Wednesday, April 7, 2010

जाना सुधारने लोगों को....लौटना खाके मुंह की ...



कल बहुत देर तक डिस्कवरी चैनल देखते रहे! कोई शो था जिसमे दुनिया के सबसे साफ़ सुथरे शहरों के बारे में बताया जा रहा था! अहा...क्या शहर थे! बड़ा मजा आ रहा था देखने में!ऐसी चमचमाती हुई सड़कें कि चप्पल धरने का मन ही न करे! एक बच्चा सड़क पर चलते चलते अचानक मुंह के बल गिर पड़ा.....पर जब उठा तो हम हतप्रभ रह गए! उसकी माँ को मुंह या कपडे झाड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ी! बच्चा वैसा का वैसा नया नवेला दिख रहा था! हमने सोचा एक हमारा इण्डिया है सड़क पर चलो तो साला चप्पल के अन्दर से भी पैरों में धूल चरण पखारने चली आती है और हमारे यहाँ का कोई नौनिहाल अगर सड़क पर औंधे मुंह गिर जाए तो ऐसा लगता है मानो दस बीस दिन से तो नहाया ही नहीं है! कपडे इत्ती जोर जोर से झाड़ेगी उसकी माँ कि पीटने का काम भी उसी झाड़ने में संपन्न हो जाता है! नौनिहाल बहुत देर तक मुंह में कुछ चबाता रहेगा...माँ के पूछने पर कहेगा " धूल किर्र किर्र कर रही है अभी तक" उसे भी किरकिराने में बड़ा आनंद आता है! हमारे यहाँ तो घर भी इत्ते नहीं चमचमाते जैसे कि दूसरे देशों की रोड चमक रही थीं! प्रोग्राम ख़तम होते ही हम चिंतन मोड़ में आ गए!

आखिर क्या कारण है हमारे देश की ऐसी दुर्दशा का! क्यों मेरे महान देश में पग पग पर गंदगी की बहार छाई हुई है! सरकारी मशीनरी...भारत के जाहिल लोग....यहाँ की आबोहवा ! नाना प्रकार से हमने सोचकर देखा कभी इस करवट कभी उस करवट!. .हमें ही कुछ करना होगा...हम इस देश से गंदगी का नामो निशाँ मिटाकर रहेंगे! हमारे देश में भी बच्चे सड़कों पर लोटेंगे बिना गंदे हुए! सरकार पर हमारा बस चलने का नहीं....और कीचड में से स्नान कर छपर छपर करते बाहर आये सूअरों को रोक पाना तो हमारे अब्बा के भी बस का नहीं! हम एक जागरूकता अभियान चलाएंगे और नागरिकों को सिविक सेन्स का पाठ पढ़ाएंगे! हाँ हाँ ...यही ठीक होगा! और इस प्रकार एक सुन्दर भारत का सपना देखते देखते हम सो गए! अगली सुबह उठते ही अपना प्रण याद आ गया! आज ही से शुरुआत करेंगे अपने अभियान की.....जब तक हमारे देश के नागरिक गण नहीं सुधरेंगे तब तक कुछ भी न हो सकेगा! तो गुनीजनो.....इस प्रकार हम सुबह सुबह ऐसा संकल्प लेकर अग्रसर हो लिए अपने कर्तव्य पथ पर!

चार कदम चलते ही अभियान की शुरुआत करने का मौका मिला! एक बुड्ढे सज्जन दिखाई दिए सड़क पर थूकते हुए! छि छि....इसीलिए तो गंदगी है सड़कों पर! हम लपक कर उन सज्जन के पास पहुंचे...गला साफ़ किया और हिम्मत करके बोले " सर...आप यहाँ क्यों थूक रहे हैं?"
" हुह" तो का तुम्हारी खुपड़िया पर थूकें?" बुड्ढे बाबा हमी पर उबल पड़े!
अरे हम पर क्यों थूकोगे.....इतना कहकर हम अपनी खुपड़िया बचाते हुए खिसक लिए वहाँ से! गुस्सा तो बहुत आया डोकरे पर.....खुद ऐसे हैं तो बच्चों को जाने क्या सिखाया होगा! वो तो जाने क्या क्या और करते होंगे दूसरों की खोपड़ी पर!
खैर जैसे तैसे मन को शांत किया और आगे बढे...थोड़ी दूर पर देखा तीन बच्चे सड़क के किनारे लाइन से बैठे हुए थे हाथ में पानी की बोतल थामे! आपस में हंसी मजाक करते हुए दीर्घ शंका का निवारण किया जा रहा था! ये तो दो दो छटांक के बच्चे हैं...इनसे क्या डरना! और हम पहुँच लिए उन नादान बच्चों को नागरिकता का पाठ पढ़ने! बड़ी मुलायम आवाज़ में हमने पुकारा " बच्चो...."
बच्चों ने भी एक स्वर में जवाब दिया " क्या है...."
" आप लोग क्या कर रहो हो यहाँ पर "
बच्चे खी खी करके हंस दिए..." देख नहीं रहे हो...." और तीनों की नज़र नीचे की तरफ झुक गयी , ये दिखाने के लिए की वे क्या कर रहे थे! छि छि...मन घिन से भर उठा! फिर भी हार न मानी! हिम्मत करके हम फिर बोले " यहाँ ये करना गन्दी बात होती है "
" तो क्या आपके सर पे कर दें ?" बच्चे खी खी करते हुए बोले! आज तो लगता है हमारे सर पर आफत आई जान पड़ती है! इत्ते में कचरा बीनती उन तीनों बालकों की अम्मा आ गयी! आते ही फनफनाई ...." क्यों परेसान कर रहे हो मेरे छोकरों को.....?"
" नहीं...वो ...मैं तो...." हम पसीना पोंछते इत्ता ही बोल पाए! भगवान् कसम बहुत डर गए कहीं ये कचरे की टोकरी सर पर ही न उल्टा दे! माँ को देख बच्चे भी लाड में आ गए.... एक बच्चे ने पानी की बोतल में से पानी हमारे ऊपर छिड़का! हम घबरा गए! बाकी के दोनों बच्चों ने भी बोतल टेढ़ी की , हम भागे वहाँ से ...भागते भागते भी तीनों की बोतलों का पानी हमारी टीशर्ट पर छिडकाया जा चूका था! भागते भागते पीछे मुड़कर देखा...तीनों बच्चे हंसी के मारे जमीन पर लोटपोट हो रहे थे!

हे ईश्वर क्या करने निकले थे और तूने ये क्या हाल कर दिया! भाड़ में गया जागरूकता अभियान...लौटते वक्त एक आदमी को दीवार गीली करते देखा....एक आंटी जी को घर का कचरा पौलिथिन में भरकर दूसरे के घर के सामने डालते देखा! पर हम तो भैया अब चुप्प पड़कर रह गए! एक तो वैसे ही पौटी धोने के पानी से स्नान कर चुके हैं! अब किसी ने कचरा वचरा पटक दिया तो बची खुची इज्जत भी चली जायेगी! घर आते आते तक दोबारा वही बुड्ढे सज्जन दिखाई दिए....हम नज़र फेरकर चलते रहे! पर इस बार वो हमारे पास आये और बोले " बेटा...तुम सही कह रहे थे! मुझे फिर से थूकना है! कहाँ थूकूं? "
" किसी डस्टबिन में थूकिये और कहाँ" हमने थूक गटकते हुए जवाब दिया!
हमें तो कहीं दिखाई नहीं देता...जरा तुम ही चलकर दिखा दो"
" हाँ हाँ ...क्यों नहीं चलो हमारे साथ" हम दोबारा हलके से जोश में आये! करीब एक किलोमीटर तक बुजुर्गवार के साथ भटकने पर भी डस्टबिन नहीं खोज पाए! अंत में हार मानकर हमने कहा " जी...जहां आपका मन करे वहाँ थूकिये! सारा शहर आपका है!" बुड्ढे बाबा ने गर्व से भरकर हमें देखा और सड़क पर थूकार्पण कर दिया!
हम घर लौटे....गेट खोलकर घुस ही रहे थे कि इतने में सर पर कुछ गीला गीला लगा! हाथ लगाया तो गीला गीला सफ़ेद पदार्थ हाथ में चिपक गया! ऊपर देखा तो एक गौरैया उड़ रही थी! पता नहीं हमें भ्रम हुआ या सचमुच में ही हमें देखकर चोंच खोलकर मुस्कुरा रही थी! राम ही जाने.....हमने भी अपना गन्दा हाथ बगल वाले अंकल की दीवार पर पोंछ दिया!