Saturday, May 28, 2011

दर्द बांटना कूल डूड के डैड का...

आजकल संतोष को न जाने क्या हो गया है... शर्मा जी का सन्तू! प्यारा सा...सीधा सादा बच्चा!इस साल टेंथ में आया है सन्तू! अगर शर्मा जी को पता होता की ये दसवी कक्षा इतनी खतरनाक होती है तो हनुमान जी की कसम चाहे जो करना पड़ता...सन्तू को दसवी में घुसने ही न देते! चाहे घूस देकर फेल ही क्यों न करवाना पड़ता! शर्माइन भी इन दिनों भौचक्की सी बस सन्तू के नित बदलते रूप और हरकतों को ही निहारती रहती ! उनका भोला भाला सन्तू साइड से मांग निकालता था॥रोज़ बालों में तेल डालता था... पापा को पापा और मम्मी को मम्मी कहता था... मोहल्ले के बाकी भले बच्चों जैसे कपडे पहनता था! दसवी में आते ही न जाने कौन सी आफत आ गयी ..ये शर्मा शर्माइन रात रात भर जागकर मंथन करने पर भी नहीं समझ सके !

सन्तू ने न जाने क्या लगाकर बालों को कटी फसल के ठूंठ की तरह खड़ा कर लिया जींस के पैंट फाड़कर इतने बड़े छेद बना लिए कि सन्तू के कटे छिले घुटने उसमे से खीसें निपोरते नज़र आते और बैठने पर तो अपने समग्र रूप में दर्शन देते! सन्तू की जींस इतनी नीचे बंधने लगी कि हमेशा शर्मा जी को उसके निपकने की आशंका घेरे रहती ! अपने दोस्तों के सामने शर्मा जी सन्तू के आने मात्र से घबरा उठते ..कहीं इन्ही के सामने सन्तू की फटी जींस सरक गयी तो खामखा सब हसेंगे! बोलेंगे कि शर्मा लड़के को नाप की साबुत जींस भी नहीं दिला सकता! शर्मा जी समझ न पाते की आखिर ये जींस सन्तू की कमर की हड्डियों पर किस प्रकार से अटकी रहती है! उधर शर्माइन ये सोचसोच कर परेशान कि उसके लाडले बेटे के रेशमी बाल किसके भय से इस प्रकार खड़े हो गए हैं! एक बार उन्होंने बड़े प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरा तो खुरखुरा सा एहसास पूरे शरीर में दौड़ गया...पर ये बालों को खड़ा किस प्रकार करता है ये जिज्ञासा उन्हें लगातार बनी रही!हर बार उनकी सोच एक वस्तु पर आकर ख़तम हो जाती थी....चाशनी!उन्होंने उसके बाद घर में गुलाब जामुन ही नहीं बनाये! चाशनी के अभाव में भी बाल उसी प्रकार ठूंठ से खड़े रहे!

अब वे मम्मी से मॉम बन गयीं थीं! और शर्मा जी जीते जी " डैड" !बहन " सिस " और भैया " ब्रो " में तब्दील हो चूका था! हमेशा से अंग्रेजी में कमज़ोर सन्तू दो चार वर्ड्स सीख आया था और पूरे घर में वही शब्द मन्त्रों की तरह गूंजते रहते थे! ये वर्ड्स थे " oh shit.. fuck...yup...nope..etc! नीले रंग के ग्लास वाला सस्ता चश्मा लगाने लग गया ! शर्मा जी को अपना सन्तू अब पूरा चुरकट नज़र आता ! कल तो टीशर्ट पर लिखा था " f c u k " अक्षरों को उलट पुलट कर लिख देने से मतलब थोड़े न बदल जाता है!पढ़कर शर्मा जी के मुंह से चाय फचक के बाहर आ गयी!शर्मा जी सच्ची में शर्मा गए! ये छोकरा ऐसी टीशर्ट पहनकर मोहल्ले भर में मंडराएगा... क्या इज्जत रह जाएगी उनकी! शर्मा जी भारी विचलित हो गए! शर्माइन अंग्रेजी नहीं जानती इसलिए विचलित नहीं हुई!
अब सन्तू दिन भर चुइंगम चबाता... एक गिटार जाने किस कबाड़ी से खरीद लाया...मौके बमौके उसे उठाकर टनटनाने लगता! जब भी संतू गिटार को उठाने जाता..गिटार के मन में घनघोर हाहाकार मच जाता! उसके सारे तार त्राहि त्राहि कर उठते! गिटार सोचता काश ईश्वर ने उसे लकड़ी की बजाये मांस पेशियों का बनाया होता तो अपने सारे तार हंटर की तरह संतू की पीठ पर बरसा देता! पर गिटार अपना सर धुनता रह गया और संतू ने उसकी ऐसी तैसी करने में कोई कसर नहीं रखी! पूरे घर में कर्कशता का ऐसा भयंकर माहौल बनता कि छत पर बरसों से डेरा जमाये कौवे घबरा कर संतू को गाली बकते कूच कर गए!कौए से उसका कर्कशता का मैडल छीना जा चुका था जो कि सदियों से उसी के पास शोभायमान था! संतू को इस रूप में देखकर मोहल्ले के गधे प्रसन्न होकर तीन ताल में ढेंचू ढेंचू करने लगते!वे अपने समाज में एक नए सदस्य के आगमन से खुश थे! वे सभी संतू के घर से बाहर निकलते ही मोहल्ले के पार्क में लोट लोट कर अपनी ख़ुशी का इज़हार करते!
शर्मा जी ने जब भी इस घोर परिवर्तन का कारण पूछा तो सन्तू ने बड़ी स्टाइल में जवाब दिया " टेक अ चिल पिल डैड... नाउ आय ऍम अ कूल डूड " और पैर घिसटाता हुआ निकल लिया घर के बाहर! शर्मा जी आँखें फाड़े कूल डूड को देखते रहे...फिर माथा पकड़ कर बैठ गए!

दो दिन पहले शर्मा जी हमारे घर पधारे! दुआ सलाम के पश्चात हमने शर्मा जी से कुशल क्षेम पूछा!! शर्मा जी का रोना निकल गया!अब आप सभी को तो पता है कि कहीं दर्द मिल जाये और हम उसे न बांटे तो हमारा तो खाना ही हज़म न हो! शर्मा जी के कंधे पर ज़रा सा हाथ रखते ही सारा दर्द टपक कर बाहर आ गया! अई शाबाश...मज़ा आ गया दर्द सुनकर क्योकी इसकी दवा हमारे पास थी! हमने शर्मा जी के कान में कुछ खुसुर फुसुर की! शर्मा जी की सुबकियां कम होती गयीं...अंत में सिर्फ नाक बज रही थी ...शर्मा जी प्रसन्न भाव से हमारे घर से रुखसत हुए!

शर्मा जी की हमसे मुलाकात क्या हुई...बेचारे सन्तू के बुरे दिन शुरू हो गए! अगले दिन शर्मा जी ने एक हफ्ते के लिए शर्माइन को मायके भेज दिया! शर्माइन तैयार हो गयीं! जाते जाते सब बच्चों के सर पर हाथ फेरा पर सन्तू के बालों के पास हाथ के आते ही पिछले अनुभव से सहमी उंगलियाँ बगावत कर गयीं! शर्माइन गाल पे हाथ फेरकर मायके निकल लीं!

अब शर्मा जी अपने फॉर्म में आ गए! और हमारे बताये हुए आइडिये के अनुसार तैयार होकर अपनी कूल संतान का इंतज़ार करने लगे! घंटे भर बाद सीटी बजाता हुआ संतू घर में दाखिल हुआ! साथ में चार कूल डूड और भी थे! सारे के सारे खिसकते पैंटों के साथ सोफों पर धमक गए!आज पहली बार शर्मा जी संतू के दोस्तों के आने से प्रसन्न हुए! सारे डूड मिलकर मौज मस्ती में लिप्त थे तभी शर्मा जी ने ड्राइंग रूम में एंट्री मारी...! अपने पिता को देखकर संतू घबरा गया.. उसके मुंह और नाक से स्प्राइट निकल कर बाहर आ गया! बार बार आँखें मलता...कभी थूक गटकता पिता के नए रूप को देखता रहा! संतू के दोस्त भी सोफों पर तन के बैठ गए और एक दूसरे को कोहनी मारने लग गए! शर्मा जी एक नए अवतार में खड़े थे! गोवा में नारियल के पेड़ और समंदर किनारे नहाती लड़की के फोटो वाली टीशर्ट के साथ एक बेरंगा सा बरमूडा जो कि घुटनों पर से फाड़ा गया था ठीक संतू की जींस की तरह! सर पर एक हैट और बड़े बड़े सुनहरे से बालों का एक गुच्छा !
" ये क्या हो गया आपको डैड" संतू ने विचलित होकर पूछा! उसे बड़ी शर्म महसूस हुई अपने दोस्तों के सामने अपने पूज्य पिता को ऐसे चुरकट बने देखकर!
" नो डैड सन...नॉव आई एम् अ कूल डैड! टेक अ चिल पिल सन! यू कैन कॉल मी हैरी!" शर्मा जी जो कि हरि प्रसाद नाम से जाने जाते हैं, अपने नाम का नवीन प्रयोग कर रहे थे!
संतू अकबका गया...उसके होश फाख्ता हो गए.... उसे काटो तो खून नहीं! संतू के दोस्त एक दूसरे को नोच नोच कर सन्तू के डैड का मज़ाक उड़ा रहे थे!और थोड़ी देर में वानरों के समान दांत दिखाते हुए खी खी करने लगे!संतू अब बुरा मान गया और जल्दी से दोस्तों को घर से चलता कर दिया!
" डैड ये सब क्या है....आपकी वजह से मैं कहीं मुंह दिखने लायक नहीं रहा! मेरे दोस्तों के सामने आपने मेरी नाक कटा दी" सन्तू रूआसा सा हो गया!
" कुछ नहीं बेटा... जब तू मॉडर्न बन सकता है तो तेरे डैड भी तो बन सकते हैं! मैं तो सोच रहा था की तू बड़ा खुश होगा" शर्मा जी अपनी सफलता पर बमुश्किल अपनी मुस्कान छुपाते हुए बोले!
" पिताजी...आप कृपा करके वैसे ही बन जाइए जैसे थे"
" नहीं सन... अब तो मुझमे और जोश आया है.. आगे देखना मैं और क्या क्या करता हूँ" शर्मा जी " पिताजी" शब्द सुनकर और जोश में आ गए!
सन्तू घबरा गया पर कुछ नहीं बोला सिटपिटा कर अपने कमरे की ओर प्रस्थान कर गया! आज की मॉडर्न औलादें खुद भले ही मॉडर्न होने के नाम पर दुनिया के सात अजूबों में अपना नाम दर्ज करने की प्रतियोगिता में भिड़ जाएँ मगर इन्हें अपने माता पिता एकदम टिपिकल माता पिता के अवतार में ही चाहिए!शर्मा जी के इस रूप ने संतू की बैंड बजा के रख दी थी!

अगले दिन शर्मा जी ने तडके ही अपने पुराने सन्तू को वापस प्राप्त किया! शर्मा जी ने हमें धन्यवाद ज्ञापित किया! हमने मुस्कुराकर गर्वित भाव से स्वीकार किया! गिटार ने चैन की सांस ली! कौआ सपरिवार वापस छत पर निवास करने लगा! गधों में मातम छा गया और शर्माइन ने आते ही अपने लाल के रेशमी बालों में उंगलियाँ फेरकर तसल्ली की सांस ली!
तो सज्जनों इस प्रकार हमारी एक नेक सलाह से इस प्रकरण का सुखान्त हुआ... हमारा दर्द बांटना सार्थक हुआ!

Thursday, May 19, 2011

वो किसी मुकम्मल ग़ज़ल में एक बे-बहर शेर की तरह था


वो अलग था,सबसे अलग
सारे भाई बहन जब परीक्षा की तैयारी में
हलकान हो रहे होते
वो छत पर आम की गुठली चूसता
माउथ ऑर्गन बजा रहा होता

जब स्कूल के दोस्त लड़कियों के नमक की बातें करते
वो गुड्डी, रिंकी, लाली और
चुनमुन के साथ नहर किनारे
साइकल रेस लगा रहा होता...


जब सारा मोहल्ला दुर्गा जी की झांकियां सजाने में
जन्माष्टमी के भजन गाने में और
गणेश जी का चंदा इकठ्ठा करने में पगलाया रहता
वो गली के पिछवाड़े
दो पिल्लों को अपने मुंह को
चाटने दे रहा होता

जब सब लड़के अपना रिजल्ट देखने
बोर्ड के आगे सर फुटौव्वल कर रहे होते
वो माँ के धोये निचोड़े कपडे
आँगन में डोरी पर फैला रहा होता

वो मुश्किल से सेकण्ड डिविज़न पास होता
वो गणित की किताब में मंटो को छुपाये रहता
पिता कहते कि वो अटपटे ढंग का लड़का था
माँ कुछ नहीं कहती
पर हैरानी से कभी उसे
कभी बाकी बच्चों को देखती रहती

एक दिन ग़ालिब ने कहा
वो किसी मुकम्मल ग़ज़ल में
एक बे-बहर शेर की तरह था
ऐसा शेर जिसमे शायर ने
अपने ख़याल नहीं बल्कि
अपने ख्वाब और रूह डाली थी...
और वही ग़ज़ल का
मतला भी था....

Thursday, May 5, 2011

एक सरकारी फ़ाइल की आत्मकथा


मैं एक सरकारी दफ्तर की फ़ाइल हूँ!मैं शासन को चलाने में महत्वपूर्ण योगदान देती हूँ!बल्कि यूं समझो की मेरे बिना कोई सरकार चल ही नहीं सकती!मैं आगे बढती हूँ तो सरकारी कामकाज आगे बढ़ता है!अगर मैं रुक जाऊ तो काम भी रुका समझो...सरकार का नहीं जी, जनता का!

मैं धनाकर्षण बल के सिद्धांत पर कार्य करती हूँ!और मेरा ईंधन भी यही है!यदि मेरा पेट नोटों से भरा रहता है तो मेरी गति देखने योग्य होती है!मैं निर्धारित समय सीमा में गंतव्य स्थान तक पहुँच जाती हूँ!गरीब गुरबों को मुझसे दूरी बनाकर रखना चाहिए!जैसे जैसे मुझ पर भार बढ़ता जाता है मैं एक टेबल से दूसरी टेबल पार करती हुई बड़े साहब की टेबल पर पहुँच जाती हूँ!जिनके पास धन नहीं है उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है!धनाभाव में किसी मिनिस्टर या बड़े अधिकारी की एप्रोच से भी काम चल सकता है!पर ऐसे में मेरे मालिक " मेरे बाबू " ज्यादा खुश नहीं होते!

सिद्धांत के मामले में कभी समझौता नहीं करती!मेरे लिए अमीर, गरीब, लाचार , अपंग सब बराबर हैं!बिना सेवा के मैं भी किसी की सेवा नहीं करती! कभी कभी कोई बेवकूफ किस्म का बाबू या अधिकारी मुझे बिना वजन के ही आगे बढाने की कोशिश करता है! किन्तु शीघ्र ही ऐसे बेवकूफ मुसीबत में फंस जाते हैं और उनके खिलाफ गुमनाम शिकायतों का सिलसिला शुरू हो जाता है!लेकिन मैं जानती हूँ ,ये गुमनाम लोग मेरे भ्रष्ट आका ही होते हैं जो ऐसे ईमानदार बेवकूफों को अपने रास्ते से हटाना भली प्रकार जानते हैं!जल्दी ही ऐसे लोग लाइन पर आ जाते हैं और दोबारा लीक से हटने का साहस नहीं करते!

एक राज की बात और बताऊँ...मैं केवल जनता को ही नहीं बल्कि शासकीय कर्मचारियों को भी नहीं बख्शती!पेंशन, अवकाश, जी.पी,एफ. और यात्रा देयक सम्बन्धी कार्य के लिए यदि मुझ पर वजन न रखा जाये तो मैं दफ्तर की अलमारी के ऊपर धूल खाती देखी जा सकती हूँ!कई लोग ऐसे भी हैं जो आज के युग में गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने की मूर्खता करते हैं और व्यवस्था के आगे घुटने नहीं टेकते !मैं ऐसे ही एक महाशय का किस्सा आपको सुनाती हूँ! एक सज्जन पिछले पंद्रह वर्षों से रिटायरमेंट के बाद अपने धन की प्राप्ति हेतु मेरे दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं!जितना धन उन्होंने पंद्रह वर्षों में टैम्पो से मेरे दफ्तर के चक्कर लगाने में, जगह जगह अपनी समस्या के निराकरण के लिए आवेदन देने में , गर्मी में बीमार पड़कर अपना इलाज करने में और चप्पलें घिसने पर नयी चप्पलें खरीदने में खर्च किया, उतना अगर मुझ पर रख देते तो मैं कब की आगे बढ़ गयी होती!ये द्रष्टान्त मैंने इसलिए सुनाया ताकि भविष्य में कोई ऐसी गलती न करे!

कभी कभी मुझ पर संकट आती है जब " सूचना का अधिकार " टाइप के क़ानून बन जाते हैं!उस समय मेरे आका लोग थोड़े परेशान नज़र आते हैं!किन्तु कुछ ही दिनों में ये बुद्धिमान लोग इसका उपाय भी निकाल लेते हैं!तरह तरह के क़ानून, प्रक्रिया और आपत्ति निकालकर मुझे महीनों घुमाया जाता है!

जब तक बाबूराज है तब तक मैं इसी तरह दफ्तरों में लाल फीते में बंधी सजती रहूंगी!अगर इससे ज्यादा जानने की इच्छा है तो कृपया मेरे मालिक के पास आइये, एक चाय के साथ एक समोसा खिलाइए और उनकी ठंडी जेब को गर्म कीजिये!हर प्रकार की जानकारी मय समाधान के आपको उपलब्ध करा दी जायेगी!अच्छा तो अब मैं चलती हूँ...कहीं मेरे मालिक ने देख लिया की मैं फ़ोकट में अपने बारे में इतनी जानकारी दे रही हूँ तो मेरे लिए मुसीबत हो जायेगी... राम राम!