Tuesday, December 2, 2014

तोते

चारदीवारी एक आज़ाद कैद की माफिक है 
या यूं कहिये दस बाय दस का तोते का पिंजरा 
तोते खुश हैं , सेहतमंद हैं और वफादार भी 
तोतों के पंख सलामत भी हैं 
और जानदार भी

तोते अपनी किस्मत सराहते हैं 
दूसरे तोतों के दो बालिश्त बराबर पिंजरे देख

बस ..उनकी उड़ने की इच्छा का हरण किया गया है 
बेहद चतुराई से

उड़ने वाले तोतों को देख जो कभी लालच आये 
पिंजरे के तोतों में तो ,
वे तमाम कहानियां सुनाते हैं कि 
कैसे शिकारी बाज़ नोच डालते हैं उन्हें 
और यह भी कि तोते सिर्फ दहलीज के भीतर महफूज़ हैं

चारदीवारी आज़ादी के मानी नहीं समझाती 
तोतों को सिखाये जाने वाले तमाम लफ़्ज़ों में गायब है 
" आसमान " और "उड़ान"

उन्हें यकीन है 
तोतों की अगली पीढियों से नहीं छुपाना पड़ेगा "आसमान " को 
ये शब्द खुद ब खुद गायब हो जाएगा उनके दिमागों से 
इंसानी पूंछ की तरह

तब उन्हें रटाया जाएगा "आसमान "
और इसका उच्चारण करते हुए वे देखेंगे 
एक बड़ी खाली जगह 
जैसे हम देखते हैं अन्तरिक्ष 
जहां जाने की ज़रुरत नहीं
सिर्फ ज्ञान ही काफी है

हर " रिओ " को नहीं मिलते ये बताने वाले कि 
" रिओ " तुम उड़ सकते हो

Sunday, November 30, 2014

प्रेम एक पालतू बिल्ली है

हवा में उछाले गए चुम्बन,
किसी को ज़ेहन में रखकर लिखी और 
फिर फाड़ डाली गयी नज्में
कभी न कभी पते पर ज़रूर पहुँचते हैं.......

आंसुओं और नमक में क्या रिश्ता है
सिवाय इसके कि 
दोनों जिंदगी में स्वाद बढाते हैं
पर आंसू कभी चुटकी भर नहीं मिलते

आखें किराए का इक मकान हैं 
और ह्रदय आंसुओं का पुरखों वाला घर 
पीड़ा प्रेम का स्थायी भाव है 


प्रेम एक पालतू बिल्ली है
और दिल उसका मालिक
मालिक के चेहरे पर नाखूनों के अनगिन निशान हैं 
बिल्ली मरती नहीं ... मालिक उसे भगाता नहीं 

 

जब कोई लम्हा ठिठक जाता है तो 
इक दास्तान में बदल जाता है 
रुके हुए लम्हे कभी मरते नहीं
तुम्हारे इंतज़ार में रुका लम्हा आज भी धड़कता  है 


एक चील भी अपने घोंसले वाली डाली पर 
किसी दूसरी चील को बैठने नहीं देती
मैं तो फिर भी इंसान हूँ....

Monday, November 24, 2014

गर्विता


आपकी इज्ज़त आपके कर्मों में बसी 

आपने दान किया ..आपकी इज़्ज़त बढ़ी 
आपने जग जीता ..आपकी इज़्ज़त बढ़ी 
आपने आविष्कार किये ..आपकी इज़्ज़त बढ़ी 

फिर मेरी इज़्ज़त आपने मेरी नाभि के नीचे क्यों बसाई ?

मेरे जग जीतने से मेरी इज़्ज़त नहीं बढ़ी 
अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने से मुझे मान नहीं मिला 
पर मेरे एक रात प्रेम करने से मेरी इज़्ज़त ख़त्म हो गयी 
मुझ पर एक शैतान का हमला मेरी इज़्ज़त लूट गया 

मैं हैरत में हूँ 
मेरे एक ज़रूरी अंग को आपने कैसे मेरी इज्ज़त का निर्णायक बनाया ?
किसने आपको मेरी आबरू का ठेकेदार बनाया ?

अगर बनाया तो बनाया 
आप बुद्धिहीन नहीं ..बहुत शातिर थे
मैं जान और समझ गयी हूँ आपके इस शातिराना खेल को
मुझे साज़िशन गुलाम बनाया गया है 

अब मैं अपनी इज़्ज़त को अपनी जाँघों के बीच से निकालकर फेंकती हूँ 
मेरा कौमार्य मेरी आज़ादी है ..न कि मेरी आबरू 

मुझ पर एक हमला मुझे शर्मिन्दा नहीं करेगा अब 
ना ही मेरी इज़्ज़त छीन सकेगा 
मैं उठकर आपकी आँखों में डालकर ऑंखें 
हिसाब लूंगी अपने ऊपर हुए हमले का 

शर्मिन्दा होगा ये समाज और ये सरकार 
शर्मिंदा होंगे आप 
मैं गर्विता हूँ और रहूंगी 
हज़ार बार हुए हमलों के बावजूद

Wednesday, November 5, 2014

और फिर पप्पू कवि बन गए ...

पप्पू जब बेरोजगारी से उकता गया ( वैसे नहीं उकताया कि काम करने को मरा जा रहा हो , बल्कि पैसों की जुगाड़ न होने से उकताया था ) तो उसने नाना प्रकार के कामों में हाथ डालना चाहा मगर पप्पू को देखते ही समस्त कार्य स्वयं पतली गली से निकल भागते थे ! कोई भी भला काम पप्पू के मुँह नहीं लगना चाहता था ! पप्पू भी सभी कामों से नफरत ही करता था ! काम भी कोई करने की चीज़ होते हैं ! जो जीवन में कुछ नहीं कर पाते , वही लोग काम करते हैं ! अगर साला पैसों के लिए काम का मुंह न देखना होता तो पप्पू थूकता है दुनिया के सारे कामों पर ! खाने ,पहनने का इंतजाम तो पिताजी गाली बक के भी कर देंगे मगर गुटका , कलकतिया पान और मोबाइल रीचार्ज का खर्चा तो दुनिया का कोई बाप न उठाएगा और फिर पप्पू के पिता जी तो थोड़े ज्यादा बेरहम बाप थे !

मेहनत के काम पप्पू से होए नहीं ..कि पप्पू की मांस पेशियाँ " नागमती विरह " वाली नागमती को भी लज्जित करके छोड़ दें ! दिमाग वाले काम पप्पू से होयें नहीं ..कि आराम कर करके पप्पू का दिमाग विकलांग कोटे में शुमार होने लग गया था तो अब तो भैया कोई चले नहीं ! अब पप्पू करे तो करे क्या ?

ऐसा कोई काम जिसमे न तो मेहनत लगे और न दिमाग ... पप्पू के दिमाग ने अपनी टूटी टांग से खलबलाना शुरू किया और पप्पू ने जगह जगह ऐसे कार्य की तलाश शुरू कर दी ! पप्पू ने फेसबुक के रोज़ चक्कर मारने शुरू किये कि शायद कोई युक्ति सूझ जाए कि यहाँ एक से एक बल्लम तफरी करने आते हैं ! इन फेसबुकी बल्लमों ने पप्पू को जीवन की एक नयी राह दिखाई !आखिर पप्पू ने दुनिया के करोड़ों सम्मान जनक कार्यों में से एक काम के गले में जयमाला डाल दी !

पप्पू नयी विधा की कवितायें लिखने लगा ..और ऐसी वैसी नहीं साहब , क्या तो भी जालिम कवितायें रचीं पप्पू ने ! पप्पू एकलव्य बनकर कुछ महारथियों से चुपचाप अतुकांत जो दरअसल "बेतुकांत" थीं , कविताओं की ट्रेनिंग लेने लगा ! पप्पू ने पहले इन आधुनिक कविताओं पर अत्याधुनिक टिप्पणी करनी शुरू कीं ! जब उसने देखा कि उसकी टिप्पणियों पर कविता से ज्यादा लाइक आ रहे हैं तो उसके हौसलों को पंख लग गए ! उसने शीघ्र ही एक घंटे में पचास कविताओं की बुलेट स्पीड पकड़ ली ! पप्पू कविता रचने को तप कर्म से कम नहीं समझता था ! पूर्ण विधि विधान से कविता करने बैठता था ! सबसे पहले पादुकाएं दरवाजे पर उतारता था , पादुकाओं के समीप ही दिमाग भी उतारकर रख देता था ! जिस चीज़ की आवश्यकता न हो उसे दूर ही रखना भला है ! फिर पूरे आराम से पलंग पर लेटकर कंप्यूटर गोदी में रखकर चने मुरमुरे खाते हुए लेखन साधना करता था ! कंप्यूटर पप्पू के सो जाने के बाद उसकी चरण वंदना करता !

फिर वो चमत्कार भी घटित हुआ जो मानव सभ्यता के इतिहास में कभी नहीं हुआ था !रात को पप्पू के सो जाने के बाद उसकी लिखी कविताओं के मन में वह प्रश्न उत्पन्न होने लगा जो आज तक सिर्फ चिंतनशील मानवों को ही मथे रहता था और वो प्रश्न था " मैं कौन हूँ और मेरे जन्मने का क्या उद्देश्य है ?" इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए बेचैन कवितायें आपस में सारी रात विमर्श करतीं ...एक दूसरे से खुद का अर्थ समझतीं ! नाकाम होने पर अपनी अपनी लाइनों में घुसकर खर्राटे भरने लगतीं और सारी मगजमारी का काम पाठकों पर छोड़ देतीं !

जल्द ही पप्पू फेसबुक की सेलिब्रिटी बन गया ... उसकी एक एक कविता पर पाठक मक्खियों की तरह झूम जाते ! वो अपनी तीन लाइन की कविता से लोगों के दिमाग का दही करने में सक्षम था ,पांच लाइन की कविताओं से उन्हें उनकी बुद्धि की औकात दिखाने की काबिलियत रखता था और सोनेट से दुनिया भर के कवियों को हीनभावना से ग्रसित करने की कूबत भी रखता था ! बुद्धिहीन ये समझ कर कि ज़रूर कोई गहरी बात लिखी है , वाह वाह करके चलते बनते थे ! वे उसकी गहराई में जाने लायक अपनी बुद्धि का सामर्थ्य नहीं पाते थे इसलिए उनका टाइम भी खोटी नहीं होता था सिर्फ लाइक खोटी करने से काम बन जाता था !सबसे ज्यादा मरण बुद्धिजीवियों का था , अगर न समझें तो मूर्ख साबित हों और समझना तो खैर इस दुनिया के पांच सौ आई क्यू वाले इंसान के बस के भी बाहर था !तो होता यूं कि बुद्धिजीवी उस आधुनिक कविता का अपने हिसाब से अटरम शटरम अर्थ निकालते थे ! इस प्रक्रिया में वे समय , लाइक और कमेन्ट तीनों चीज़ें खोटी करते थे !

अल्प समय में ही पप्पू की कवितायें पत्रिकाओं में छपने लगीं , पप्पू स्टार बन गया ! बड़े बड़े लेखक लेखिकाएं जिन्होंने कलम घिसने में अपनी जवानी और बुढापा दोनों गर्क कर दिया था , बर्न वार्ड में भरती हो गए ! पप्पू पुरस्कार जीतने लग गया ! पप्पू कविताओं की समीक्षा करने लग गया ! पप्पू ने एक महान कार्य और कर दिया था जिसके लिए सदियाँ सदियों तक उसका यशोगान करा करेंगी ! पप्पू ने रोजगार के लिए बुद्धि और परिश्रम पर निर्भरता का अंत किया था !

हम भी बुद्धिजीवी ही मानते हैं खुद को सो पप्पू को फ़ॉलो करते हैं और बाकायदा कमेन्ट भी करते हैं !अभी अभी पप्पू की एक कविता पर कमेन्ट चिपका कर आये हैं ! कविता और कमेन्ट इस प्रकार हैं !

पप्पू की कविता ---

कौन जीता है यूं
जैसे जीता है वो
कौन मरता है यूं
जैसे मरता है वो

इस जीने मरने के बीच
जीने मरने का भेद स्वयं चकित है...

हमारा कमेन्ट ...

"जीने मरने के बीच जो " वो " है ..वही स्रष्टि है , वही रचियता है और वही जीवन है और वही साक्षात म्रत्यु भी "

हमें उम्मीद है .जैसे पप्पू के दिन फिरे , हमारे भी अवश्य फिरेंगे ! हम भी पादुकाओं के समीप दिमाग उतारकर कमेन्ट करने लगे हैं और अभी अभी हमने गिने ! हमारे कमेन्ट पर डेढ़ सौ लाइक्स आ गए हैं !

अभी अभी पप्पू ने फेसबुक पर एलान किया है कि वह शीघ्र ही कहानियां और समीक्षाएं लिखने के काम में भी उतरने वाला है !
.........( पप्पू पंती )

Sunday, June 22, 2014

लेने देने की साड़ियां

आप शादियों के सीज़न में किसी भी साड़ी की दुकान
पर चले जाइए ... आपके यह कहते ही कि " भैया ,,साड़ियाँ दिखाइये " दुकान वाले का पहला प्रश्न होगा कि " लेने देने की दिखाऊं या अच्छे में दिखाऊं ?"

मतलब इस प्रश्न से इतना तो सिद्ध हो गया कि लेने देने की साड़ियाँ अच्छी नहीं होतीं ! 

अब अगर आप वाकई में लेने देने की साड़ियाँ ही खरीदने गए हैं तो दुकानदार का अगला प्रश्न होगा " कितने वाली दिखाऊं ?" उसके पास अस्सी रुपये से लेकर ढाई सौ तक की रेंज मौजूद है !

एक कुशल स्त्री अस्सी से लेकर ढाई सौ तक की सभी साड़ियाँ पैक कराती है ! घर जाकर वो पिछले बीस वर्ष का बही खाता खोलती है ! सबसे पहले उसे ये देखना है कि किस किस ने कब कब उसे कैसी साड़ियाँ दी हैं ? "अब बदला लेने का सही वक्त आया है .. जैसी साड़ी तूने मुझे दी थी न उससे भी घटिया साड़ी तुझे न टिकाई तो मेरा नाम भी " फलानी " नहीं !" 
अगर दस साल पहले उस महिला ने सौ रुपये की साड़ी दी थी तो बदला लेने में दस साल बाद अस्सी की साड़ी पचहत्तर में लगवाकर उसके मुंह पर मारी जाती है !

अगर किसी रिश्तेदार के घर का लड़के को जमाई बनाने का सपना संजोये बैठी हो तो उसे ढाई सौ की साड़ी दी जावेगी , अच्छी पैकिंग में, जिसमे थर्माकोल के मोती भी इधर उधर लुढ़क रहे होंगे और दस का करकरा नोट भी सबसे ऊपर शोभा बढ़ा रहा होगा!

ये भी खासी ध्यान रखने की बात होती है कि कहीं ऐसा न हो कि दो साल पहले जिस भाभी ने जो साड़ी दी थी , वापस उसी के खाते में न चली जाए ! और अगर चली भी जाए भूल चूक से तो इन लेने देने की साड़ियों के कलर , कपडे और डिजाइन में इतना साम्य होता है कि दो दिन पहले दी हुई साड़ी भी अगर वापस मिल जाए तो किसी को संपट नहीं पड़ती ! घचपच डिजाइन , चट्ट पीले पे चढ़ता झक्क गुलाबी और भूरे भक्क पर चढ़ाई करता करिया कट्ट रंग !

सबसे मजेदार बात यह है कि सब जानते हैं कि लेने देने की साड़ियाँ कभी पहनी नहीं जातीं ! चाहे अस्सी की हों चाहे ढाई सौ की !ये हमेशा सर्क्युलेशन में ही रहती हैं ! ये रमता जोगी , बहता पानी हैं ! ये सच्ची यायावर हैं ! ये वो प्रेत हैं जो कभी इसे लगीं , कभी उसे लगीं ! इधर से मिली , उधर टिकाई और उधर से मिली इधर टिकाई !

एक बेहद कुशल गृहणी यह पहले से पता करके रखती है कि जो साड़ी उसे मिलने वाली है , वह किस दुकान से खरीदी गयी है ! वह बेहद प्रसन्नता पूर्वक उस साड़ी को स्वीकार करती है , बल्कि उसके रंग और पैटर्न की तारीफ़ करती है और जल्द ही फ़ाल , पिकू करवाकर पहनने की आतुरता भी दिखाती है और अगली दोपहर ही उसे दुकान पर वापस कर दो सौ रुपये और मिलाकर एक अच्छी साड़ी खरीद लाती है !

और ये भली स्त्रियाँ इन लेने देने की साड़ियों को भी छांटती , बीनती हैं और बाकायदा पसंद करती है , ! साड़ी भी मुस्कुराती हुई कहती है " हे भोली औरत क्यों अपना टाइम खोटी कर रही है ? जिस पर हाथ पड़ जाए वही रख ले ! क्या तू नहीं जानती कि हम तो सदा प्रवाहमान हैं , हम हिमालय से निकली वो गंगा हैं जो किसी शहर में नहीं टिकतीं , अंत में हमें किसी के घर की काम वाली बाई रुपी समुद्र में जाकर विलीन होना है "
इन साड़ियों का अंतिम ठौर घर में काम करने वाली महिलायें होती हैं जिन्हें होली दीवाली के उपहार के रूप में इन्हें दिया जाता है और उसमे भी अलमारी में रखी पंद्रह साड़ियों में से सबसे पुरानी की किस्मत जागती है और वह सबसे पहले अपनी अंतिम नियति को प्राप्त होती है !

Thursday, June 19, 2014

ये बेचारे पुष्प चुराने वाले

कोई कहता है " सुबह सुबह घूमने जाते हैं लगे हाथ टॉमी को घुमाना भी हो जाता है " ! कोई कहता है " सुबह सुबह घूमने जाते हैं लगे हाथ दूध पैकेट भी ले आते हैं !"
कोई कहता है "सुबह सुबह घूमने जाते हैं लगे हाथ बच्चे को स्कूल बस में बैठा आते हैं !"

मगर हर मोहल्ले में एक ऐसा भक्तों का समूह भी होता है जो कहता है " सुबह सुबह लोगों के घरों से फूल तोड़ने जाते हैं तो लगे हाथ घूमना भी हो जाता है "
सुबह सुबह थोड़ी वृद्ध महिलाओं और पुरुषों का ये गैंग हाथ में नीली पीली पन्नी लेकर घूमता सहज ही देखा जा सकता है ! फूलों की खोज में चप्पल चटकाते ये नर नारी पूरे मोहल्ले में सबसे पहले जागने वाले प्राणी होते हैं !हर घर की बाउंड्री के बाहर झांकते फूल घर मालिक के नहीं बल्कि इनके होते हैं ! जिनपर ये साधिकार धावा बोलते हैं ! लोगों की बाउंड्री के बाहर उचक उचककर इनकी एड़ी और पंजे बिलकुल फिटफाट रहते हैं ! अगर घर खुला मिल जाए तो एक बार दायें बाएं देख लेने के बाद घर के अन्दर लगे फूलों का नास मिटाने में इन्हें कोई गुरेज नहीं होता !

ये "पुष्प चोर " बिलकुल " माखन चोर " की तरह ही होते हैं , भोले , निष्कपट , मासूम ! अगर इन्हें रोक या टोक दिया जाए तो जाने किन किन भगवानों का वास्ता देकर ये फूल तोड़ने को जस्टिफाय करते हैं !
" ये लो ..अब ये जमाना आ गया है कि लोगों को भगवान् के लिए दो फूल तोड़ने में भी कष्ट हो रहा है ! घोर कलयुग है !कौन सा हम खुद के लिए ले रहे हैं "

चोरी चकारी के फूलों से घर के प्रत्येक भगवान का श्रृंगार किया जाता है ... एक एक मूर्ति पर बीस बीस फूल उड़े
ल दिए जाते हैं , माने कि पूरी पन्नी झड़ा कर फिर से कील पर उलटी करके टंग जाती है ! स्वर्गलोक में धनवंतरी जी की डिमांड बढ़ गयी है !एक भगवान की आँखों में गेंदे की डंडी गुच गयी है , एक को बारामासी की गंध से एलर्जी है , एक भगवान की नाक कनेर का फूल फंस जाने से जाम हो गयी है , एक के कान में गुडहल का लम्बा सा तंतु पिछले दस दिन से ठुंसा पड़ा है ! शंकर जी की जटाओं में तो न जाने कितने फूलों के पराग झड झड कर जम गए हैं जिससे शिव जी मारे डैंड्रफ के सर खुजा खुजा के परेशान हैं , एक दिन धतुरा शंकर जी की जगह किसी देवी जी पर टपक गया , देवीजी तीन दिन तक मूर्छा में रहीं ! स्वर्गलोक में पिछले कई वर्षों से प्रस्ताव लंबित है कि मूर्तियों को भी झापड़ देने की शक्ति प्रदान की जाए मगर इस भय से कि कहीं भक्तों में लोकप्रियता कम न हो जाए , सर्व सम्मति नहीं बन पा रही है !

एक आंटी जी चलीं तो शर्मा जी के बगीचे से बड़ी जतन करके लगाया रजनीगंधा तोड़कर चलती बनीं ! शर्मा जी रात को गमला देखकर सोये थे , सुबह फूल गायब पाकर इतने शोकाकुल हुए कि मिसेज़ शर्मा को तुरंत शोक की सफ़ेद साड़ी पहन कर उनके साथ बैठकर बुक्का फाड़कर रोना पड़ा ! सच्ची अर्धांगिनी को असमय विलाप में भी निपुणता हासिल होना आवश्यक है !

अगले दिन शर्मा जी सुबह पांच बजे से उठकर पहरा देने बैठ गए , दो दिन चोरी नहीं हुई ! तीसरे दिन कोई भक्तन सुबह साढ़े चार बजे आकर डहेलिया पर हाथ साफ़ कर गयी ! भक्तन फूल को देखकर बोलीं " क्या फूल है " और डहेलिया का पौधा शर्मा जी को देखकर बोला " क्या फूल है !"

इस गैंग की एक विशेषता यह भी प्रकाश में आई है कि ये सम्माननीय सदस्य अपने घरों के फूलों की एक पंखुड़ी भी नहीं तोड़ते !
इनके खुद के घरों के लिए इनका फंडा है कि " रंग आँखों के लिए , बू है दिमागों के लिए , फूल को हाथ लगाने की ज़रुरत क्या है "
मगर दूसरों के घरों के फूलों के लिए इनका फंडा है कि " तेरे चरणों में हे प्रभु , मैं फूल चढाने आई हूँ , चंपा,बेला और केतकी, सारी बगिया ले आई हूँ "


पप्पू की प्रेयसी गुल्ली ने एक दिन पप्पू से कहा " जानू , मुझे फूल बहुत पसंद हैं , क्या तुम मुझे रोज़ एक फूल भेंट नहीं कर सकते ?" गुल्ली का "फूल " से आशय बाज़ार में बिकने वाली सुर्ख लाल गुलाब की कली से था जिससे वो अपनी सखियों पर इम्प्रेशन जमा सके !
क्यों नहीं बेबी ..कल से ऐसा ही होगा !
कह तो गए पप्पू ..मगर बाज़ार में गुलाब की कली की कीमत सुनकर सटन्ने छूट गए ! तीन दिन तक तो अपने गुटका पान का पईसा गुलाब पर न्योछावर किया मगर चौथे दिन से पप्पू भी अपनी दादी से दीक्षा लेकर फूल चोर गैंग के नवीनतम सदस्य बन गए और मेहता जी के घर से फुल साइज़ का गेंदा ले जाकर गुल्ली की चुटिया में लगाया !गुल्ली ने गेंदा देखकर थोबड़ा सुजाया , पर बोली कुछ नहीं ! सोचा " शायद दुकान में माल नहीं आया होगा "
उसके अगले दिन एक देसी गुलाब , दो बारामासी और चार चांदनी के फूल पप्पू ने गुल्ली को भेंट किये ! अब तो गुल्ली फैल गयी , लेने से साफ़ इनकार कर दिया !
पप्पू तो फिर पप्पू हैं ..समझाया " देखो बेबी , इश्क में महबूब का दर्ज़ा ईश्वर के बराबर होता है ! कभी ईश्वर को बाज़ार से खरीदी कलियाँ चढ़ाई जाती हैं ? इसीलिए तुम्हारे लिए ताज़े फूल लेकर आता हूँ ! तुम मेरी प्रेम देवी हो ! "

गुल्ली पगलिया थी ..मान गयी और खुश भी हो गयी !ये प्रेम देवी वाली बात से सहेलियों पर ज्यादा अच्छा इम्प्रेशन पड़ेगा ! पप्पू चालू चपोतरा था , फ्री फ़ोकट में काम निकाल कर सीटी बजाता निकल लिया !

आइये हम सब मिलकर इस गैंग को एक सौ आठ बार सादर नमस्कार करें! :) :) :)
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Wednesday, April 16, 2014

अजी सुनते हो " भग गयी कलमुंही "

हिन्दुस्तान में घरवालों की मर्ज़ी के विरुद्ध किये गए प्रेम विवाह के लिए लड़के लड़की आवागमन के लिए बैलगाड़ी से लेकर हवाई जहाज तक किसी भी साधन का प्रयोग कर लें , वो हमेशा भागते ही हैं ! भागे बिना प्रेम विवाह का कोई मोल नहीं ... दो कौड़ी का है वो प्रेम विवाह जिसमे लड़का ,लड़की भागें ना और भागते भागते घर वालों , रिश्तेदारों , दूर के रिश्तेदारों और बिरादरी की नाकें काटकर अपनी जेबों में न भर ले जाएँ !भागने और नाक कटने का चोली दामन का साथ है !जिनकी नाकें रिश्वत लेते पकडे जाने में , लड़की छेड़ देने में नहीं कटतीं , लड़की के भागते ही नाक अपने आप चेहरे से उतरकर लड़की की जेब में भरा जाती है ! साथ ही परिवार की इज्जत जो लाखों करोड़ों की थी , लड़की के भागते ही एक क्षण में इज्जत का अवमूल्यन होता है और वो दो कौड़ी की रह जाती है ! माने भागना केवल लड़के लड़की का भागना नहीं है , इसके साथ घर का बहुत कुछ भागता है !

इस उच्च परंपरा के कारण लंगड़े , अपंग , अपाहिज लड़के लड़कियों को भी भागा हुआ कहलाने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है !कई अपाहिज तो लोगों के ताने सुन सुनकर इतने उकता गए कि आनन् फानन में जो प्रेमी /प्रेमिका तत्काल उपलब्ध हुए, उसी के साथ रातों रात "भाग गए !" वो बात अलग है कि वे सौ मीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से भागे थे ! भागना तो भागना ही कहलाता है !
भागना वैसे कोई छोटा मोटा काम नहीं है , एक अत्यंत साहसिक कार्य है ! इस यथोचित साहस के अभाव में कई बार लड़के लड़कियों की ऐसी कम तैसी हुई है ! कई दफा लड़की अपना झोला झंडा लेकर आधी रात घर से निकल पड़ी और छज्जू की दूकान के पीछे सवेरे के पांच बजे तक खडी रही मगर मजनू की फूंक सरक गयी और वे नहीं पधारे! लड़की ने पांच बजे घर वाकई में भागकर दोबारा बिस्तर में घुसकर अपने प्राण बचाए या घर में घुसती पकड़ी गयी और खूब रैपटे घले ! कई बार मजनू मियाँ मोटरसायकल लेकर लड़की के मोहल्ले के चक्कर काटते रहे और लड़की खर्राटे भारती रही !कई बार मजनू भाई को लड़की के इशारे पर ही हवालात दर्शन को पहुंचा दिया गया !

ये भी गौर करने वाली बात है कि जब कोई दौड़ने के लिए भागता है तो उसे " भागना " कहते हैं लेकिन जब प्रेमी भागते हैं तो वे "भागते" नहीं हैं बल्कि "भगते " हैं ! "भग गयी कुलच्छिनी घर से "

सारी बचपन से सीखी हुई विद्या , कशीदाकारी , तरह तरह के कबाब मेकिंग की सिखलाई आदि आदि सारे लच्छन अग्नि के हवाले करके "भगती" है एक कन्या !

एक और ख़ास बात है कि हर प्रकार की कन्या "भग" सकती है! जिसके चाल चलन के बारे में पूरे मोहल्ले को उसके पैदा होने के दिन से ही शक होता है वो भी और जिसके मुख से बीस वर्ष की अवस्था तक मोहल्ले ने हाँ ,हूँ के सिवाय कुछ न सुना हो वो भी " भगने " में निपुण हो सकती है !

कई सालों बाद जब सारे तूफ़ान शांत हो चुके होते हैं ! कुलच्छिनी कन्या और आवारा लफंगा छोरा घर के बहू और दामाद बन चुके होते हैं , तब एक दिन सारे लच्छन कन्या को वापस कर दिए जाते हैं ! तब ये "भागना " परिवार के लिए रिश्तेदारों द्वारा तानों के रूप में मौके बेमौके छोड़े जानी वाली फुलझड़ी के रूप में और लड़का लड़की के लिए " एडवेंचर " के रूप में बकाया रह जाता है
!

ये हैं मेरे देवर ..आधे पति परमेश्वर


एक लड़का और एक लड़की की शादी हुई ...दोनों बहुत खुश थे! स्टेज पर फोटो सेशन शुरू हुआ! दूल्हे ने अपने दोस्तों का परिचय साथ खड़ी अपनी साली से करवाया " ये है मेरी साली , आधी घरवाली " दोस्त ठहाका मारकर हंस दिए !

दुल्हन मुस्कुराई और अपनी सहेलियों का परिचय अपने देवर से करवाया " ये हैं मेरे देवर ..आधे पति परमेश्वर "

ये क्या हुआ ....? अविश्वसनीय ...अकल्पनीय ! भाई समान देवर के कान सुन्न हो गए! पति बेहोश होते होते बचा!

दूल्हे , दूल्हे के दोस्तों , रिश्तेदारों सहित सबके चेहरे से मुस्कान गायब हो गयी! लक्ष्मण रेखा नाम का एक गमला अचानक स्टेज से नीचे टपक कर फूट गया! स्त्री की मर्यादा नाम की हेलोजन लाईट भक्क से फ्यूज़ हो गयी!

थोड़ी देर बाद एक एम्बुलेंस तेज़ी से सड़कों पर भागती जा रही थी! जिसमे दो स्ट्रेचर थे!
एक स्ट्रेचर पर भारतीय संस्कृति कोमा में पड़ी थी ... शायद उसे अटैक पड़ गया था!
दुसरे स्ट्रेचर पर पुरुषवाद घायल अवस्था में पड़ा था ... उसे किसी ने सर पर गहरी चोट मारी थी!

आसमान में अचानक एक तेज़ आवाज़ गूंजी .... भारत की सारी स्त्रियाँ एक साथ ठहाका मारकर हंस पड़ी थीं !

Saturday, April 12, 2014

पप्पू और सौ का नोट



बड़े दिन हुए ..पप्पू कहीं शॉपिंग के लिए नहीं निकले थे ! आज सुबह से ही पप्पू सोचकर बैठे थे कि आज तो चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए मगर जम के शॉपिंग कर डालनी है बस ! ऐसा सुन्दर विचार आने पर पप्पू से फिर रुका न गया ! सुबह नौ बजे ही तैयार होकर जेब में सौ का नोट डालकर निकल पड़े बाज़ार की ओर ! " भले ही किसी पार्क में या नुक्कड़ की पान की दुकान पर या मॉल के सामने सीढ़ियों पर बैठकर दुकानें खुलने का इंतज़ार कर लूंगा पर एक क्षण भी घर में ठहरना अब पाप है !"

जितने खुश पप्पू थे , उससे कम से कम सौ गुना खुश वो सौ का नोट था जो इस वक्त पप्पू की दाहिनी जेब में अपनी रिहाई के पल के इंतज़ार में दिल की धड़कन बढाए बैठा था ! बेचारा नोट पिछले तीन महीनों से जेब में कैद कसमसा रहा था ! एक यायावर को कैद कर देना कितना बड़ा गुनाह है , ये बात उसने कई बार पप्पू को अपने तरीके से समझानी चाही थी ! कभी पूरा ज़ोर लगाकर जेब में फड़फड़ा उठता , कभी यत्न कर कील पर टंगे पैंट से उछाल कर गिर पड़ता , कभी नोक जैसी बनाकर पप्पू को खुजली करता , मगर पप्पू तो पप्पू ही हैं ,नोट को गुडी मुड़ी करके फिर जेब में ठूंस देते !! लिहाज़ा नोट बेचारा बिना अपराध के कैद काट रहा था ! आज पप्पू का शॉपिंग का विचार जानकार नोट अपनी आज़ादी के ख्वाब संजोने लगा था , दुनिया देखने की चाह बेतरह जाग उठी थी !

तो पप्पू चल पड़े बाज़ार की ओर ! कपडे की दुकान ( लिवाइस )का शटर खुलते ही दुकानदार से भी पहले पप्पू छलांग मारकर दुकान में घुस गए ! दुकानदार ने ऐसा आतुर ग्राहक पहले कभी न देखा था ! पप्पू की डिमांड पर एक से बढ़कर एक मंहगे और लेटेस्ट फैशन के कपडे दिखाए जाने लगे ! पप्पू ने सारे कपडे एक एक करके ट्राय मारे .. हर ड्रेस में अपना एक सेल्फी खैंचा! फिर दस जोड़ कपडे पसंद कर लिए !दूकान दार का चेहरा दमक गया .. ऐसी भैरंट शुरुआत तो कभी न हुई थी इस दूकान के इतिहास में ! दुकानदार ने पप्पू के न न करते भी रियल का मिक्स फ्रूट जूस पप्पू को पिलाया !अठारह हज़ार का बिल आया , पप्पू ने अपनी बाई जेब से ए टी एम निकाला और दुकानदार को थमा दिया ! दुकानदार ने कार्ड इन्सर्ट किया , पप्पू ने पासवर्ड डाला , मगर जाने क्या टेक्नीकल समस्या आयी कि पेमेंट न हो सका ! दुकानदार झल्ला उठा और पप्पू से कैश देने को कहा , मगर कौन इतना कैश लेकर चलता है भला ! पप्पू भी खीजे , बैंक को दो चार कर्री गालियां बकीं ,फिर पैक कपडे अलग रखवा कर दूसरा ए टी एम लाने को कह चलते बने !

सौ का नोट को एक एक पल काटना मुश्किल पड़ रहा था , उसने मनाया कि अब पप्पू किसी छोटी दुकान में घुसकर रूमाल , मोज़े टाइप की कोई वस्तु खरीद ले ! मगर पप्पू ने अब वुडलैंड का रुख किया ! मंहगे से मंहगे जूते निकलवाये , ट्राय किये , सेल्फी खैंचे! यहाँ तेरह हज़ार का बिल आया मगर ए टी एम फिर दगा दे गया ! पप्पू हताश बाहर निकल आये !
सौ का नोट आंसू बहाता रहा ..पप्पू मुस्कुराते दुकान दर दुकान परिक्रमा लगाते रहे !

आखिर शाम तक पप्पू ने जूते , कपडे , तरह तरह की हैट , मफलर और मोबाइल के साथ अपने करीब दो सौ सेल्फी खैंच लिए ! आखिरी दुकान से बाहर निकलते वक्त पप्पू ने खुद को आँख मारी , ए टी एम को चूमा और अपनी सफलता पर खुद की पीठ थपथपायी !
अब पप्पू के पास फेसबुक के प्रोफाइल पिक का एक साल का कोटा हो चुका था ! पप्पू गाते मुस्कुराते घर की तरफ लौट रहे हैं !

सौ के नोट की आशाओं पर घड़ों पानी फिरने लगा , सौ का नोट जार जार रो पड़ा ! जब घर के नज़दीक पहुँचने को हुआ तब सौ के नोट ने एक बार पूरी शक्ति बटोरकर जेब में दौंदापेली मचाना शुरू किया ! ऐसा खलबलाया कि पप्पू को उसे निकाल कर हाथ में लेना पड़ा ! फिर जो हुआ वो इस सदी का सबसे बड़ा चमत्कार था !
नोट बोल पड़ा ..
नोट ने सुबकते हुए कहा " बाउजी मैं दुनिया देखना चाहता हूँ !"
पप्पू ने भीगे हुए नोट को देखा , उसे गांधी जी की तस्वीर की जगह डी डी एल जे की काजोल दिखाई पड़ी !
पप्पू ने नोट को ऊंचा उठाकर कहा " जा ..जी ले अपनी ज़िंदगी "
और सामने पान की दुकान से राजश्री गुटके का एक पाउच खरीदा ! दुकानदार को सौ का नोट दिया , नोट स्वयं ही कूदकर दुकानदार की ड्राअर में सबसे नीचे दुबक कर बैठ गया ताकि पप्पू की मनहूस शकल का एक पिम्पल तक ना दिखाई दे !
इस प्रकार पप्पू का दिन सुखपूर्वक ख़तम होता है !
नोट और पप्पू दोनों शाम को अपनी गति को प्राप्त हुए ! दोनों की इच्छाएं पूर्ण हुईं !


पप्पू ने अभी नया प्रोफाइल पिक अपलोड किया ... आपने देखा ?

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Thursday, April 3, 2014

प्रेम कायनात का सबसे प्यारा जादू है

वो पगली सिर्फ हंसना जानती थी ! बचपन से ही मैले कपड़ों में पूरे मोहल्ले में भटकती फिरती और जिसे देखती , देखकर " खी खी " करके हंस पड़ती और फिर बस हंसती ही रहती देर तक ! लोग हिकारत से देखते और गुज़र जाते ! कई लोगों को उसकी हंसी देखकर रश्क तक होने लगा ! बुद्धिमान उसकी हंसी को उसका सुख समझते और अपने जीवन को कोसते !

उसे रुलाने के प्रयत्न किये जाने लगे ! बच्चे जूठे आम फेंक कर मारते , कोई मनचला कंधे पर हाथ मारकर निकल जाता , एक औरत ने उसका एकमात्र शॉल नज़र बचाकर उठा लिया और नाले में डाल दिया दिया , जिस घर के सामने देहरी पर बैठ जाती , गालियां सनसनाती उसके कानों के आर पार हो जातीं ! वो बस हंस पड़ती .... उसकी हंसी में एक नामालूम सी उद्देश्यता थी ! कई बार पेट पकड़ पकड़ कर हंसती।,मगर नामुराद की आँखों में कभी हंसी के मारे भी आंसू नहीं आये ! उसे रुलाना मोहल्ले के एक एक व्यक्ति का उद्देश्य बन गया था !

एक दिन एक अजनबी आया और उसके सामने आकर खड़ा हो गया ! पगली ठठाकर हंस पड़ी , हंसती गयी बस हंसती गयी ! वो भी उसके सामने चुप्प खड़ा रहा बस खड़ा रहा ! पगली हंसी के मारे दोहरी हो हो गयी ! पहर बीतने को आयी ! मोहल्ले के लोग तमाशा देखने इकट्ठे हो गए ! ऐसा लगने लगा पगली हंस हंस कर ही प्राण त्याग देगी ! तभी यकायक अजनबी ने आगे बढ़कर पगली को सीने से लगा लिया ! पगली हंसती हुई छूटने की कोशिश करने लगी , इस कोशिश में उसकी अजीब अजीब भंगिमाएं देख मोहल्ला हंसी के मारे लोटपोट होने लगा ! लेकिन वो उसे कसकर सीने से लगाए रहा , जब पगली थोड़ी बेदम हो उठी तब अजनबी ने उसका चेहरा अपनी हथेलियों में भरकर प्यार से ऊपर उठाया और उसके सर पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगा ! पगली अब चुपचाप उसके सीने से लगी थी ! अब वो खामोश थी ! एकाएक उसकी आँखों में एक काला बादल उतर आया और कुछ पलों में बरसात शुरू हो गयी ! पगली रो रही थी .... बिलख बिलख कर रो रही थी ! अजनबी उसे मजबूती से बाहों में भरकर खड़ा था ! एक के बाद एक तूफ़ान पगली की आँखों से गुज़रकर फ़िज़ाओं में घुलते जा रहे थे ! पूरा मोहल्ला सकपकाया हुआ अपनी आँखें पोंछ रहा था ! दो पहर और बीते ! अँधेरा होते ही केवल दो लोग वहाँ खड़े थे ! एक अजनबी की बाहों में घिरी एक रोती हुई पगली!

उस दिन रात भर तूफानी बारिश हुई ! सुबह होते ही मौसम साफ़ हुआ था और पगली की आँखों ने अजनबी के काँधे पर एक शुक्रिया रखा था !

वो इक तूफ़ान की रात थी , इक बरसात की रात थी , इक आंसुओं की रात थी ………… वो इक प्रेम की रात थी !