Thursday, April 25, 2013

आँखों देखा हाल और हम हुए बेहाल ... जय हो सन्तों की

संतों के संत ,भगवानों के भगवान , सदी के महानतम पुरुष का पंडाल सजा हुआ है! संत शिरोमणि का प्रवचन शुरू हो चुका है! अहा ..क्या भक्ति की गंगा प्रवाहित हो रही है! लोग के चेहरे गीले हो चुके हैं ....अब पता नहीं प्रेम अश्रुओं से या मई माह के पसीने से!
 लोग बाग़ खिंचे चले आये हैं दूर दूर से पुण्य कमाने! वो बात अलग है कि इस पुण्य नाम की अनदेखी वस्तु को कमाने के चक्कर में एक दिन की धन की कमाई को ज़रूर लात मार आये हैं! और तो और पिछले दो दिनों की कमाई चढ़ावे के रूप में समर्पित करने ले आये हैं! और भी पिछले दो दिनों की कमाई  ले आये हैं संत महाराज महाराज की लगाई हुई स्वास्थ्य वर्धक दवाइयां , चूरन,  गोली , अचार , पापड़ , जूस , स्वामी जी के गुणगान की पुस्तिकाएं आदि आदि दुकानों पर ख़र्चा करने के लिए! पब्लिक को विश्वास है कि इस दवाइयों के सेवन के बाद किसी के बाप में हिम्मत नहीं है जो उन्हें सौ साल का होने से रोक ले!और चार घण्टे का प्रवचन सुनने के बाद उन्हें स्वर्गलोक में जाने और वहाँ कुछ दिन मौज करके पुनः भूलोक पर किसी रईस के घर पैदा होने से अच्छे खां भी नहीं रोक सकते! पब्लिक आये जा रही है ....खांसते ,कूलते लोग , हाँफते कांपते लोग , किनकिनाते बच्चों को धकियाते  लोग , भीड़ में एक दुसरे को ठूंसा मारते लोग , गाली गलौज करते लोग ...बाप रे चहुँ ओर लोग ही लोग !

संत श्री चालू हैं ... " फिर द्वारिकाधीश मुस्कुराते हुए बोले ...हे द्रौपदी ....."  इतने में संतश्री म्यूट हो गए! लाईट गुल हो गयी ...माइक ने साथ छोड़ दिया!महाराज की निर्मल मुखमुद्रा सडनली चेन्ज हो गयी ...चेहरे की सारी मांस पेशियाँ किसी खडूस मास्टर की तरह सख्त हो उठीं! चेले दौड़े आये ..महाराज छूटते ही उनपे गरियाए !जी भर के उनकी ऐसी तैसी की! जितनी गाली बचपन से आज तक सीखीं थीं ,सबका रिवीज़न कर डाला ! एक चेला धीरे से बुदबुदाया ...महाराज ,माँ की गाली तो न दें" महाराज जी ने जो आँखें तरेर के देखा तो बेचारा चेला मंच के नीचे कूद पड़ा!

खैर माइक चालू हुआ ... जनता फिर से भक्ति के समुद्र में गोते लगाने लगी!महाराज एक कांच के केबिन में बैठे प्रवचन दे रहे हैं ... और जनता खुल्ले में बैठी ये सोच के अपने भाग्य को सराह रही है कि बेचारे महाराज जी कितनी गर्मी में हमारे लिए कष्ट उठा रहे हैं! भोली ,मूर्ख जनता की आँखें श्रद्धा के कारण मायोपिया का शिकार हो चुकी हैं ,,उन्हें केबिन में महाराज जी के पीछे फिट किया एयर कंडीशनर नज़र नहीं आता!

 कन्हैया अपने पूरे परिवार सहित पधारा है ...जिसमे झुकने से अपनी मूल लम्बाई के आधे हो गए पिता जी , गर्भवती पत्नी और पांच माह का मुन्ना भी शामिल हैं! मुन्ना ने रो रो के आसपास बैठी जनता के पुण्य लाभ में व्यवधान डालना शुरू कर दिया है! बगल में बैठे पप्पू कुबड़ा का पारा हाई हो चला है! उसने अल्टीमेटम दिया कि " अगर अब के ये मुन्ना रोया तो उठा के बाहर पटक देगा " कन्हैया सहम गया है ,पप्पू कुबड़े को सब जानते हैं और सब डरते भी हैं ,पप्पू दो मर्डर कर चुका है ,तीन लूट और चोरियों का तो कोई हिसाब नहीं! अभी अभी जमानत पे छूटा तो माँ ने जबरदस्ती प्रवचन सुनने भेज दिया! वैसे पप्पू भी धार्मिक है ..हर मंगलवार उपास रहता है ..शनिवार को शनि महाराज के कमंडल में बगल के किराने की दुकान से निकालकर तेल डालता है! 

कन्हैया ने अपनी पत्नी को मुन्ना को बाहर ले जाने को कहा है ...पत्नी आँखें नचा नचाकर जाने क्या बडबडायी कि कन्हैया खुद मुन्ने को बगल में दबा कर पंडाल के बाहर जाकर खड़ा हो गया!

 इतने में कन्हैया के बापू को खांसी का दौरा शुरू हुआ ... पहले तो कुबड़े के डर के मारे गले में ही घोंटते रहे फिर अचानक अनेक पदार्थों के साथ खांसी अपने पूरे वेग में बाहर निकली और कुबड़े सहित आसपास बैठे अनेक भक्तों को तर कर गयी! बापू अपना हश्र सोचकर बेहोश हो गए! उनके बेहोश होते ही कुबड़ा फूट लिया आधे प्रवचन में ही ... अड़ोसी पडोसी भी मुंह फेर कर भक्ति सागर में समाने का उपक्रम करने लगे!

कन्हैया दौड़ा दौड़ा आया ...एक तरह खांसते बापू ...दूसरी तरफ फुल वोल्यूम में रोता मुन्ना! मगर क्या जिगर वाला परिवार था ...आधा पुण्य किसी को मंज़ूर नहीं था! पूरे परिवार ने सलाह मशवरे के बाद तय किया कि चाहे जान चली जाए पर पुण्य की आखिरी बूँद तक निचोड़ कर जायेंगे! बापू को खांसते खांसते प्यास लगी तो कन्हैया की पत्नी ने झट से बगल वाले की नज़र बचाकर उसकी पानी की बोतल अपने घटा से आँचल में छुपा ली! बोतल की निगरानी कर रहे बालक ने तत्काल अपनी माँ को सूचित किया ! फिर क्या था ..बोतल की असली मालकिन ने आँचल पे धावा बोला  ..घटा बिखर गयी ...बोतल के पानी से गीली होकर बरस भी गयी! " आग लगे ..तेरी ठठरी बंधे ..तू मसान पहुंचे ...." बोतल की मालकिन पूरे जोश में थी! कन्हैया की पत्नी भी प्रवचन सुन सुन कर बोर हो रही थी ...युद्ध उसे भी ज्यादा रुचिकर प्रतीत हुआ! दोनों महिलायें सुरुचिपूर्ण ढंग से युद्धकला का प्रदर्शन करने लगीं ! किसी फूटी किस्मत वाले ने बीच में टोक दिया ..." सुनो ..महाराज जी द्वारिकाधीश की कथा सुना रहे हैं " " अरे भाड़ में जाएँ द्वारिकाधीश ...यहाँ इस नासपीटी ने  बोतल चुरा ली ,तुझे कथा की पड़ी है! " फूटी किस्मत चुपचाप होकर पुण्य बटोरने में भिड़ गया! 

शाम होने को आई ... जाने कितनों को चक्कर आया , कितने लस्त पस्त हो गए , कितनों के सामान चोरी हुए ,कितनों की सुन्दर कन्याओं को महाराज जी ने भाव विभोर होकर गले लगाया ! प्रवचन  होते ही महाराज जी ने काजू ,किशमिश हवा में उछाल दिए! उन पुण्यकारी मेवों को लूटने के चक्कर में कितनों के सर फूटे ,कितनों के हाथ दूसरों की चप्पल के नीचे दुच गए,कितने मिटटी ,कीचड़ लगे मेवे भक्ति भाव से खाते देखे गए!

जनता के जाने के बाद महाराज जी ने तसल्ली से कत्था ,चूना रगड़ा , अपने सामने चढ़ावे और बिक्री से आये धन को गिनवाया और तिजोरी में रखवाकर चाबी धोती में खोंसी और लाल बत्ती लगी गाडी में बैठ के शहर का त्याग किया!

हमारी भी गर्मी में महाराज जी के इंतजाम में लगी ड्यूटी ख़तम हुई ....हमने महाराज जी को दिल की गहराइयों से कोसा और दुआ मांगी कि इस साले का रास्ते में एक्सीडेंट हो जाए! मगर अगले दिन खबर पढ़ी कि फलानी जगह महाराज जी का प्रवचन का लाभ सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उठाया ! हमने पेपर फोल्ड किया और सो गए, जैसे जनता सो रही है कुम्भकर्णी नींद में!

Tuesday, April 2, 2013

सिर्फ और सिर्फ प्रेम


कुछ लोग प्रेम रचते हैं ...प्रेम की कानी ऊँगली पकड़कर जीवन की नदी की मंझधार बीच चलते रहते हैं! वो एक ऐसी ही कवियित्री थी! लोग कहते थे , वो प्रेम पर कमाल लिखती थी! वो कहती थी प्रेम उससे कमाल लिखवा लेता है! उसके कैनवास पर प्रेम की विराट पेंटिंग सजी हुई थी! सामने ट्रे में न जाने कितने रंग सजे रहते ..मगर वो केवल प्रेम के रंग में कूची डुबोती और रंग देती सारा आकाश! जब कोई नज़्म उसके दिल से निकलकर कागज़ पे पनाह पाती तो पढने वाले की रूह प्रेम से मालामाल हो जाती!

समय सरकते सरकते उस मुहाने पे जा पहुंचा ,जिसके बाद सिर्फ युद्ध फैला पड़ा था दूर दूर तक! अंतहीन ..ओर छोर रहित युद्ध! लोगों ने नज्में दराजों में बंद कर दीं और नेजे ,भाले और तलवारें अपने कंधों पे सजा लिए! प्रेम का रंग छिटक कर न जाने कहाँ दूर जा गिरा था! क्रान्ति के शोर में मुहब्बत की बारीक सी मुरकी खामोश हो गयी! वीरों का हौसला बढाने कवियों ने क्रान्ति पर कलम चलानी शुरू कर दी! चारों और वीर रस की धार बह चली!

मगर वो अभी भी प्रेम रच रही थी! सिर्फ और सिर्फ प्रेम! अब उसकी नज्में कोई न पढता! मगर वो अपने पागलपन में डूबी कागजों पे मुहब्बत उलीचती जा रही थी! लोगों ने समझाया . " समय की मांग है कि अब तुम जोश भरी नज्में लिखो! " वो सर ऊपर उठाकर देखती और प्रेम की एक बूँद कागज़ पर गिरा देती! जब लोग उसे धिक्कार कर चले जाते तो वो अपनी ताज़ा लिखी नज़्म से कहती " वक्त के इस दौर को तुम्हारी सबसे ज्यादा ज़रूरत है "

न जाने कितने लोग मरे ...कितनों के घर काले विलाप से रंग गए! सैनिक दिन भर युद्ध करते और स्याह रातों में अपनी माशूकाओं के आये ख़त सीने पर रखकर सो जाते! उन रातों को वीर रस की नहीं सिर्फ प्रेम के रस की दरकार होती!

वक्त गवाह है .... उस कवियित्री की नज्मों ने सिर्फ जगह बदली थी! जो नज्में कभी उन सैनिकों ने अपनी माशूकाओं को अपने चुम्बनों में लपेटकर सौंपी थीं ,अब वे नज्में सैनिकों की माशूकाएं ख़त में लपेटकर पहुंचा रही थीं! प्रेम रुका नहीं था, मरा नहीं था और कहीं खोया भी नहीं था ...लगातार बह रहा था और सैनिकों के लहू से तपते जिस्मों पर ताज़ी ओस की बूंदों की तरह बरस रहा था!

सुन रहे हो ओ प्रेम ... " जब सबसे भयानक और सबसे बुरा दौर होता है तब तुम्हारी ज़रूरत भी सबसे ज्यादा होती है "