Saturday, August 11, 2012

सुर


मैं तुम्हारे साथ सुरों से बंधी हुई हूँ! न जाने कौन से प्रहर में कौन सा कोमल सुर आकर हौले से मेरे तार तुमसे बाँध गया! शायद उस दिन जब तुम भैरव के आलाप के साथ सूरज को जगा रहे थे तभी रिषभ आकर मेरे दुपट्टे के सितारों में उलझ गया होगा या फिर उस दिन जब मैं सांझ की बेला में घंटियाँ टनटनाती धूल के बादल उड़ाती गायों को यमन की पकड़ समझा रही थी तब शायद निषाद आवारागर्दी करता हुआ तुम्हारे काँधे पर जाकर झूल गय
ा होगा!

तुमने एक बार कहा था कि " आसमान से सुर बरसते हैं... बस उसे सुनने के लिए चेहरे पर नहीं दिल में कान होना चाहिए " फिर जिस दिन तुमने रात को छत की मुंडेर पर बागेश्री के सुरों को हौले से उड़ा रहे थे तब मेरे दिल में भी कान उग आये थे! और दो आँखें भी जिनसे मैंने पूरी श्रष्टि के कोने कोने से सुरों को बहकर तुम्हारे पास आकर पालथी लगाकर बैठते देखा था!

और तुम्हे याद है वो रात जब आखिरी पहर चाँद ने हमसे सोहनी की फरमाइश की थी और बादलों पर ठुड्डी टिकाये चांद तक हमने एक तराना पहुँचाया था ..तब तुम्हारे साथ मींड लेते हुए मैंने मेरी आत्मा को तुम्हारी आत्मा में घुलते देखा था! मेरी आँख की कोर से निकले आंसू को गंधार ने संभाला था और एक सुर भीगकर हवा में गुम हो गया था!

सुरों की माला हमने एक दूसरे के गले में पहनायी है! षडज से निषाद तक हमारी साँसें एक लय में गुंथी हुई चल रही हैं! मुझे नहीं जाना है ताजमहल, न ही देखना है इजिप्ट के पिरामिड कि मैंने तुम्हारे साथ विश्व के सात आश्चर्यों की यात्रा कर ली है!