Sunday, November 30, 2014

प्रेम एक पालतू बिल्ली है

हवा में उछाले गए चुम्बन,
किसी को ज़ेहन में रखकर लिखी और 
फिर फाड़ डाली गयी नज्में
कभी न कभी पते पर ज़रूर पहुँचते हैं.......

आंसुओं और नमक में क्या रिश्ता है
सिवाय इसके कि 
दोनों जिंदगी में स्वाद बढाते हैं
पर आंसू कभी चुटकी भर नहीं मिलते

आखें किराए का इक मकान हैं 
और ह्रदय आंसुओं का पुरखों वाला घर 
पीड़ा प्रेम का स्थायी भाव है 


प्रेम एक पालतू बिल्ली है
और दिल उसका मालिक
मालिक के चेहरे पर नाखूनों के अनगिन निशान हैं 
बिल्ली मरती नहीं ... मालिक उसे भगाता नहीं 

 

जब कोई लम्हा ठिठक जाता है तो 
इक दास्तान में बदल जाता है 
रुके हुए लम्हे कभी मरते नहीं
तुम्हारे इंतज़ार में रुका लम्हा आज भी धड़कता  है 


एक चील भी अपने घोंसले वाली डाली पर 
किसी दूसरी चील को बैठने नहीं देती
मैं तो फिर भी इंसान हूँ....

Monday, November 24, 2014

गर्विता


आपकी इज्ज़त आपके कर्मों में बसी 

आपने दान किया ..आपकी इज़्ज़त बढ़ी 
आपने जग जीता ..आपकी इज़्ज़त बढ़ी 
आपने आविष्कार किये ..आपकी इज़्ज़त बढ़ी 

फिर मेरी इज़्ज़त आपने मेरी नाभि के नीचे क्यों बसाई ?

मेरे जग जीतने से मेरी इज़्ज़त नहीं बढ़ी 
अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने से मुझे मान नहीं मिला 
पर मेरे एक रात प्रेम करने से मेरी इज़्ज़त ख़त्म हो गयी 
मुझ पर एक शैतान का हमला मेरी इज़्ज़त लूट गया 

मैं हैरत में हूँ 
मेरे एक ज़रूरी अंग को आपने कैसे मेरी इज्ज़त का निर्णायक बनाया ?
किसने आपको मेरी आबरू का ठेकेदार बनाया ?

अगर बनाया तो बनाया 
आप बुद्धिहीन नहीं ..बहुत शातिर थे
मैं जान और समझ गयी हूँ आपके इस शातिराना खेल को
मुझे साज़िशन गुलाम बनाया गया है 

अब मैं अपनी इज़्ज़त को अपनी जाँघों के बीच से निकालकर फेंकती हूँ 
मेरा कौमार्य मेरी आज़ादी है ..न कि मेरी आबरू 

मुझ पर एक हमला मुझे शर्मिन्दा नहीं करेगा अब 
ना ही मेरी इज़्ज़त छीन सकेगा 
मैं उठकर आपकी आँखों में डालकर ऑंखें 
हिसाब लूंगी अपने ऊपर हुए हमले का 

शर्मिन्दा होगा ये समाज और ये सरकार 
शर्मिंदा होंगे आप 
मैं गर्विता हूँ और रहूंगी 
हज़ार बार हुए हमलों के बावजूद

Wednesday, November 5, 2014

और फिर पप्पू कवि बन गए ...

पप्पू जब बेरोजगारी से उकता गया ( वैसे नहीं उकताया कि काम करने को मरा जा रहा हो , बल्कि पैसों की जुगाड़ न होने से उकताया था ) तो उसने नाना प्रकार के कामों में हाथ डालना चाहा मगर पप्पू को देखते ही समस्त कार्य स्वयं पतली गली से निकल भागते थे ! कोई भी भला काम पप्पू के मुँह नहीं लगना चाहता था ! पप्पू भी सभी कामों से नफरत ही करता था ! काम भी कोई करने की चीज़ होते हैं ! जो जीवन में कुछ नहीं कर पाते , वही लोग काम करते हैं ! अगर साला पैसों के लिए काम का मुंह न देखना होता तो पप्पू थूकता है दुनिया के सारे कामों पर ! खाने ,पहनने का इंतजाम तो पिताजी गाली बक के भी कर देंगे मगर गुटका , कलकतिया पान और मोबाइल रीचार्ज का खर्चा तो दुनिया का कोई बाप न उठाएगा और फिर पप्पू के पिता जी तो थोड़े ज्यादा बेरहम बाप थे !

मेहनत के काम पप्पू से होए नहीं ..कि पप्पू की मांस पेशियाँ " नागमती विरह " वाली नागमती को भी लज्जित करके छोड़ दें ! दिमाग वाले काम पप्पू से होयें नहीं ..कि आराम कर करके पप्पू का दिमाग विकलांग कोटे में शुमार होने लग गया था तो अब तो भैया कोई चले नहीं ! अब पप्पू करे तो करे क्या ?

ऐसा कोई काम जिसमे न तो मेहनत लगे और न दिमाग ... पप्पू के दिमाग ने अपनी टूटी टांग से खलबलाना शुरू किया और पप्पू ने जगह जगह ऐसे कार्य की तलाश शुरू कर दी ! पप्पू ने फेसबुक के रोज़ चक्कर मारने शुरू किये कि शायद कोई युक्ति सूझ जाए कि यहाँ एक से एक बल्लम तफरी करने आते हैं ! इन फेसबुकी बल्लमों ने पप्पू को जीवन की एक नयी राह दिखाई !आखिर पप्पू ने दुनिया के करोड़ों सम्मान जनक कार्यों में से एक काम के गले में जयमाला डाल दी !

पप्पू नयी विधा की कवितायें लिखने लगा ..और ऐसी वैसी नहीं साहब , क्या तो भी जालिम कवितायें रचीं पप्पू ने ! पप्पू एकलव्य बनकर कुछ महारथियों से चुपचाप अतुकांत जो दरअसल "बेतुकांत" थीं , कविताओं की ट्रेनिंग लेने लगा ! पप्पू ने पहले इन आधुनिक कविताओं पर अत्याधुनिक टिप्पणी करनी शुरू कीं ! जब उसने देखा कि उसकी टिप्पणियों पर कविता से ज्यादा लाइक आ रहे हैं तो उसके हौसलों को पंख लग गए ! उसने शीघ्र ही एक घंटे में पचास कविताओं की बुलेट स्पीड पकड़ ली ! पप्पू कविता रचने को तप कर्म से कम नहीं समझता था ! पूर्ण विधि विधान से कविता करने बैठता था ! सबसे पहले पादुकाएं दरवाजे पर उतारता था , पादुकाओं के समीप ही दिमाग भी उतारकर रख देता था ! जिस चीज़ की आवश्यकता न हो उसे दूर ही रखना भला है ! फिर पूरे आराम से पलंग पर लेटकर कंप्यूटर गोदी में रखकर चने मुरमुरे खाते हुए लेखन साधना करता था ! कंप्यूटर पप्पू के सो जाने के बाद उसकी चरण वंदना करता !

फिर वो चमत्कार भी घटित हुआ जो मानव सभ्यता के इतिहास में कभी नहीं हुआ था !रात को पप्पू के सो जाने के बाद उसकी लिखी कविताओं के मन में वह प्रश्न उत्पन्न होने लगा जो आज तक सिर्फ चिंतनशील मानवों को ही मथे रहता था और वो प्रश्न था " मैं कौन हूँ और मेरे जन्मने का क्या उद्देश्य है ?" इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए बेचैन कवितायें आपस में सारी रात विमर्श करतीं ...एक दूसरे से खुद का अर्थ समझतीं ! नाकाम होने पर अपनी अपनी लाइनों में घुसकर खर्राटे भरने लगतीं और सारी मगजमारी का काम पाठकों पर छोड़ देतीं !

जल्द ही पप्पू फेसबुक की सेलिब्रिटी बन गया ... उसकी एक एक कविता पर पाठक मक्खियों की तरह झूम जाते ! वो अपनी तीन लाइन की कविता से लोगों के दिमाग का दही करने में सक्षम था ,पांच लाइन की कविताओं से उन्हें उनकी बुद्धि की औकात दिखाने की काबिलियत रखता था और सोनेट से दुनिया भर के कवियों को हीनभावना से ग्रसित करने की कूबत भी रखता था ! बुद्धिहीन ये समझ कर कि ज़रूर कोई गहरी बात लिखी है , वाह वाह करके चलते बनते थे ! वे उसकी गहराई में जाने लायक अपनी बुद्धि का सामर्थ्य नहीं पाते थे इसलिए उनका टाइम भी खोटी नहीं होता था सिर्फ लाइक खोटी करने से काम बन जाता था !सबसे ज्यादा मरण बुद्धिजीवियों का था , अगर न समझें तो मूर्ख साबित हों और समझना तो खैर इस दुनिया के पांच सौ आई क्यू वाले इंसान के बस के भी बाहर था !तो होता यूं कि बुद्धिजीवी उस आधुनिक कविता का अपने हिसाब से अटरम शटरम अर्थ निकालते थे ! इस प्रक्रिया में वे समय , लाइक और कमेन्ट तीनों चीज़ें खोटी करते थे !

अल्प समय में ही पप्पू की कवितायें पत्रिकाओं में छपने लगीं , पप्पू स्टार बन गया ! बड़े बड़े लेखक लेखिकाएं जिन्होंने कलम घिसने में अपनी जवानी और बुढापा दोनों गर्क कर दिया था , बर्न वार्ड में भरती हो गए ! पप्पू पुरस्कार जीतने लग गया ! पप्पू कविताओं की समीक्षा करने लग गया ! पप्पू ने एक महान कार्य और कर दिया था जिसके लिए सदियाँ सदियों तक उसका यशोगान करा करेंगी ! पप्पू ने रोजगार के लिए बुद्धि और परिश्रम पर निर्भरता का अंत किया था !

हम भी बुद्धिजीवी ही मानते हैं खुद को सो पप्पू को फ़ॉलो करते हैं और बाकायदा कमेन्ट भी करते हैं !अभी अभी पप्पू की एक कविता पर कमेन्ट चिपका कर आये हैं ! कविता और कमेन्ट इस प्रकार हैं !

पप्पू की कविता ---

कौन जीता है यूं
जैसे जीता है वो
कौन मरता है यूं
जैसे मरता है वो

इस जीने मरने के बीच
जीने मरने का भेद स्वयं चकित है...

हमारा कमेन्ट ...

"जीने मरने के बीच जो " वो " है ..वही स्रष्टि है , वही रचियता है और वही जीवन है और वही साक्षात म्रत्यु भी "

हमें उम्मीद है .जैसे पप्पू के दिन फिरे , हमारे भी अवश्य फिरेंगे ! हम भी पादुकाओं के समीप दिमाग उतारकर कमेन्ट करने लगे हैं और अभी अभी हमने गिने ! हमारे कमेन्ट पर डेढ़ सौ लाइक्स आ गए हैं !

अभी अभी पप्पू ने फेसबुक पर एलान किया है कि वह शीघ्र ही कहानियां और समीक्षाएं लिखने के काम में भी उतरने वाला है !
.........( पप्पू पंती )