"life is so beautiful that death has fallen in love with it।" कल ही एक नॉवेल पढ़ते वक्त ये पंक्तियाँ देखी! कितना सच है, जिंदगी की सुन्दरता की इससे सुन्दर व्याख्या मैंने नहीं पढ़ी थी! मेरे कई दोस्तों से कई बार जिंदगी की फिलॉसफी पर चर्चा होती है...कितनी अजीब बात है वही जिंदगी बहुत खूबसूरत लगती है जब हमारे साथ सब कुछ अच्छा अच्छा हो रहा होता है, हमारा दिल खुशियों से भरा होता है ! वही दोस्त जो अपने अच्छे वक्त में जिंदगी के एक एक पल का आनंद उठाना चाहता है ! कुछ महीनों बाद जब दुर्भाग्य वश अच्छे वक्त का चक्र ख़त्म होता है और जिंदगी अपना दूसरा चेहरा दिखाती है तब वही दोस्त जिंदगी को एक अभिशाप से ज्यादा कुछ नहीं मानता! परिवर्तन जिंदगी का नियम है या अच्छा और बुरा वक्त दोनों ही स्थायी नहीं हैं....ऐसी बातें चर्चा के दौरान करने वाला दोस्त सब भूल जाता है जब खुद कठिनाइयों से जूझ रहा होता है! और शायद हममे से ज्यादातर लोग इसी तरह की जिंदगी जीते हैं! अच्छे फेज़ को उत्साह के साथ जीते हैं तब हम क्यों याद नहीं रखते की ये फेज़ अस्थायी है और इसके बाद दूसरा फेज़ भी आएगा जो हमारी अंदरूनी शक्ति की असली परीक्षा होगी! कितने हैरत की बात है न की आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानियां हमें इतना हताश कर देती हैं की हमारे अन्दर से जीने की इच्छा ही ख़तम हो जाती है! मेरे खुद के अनुभव हैं की मानसिक अवसाद के दौर में गुस्सा, आंसू, चिडचिडापन आप पर हावी हो जाते हैं और लगता है की अब ये दौर शायद कभी ख़त्म न होगा...एक लम्बी अँधेरी सुरंग की तरह! पहले पढ़ी हुई सारी सकारात्मक बातें जैसे हवा हो जाती हैं! मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मेरी कोई दोस्त परेशान होती थी तो मैं उसे इतनी सारी सकारात्मक बातें, जिंदगी को सुन्दर बनाने के तरीके और डिप्रेशन को दूर रखने के तरीके बताया करती थी जो कि मैंने किताबों में पढ़े हुए थे! शायद तब तक मैंने डिप्रेशन को जाना नहीं था! जिस दिन वो फेज़ मेरी जिंदगी में आया तब वो सारी बातें मैंने खुद से भी कही लेकिन खुद को बहुत लाचार पाया! और अगर किसी और ने मुझे समझाने कि कोशिश की तो लगा की ये सब तो मुझे पता है॥ये मुझे क्या बता रहा है!
पहले मुझे समझ नहीं आता था की बचपन से ही अगर मैं दोपहर में सो जाऊं और शाम को अँधेरा होने के बाद उठूँ तो क्यों एक अनजानी सी उदासी मुझे घेर लेती थी! हांलाकि ये दौर बहुत छोटा होता था...शायद दो घंटे या इससे कुछ ज्यादा का! आज भी ये होता है इसलिए जब भी मैं दिन में सोती हूँ तो इस अवसाद से बचने के लिए अलार्म लगा लेती हूँ ताकि अँधेरा होने से पहले उठ जाऊं! अगर कभी गलती से सोती रह गयी तो अब तक मैं जान चुकी हूँ की क्या करना है! तुंरत तैयार होकर मार्केट का एक राउंड लगा लेती हूँ! वहा आइसक्रीम का कोन हाथ में पकडे हुए लखनवी चिकन के कुरते या जंक ज्यूलरी की दुकाने देखते हुए याद भी नहीं रहता की थोडी देर पहले उदासी ने मुझे जकड रखा था! लेकिन मैंने एक बात विशेष तौर पर नोटिस की कि अवसाद चाहे कितनी भी कम देर का क्यों न हो...आपकी सोच को बदल कर रख देता है! आम तौर पर जिंदगी को पूरी तरह एन्जॉय करने वाली मैं अवसाद के उस दौर में कोई और ही बन जाती हूँ मानो मेरे अन्दर मुझसे छुपकर कोई और इंसान भी रहता है! जो समय समय पर अपनी उपस्थिति का एहसास दिला जाता है! निराशा के उस दौर में वे सारे लोग जो मुझे छोड़कर इस दुनिया से चले गए हैं....बहुत जोर से याद आने लगते हैं! एक अनजाना सा भय सताने लगता है कि कहीं अपना कोई कहीं चला न जाए! जीवन के मायने नए सिरे से तलाश करने लगती हूँ! शायद ये भी खुद को जानने समझने का एक मौका होता है! जब कई बार ऐसा मेरे साथ हुआ तो मैंने अवसाद के बारे में बहुत बहुत पढ़ा! तब जाना कि मौसम का हमारे मूड से कोई न कोई रिश्ता ज़रूर है! फरवरी महीने में विश्व में सबसे ज्यादा आत्म हत्याएं क्यों होती हैं? क्यों काले बादल से भरा दिन उदास कर देता है? यहाँ तक कि आज भी मार्च अप्रैल के महीने में रात को जब हवा चलती है तो दिल जोर जोर से धड़कने लगता है....यही वो हवा और मौसम था जिसमे हमने सालों साल परीक्षाएं दी हैं! सुबह पेपर देने जाने का भय आज तक हौवा बनकर डरा देता है!
इन सब प्रश्नों के उत्तर तो मेरे पास नहीं हैं! लेकिन ये महसूस किया है कि सूरज कि किरणों में कुछ जादू है जो उत्साह जगाता है! मई की चिलचिलाती धूप में आप बार बार पसीना पोंछते हुए , सूखे गला लिए अपने काम पर जाते हैं....कितनी भी खीज क्यों न आये मगर निराशा पास नहीं फटकती है! औरों के अपने अलग अनुभव हो सकते हैं मगर मुझे तो हमेशा यही महसूस हुआ है! अपने अनुभवों से मैंने जाना है की जब भी मन उदास हो तो खाली और चुपचाप नहीं बैठना चाहिए! खुद को व्यस्त रखना उदासी भगाने का सबसे अच्छा तरीका है! एक बार की बात है ॥ऐसे ही खिन्न मन से मैं घर में चुपचाप बैठी हुई थी! लग रहा था ....जिंदगी निरर्थक है और शायद अब ख़ुशी वापस नहीं आएगी! उसी वक्त कंट्रोल रूम से फोन आया की मेरी ड्यूटी कॉन्स्टेबल भरती में लगी है और तुंरत मुझे ग्राउंड पहुंचना है! झटपट तैयार होकर मैं पहुंची और लगातार दस घंटे परीक्षार्थियों की हाईट , चेस्ट नपवाते नपवाते कब अँधेरा हो गया कुछ पता न चला! इस दौरान एक सेकंड की फुर्सत नहीं थी! जब घर पहुंची तो थक कर चूर हो चुकी थी! और सुबह की निराशा का अंश मात्र भी शेष नहीं था! और मैंने खुद को हमेशा की तरह खुश और उत्साह से भरा हुआ पाया!
शायद बहुत कुछ अव्यवस्थित सा लिखे जा रही हूँ मैं...पर कभी कभी बिना सोचे जो दिल में आये बस लिखते जाना अच्छा लगता है! मुझे भी सुकून भरा लग रहा है ...आज मैं फिर से दिन में सोयी और दिन ढलने पर उठी! आज न लिखती तो कल शायद न लिख पाती! कुल मिलाकर अब जो महसूस कर रही हूँ वो ये की बहुत कुछ खराब घटने के बाद भी जिंदगी बेहद खूबसूरत है! हमारे और मौत के बीच में लगातार एक कॉम्पटीशन है की कौन इसे ज्यादा प्यार करता है! अगर हमारे प्यार में ज़रा भी कमी हुई तो वो इसे हमसे छीनकर ले जायेगी! तो चलिए इसे पहले से भी ज्यादा प्यार करें.....