Wednesday, April 15, 2015

एक मुकम्मल सी मुलाक़ात हुई थी उनसे

उसे जैसे इस लम्हे में होना ही था मेरे साथ ! अगर हम दोनों दुनिया के अलग अलग छोरों पर भी होते तब भी इस लम्हे में आकर हमें मिलना ही था ! और उस वक्त में मैं ,मैं नहीं कोई और थी !यूं जैसे कोई जादूगर एक छड़ी घुमा रहा था और मैं उसके मन्तरों में बंधती जा रही थी !यूं जैसे दुनिया की बेहतरीन शराबें मेरे हलक से उतरती जा रही थीं !यूं जैसे कि उस पल में मैं एक चुम्बक बन गयी थी और उसके रक्त का सारा लोहा मुझे खींचे जा रहा था! उसके करीब होना किसी और जनम से ही तय था !एक बादल मुझ पर बरसने आया था ! देह सिमटने की बजाय खुलने लगी थी ,खिलने लगी थी ! हाथ थामते ही धड़कनें एक दूसरे को पहचान गयीं थीं ! वक्त का गुज़रना सज़ा ऐ मौत के फरमान से ज्यादा क्रूर हो चला था ! उस पल में मैं पूरी तरह बस उसी पल में थी ! न एक पल आगे ,न एक पल पीछे !

वो अजनबी चन्द घंटों के लिए यूं मेरे पास आया और चला गया जैसे एक खुशबू भरा रेशमी स्कार्फ हाथों में धीरे धीरे फिसलते हुए उड़ जाए और हथेलियों को महका जाए हमेशा के लिए! नाम ,पता,जात, शहर सब बेमानी सवाल थे ! कसमें ,वादे ,शिकवे कुछ भी तो न था उन पलों में ! न दोबारा मिलने की ख्वाहिश और न बिछड़ने का ग़म ! बस देह से आत्मा तक ख़ुशी ही तो थी थिरकती हुई ! हर सवाल का बस एक ही जवाब था कि वो अजनबी नहीं , बेहद अपना है ! उससे पहचान इतनी पुरानी है कि उसके आगे सबसे पुराने रिश्ते भी नए थे ! अगर वो उस क्षण मेरा हाथ थाम कहता कि "चलो " तो मैं बिन कुछ पूछे उसके साथ चल पड़ती ! अगर अवचेतन को मैं ज़रा सा भी अपने बस में कर पायी होती तो मुझे पता होता कि इसके पहले किस सदी में हम यूं हाथों में हाथ डाले ऐसे ही बैठे थे !

उसके स्पर्शों के फूल मेरे काँधे ,गर्दन , माथे और होंठों पर अब भी खिले हुए हैं ! और उसकी हथेली की गर्माहट रूह को अब तक महसूस हो रही है ! उसकी आँखें मेरे साथ चली आई हैं ! सामने बैठी मुझे एकटक देखे जा रही हैं ! उसकी मुस्कराहट याद कर मेरे गाल लाल हो उठते हैं !वो जो घट रहा था उन पलों में ,वो सबसे सुन्दर था ,सबसे सच्चा था !

मुझे यकीन है वो मुझे फिर मिलेगा ! ठीक वैसे ही जैसे आज अचानक मेरे सामने आकर बैठ गया था ... बेइरादा ,बेमक़सद ! सिर्फ ये बताने के लिए कि "मैं हूँ , कहीं नहीं गया" ! शायद फिर किसी लम्हे में हम दोनों दुनिया के अलग अलग कोनो से भागते हुए आएंगे और गले लग जाएंगे ! फिर एक रात खामोशियों में अपना सफ़र तय करेगी ! फिर किसी के सीने पर मेरा सर ऐसे ही टिका होगा और दो मजबूत बाहें मेरे इर्दगिर्द लिपटी होंगी !

रूमानी शब्द इस एहसास के लिए बहुत छोटा है ! ये एक रूहानी एहसास था ! सदा के लिए ... सदा सदा के लिए!

Monday, April 6, 2015

हर बिछड़ना ,बिछड़ना नहीं ...

वो अब शायद दोबारा कभी नहीं मिलेगी !

डॉक्टर के क्लीनिक पर मेरे साथ उसकी माँ भी अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी ! वो लाल रंग की एक सुन्दर फ्रिल वाली फ्रॉक के साथ लाल ऊन के फ़ीतेदार जूते पहने एक छह माह की बहुत प्यारी बच्ची थी ! पांच दस मिनिट उसे पुचकारने से वो मुस्कुराने लग गयी थी ! फिर जब उसे गोद में लेने को हाथ बढ़ाया तो वह दोनों हाथ फैलाकर मेरी गोद में लपक आई ! अगले बीस मिनिट तक हम खूब हंसे ,खिलखिलाए ! उसकी माँ उसे मेरे पास ही छोड़कर डॉक्टर को दिखाने चली गयी ! वो अपनी उजली चमकदार आँखों से मुझे देखती और मैं गुदगुदी करने के लिए उंगलियां उसकी ओर बढ़ाती और वो ज़ोर से खिलखिला उठती ! हम दोनों एक दूसरे के साथ खुश थे ! उसकी माँ ने बाहर आकर उसे गोद में लिया और जाने लगी ! मैंने उसे टाटा किया और वो अपने दोनों हाथ फैलाकर मेरी गोद में आने के लिए लगभग पूरी लटक गयी ! वो मचलती रही और कार तक जाते जाते वो दोनों हाथ फैलाए मेरी गोद में आना चाह रही थी ! एक पल को ऐसा लगा जैसे वो मुझे बहुत अच्छे से जानती है !

खैर उसे जाना था ..वो चली गयी !

उसके जाने के बाद न जाने कितने चेहरे आँखों के सामने से घूम गये जो जीवन के किसी न किसी मोड़ पर मिले थे फिर कभी न मिलने के लिए ! उन्हें रुकने की ज़रुरत भी न थी ..चंद मिनिटों,घंटों या दिनों में वो अपना काम बखूबी कर गए थे ! इनमे से कई हमें बहुत कुछ दे जाते हैं अपनी कहानियों , अनुभवों की शक्ल में और कई हमसे कुछ ले जाते हैं ! ऐसे लोगों का मिलना शायद हमें अन्दर से समृद्ध करने के लिए होता है ! तभी तो वो चेहरे कभी न भूल सके !

शाजापुर की छोटी सी ओना ,मोना ! तीन साल और एक साल की घर भर में फुदकती दो बहने !जिनकी सुबह से शाम तक हमारे घर पर कटा करती थीं ! अब बहुत बड़ी हो गयी होंगी ! ढूँढने से मिल भी जाएंगी आज शायद तेईस बरस की होगी ,पर ये वो मोना न होंगी ! पापा के पेट पर बैठकर चावल खाने वाली छुटकी सी मोना अब कभी नहीं मिलेगी ! शायद जिन्हें कभी नहीं मिलना होता वो जाने से पहले हमारे दिल में सदा के लिए बस जाया करते हैं ! ऐसे प्यारे लोगों का जीवन में दोबारा न तो इंतज़ार होता है , न फिर से मिलने की ख्वाहिश और न उनके जाने का दुःख ! ये बस आते हैं क्योंकि इन्हें मिलना होता है और चले जाते हैं !

ग्वालियर की आई ,मुरैना की सरला आंटी , मॉर्निंग वाक पर मिला एक बच्चा जिसने उसकी साइकल की चेन चढाने के बदले मुझे आपनी साइकल पर बैठाकर मंजिल तक छोड़ने की पेशकश की थी , ट्रेन के सफ़र में मिली एक लड़की जिसने मुझे अपना राज़दार बनाया था , एक सेमीनार में मिला वो हसीन नौजवान जिससे मिलकर एहसास हुआ कि इंफेचुएशन पर केवल टीनएज का हक़ नहीं है !एक और ट्रेन यात्रा में मिले वो एल आई सी वाले अंकल जिन्होंने अपने पिता के लिए लिखी एक कविता सुनाई थी और फिर टॉयलेट में जाकर मैं फूट फूट कर रो पड़ी थी ! मैं इटारसी उतर गयी थी और वो नागपुर चले गए थे ! उनकी कविता की आखिरी लाइन थी ..
" पिता का गुस्सा दरअसल आधी चिंता और आधा प्रेम होता है
पिता तो सिर्फ माफ़ करना जानते हैं "

क्या एक पीपल का पेड़ भी उस चिड़िया को याद करता होगा जो दूर सायबेरिया से चलकर आते वक्त दो घडी उसकी शाख पर बैठी थी और जाने कितनी कहानियाँ उस की शाखों पर बाँध कर चली गयी थी ! वृक्षों के पास अनगिनत कहानियां होती हैं , ये चिड़ियाएँ ही हैं जो उन्हें समृद्ध बनाती हैं !

क्या उन तीन बच्चों को झांसी रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठी वो दीदी याद होगी जिसने अपने कैमरे की स्क्रीन पर उन्हें ढेर सारे पक्षियों की फोटो दिखाईं थीं , जिनमे से कई उन्होंने पहली बार देखे थे और हॉर्नबिल देखकर तो बेहद आश्चर्य में पड़ गए थे !

ऐसे लोग कभी बिछड़ते नहीं ...वे केवल मिलते हैं !

माँ होने के वो दस मिनिट

अक्सर एक छुट्टू सी हंसी नाभि से बाहर को फुदकती आती है और हम दोनों के होंठों पर 
नाचने लगती है !कभी कभी इक कोमल अंगूठा मेरी दीवारें खटखटाता है और मैं मुस्कुराकर बुदबुदाती हूँ " थोडा रुको अभी ..और थोड़े बड़े हो जाओ "

जब रातों को मेरा सारा बदन सोता है तो मेरी रूह जागकर एक नन्हे बदन की रखवाली करती है !मेरे सीने के बाईं ओर की टिकटिक मुझे अब सुनाई नहीं पड़ती ... मेरी सम्पूर्ण देह ही एक ह्रदय में तब्दील हो चुकी है !

मैं मेरी माँ को याद कराती हूँ " माँ याद करो ना , क्या तुम्हे भी ऐसा होता था ?" माँ ज़ोरों से हंसती है , माँ की स्मृति से एक पल को भी मेरा आना विस्मृत नहीं हुआ है , माँ को उस एहसास को जीने के लिए बस मुझे बाहों में भर लेना होता है ! माँ आँखें बंद कर पूरी पहर उस पच्चीस साल पुरानी जादुई घटना के बारे में बात कर सकती है ! 

ओह ... पूरा ब्रम्हांड मेरे अन्दर गोल गोल चक्कर काटता है ! जिस दिन मेरी आत्मा ने सबसे मीठा चुम्बन पाया था उस दिन मैं जान गयी थी कि दो सुर्ख पंखुरियां नाज़ुक होंठों में बदल गयी हैं !

इन दिनों "बड़ा नटखट है ये कृष्ण कन्हैया " की धुन सितार पर सुनते हुए चेहरा आनंद के आंसुओं से भीग उठता है और छातियाँ एक नन्हे मुंह के स्पर्श को व्याकुल हो उठती हैं ! 

मेरे स्वप्न तुतलाने लगे हैं ,मैं दुनिया का सारा ज्ञान परे रख नन्ही ठोकरों की भाषा सीखने लगी हूँ ! मेरी उंगलियाँ सितार के तारों पर फिसलना भूल खरगोश की डिजाइन वाले नन्हे जुराब बुनना सीख गयी हैं !

मेरी देह के ताल में एक गुलाबी कमल खिल रहा है ! 

......................................( एक होने वाली माँ को सोचते , महसूस करते और जीते हुए )