Tuesday, October 5, 2010

बिखरे सामान में सिमटती खुशियाँ...


शाम गहराती जा रही है! आज शाम का रंग रोज़ से ज्यादा गहरा है! शायद मेरी उदासी का रंग भी इसमें आ मिला है! उदासी भी हमेशा कहाँ एक रंग की होती है...कभी ये उगते सूरज की धूप को मटमैला बना देती है...कभी मेरे कालीन के लाल रंग को और सुर्ख कर देती है! उदासी भी अब एक आदत सी बन चुकी है! दूध वाले ...अखबार वाले की तरह इसका आना भी रूटीन बन गया है और कभी कभी नागा करना अखरने भी लगा है! मैं आज भी माल रोड के किनारे एक लेम्प पोस्ट के नीचे एक बेंच पर बैठा हूँ! अब इस बेंच पर कोई नहीं बैठता है..जैसे हर कोई मुझे मेरी उदासी के साथ अकेले छोड़ देना चाहता है! अभी लेम्प जल उठेगा....और इसका पीलापन मुझ पर बरस उठेगा. तब मेरी उदासी का रंग पीला हो जायेगा! कल मेरी शादी है...उफ़ मैं इस बारे में नहीं सोचना चाहता! काश सर झटकने से ख़याल भी झटक कर ज़मीन पर गिर पड़ते और मैं अपने पैरों तले उन्हें रौंद सकता!

तीन बरस पहले भी तो मैं इसी तरह एक बेंच पर बैठा था...तब मन में शादी के ख्वाब थे और वो ख्वाब लेम्प की पीली रौशनी में और चमक उठे थे! अगले दिन रीना घर आने वाली है...यह सोचकर मैं मुस्कुरा उठता था! और अगले दिन रीना आ गयी थी!

ये टॉवेल बेड पर क्यों है... अपना चादर घडी नहीं किया..? सुबह की खुमारी रीना की आवाज़ की तल्खी में बह निकली! मुझे महसूस हुआ मानो...किसी वार्डन को ब्याह लाया हूँ!मेरा अस्तव्यस्त जीवन ही मेरी पहचान था..चंद ही दिनों में मेरी पहचान एक अजीब सी व्यवस्था के इर्द गिर्द चकराई सी घूमने लगी थी! और शिमला में हनीमून के वो हसीं दिन....मैं जी जान लगाकर उसे समझने की कोशिश कर रहा था! इतनी जान अगर मैथ्स में लगायी होती तो इंजीनियर बन गया होता! पर मैथ्स से भी ज्यादा कठिन थी रीना! उसकी आवाज़ पर मैं सहम जाता..! उसे चूमते हुए भी एक डर सा लगा रहता...कहीं किस करने के तरीके पर ही न टोक दे! मेरा व्यक्तित्व करवट ले रहा था...एक ऐसी करवट जिसे लेते हुए मेरा जिस्म दुखने लगता था! मेरा अपना कमरा मुझे होटल रीजेंसी के डीलक्स रूम की याद दिलाता था! आईने में जब खुद को देखता तो मुझे मेरी जगह एक निरीह मेमना दिखाई देता था! कभी कभी रीना मुझे एलियन की तरह दिखाई देती थी....जैसे पता नहीं किसी दूसरे गृह से कोई उड़न तश्तरी आकर इसे मेरे घर में उतार गयी हो! इतना अजनबी तो मुझे सड़क पर रिक्शा खींचता या फिल्म की टिकट लाइन में मेरे पीछे खड़ा आदमी भी कभी नहीं लगा था! फिर एक दिन जैसे उड़नतश्तरी उसे लेकर आई थी...वैसे ही लेकर चली गयी! मैं घर में अकेला खड़ा था! मैंने गहरी सांस ली..राहत की कुछ बूँदें ज़मीन पर गिर कर बिखर गयीं! मुझे याद है..उसके जाने के बाद मैं भाग कर अपने कमरे में गया था और न जाने कौन से जूनून में कमरे का सारा सामान बिखेर दिया! फर्श पर पड़े मेरे कपडे...टेबल पर खाली पानी की बोतलें और पलंग पर किताबें, सिगरेट का पैकेट, मोबाइल और अखबार फैले देखकर जैसे मुझे मेरा खोया हुआ वजूद मिल गया था!

"उठो भाई..रात हो गयी! घर नहीं जाना?" एक पुलिसवाला अपना डंडा सड़क पर ठोक रहा था! मैं चुपचाप उठा और घर की तरफ चल दिया! कल आने वाली सुबह से मन खौफज़दा था! इसका नाम रजनी है...पर नाम रजनी हो या रीना क्या फर्क पड़ता है! हे ईश्वर इस बार मैं खुद को खोना नहीं चाहता वरना फिर कभी न पा सकूँगा! रजनी माँ की पसंद थी! माँ के बार बार कहने पर भी मैं उससे मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था! रीना का हंटर अभी भी मेरे दिमाग पर शायं शांय करता लहराता था! अगली सुबह आई...रजनी घर में दाखिल हो गयी और रात को मेरे कमरे में! सुबह देर तक आँख लगी रही! उठकर देखा तो रजनी नहीं थी! मैं आलथी पालथी मारकर शून्य में घूरता पलंग पर बैठा रहा! तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और धुले बालों की महक मेरी सांसों को ताजगी से भर गयी! मैं एकटक उसे देख रहा था! आसमानी गाउन पहने कंधे तक छितराए बालों पर टॉवेल लपेटे हुए जैसे आसमान से उतरी हुई परी नज़र आ रही थी! नहीं..ये एलियन नहीं हो सकती! रजनी मुझे देखकर मुस्कुरायी और टॉवेल उतारकर सोफे पर रख दिया! गीली स्लीपर्स से कमरा गीला होकर पच पच करने लगा! मैंने धीरे से उठकर बाथरूम का दरवाजा खोलकर देखा....गीले फर्श पर साबुन पड़ा था...जो मुझे देखकर मुस्कुरा उठा! मैं दौड़कर आया और रजनी को कस कर गले लगा लिया! ख़ुशी के मारे मेरी साँसें धौकनी की तरह चल रही थीं! मैंने आईने में देखा...मैं वहाँ मौजूद था अपने पूरे वजूद के साथ!