बातें देने में हम भी माहिर हैं....किसी भी आम भारतीय की तरह! अभी दो दिन पहले ही किसी से कह रहे थे कि देखो जरा हमारे देश में लोगों को कितनी फुर्सत है....कहीं भी टाइम बर्बाद करते रहते हैं, समय की कीमत नहीं समझते, जहां फोकट का मनोरंजन होते देखा वहीं रुक गए अपने सारे काम धाम भूलकर! अगला भी पूरी तन्मयता से हमारी बातें सुनकर हाँ में हाँ मिला रहा था! और समय के ऊपर ये सारा भाषण हम अपने ऑफिस में बैठकर दे रहे थे! सरकारी समय को हमने समय की गुणवत्ता का बखान करने में खर्च दिया! फिर ऑफिस से निकलने लगे....ड्राइवर कहीं चाय पीने चला गया था! थोडा लेट हो गया! हम भाषण मोड में तो थे ही साथ ही जो लेक्चर अभी अभी पेल कर आये थे वो याद था ही सो ड्रायवर को भी समय की कीमत समझाते आये! ड्रायवर भी मुंडी हिलाता रहा या यह कहना ज्यादा सटीक होगा की हम बीच बीच में " समझे" " समझे" पूछ पूछकर उसकी मुंडी हिलवाते रहे!
अब साहब हुआ क्या की दो किलोमीटर ही चले होंगे इत्ते में क्या देखते हैं कि सड़क पर भीड़ जमा है! उत्सुकता वश देखा तो कोई एक्सीडेंट हुआ है! हमें अपने भाषण पर सही उदाहरण भी मिल गया ! " अब देखो जनता को...अपना काम धंधा छोड़कर एक्सीडेंट देखने में ही भिड गयी है!" हमने ड्रायवर से कहा! इस बार उसने मुंडी नहीं हिलाई ! हमारी बात से ज्यादा इंटरेस्ट उसे मोटर साइकल और स्कूटर के एक्सीडेंट को देखने में आ रहा था! हमने भी उत्सुकता भरी निगाह एक्सीडेंट स्थल पर डाली! नज़ारा सचमुच महा रोचक था! मोटर साइकल वाला अपनी मोटरसाइकल रोक कर खडा था! स्कूटर वाला स्कूटर सहित नीचे गिरा था! स्कूटर का हैंडल पकडे आधा उठा आधा पड़ा स्टाइल में अधलेटा सा हो रहा था! और सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ को चुम्बक की तरह बांधे रखा था....कि दोनों जने फ्री स्टाइल झगडा कर रहे थे!इस झगडे में भी सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ ( अब जिसमे हम भी शामिल थे) को सारा काम काज भूलने पर मजबूर कर दिया था....कि स्कूटर वाला झगडे में इतना तल्लीन था कि पड़े पड़े ही झगड़ रहा था! भीड़ में से किसी ने कहा भी " भाई ॥पहले स्कूटर तो खडा कर ले...फिर लड़ लेना" स्कूटर वाला मोटरसाइकल को भूलकर उस भले आदमी पर गुर्रा के पड़ा " तेरेको क्या करना...मैं चाहे पड़े पड़े लडूं या खड़े खड़े। तू अपना काम देख" भला आदमी अपना सा मुंह लेकर रह गया! और हमें लगता है कि इसी तुनक में स्कूटर वाला खडा होता भी होगा तो और नहीं हुआ!
अब झूठ क्यों कहें , ड्रायवर ने हमारी गाडी भी रोक दी...हम भी चुप्प पड़ के रह गए! अब तक हम भाषण वाषण सब भूल चुके थे और दोनों कि बहस बाजी का पूरा आनंद उठा रहे थे! जैसा किआम तौर पर हर उस एक्सीडेंट में होता है जिसमे कि दोनों में से किसी पार्टी को चोट नहीं लगती है! लेकिन चूंकि कपडों पर धूल मिटटी लग जाती है तो उसके एवज में सामने वाले की ऐसी तैसी करके अपनी भडास निकालते हैं!
" देख के नहीं चला सकता क्या गाडी.... अभी मुझे लग जाती तो?""
लगी तो नहीं न....क्यों बेकार की बहस कर रहा है!
"" लगी नहीं वो तो भगवान का शुक्र है...वरना तूने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी...अभी लग जाती तो?""
अरे ऐसे कैसे लग जाती....बीस साल हो गए गाडी चलाते चलाते!..
.."" तो मैं क्या नौसिखिया हूँ....मुझे बाईस साल हो गए! अगर मुझे कहीं लग जाती मुझे तो तेरी वो हालत करता की मोटर साइकल को हाथ लगाने से पहले दस बार सोचता""
अरे...लगी तो नहीं न तेरेको...क्यों एक ही बात बार बार कह रहा है!" अब मोटरसाइकल वाले को गुस्सा छूटा ! अभी तक स्कूटर वाला नीचे ही पड़ा था....इतने में मोटर साइकल वाले का मोबाइल बजा! उसने स्कूटर वाले को से कहा " एक मिनिट भाई..." और फोन सुनने में लग गया! स्कूटर वाले ने भी पूरा सहयोग करते हुए मौन धारण कर लिया! " अरे बेटा ...बस दो मिनिट में आया" शायद मोटर साइकल वाले को याद आया की वो अपने बच्चे को स्कूल से लेने जा रहा था! उसने मोटर साइकल स्टार्ट कर दी! स्कूटर वाला चिल्लाया " अरे ॥ऐसे कैसे जा रहा है? मेरे कपडे जो गंदे हो गए उसका क्या..?" मोटर साइकल वाले ने हाथ हिलाया और चलता बना!" स्कूटर वाला खिसिया कर रह गया! उसने भी स्कूटर उठाया ...कपडे झाडे....स्कूटर स्टार्ट किया और भीड़ को देखकर बड़बडाया " देखो तो सही ..कैसे कैसे गाड़ी चलाते हैं..अभी लग जाती तो?" भीड़ में से कुछ लोगों ने सर हिलाकर उसका समर्थन किया! स्कूटर वाला भी चला गया!
फिलिम का एंड हुआ....ड्रायवर ने भी गाडी स्टार्ट करी....भीड़ भी छंटने लगी! हमने ड्रायवर को कहा " अब अपन तो इसलिए और रुक गए की कहीं किसी को अस्पताल वगेरह तो नहीं ले जाना " ड्रायवर मुस्कुरा दिया और मुंह घुमाकर हम भी!
अब साहब हुआ क्या की दो किलोमीटर ही चले होंगे इत्ते में क्या देखते हैं कि सड़क पर भीड़ जमा है! उत्सुकता वश देखा तो कोई एक्सीडेंट हुआ है! हमें अपने भाषण पर सही उदाहरण भी मिल गया ! " अब देखो जनता को...अपना काम धंधा छोड़कर एक्सीडेंट देखने में ही भिड गयी है!" हमने ड्रायवर से कहा! इस बार उसने मुंडी नहीं हिलाई ! हमारी बात से ज्यादा इंटरेस्ट उसे मोटर साइकल और स्कूटर के एक्सीडेंट को देखने में आ रहा था! हमने भी उत्सुकता भरी निगाह एक्सीडेंट स्थल पर डाली! नज़ारा सचमुच महा रोचक था! मोटर साइकल वाला अपनी मोटरसाइकल रोक कर खडा था! स्कूटर वाला स्कूटर सहित नीचे गिरा था! स्कूटर का हैंडल पकडे आधा उठा आधा पड़ा स्टाइल में अधलेटा सा हो रहा था! और सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ को चुम्बक की तरह बांधे रखा था....कि दोनों जने फ्री स्टाइल झगडा कर रहे थे!इस झगडे में भी सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ ( अब जिसमे हम भी शामिल थे) को सारा काम काज भूलने पर मजबूर कर दिया था....कि स्कूटर वाला झगडे में इतना तल्लीन था कि पड़े पड़े ही झगड़ रहा था! भीड़ में से किसी ने कहा भी " भाई ॥पहले स्कूटर तो खडा कर ले...फिर लड़ लेना" स्कूटर वाला मोटरसाइकल को भूलकर उस भले आदमी पर गुर्रा के पड़ा " तेरेको क्या करना...मैं चाहे पड़े पड़े लडूं या खड़े खड़े। तू अपना काम देख" भला आदमी अपना सा मुंह लेकर रह गया! और हमें लगता है कि इसी तुनक में स्कूटर वाला खडा होता भी होगा तो और नहीं हुआ!
अब झूठ क्यों कहें , ड्रायवर ने हमारी गाडी भी रोक दी...हम भी चुप्प पड़ के रह गए! अब तक हम भाषण वाषण सब भूल चुके थे और दोनों कि बहस बाजी का पूरा आनंद उठा रहे थे! जैसा किआम तौर पर हर उस एक्सीडेंट में होता है जिसमे कि दोनों में से किसी पार्टी को चोट नहीं लगती है! लेकिन चूंकि कपडों पर धूल मिटटी लग जाती है तो उसके एवज में सामने वाले की ऐसी तैसी करके अपनी भडास निकालते हैं!
" देख के नहीं चला सकता क्या गाडी.... अभी मुझे लग जाती तो?""
लगी तो नहीं न....क्यों बेकार की बहस कर रहा है!
"" लगी नहीं वो तो भगवान का शुक्र है...वरना तूने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी...अभी लग जाती तो?""
अरे ऐसे कैसे लग जाती....बीस साल हो गए गाडी चलाते चलाते!..
.."" तो मैं क्या नौसिखिया हूँ....मुझे बाईस साल हो गए! अगर मुझे कहीं लग जाती मुझे तो तेरी वो हालत करता की मोटर साइकल को हाथ लगाने से पहले दस बार सोचता""
अरे...लगी तो नहीं न तेरेको...क्यों एक ही बात बार बार कह रहा है!" अब मोटरसाइकल वाले को गुस्सा छूटा ! अभी तक स्कूटर वाला नीचे ही पड़ा था....इतने में मोटर साइकल वाले का मोबाइल बजा! उसने स्कूटर वाले को से कहा " एक मिनिट भाई..." और फोन सुनने में लग गया! स्कूटर वाले ने भी पूरा सहयोग करते हुए मौन धारण कर लिया! " अरे बेटा ...बस दो मिनिट में आया" शायद मोटर साइकल वाले को याद आया की वो अपने बच्चे को स्कूल से लेने जा रहा था! उसने मोटर साइकल स्टार्ट कर दी! स्कूटर वाला चिल्लाया " अरे ॥ऐसे कैसे जा रहा है? मेरे कपडे जो गंदे हो गए उसका क्या..?" मोटर साइकल वाले ने हाथ हिलाया और चलता बना!" स्कूटर वाला खिसिया कर रह गया! उसने भी स्कूटर उठाया ...कपडे झाडे....स्कूटर स्टार्ट किया और भीड़ को देखकर बड़बडाया " देखो तो सही ..कैसे कैसे गाड़ी चलाते हैं..अभी लग जाती तो?" भीड़ में से कुछ लोगों ने सर हिलाकर उसका समर्थन किया! स्कूटर वाला भी चला गया!
फिलिम का एंड हुआ....ड्रायवर ने भी गाडी स्टार्ट करी....भीड़ भी छंटने लगी! हमने ड्रायवर को कहा " अब अपन तो इसलिए और रुक गए की कहीं किसी को अस्पताल वगेरह तो नहीं ले जाना " ड्रायवर मुस्कुरा दिया और मुंह घुमाकर हम भी!
24 comments:
भीड़ भरी दुनिया मे सब परेशान होकर इधर उधर घूम रहे है...अब मनोरंजन और वो भी फ्री में हो तो शायद ही कोई इंसान इसे छोड़ेगा.
बढ़िया रचना..बधाई!!
bahut sahi kaha.....yah ek aam najara hai..
agar bahut gambheer sthiti na ho aise durghatna sthal se ham isliye bhaag khade hote hain ki wahan galiyon ke roop me jo vibhatsa rasdhara bah nikalti hai,use sun pana bada hi jigar ka kaam hai.
:) :)
रोज का किस्सा अच्छा बयाँ किया है। हर आदमी व्यवस्था से खीजा हुआ है। ऐसे मौकों पर सब कुछ भूल कर खीज मिटाता है।
बेहतरीन प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
क्या कहें जी कैसे कैसे लोग हैं दुनिया में...देखिये न ऑफिस का सारा काम धंधा छोड़ कर आपका ब्लॉग पढने बैठ गए ;)
भाई आप स्कुट्रर बाले थे, या मोटर साईकिल वाले, हमे क्या, लेकिन मजा खुब आया, लगा जेसे हम भी मुफ़त मै झगडा देख रहे हो.
फोकट का ब्लाग
फोकट का मनोरंजन…अति उत्तम अति उत्तम
प्रणाम
ऐसे में मामले अक्सर यहाँ पर आते हैं... 'बात पैसे की नहीं है, बात इज्जत की है' बात जब पैसे से ही चालु होती है और झगडा बढ़ने पर जब कोई बोलता है की 'बात पैसे की नहीं है' तो मुझे तो बहुत मजा आता है. फोकट का मनोरंजन है जी कौन नहीं आनंद लेगा :)
सही में फोकट का मजा है :) बढ़िया
पोलिस वालो के लिए अच्छा नहीं है के झगडा करने वालो को हड़काने के बजे मजा ले ....हमने भी ऐसे एक मजे लेते पोलिस वाले से एक बार कहा .रोकते क्यों नहीं.....बोला मेरे एरिया में नहीं है .....मै दुसरे एरिया का हूँ ......
खैर अब क्या कहे ...इधर तो सड़क पे चलते दर लगता है ...लोग खामखां लड़ने के मूड में रहते है
*****
युवा सोच युवा खयालात की ओर से
mamla to saste mein nibat gaya..
बहुत अच्छा लिखा है आपने ।-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
" अब अपन तो इसलिए और रुक गए की कहीं किसी को अस्पताल वगेरह तो नहीं ले जाना " ड्रायवर मुस्कुरा दिया और मुंह घुमाकर हम भी!
क्या बात है, बहुत सुंदर !
मजा आ गया पढ़कर... वह भी मुफ़्त में। :)
हमारा भी मनोरंजन हो गया,
इसे कहते है १०० प्रतिशत दक्षता,
जितना मजा आपको आया होगा, पूरा का पूरा हम तक पहुँच गया !
फिलिम का एंड हुआ....ड्रायवर ने भी गाडी स्टार्ट करी....भीड़ भी छंटने लगी!
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चलें हम भी - बहुत टाइम खोटा कर लिया पोस्ट पढ़ने में! :)
भाई वाह... मज़ा आ गया. वैसे सही कहा, ग्यान देने में तो हम हिन्दुस्तानी माहिर हैं. खुद कुछ करें या ना!
ओह ये क्या मारपीट हुई ही नहीं !
अच्छी रचना है - रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से
इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
क्या अजीब लफ़ड़ा है। हमारे बड्डे वाले दिन पोस्ट हुई ये कहानी और गांधी जी के बड्डे वाले दिन बांचे। लाहौलाविलाकूवत टाइप। लेकिन मजे पूरे लिये। हम फ़ुल मजा लिये बिना किसी अपराध बोध के। काहे से कि आज छुट्टी है न!
बहुत अच्छा लिखा है आपने .... मज़ा आ गया
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