उसे जैसे इस लम्हे में होना ही था मेरे साथ ! अगर हम दोनों दुनिया के अलग अलग छोरों पर भी होते तब भी इस लम्हे में आकर हमें मिलना ही था ! और उस वक्त में मैं ,मैं नहीं कोई और थी !यूं जैसे कोई जादूगर एक छड़ी घुमा रहा था और मैं उसके मन्तरों में बंधती जा रही थी !यूं जैसे दुनिया की बेहतरीन शराबें मेरे हलक से उतरती जा रही थीं !यूं जैसे कि उस पल में मैं एक चुम्बक बन गयी थी और उसके रक्त का सारा लोहा मुझे खींचे जा रहा था! उसके करीब होना किसी और जनम से ही तय था !एक बादल मुझ पर बरसने आया था ! देह सिमटने की बजाय खुलने लगी थी ,खिलने लगी थी ! हाथ थामते ही धड़कनें एक दूसरे को पहचान गयीं थीं ! वक्त का गुज़रना सज़ा ऐ मौत के फरमान से ज्यादा क्रूर हो चला था ! उस पल में मैं पूरी तरह बस उसी पल में थी ! न एक पल आगे ,न एक पल पीछे !
वो अजनबी चन्द घंटों के लिए यूं मेरे पास आया और चला गया जैसे एक खुशबू भरा रेशमी स्कार्फ हाथों में धीरे धीरे फिसलते हुए उड़ जाए और हथेलियों को महका जाए हमेशा के लिए! नाम ,पता,जात, शहर सब बेमानी सवाल थे ! कसमें ,वादे ,शिकवे कुछ भी तो न था उन पलों में ! न दोबारा मिलने की ख्वाहिश और न बिछड़ने का ग़म ! बस देह से आत्मा तक ख़ुशी ही तो थी थिरकती हुई ! हर सवाल का बस एक ही जवाब था कि वो अजनबी नहीं , बेहद अपना है ! उससे पहचान इतनी पुरानी है कि उसके आगे सबसे पुराने रिश्ते भी नए थे ! अगर वो उस क्षण मेरा हाथ थाम कहता कि "चलो " तो मैं बिन कुछ पूछे उसके साथ चल पड़ती ! अगर अवचेतन को मैं ज़रा सा भी अपने बस में कर पायी होती तो मुझे पता होता कि इसके पहले किस सदी में हम यूं हाथों में हाथ डाले ऐसे ही बैठे थे !
उसके स्पर्शों के फूल मेरे काँधे ,गर्दन , माथे और होंठों पर अब भी खिले हुए हैं ! और उसकी हथेली की गर्माहट रूह को अब तक महसूस हो रही है ! उसकी आँखें मेरे साथ चली आई हैं ! सामने बैठी मुझे एकटक देखे जा रही हैं ! उसकी मुस्कराहट याद कर मेरे गाल लाल हो उठते हैं !वो जो घट रहा था उन पलों में ,वो सबसे सुन्दर था ,सबसे सच्चा था !
मुझे यकीन है वो मुझे फिर मिलेगा ! ठीक वैसे ही जैसे आज अचानक मेरे सामने आकर बैठ गया था ... बेइरादा ,बेमक़सद ! सिर्फ ये बताने के लिए कि "मैं हूँ , कहीं नहीं गया" ! शायद फिर किसी लम्हे में हम दोनों दुनिया के अलग अलग कोनो से भागते हुए आएंगे और गले लग जाएंगे ! फिर एक रात खामोशियों में अपना सफ़र तय करेगी ! फिर किसी के सीने पर मेरा सर ऐसे ही टिका होगा और दो मजबूत बाहें मेरे इर्दगिर्द लिपटी होंगी !
रूमानी शब्द इस एहसास के लिए बहुत छोटा है ! ये एक रूहानी एहसास था ! सदा के लिए ... सदा सदा के लिए!
वो अजनबी चन्द घंटों के लिए यूं मेरे पास आया और चला गया जैसे एक खुशबू भरा रेशमी स्कार्फ हाथों में धीरे धीरे फिसलते हुए उड़ जाए और हथेलियों को महका जाए हमेशा के लिए! नाम ,पता,जात, शहर सब बेमानी सवाल थे ! कसमें ,वादे ,शिकवे कुछ भी तो न था उन पलों में ! न दोबारा मिलने की ख्वाहिश और न बिछड़ने का ग़म ! बस देह से आत्मा तक ख़ुशी ही तो थी थिरकती हुई ! हर सवाल का बस एक ही जवाब था कि वो अजनबी नहीं , बेहद अपना है ! उससे पहचान इतनी पुरानी है कि उसके आगे सबसे पुराने रिश्ते भी नए थे ! अगर वो उस क्षण मेरा हाथ थाम कहता कि "चलो " तो मैं बिन कुछ पूछे उसके साथ चल पड़ती ! अगर अवचेतन को मैं ज़रा सा भी अपने बस में कर पायी होती तो मुझे पता होता कि इसके पहले किस सदी में हम यूं हाथों में हाथ डाले ऐसे ही बैठे थे !
उसके स्पर्शों के फूल मेरे काँधे ,गर्दन , माथे और होंठों पर अब भी खिले हुए हैं ! और उसकी हथेली की गर्माहट रूह को अब तक महसूस हो रही है ! उसकी आँखें मेरे साथ चली आई हैं ! सामने बैठी मुझे एकटक देखे जा रही हैं ! उसकी मुस्कराहट याद कर मेरे गाल लाल हो उठते हैं !वो जो घट रहा था उन पलों में ,वो सबसे सुन्दर था ,सबसे सच्चा था !
मुझे यकीन है वो मुझे फिर मिलेगा ! ठीक वैसे ही जैसे आज अचानक मेरे सामने आकर बैठ गया था ... बेइरादा ,बेमक़सद ! सिर्फ ये बताने के लिए कि "मैं हूँ , कहीं नहीं गया" ! शायद फिर किसी लम्हे में हम दोनों दुनिया के अलग अलग कोनो से भागते हुए आएंगे और गले लग जाएंगे ! फिर एक रात खामोशियों में अपना सफ़र तय करेगी ! फिर किसी के सीने पर मेरा सर ऐसे ही टिका होगा और दो मजबूत बाहें मेरे इर्दगिर्द लिपटी होंगी !
रूमानी शब्द इस एहसास के लिए बहुत छोटा है ! ये एक रूहानी एहसास था ! सदा के लिए ... सदा सदा के लिए!