाहती है कि वह थोड़ी देर रुकने को कहे.. हांलाकि वह कहता भी तो वह नहीं रूकती!
" अपना ख़याल रखना..." कहते हुए उसने मिकी की तरफ हाथ बढाया है!
मिकी उससे हाथ मिलाती है... दो पल को दोनों दस साल पहले कि दुनिया में पहुँच गए हैं!
" फिर कब मुलाकात होगी.." वह पूछ रहा है
' पता नहीं..." कहकर मिकी सीढियां उतरने लगी है!आते समय एक उत्साह था जिसे वह अपने पीछे टेबल पर ही छोड़ आई है!
वो उसे जाते हुए देखता है..फिर एक सिगरेट सुलगा कर कोई फोन करने लगा है! दस साल पुरानी
फिल्म ख़तम हो गयी है! दोनों वापस अपनी दुनिया में जीने लगे हैं!
वो रास्ते में अपने पर्स से " सीक्रेट ' निकलकर देखती है! " आज जाकर निखिल को दे दूंगी..उसे वैसे भी मोटिवेशनल बुक्स बहुत पसंद हैं"

Tuesday, March 29, 2011

सत्तर के फूल, चौबीस की माला

उसकी दुकान पर सुबह से शाम तक मेला लगा रहता है! सामने ट्रकों की कतार लगी रहती है! आगरा बॉम्बे हाइवे पर देवास से शाजापुर के बीच में उसकी दुकान है....ट्रक सजाने का सारा साजो सामान उसकी दुकान पर है! चमकीली झालर...रंगबिरंगे स्टिकर...भगवान के पोस्टर...अगरबत्ती स्टैंड और एक पेंटर भी जो ट्रक के पीछे मनचाही तस्वीर पेन्ट कर देता है!मुझे उस रोड से गुज़रते वक्त हर बार बड़ी दिलचस्पी हुआ करती थी उसकी दुकान पर रूककर सामान देखने की और उससे भी ज्यादा ये जानने की कि ये दुकान खोलने का विचार उसे कैसे आया!शायद ज़रूर किसी ट्रक चलाने वाला परिवार ही होगा...मुझे हमेशा लगता था! उस दिन मैं ठान कर गयी थी कि आज मैं उस दुकान पर जाकर ही रहूंगी!

सुबह दिन चढ़ते ही पहुँच गयी थी मैं उस दुकान पर!वो एक पचीस छब्बीस बरस का पंजाबी लड़का था! उसको अजीब लगा था मेरा दुकान पर आना....पहले वो समझा था कि शायद रास्ता पूछने आई हूँ! " लडकियां इस दुकान पर कभी नहीं आतीं" थोड़ो देर बाद उसने चाय पीते हुए बताया था! " हाँ...अपने यहाँ लडकियां ट्रक जो नहीं चलातीं" मैंने कहा था और हम दोनों हंस पड़े थे! मैं जानकर हैरान हुई थी कि वो एम.बी. ए. है! " आप लोग जो नौकरी करके कमाते हो न इन प्रायवेट कम्पनियों में....हम उससे बहुत ज्यादा कमा लेते हैं अपनी इस दुकान से!" उसकी इस बात से में थोड़ी देर बाद सहमत हो गयी थी उसकी दुकान पर लगातार ट्रकों का मजमा लगा देखकर!
"हर ट्रक ड्रायवर कि जिंदगी का अलग फलसफा है को उसकी नंबर प्लेट पर किसी शायरी...वाक्य या फोटो के रूप में झलकता रहता है! जिस तरह से एक ड्रायवर ट्रक को सजाता है....उसी से लगता है वो उसे कितना प्यार करता है! महीनो तक घर वालो से दूर उसका घर, उसकी दुनिया सब कुछ यही ट्रक तो है! इसका एक एक पुर्जा मानो उसका संगी है! जाने कितनी ही सुबहें आँखें खोलते ही सबसे पहले ट्रक को छुआ होगा....न जाने कितनी दोपहरों में इसके स्टीयरिंग ने उसकी झपकियों को संभाला होगा...सर्द रातों में छलकते जामों का गवाह रहा होगा उसका ये ट्रक! चांदनी रातों में जब महबूबा का ख़त पढ़कर वो रोया होगा तो इसकी सीटों ने वो आंसू जज़्ब किये होंगे! '
कहते कहते वो कुछ भावुक हो गया था और न जाने कहाँ शून्य में ताकने लग गया था! " मेरे घर में कोई ट्रक नहीं चलता है....बस बचपन से ही ट्रक के पीछे बनी अलग अलग तस्वीरों और उस पर लिखी शेरो शायरी पढ़कर मुझे इनकी जिंदगी के बारे में दिलचस्पी जागी...ठीक वैसे ही जैसे आपको मेरी दुकान देखते देखते यहाँ आने का मन हुआ!
" यहाँ आने वाले हर ड्रायवर की जिंदगी की अलग दास्ताँ होती है...ट्रक के पीछे इंतज़ार में बैठी हुई लड़की उसकी बीवी या प्रेमिका होती है जिसे छोड़कर आने का दर्द वो जैसे अपने ट्रक पर चस्पा कर देना चाहता है....मन्नू, बिट्टू ते टिन्नी दी गड्डी जब वो लिखवाता है तो अपने बच्चों के नाम जैसे वो गाडी नहीं सारी कायनात कर देना चाहता है! बड़े से बड़ा दर्शन ट्रक के पीछे लिखी चन्द लाइनों में सिमट आता है! अपने ट्रक से बेपनाह मोहब्बत करता है एक ड्रायवर....बड़े चाव से उसे सजाता संवारता है उसे बुरी नज़र से बचने के लिए जाने क्या क्या लिखवाता है!एक ट्रक को देखकर मैं उसके ड्रायवर की आत्मा में झाँक कर उसे पढ़ सकता हूँ...." वह नौजवान अपनी ही रौ में बोले जा रहा था!मैं बस उसे सुन रही थी..और उसकी आत्मा में झाँकने के लिए एक खिड़की मुझे साफ़ नज़र आने लगी थी!
अब तक हम तीन चाय और एक प्लेट पोहा खा चुके थे! तभी धूल का गुबार उडाता एक ट्रक दुकान पर आकर रुक गया! एक सरदार ड्रायवर उतर कर सीधे हमारी और आया और बोला "साहब जी...कुछ लिखवा दो मेरी इस गड्डी पर"
' क्या लिखवाना है?
" सत्तर के फूल, चौबीस की माला बुरी नज़र वाले तेरा मुह काला"
उस नौजवान ने पेंटर को बुलाया और लिखने को बोल दिया ...फिर मेरी तरफ मुड़कर बोला " सत्तर चौबीस इसकी गाड़ी का नंबर है...इसलिए लिखवा रहा है" मैं भी मुस्कुरा दी! अचानक ड्रायवर पलटकर बोला " नहीं साहब...ये मेरी गाड़ी का नंबर नहीं है! मेरे घर में केवल मेरे सत्तर साल के बाबूजी और चौबीस साल की बेटी है...उन दोनों की फ़िक्र मुझे दिनरात लगी रहती है! हर साल उम्र बढ़ने पर नंबर बदलकर लिखवा देता हूँ...इससे मुझे हमेशा अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है! कहीं पैसा दारु में न उड़ा दूं, इसलिए याद रखता हूँ कि बाबूजी का इलाज और बेटी की शादी के लिए मुझे एक एक पैसा बचाकर रखना है..." !
एक अलग दास्ताँ...एक अलग फलसफा और एक अलग दर्शन ...
हम दोनों बड़ी देर तक सोचों में डूबे हुए बैठे रहे...फिर मैं उठकर चल दी!

Sunday, February 13, 2011

वैलेंटाइन डे स्पेशल...हमारी तीन मोहब्बतों के नाम



जब मैंने प्यार किया फिल्म आई थी तब सलमान से एकदम से प्यार हो गया था! हम सभी सहेलियां पॉज़ कर कर के सलमान को देर तक देखते रहते थे! ग्यारवी क्लास में पढ़ते थे तब! मुझे याद है...ये फिल्म मैंने लगभग बीस बार देखी होगी एक साल में! सलमान खान के पोस्टकार्ड साइज़ के फोटो इकट्ठे करने का शौक में सौ डेड़ सौ फोटो जमा कर लिए थे और शान से अपनी सहेलियों को ऐसे दिखाते थे मानो कोई बहुत बड़ा खजाना हो!सलमान का हँसना..उसका चलना.. उसका पलटना सब दिल लिए जाता था! यहाँ तक कि कबूतर जा जा वाले गाने में उसका रोना....कितना हैंडसम लगा था! मेरे साथ सहेलियों का भी यही हाल था! हम सबका पहला प्यार सलमान था! इसके बाद दिल है कि मानता नहीं आई! और आमिर पे लट्टू हो गए! क्लास में केमिस्ट्री का पीरियड चल रहा होता और हम सहेलियां आमिर की क्यूट नेस को डिस्कस कर रहे होते थे!आमिर के भी पोस्टकार्ड साइज़ फोटो इकट्ठे होना शुरू हुए और अब हम बहुत अमीर हो गए थे! एक पौलिथिन में सलमान दूसरी पौलिथिन में रखे आमिर के साथ टक्कर लेते नज़र आते थे! एक आध सहेली ऐसी भी थी जो अमिताभ के फोटो इकट्ठे करती थी! उसे हम गुज़रे ज़माने के मानते थे! जैसे आज कोई लड़की आमिर और सलमान के फोटो दिखाएगी तो उसे भी गुज़रे ज़माने की माना जायेगा! हम तय नहीं कर पाते थे की आमिर ज्यादा अच्छा है या सलमान! इसलिए दोनों के लिए दिल में समान मोहब्बत कायम रही! वैसे भी प्यार तो कितनी भी बार हो सकता है और एक ही साथ दो से भी हो सकता है! एक अच्छी प्रेमिका की तरह हमने अपने प्रेम के बदले सलमान या आमिर से कुछ नहीं चाह! जब सलमान ने संगीता बिजलानी को छोड़ा तो हम उस पर गुस्सा भी हुए...शायद सामने होता तो डांट भी लगा देते! उसके पीछे ये कारण नहीं था कि संगीता को कितना बुरा लगा होगा बल्कि सलमान को कोई बुरा बोले..ये हमें अच्छा नहीं लगता था! आहा...पराकाष्ठा थी प्यार की! सोचिये कितना महान था हमारा प्रेम! ऐसे ही दो नावों की सवारी करते करते हम थोड़े बड़े हो गए और कॉलेज में आ गए!

कॉलेज में आने के बाद हमने तीसरी नाव पे पैर रखा! तीसरी नाव हमारे अगले प्यार जगजीत सिंह की थी! उन दिनों खाते, पीते, पढ़ते, नहीं पढ़ते...बस जगजीत सिंह ही बजा करते थे! एक छोटा सा बी पी एल सेन्यो का लाल रंग का टेप रिकॉर्डर हुआ करता था! सुबह नींद खुलते ही आँखे मलने के बा सीधा टेप पर हाथ जाता था और जगजीत सिंह शुरू हो जाते थे! सुबह सुबह ज्यादातर " गरज बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला" बजा करता था! उसके बाद डिजायर या इनसाईट का नंबर आता था! उस समय एक एक शेर ऐसा दिल चीर कर रख देता था कि बस लिखने वाला चाहे कोई भी हो मोहब्बत तो बस जग्गू दादा के लिए उफनती थी! हम बहने अक्सर बात करते... हाय, कितनी गहरी आवाज़ है मानो बस डूब ही जायेंगे! कितनी गहरी आँखें और न जाने क्या क्या! जगजीत के फुल साइज़ के पोस्टर दीवारों पर लग गए! इस मामले में जग्गू दादा सलमान और आमिर के पोस्ट कार्ड साइज़ फोटो पर भारी पड़ गए! जगजीत सिंह को एक बार लाइव सुनना हमारी सबसे बड़ी ख्वाहिश बन गया! प्यार में हिमाकत की भी हद हो जाती है....हम कहते अगर भगवान हमसे आकर पूछे कि क्या चाहिए तो बोलेंगे कि जगजीत सिंह सिर्फ हमारे लिए हमारी फरमाइशों पर ग़ज़ल गाये और हम अकेले बैठकर सुनते रहें! हम यहाँ तक कह जाते की अगर जगजीत अपनी आवाज़ में गालियाँ भी रिकॉर्ड कर दे तो भी हम दिन भर सुनते रहेंगे! अब इमैजिन करते हैं कि कैसा होता अगर सचमुच दिन भर जगजीत सिंह कि आवाज़ में बीप बीप वाली गालियाँ गूंजती रहती....सैड वोयलिन के म्युज़िक के साथ में! हमने ये भी तय कर लिया था कि जब हमारी शादी होगी तो उसमे हर रस्म के दौरान फ़िल्मी गानों कि जगह जगजीत की ग़ज़लें ही बजेंगी! और बड़ी मेहनत से हम बहनों ने हर अवसर के लिए ग़ज़लें छांट कर रखी थीं! शादी तो अब तक नहीं हुई...पर हाँ अगर कोई और ऐसा विचार रखता हो तो बता दे...हम अपनी मेहनत उसे देने को तैयार हैं! १९९८ में पहली बार इन्दोर में जगजीत सिंह का लाइव प्रोग्राम देखने का मौका मिला ! सबसे सस्ता वाला टिकट खरीद कर प्रोग्राम देखा था और धन्य हो गए थे! उसके बाद जब हम डी.एस.पी. बने तो एक पत्रिका में हमारा इंटरव्यू छपा तो एक एयरपोर्ट पर काम करने वाले एक मित्र ने मौका देखकर हमारे पत्रिका में छपे फोटो पर जगजीत सिंह का ऑटोग्राफ ले लिया था! उस पत्रिका को आज तक संभाल कर रखा है आखिर हमारे तीसरे प्यार की निशानी है!

फिर हम और बड़े हो गए...इतने कि किसी के लिए भी यूं मोहब्बत जागनी ही बंद हो गयी! हाँ..आखिरी बार जब वी मेट देखकर शाहिद जम गया था पर ये मोहब्बत बड़ी अल्पकालीन निकली! दो दिन बाद शाहिद का पत्ता साफ़! हाय अब क्यों न रहा वो क्रेज़....

Thursday, January 27, 2011

बेवकूफ लड़की ..



पहाड़ के परले तरफ गाँव में एक लड़की रहती है! उसी गाँव में लड़की के मकान से चार मकान छोड़कर एक लड़का भी रहता है!दोनों बड़ा प्यार करते हैं आपस में!लड़की खेत में माँ बापू का हाथ बंटाती है और ज़रा सा मौका मिलते ही दौड़ पड़ती है तालाब के पास वाले मंदिर की ओर!जहां लड़का हाथ में ढेर सारे बेर और मूंगफली लिए उसका इंतज़ार करता मिलता है!मंदिर के पिछवाड़े की सीढियों पर दोनों बैठते हैं!
तुम मुझे कितना प्यार करते हो?
बहुत बहुत ज्यादा
हम्मेशा करोगे?
हाँ...
सच्ची...जिन्दगी भर?
और नहीं तो क्या
हम शादी के बाद एक गाय पालेंगे...उसके बछड़े का नाम ...
अरे तू भी क्या सोचने लग जाती है ..पगली! मैं तुझसे शादी न कर पाऊंगा!
लड़की सूखे पत्ते की तरह कांप उठती है...क्यों भला?
मेरे घरवाले तुझसे शादी के लिए नहीं मानेंगे...तेरी मेरी जात अलग है न!
तो क्या हुआ...
ब्याह तो मैं घरवालो की मर्जी से करूँगा...
और मैं?
तू भी अपने माँ बापू की मर्जी से कर लेना!
लड़की के साथ मंदिर..तालाब ..सीढियां सभी हैरत से एक दूसरे को देख रहे हैं!
तू तो मेरी राधा है न...बता राधा किशन का ब्याह हुआ था क्या?
लड़की चुप हो गयी है... धीरे से न में सर हिलाती है!
तो फिर...अब बोल तू भी मुझसे जिन्दगी भर प्यार करेगी न..?
हाँ...लड़की का सर फिर से हिला है!लड़की के साथ पेड़ पर बैठी गौरैया भी खामोश हो गयी है...उसके बच्चे भूख से चिल्ला रहे हैं पर वो उनकी ओर नहीं देखती है! लड़की उठकर घर की तरफ चल दी है!लड़का चिल्लाता है...कल आएगी न? लड़की हाँ में सर हिलाती है!लड़का पीछे से उसे जाते हुए देखता है और बुदबुदाता है.... बेवकूफ लड़की !
लड़की घर जाते जाते बारिश का मौसम बन गयी है....पूरा पहाड़ इतना गीला हो गया है कि बरसों तक न सूखेगा!गाँव कि एक झोपडी में लालटेन के तले बूढा बाबा कहता है... " इतनी बारिश तो सालों में नहीं हुई है!"

लड़के का ब्याह हुए दो साल हो गए हैं!लड़की अपनी सहेली से बातें कर रही है!
" तुझे कुछ खबर है उसकी?"
हाँ...शहर में रहने लगा है...
अच्छा
वो अब भी मुझे प्यार करता है
अच्छा...तुझसे कहा उसने
नहीं...मगर उसने एक बार मुझसे वादा किया था ..शराब को कभी हाथ नहीं लगाएगा! जब तक वो शराब नहीं पीता है....मुझसे प्यार करता है
सहेली जोर से हंस पड़ी है...हँसते हँसते पेट पकड़ लेती है!
क्या हुआ...?
तू कितनी भोली है...वो रोज़ शराब पीता है...उसने एक दिन भी नहीं छोड़ी! कहते कहते सहेली के चेहरे पर भी दर्द उभर आया है!
लड़की का चेहरा ज़र्द पड़ गया है.... अब लड़की बारिश नहीं बनती है! अब वह जाड़े के मौसम में तब्दील होती है... पहाड़ों पर बर्फ की मोटी चादर जम गयी है....पत्ते सिकुड़ कर बेरंग हो गए हैं! लालटेन वाला बूढा जी भर कर जाड़े को कोसता है!लड़की उठकर घर को चल दी है...सहेली पीछे से बुदबुदाती है " बेवकूफ लड़की "

साल बीतते हैं! एक दिन लड़का गाँव आकर लड़की का दरवाजा खटखटाता है! लड़की दरवाजा खोलती है....बिन पलक झपकाए हैरानी से लड़के को देखती है!
" ऐसे क्या देख रही है? तेरे घर आया हूँ! खाना बनाकर नहीं खिलाएगी?
हाँ हाँ...क्यों नहीं! लड़की का दिल उछल उछल कर छत छू रहा है! घबराहट में मेज से टकराते..मिटटी का घड़ा फोड़ते बावली सी रसोई में जाकर खाना पकाती है! ....लड़की मसाला पीस रही है...आज वह अपनी जिंदगी का सबसे अच्छा खाना बना रही है! खाना पकाते पकाते लड़की बहार का मौसम बन गयी है! पहाड़ फूलों से भर गया है! पंछी चहक चहक कर पेड़ पेड़ मंडरा रहे हैं!हवा मुस्कुरा कर तितलियों से जाने क्या कह रही है!! और लालटेन वाला बूढा अपना घर छोड़कर बाग़ में जा बैठा है....मसालों की खुशबू से घर महक गया है! ! और लड़का बाहर बैठा किसी से फोन पर बात कर रहा है! खुदा ऊपर से देखकर बुदबुदाता है.... बेवकूफ लड़की !