Tuesday, March 29, 2011

सत्तर के फूल, चौबीस की माला

उसकी दुकान पर सुबह से शाम तक मेला लगा रहता है! सामने ट्रकों की कतार लगी रहती है! आगरा बॉम्बे हाइवे पर देवास से शाजापुर के बीच में उसकी दुकान है....ट्रक सजाने का सारा साजो सामान उसकी दुकान पर है! चमकीली झालर...रंगबिरंगे स्टिकर...भगवान के पोस्टर...अगरबत्ती स्टैंड और एक पेंटर भी जो ट्रक के पीछे मनचाही तस्वीर पेन्ट कर देता है!मुझे उस रोड से गुज़रते वक्त हर बार बड़ी दिलचस्पी हुआ करती थी उसकी दुकान पर रूककर सामान देखने की और उससे भी ज्यादा ये जानने की कि ये दुकान खोलने का विचार उसे कैसे आया!शायद ज़रूर किसी ट्रक चलाने वाला परिवार ही होगा...मुझे हमेशा लगता था! उस दिन मैं ठान कर गयी थी कि आज मैं उस दुकान पर जाकर ही रहूंगी!

सुबह दिन चढ़ते ही पहुँच गयी थी मैं उस दुकान पर!वो एक पचीस छब्बीस बरस का पंजाबी लड़का था! उसको अजीब लगा था मेरा दुकान पर आना....पहले वो समझा था कि शायद रास्ता पूछने आई हूँ! " लडकियां इस दुकान पर कभी नहीं आतीं" थोड़ो देर बाद उसने चाय पीते हुए बताया था! " हाँ...अपने यहाँ लडकियां ट्रक जो नहीं चलातीं" मैंने कहा था और हम दोनों हंस पड़े थे! मैं जानकर हैरान हुई थी कि वो एम.बी. ए. है! " आप लोग जो नौकरी करके कमाते हो न इन प्रायवेट कम्पनियों में....हम उससे बहुत ज्यादा कमा लेते हैं अपनी इस दुकान से!" उसकी इस बात से में थोड़ी देर बाद सहमत हो गयी थी उसकी दुकान पर लगातार ट्रकों का मजमा लगा देखकर!
"हर ट्रक ड्रायवर कि जिंदगी का अलग फलसफा है को उसकी नंबर प्लेट पर किसी शायरी...वाक्य या फोटो के रूप में झलकता रहता है! जिस तरह से एक ड्रायवर ट्रक को सजाता है....उसी से लगता है वो उसे कितना प्यार करता है! महीनो तक घर वालो से दूर उसका घर, उसकी दुनिया सब कुछ यही ट्रक तो है! इसका एक एक पुर्जा मानो उसका संगी है! जाने कितनी ही सुबहें आँखें खोलते ही सबसे पहले ट्रक को छुआ होगा....न जाने कितनी दोपहरों में इसके स्टीयरिंग ने उसकी झपकियों को संभाला होगा...सर्द रातों में छलकते जामों का गवाह रहा होगा उसका ये ट्रक! चांदनी रातों में जब महबूबा का ख़त पढ़कर वो रोया होगा तो इसकी सीटों ने वो आंसू जज़्ब किये होंगे! '
कहते कहते वो कुछ भावुक हो गया था और न जाने कहाँ शून्य में ताकने लग गया था! " मेरे घर में कोई ट्रक नहीं चलता है....बस बचपन से ही ट्रक के पीछे बनी अलग अलग तस्वीरों और उस पर लिखी शेरो शायरी पढ़कर मुझे इनकी जिंदगी के बारे में दिलचस्पी जागी...ठीक वैसे ही जैसे आपको मेरी दुकान देखते देखते यहाँ आने का मन हुआ!
" यहाँ आने वाले हर ड्रायवर की जिंदगी की अलग दास्ताँ होती है...ट्रक के पीछे इंतज़ार में बैठी हुई लड़की उसकी बीवी या प्रेमिका होती है जिसे छोड़कर आने का दर्द वो जैसे अपने ट्रक पर चस्पा कर देना चाहता है....मन्नू, बिट्टू ते टिन्नी दी गड्डी जब वो लिखवाता है तो अपने बच्चों के नाम जैसे वो गाडी नहीं सारी कायनात कर देना चाहता है! बड़े से बड़ा दर्शन ट्रक के पीछे लिखी चन्द लाइनों में सिमट आता है! अपने ट्रक से बेपनाह मोहब्बत करता है एक ड्रायवर....बड़े चाव से उसे सजाता संवारता है उसे बुरी नज़र से बचने के लिए जाने क्या क्या लिखवाता है!एक ट्रक को देखकर मैं उसके ड्रायवर की आत्मा में झाँक कर उसे पढ़ सकता हूँ...." वह नौजवान अपनी ही रौ में बोले जा रहा था!मैं बस उसे सुन रही थी..और उसकी आत्मा में झाँकने के लिए एक खिड़की मुझे साफ़ नज़र आने लगी थी!
अब तक हम तीन चाय और एक प्लेट पोहा खा चुके थे! तभी धूल का गुबार उडाता एक ट्रक दुकान पर आकर रुक गया! एक सरदार ड्रायवर उतर कर सीधे हमारी और आया और बोला "साहब जी...कुछ लिखवा दो मेरी इस गड्डी पर"
' क्या लिखवाना है?
" सत्तर के फूल, चौबीस की माला बुरी नज़र वाले तेरा मुह काला"
उस नौजवान ने पेंटर को बुलाया और लिखने को बोल दिया ...फिर मेरी तरफ मुड़कर बोला " सत्तर चौबीस इसकी गाड़ी का नंबर है...इसलिए लिखवा रहा है" मैं भी मुस्कुरा दी! अचानक ड्रायवर पलटकर बोला " नहीं साहब...ये मेरी गाड़ी का नंबर नहीं है! मेरे घर में केवल मेरे सत्तर साल के बाबूजी और चौबीस साल की बेटी है...उन दोनों की फ़िक्र मुझे दिनरात लगी रहती है! हर साल उम्र बढ़ने पर नंबर बदलकर लिखवा देता हूँ...इससे मुझे हमेशा अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है! कहीं पैसा दारु में न उड़ा दूं, इसलिए याद रखता हूँ कि बाबूजी का इलाज और बेटी की शादी के लिए मुझे एक एक पैसा बचाकर रखना है..." !
एक अलग दास्ताँ...एक अलग फलसफा और एक अलग दर्शन ...
हम दोनों बड़ी देर तक सोचों में डूबे हुए बैठे रहे...फिर मैं उठकर चल दी!