Tuesday, March 31, 2009

जब कोई महबूबा चांदनी ओढ़कर उतरती है तो कैसी लगती है....


सुबह मेहँदी महक रही थी बिस्तर पर
मैं तो रातरानी सिरहाने रखकर सोया था
होंठों पर गर्म साँसें अभी भी दहक रही थीं
और पलकों पर आज फिर एक मोती झिलमिलाया था
खुली खिड़की से जब झाँका था मैंने तो
आसमा के आखिरी कोने पर लहराता दिखा था
तुम्हारा रेशमी आँचल ,
जिसका एहसास रात भर मदहोश किये था

या खुदा...मुझे इल्म है
तुझे भी वो प्यारी थी मेरी तरह
और बुला बैठा तू उसे अपने पास
मगर....एक काम कर मेरा
उड़ा दे मेरी रातों की नींद
तड़पने दे मुझे तमाम उम्र
कम से कम एक बार तो देख सकू
जब कोई महबूबा चांदनी ओढ़कर उतरती है
तो कैसी लगती है....

Thursday, March 12, 2009

घासीराम मास्साब की जिंदगी का एक दिन


आज नल आने का दिन है....घासीराम मास्साब की कसरत का दिन! पूरी टंकी भरने के लिए डेड सौ बाल्टी भरकर ऊपर दूसरी मंजिल पर लाना कोई जिम जाने से कम है क्या? हाँ...ये अलग बात है की इस कसरत से घासीराम मास्साब के दाहिने हाथ की मसल तो सौलिड बन गयी पर बाया हाथ बेचारा मरघिल्ला सा ही है! सो अब मास्साब फुल बांह की बुश्शर्ट ही पहनते हैं! पांच बजे से बाल्टी चढानी शुरू की...अब जाके साढ़े छै बजे टंकी भरी! इस नल के चक्कर में मास्साब मंजन कुल्ला भी न कर पाए....ऊपर से मास्टरनी की चें चें...मास्साब को कितने दिन हो गए पानी भरते भरते पर आज तक सीढियों पर पानी गिराए बिना बाल्टी ऊपर चढाना न सीख पाए! मास्टरनी को भोर की बेला में भड़कने में महारत हासिल है! सूरज की किरणें, ओस की बूँदें, तितली, वगेरह वगेरह.. सुबह को आनद दायक बनाने वाले सारे आइटम मिलकर भी मास्टरनी की सुबह को कभी सुहानी न बना पाए! मास्टरनी के चिडचिडे स्वभाव से खुशियों को धराशायी होते दो पल नहीं लगते! खैर..मास्साब को सात बजे स्कूल जाना है सो मास्टरनी की चें चें पें पें को दर किनार करते हुए जल्दी जल्दी मंजन करा और चाय गटक कर निकल पड़े स्कूल की और!स्कूल पहुँचते ही मास्साब जल्दी जल्दी लपके मैदान की और जहां प्रार्थना प्रारंभ हो चुकी है...मास्साब ने अपने गंजे सर के आजू बाजू के बाल संवारे और हैड मास्टर के बगल में खड़े हो गए....हैड मास्टर ने घूरा की लेट काहे आये हो? मास्साब ने समझ कर दीन हीन सा मुंह बनाया और हाथ से बाल्टी पकड़ने का इशारा किया! हैड मास्टर ने मुंह बिचका दिया की ठीक ठीक है! घासीराम मास्साब पुरे वोल्यूम में प्रार्थना गा रहे हैं...." हे शारदे माँ....हे शारदे माँ " हैड मास्टर ने पुनः घूरा कि गला जरा कम फाडो ! मास्साब ने टप्प से मुंह बंद कर लिया! सिर्फ होंठ हिलते रहे! प्रार्थना ख़तम हुई....बच्चे लाइन बनाकर कक्षाओं की ओर चल पड़े! दस कदम तक लाइन चली फिर चिल्ल पों करते झुंड ही झुंड नजर आने लगे! अब किसी मास्टर के बाप के बस की नहीं है की इन होनहारों की लाइन दुबारा बनवा दे!

आहा ..क्या सुहाना द्रश्य है कक्षा का! घासीराम मास्साब कुर्सी पर बिराज चुके हैं! छात्र छात्राएं भी आकर टाट पट्टियों पर अपना स्थान ग्रहण कर चुके हैं!मास्साब ने जम्हाई लेते हुए बच्चों को पंद्रह मिनिट का समय दिया है ताकि सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाएँ! " गोपाल...." मास्साब ने आवाज लगायी! गोपाल कक्षा का मॉनिटर है...आवाज़ सुनते ही हाजिरी का रजिस्टर लेकर खडा हो गया! और मास्साब की तरफ से हाजिरी लेने लग गया! हाजिरी लेने भर से गोपाल अपने आप को आधा मास्टर समझता है....और घासीराम मास्साब का आधा काम कम हो जाता है! दोनों प्राणी खुश.. हाजिरी के बाद मास्साब ने घडी देखी! साला अभी भी आधा घंटा बाकी है! मास्साब बार बार सहायक वाचन की किताब खोलते हैं फिर बंद कर देते हैं....इत्ता आलस आ रहा है की मन ही नहीं कर रहा पढाने का! जम्हाई पे जम्हाई...अंत में मास्साब आगे बैठे बच्चे से कहते हैं...."चलो पढना शुरू करो जोर जोर से और जैसे ही दस लाइनें पढ़ लो अपने पीछे वाले को दे देना...मुझे कहना न पड़े!"लो जी ....मास्साब ने ऑटो मोड में डाल दिया कक्षा को! अब झंझट ख़तम...आधा घंटे तक बच्चे ही बक बक करते रहेंगे! मास्साब ने चश्मा पहन लिया...एक आध झपकी आ भी गयी तो अब सारा इंतजाम हो चूका है!

आगे बैठे खुशीराम ने पढना शुरू किया " एक थी चुरकी...एक थी मुरकी...."! ख़ुशी राम पढ़ रहा है! उसके पीछे बैठा गोपाल अपनी बारी के इंतज़ार में ठुड्डी पर हाथ धरे बैठा है! बाकी क्लास क्या करे....? कमला सरिता की चोटी खोलकर फिर से गूँथ रही है!कलुआ बोर हो रहा है सो सबसे पीछे बैठे बैठे टाट पट्टी को ही चीथे जा रहा है! कलुआ ने बोर हो हो के टाट पट्टी आधी कर दी है क्लास के पीछे कोने में टाट पट्टी की सुतलियों का ढेर लगा है! ढेर भी बड़े काम की चीज़ है....उस पर मजे से बैठा स्कूल का पालतू कुत्ता कचरू चुरकी मुरकी की कहानी सुन रहा है...संभवतः वही एकमात्र श्रोता है जो पढने वाले की मेहनत को सफल बना रहा है! प्रताप बुद्धू सरीखा मास्स्साब को एकटक देखे जा रहा है....जाने पी.एच. डी. ही कर मारेगा क्या? उसकी आँख मास्साब पर से नहीं हटती है! अचानक वो बगल वाले बजरंग से कहता है..." देखना अब सर लुढ़केगा मास्साब का" ! बजरंग जैसे ही मास्साब को देखता है...दन्न से मास्साब का सर कंधे पर लुढ़क जाता है!सारी कक्षा जोर से हंसती है! मास्साब चौक कर जाग गए हैं और गुस्से में हैं..." ए प्रताप तू ज्यादा पुटुर पुटुर मत किया करे!पढने लिखने में नानी मरती है तेरी....चल खडा हो जा " प्रताप बिना देर किये खडा हो गया है! बजरंग उसके पैर में चिकोटी काटता है! मास्साब अभी जगे हुए हैं और क्रोधित भी हैं.....एक चौक का टुकडा उठाकर मारते हैं बजरंग के सर पर !बजरंग के सर पर चौक पट्ट से पड़ी! अब मास्साब अपनी सारी चौक ख़तम करेंगे....उन्होंने कई टुकड़े करके रख लिए हैं! जगन पढ़ रहा है...." चुरकी ने मुरकी से कहा....." अबे , अभी तक ख़तम नहीं हुई तेरी चुरकी मुरकी!" हो गयी...मास्साब तीसरी बार चल रही है! जगन खी खी करदिया! मास्साब की चौक तैयार थी.....निशाना साधकर फेंकी जगन पर....जगन ने सर दायीं तरफ झुका लिया!चौक जाकर पड़ी उषा की नाक पर!उषा तिलमिला गयी....यूं भी सबसे लडाकू लड़की ठहरी क्लास की!भें भें करके रोना शुरू कर दिया! अब मास्साब घबराए! सिटपिटाते हुए बिटिया बिटिया करते पहुंचे उषा के पास!" मैं आपकी शिकायत अपने पापा से करुँगी....देख लेना! मेरेको कित्ती लग गयी!" उषा को बड़े दिनों बाद मौका मिला था मास्टर से उलझने का!वैसे भी क्लास के बच्चों के लड़ लड़के उकता गयी थी! मास्साब पूरे जतन से उषा को मनाने में जुट गए हैं...अभी उषा के पिताजी आयेंगे! पूरा स्कूल सर पर उठा लेंगे!उषा का लडाकू स्वभाव उसके पिता से ही उसमे ट्रांसफर हुआ है! मास्साब को पसीना आ गया उषा को मनाते मनाते पर उषा सुबक सुबक के ढेर करे दे रही है!मासाब उषा के आंसू पोछते हैं...वहाँ तक तो ठीक है पर अब नाक भी पोंछनी पड़ रही है! उषा भी रो रो के अब बोर हुई! आंसुओं की आखिरी खेप जैसे ही पूरी हुई...उषा के मुंह से निकला " एक तो अगले हफ्ते तिमाही परीक्षा है ..उसकी तैयारी भी नहीं कर पायी थी ऊपर से आपने मेरी नाक में दे दी!अब मैं क्या करुँगी?" मास्साब बिना एक भी क्षण की देरी किये बोले " अरे...बिटिया तू क्यों चिंता करती है परीक्षाओं की!मैं सब देख लूँगा तू तो मजे से रह!" उषा रानी अन्दर से भारी प्रसन्न हुईं पर प्रत्यक्ष में ऐसा मुंह बनाया मानो मास्साब पे एहसान पेल रही हों पढाई न करके! चलो अंततः उषा प्रकरण समाप्त होता है!

मास्साब फिर से कुर्सी पर बैठकर घडी देखने लग गए हैं! अब वो प्रतीक्षित क्षण आ गया है जिसका बच्चों और मास्साब दोनों को इंतज़ार था! आखिर घंटी बज गयी....एक पीरियड ख़तम हुआ! बच्चे एक दूसरे के ऊपर चौक और कागज़ वगेरह फेंक फेंक कर ऊधम करने में लग गए हैं!मास्साब दूसरा पीरियड लेने के पहले अध्यापक कक्ष में जाकर थोडा सुस्ता रहे हैं!पढ़ा पढ़ाकर मास्साब का सिर दुःख गया है! इसी प्रकार मास्साब ने कड़ी मेहनत से पढ़ाकर और सुस्ता कर दिन निकाल दिया है!

चलो...एक दिन की तनखा पक गयी....कहते हुए छुट्टी के बाद मास्साब घर पहुँच गए हैं! घर पर सब्जी का थैला बेताबी से मास्साब का इंतज़ार कर रहा है! मास्साब को घर पर गुस्सा होने या खीजने की सुविधा प्राप्त नहीं है!लगभग रिरियाते हुए मास्टरनी से बोले " अरे...जरा सांस तो ले लेने दो! थोडा फ्रेश तो हो लूं!" मास्टरनी गुर्राई " सब्जी लाने में तुम्हारी सांस रुक जायेगी क्या? और..ये फ्रेश व्रेश तुम स्कूल से ही होकर क्यों नहीं आते हो? अब देर न करो और जाओ...." मास्साब आदेश के पालन में चल पड़े सब्जी लाने!सब्जी लाकर रखी....!मास्टरनी द्वारा बताये गए अन्य घरेलु कार्यों को भी कुशलता से पूर्ण करने के बाद स्कूल के बच्चे ट्यूशन पढने आ गए!यही एक घंटा ऐसा था जब मास्साब को घर के कामों से मुक्ति मिलती थी...अरे इसलिए नहीं कि मास्साब पढ़ने में व्यस्त हो जाते थे! बल्कि चंदू, प्रकाश, मनोहर ,दीन दयाल आदि बच्चे मास्साब के हिस्से का कार्य ख़ुशी ख़ुशी कर देते थे! उन्हें कौन सा पढने में भारी रस आता था!घर कि छत धोकर,मास्साब कि लड़कियों के लिए बाज़ार से मैचिंग की बिंदी चूड़ी लाकर,मास्टरनी का धनिया साफ़ करके ही उन्हें परीक्षा में संतोष प्रद नंबर मिल जाते हैं!अच्छे नंबरों के लिए किताबों में सर खपाने की कोई ज़रुरत नहीं पड़ती!

शाम के वक्त मास्टरनी भजन मण्डली के सक्रीय सदस्य के रूप में मंदिर जाती हैं...जहां सक्रियता से अच्छे स्वास्थ्य हेतु निंदा रस का सेवन किया जाता है!इस खाली समय का उपयोग मास्साब आराम फरमाने में करते हैं!आज मास्साब रात की नींद भी अच्छी प्रकार से लेंगे क्योकी कल नल नहीं आएगा! मास्साब के चार बच्चे हैं...जिनमे सबसे छोटा पिंटू चार साल का है और पूरे समय मास्साब की गोद में लटका रहता है!बाकी बड़े बड़े हैं...मास्साब की उन्हें कोई ज़रुरत नहीं है! इसी एक घंटे में मास्साब टी.वी. पर समाचार देख लेते हैं! मास्टरनी के आने के बाद सीरियलों का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है! खैर मास्साब की जिंदगी का कोई भी दिन उठाएंगे तो बिना किसी परिवर्तन के सेम टू सेम यही दिनचर्या देखने को मिलेगी!फर्क केवल इतना है की जिस दिन नल नहीं आएगा मास्साब को सुबह में एक घंटा और सोने को मिलेगा!


नोट- ये कहानी पूरी तरह वास्तविक धटनाओं पर आधारित है!कुछ जीवित व्यक्तिओं से इसका गहरा सम्बन्ध है!वास्तविक पात्र भी पढ़कर पूरा आनंद ले सकें, इस प्रयोजन से पात्रों के नाम परिवर्तित कर दिए गए हैं!