आज की सुबह कुछ ख़ास थी! एक तो हलके कोहरे में डूबी हुई सड़कें जो रात भर बारिश के बाद धुली धुली और खूबसूरत नज़र आ रही थी! दूसरे एक ऐसा वाकया जिसने इस सुहानी सुबह को और भी सुहाना बना दिया! आज सुबह सुबह उठने में बहुत आलस आ रहा था....मगर इतनी सुन्दर सुबह में घूमने का लालच नहीं छोड़ पाई! और अच्छा ही हुआ वरना ऐसी सुबहें तो बहुत आतीं मगर वो टूटे दांत वाला लड़का शायद फिर दोबारा नहीं मिल पता! रोज़ की ही तरह मोबाइल का हैडफोन कानों में लगाए सुबह सुबह के पुराने गानों को सुनते हुए मैं वॉक पर निकली! " याद किया दिल ने कहाँ हो तुम...प्यार से पुकार लो जहां हो तुम..." गाना इस रूमानी सुबह को और भी रूमानी बना रहा था! थोड़ी दूर चलने पर देखा कि एक छोटा लड़का अपनी साइकल की उतरी हुई चेन चढाने की कोशिश कर रहा था! थोडा पास गयी तो देखा कि उसकी साइकल में स्टैंड नहीं था....एक हाथ से साइकल संभाले हुए वो किसी तरह दूसरे हाथ से चेन चढाने का प्रयास कर रहा था!जब मैं उसके पास पहुंची, तब भी वो अपनी चेन और साइकल से ही जूझ रहा था!
मैंने उसके पास जाकर पूछा " मैं पकड़ लूं तेरी साइकल?"
उसने बिना किसी झिझक के कहा " पकड़ लो ना"
मैंने उसकी साइकल थामी...वो दोनों हाथों से जल्दी जल्दी चेन चढाने लगा! मैंने इस बीच ध्यान से उसे देखा! करीब आठ-नौ बरस का वो बच्चा, नीली पेंट और काली टीशर्ट पहने था! गरीब घर का था ! शायद कबाड़ बीनने निकला है, उसकी साइकल के हैंडल पर लटकी कई खाली पौलिथिन देखकर मैंने अंदाजा लगाया! " हो गया"....कहते हुए वो खड़ा हुआ और मुझे देखकर मुस्कुराया! उसके मुस्कराहट के भीतर सामने का टूटा हुआ दांत बड़ा क्यूट लगा मुझे! एक दम से मन में आया कि इस दांत टूटने की उम्र में कबाड़ बीन रहा है ये नन्हा बच्चा! मैं भी मुस्कुराई, पूछा " कहाँ जा रहे हो?"
" काम पर... " बच्चा बोला और एक बार फिर वही सुन्दर सी मुस्कराहट बिखेरकर चला गया! मैं भी अपने रास्ते आगे बढ़ गयी!
अगला गाना था " दीवाना हुआ बादल..." सचमुच क्या खूबसूरत सुबह थी! चार कदम ही चली थी, इतने में देखा वो बच्चा वापस घूम कर मेरी तरफ आ रहा था! कुछ ही सेकण्ड में साइकल मेरे पास लाकर उसने रोकी, मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखा! वो मुस्कुराया और मुझसे पूछा " दीदी...मैं आपको कहीं छोड़ दूं?" अब मैं भी अपनी मुस्कराहट ना रोक सकी ! उसकी इस बात पर मुझे उस पर इतना लाड आया की मन किया उसके दोनों गाल पकड़कर बूगी वूगी वुश कर दूं और उसके जोर की एक पप्पी दे दूं! लेकिन मैंने ऐसा किया नहीं! पता नहीं छोटी छोटी इच्छाएं पूरा करने से हमें हमारे अन्दर से ही कौन रोक देता है? मैं बोली " नहीं...मैं तो पैदल ही घूम रही हूँ?"
" अच्छा...." उसकी मुस्कराहट के पीछे टूटा दांत फिर झिलमिलाया और साइकल घुमा कर वो चला गया!
मैं तब तक उसे देखती रही जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया! कहाँ से आई उस नन्हे से बच्चे में इतनी समझ? नहीं नहीं...ये समझ नहीं, ये तो उसकी संवेदनशीलता और प्यारा सा दिल था जो उसने शुक्रिया कहने के लिए मेरी मदद करनी चाही! उसका ये प्यारा सा अंदाज़ मेरे दिल में बस गया! शायद अगली बार किसी को शुक्रिया कहने से पहले इस बच्चे को मैं याद करुँगी जिसने मुझे बहुत प्यारा ढंग सिखा दिया कृतज्ञता जाहिर करने का! उस छुटके को मेरा सलाम जो मुझे एक यादगार सुहानी सुबह दे गया! ! भगवन उसे हमेशा इतना ही नेक बनाये रखे और संघर्ष की आँधियों में बिखरने से बचाए!
पर बात यहीं ख़त्म नहीं होती है! मैंने अपने एक दोस्त को सुबह का सारा वाकया बताया! उसने गौर से सुना और बोला " मैं होता तो थोड़ी दूर उसकी साइकल पर बैठकर ज़रूर जाता!" उसकी इस बात ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया! सही तो है...मैंने क्यों नहीं सोचा ये! अगर मैं अगले चौराहे तक उसकी साइकल पर बैठकर चली जाती तो वो बच्चा कितना खुश हो जाता! उसने मुझे कितना खुश किया बदले में मैं भी उसे उतना ही खुश कर सकती थी! ख़ुशी के बदले सिर्फ ख़ुशी ही तो दी जा सकती है ! है ना?....खैर अगली बार से याद रखूंगी!
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
44 comments:
aanad aagayaa , us tute daant wale ladke ne jab aapko kahi chhodane ki baat ki hogi to kya andaaz hogaa main to yahi soch rahaa hun aur upar se itani rumaaniyat waale songs dono hi mere fav me shaamil hai....
arsh
badhiya tippani karne keliye fir aaunga
bahut khubsurati se aapne likhaa hai waah woogi woogi wosh
arsh
ओह्ह कितनी क्यूट सी बात लिखी है आपने...तुरत मुझे एक मुस्कान मिली है..शायद क्यूट सी....
पसंद किया।
कल ही मैं अपनी एक दोस्त से ये डिस्कस कर रहा था कि जीवन में छोटी-२ खुशियाँ कितना महत्व रखती हैं मगर हम हैं कि भागे जाते हैं बड़ी और शानदार खुशी कि तलाश में !
ये खुशी अपने दिल के करीब हुए शहर के नाम को किसी भी तरीके से सुनने से लेकर, किसी बच्चे के द्वारा आपको दुबारा पहचानकर चिल्लाते हुए कहना कि "फलां सर " आ गये और आप से चिपट जाने तक कुछ भी हो सकती है ! और ये छोटी-२ खुशियाँ जीवन में सम्पूर्णता का अहसास जरूर दिलाती हैं !
आपके द्वारा इस "खूबसूरत सुबह" के उस दांत टूटे लडके का वर्णन बेहद खूबसूरत है और ये विश्वास को सशक्त करता है कि "जीवन बेहद खूबसूरत है बस आपका नजरिया सकारत्मक हो !! "
अच्छा और प्रभावशाली लेखन !!
बहुत ही रोचक किस्सा सुनाया। नन्ही सी उम्र में वह काम करने निकला बालक दिल को छू लेता है। काश वह स्कूल या खेलने जा रहा होता।
घुघूती बासूती
वाह मज़ाअ आ गया. सच है केवल खुशी ही तो दे सकते हैन हम..
पता नहीं छोटी छोटी इच्छाएं पूरा करने से हमें हमारे अन्दर से ही कौन रोक देता है?
सबसे पहले तो पल्लवी जी ब्लॉग जगत में आपकी वापसी का स्वागत है...आखिर आपने अपने पाठकों की बात मान ही ली...आप लौटी हैं और अपने रंग में लौटी हैं...उसी शैली को लेकर लौटी हैं जिस के लिए पाठक बार बार आपके ब्लॉग पर चला आता है...सीधे सरल शब्दों में भावनाओं की सरिता बहाना कोई आपसे सीखे...बहुत अच्छी भीनी भीनी पोस्ट...सुबह की हवा जैसी...लिखती रहें.
नीरज
वाह.. दिल ले गयी ये पोस्ट तो.. बड़े दिनों बाद की आमद और वो भी इतनी खुशनुमा.. आज ही मैंने भी एक पोस्ट ठोंकी है..
आपके प्रोफाइल में पढ़ा... आप पुलिस में हैं.. पुलिसवाले के सीने में इतना संवेदनशील दिल... आश्चर्य है....पर अच्छा लगा..... शुक्रिया...
bahut kam milte hai hanste hue aise chehre..warna sab gum rahte hai apni hi udasio me.....behad achhi lagi apki post....
ek aisaa hee geet bhent
फिर से स्कूल खुल गये
गीत
धुले धुले मुखड़े, उजली उजली पोषाकें
राहों में रंग घुल गये
फिर से स्कूल खुल गये
रास्ते गये चहक चहक
भोली सी फुदकती महक
मैदानों के सोये दिल
आज फिर उछल उछल गये
फिर से स्कूल खुल गये
किलकारी मोद भर गयी
कक्षा की गोद भर गयी
सन्नाटा भाग गया जब
कानों में शोर गुल गये
फिर से स्कूल खुल गये
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
प्रस्तुतकर्ता वीरेन्द्र जैन पर 11:38 PM
geet गीत
हमारे कॉलेज केम्पस में एक मैडम थी कभी हंसती नहीं थी .हम बड़े डरते थे उनसे.....ओर उनके पति ..जो प्राइवेट प्रेक्टिशनर थे .रोज शाम को केम्पस के बच्चो को गाडी में भरकर केम्पस का चक्कर लगाते थे.....मन को बड़ी छूती थी वो बात......
खैर आमद सुखद है ....इन दिनों लिखने का मूड थोडा कम हो रहा था ....इधर अपने दोस्तों को देख शायद फिर कुछ मूड बने..... पर जोर की पप्पी दे देनी थी .....
bahut hi sunder baat keh di,waah
bahut pyara anubhav.. :)
उत्तम वृताँत, धन्यवाद !
उत्तम वृताँत, धन्यवाद !
ऐसे अवसरों पर दिल की आवाज़ ना चाहते हुए भी दब सी जाती है।
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पल्लवी जी,
यकीनन 'जी चुरा ले गया वो टूटे दांत वाला लड़का'... मेरा भी...
अभी कुछ दिनों पहले दो पोस्ट पढ़ी थी अंग्रेजी के दो अलग-अलग बोलोगों पर. लिंक होता तो जरूर देता आपको. कुछ अच्छे दोस्त हैं जो जबरदस्ती अच्छी बातें ढूंढ़ कर पढ़ाते हैं !
इस दोस्ती पर फिर कभी. फिलहाल आपकी पोस्ट उन दो पोस्ट की कहानियों का संगम लगी. एक पोस्ट में ऐसे मौको पर इन छोटी बातों को रोकने वाली बात जैसी बात थी. तो दुसरे में साइकिल पर बैठने वाली बात की ही तरह. दोनों पोस्ट याद आते है तो अजीब सी फीलिंग होती है. आपकी पोस्ट उन दोनों यादगार पोस्ट्स का एक्सटेंशन है.
और याद किया दिल ने कहाँ हो तुम जगजीत सिंह ने भी गया है. कभी वो भी सुनियेगा. ये उन गानों में से है जो एक बार सुन लिया तो फिर उस दिन दिनभर यही बजता रहता है.
छोटी छोटी खुशियाँ ही हमे बडी खुशियो से मिलाती है, बहुत सुंदर लिखा आप ने .
धन्यवाद
उस बच्चे का जिक्र कर के आपने हम सबों की दुआएं उस बालक तक पहुंचा दीं हैं
स्नेह ,
- लावण्या
सच में पल्लवी, मैं भी जरुर जाता उसके साथ...भले ही झूठे डिस्टिनेशन पर...वो आनन्द तो न छोड़ता...
वैसे कितना सही कह गई तुम:
छोटी छोटी इच्छाएं पूरा करने से हमें हमारे अन्दर से ही कौन रोक देता है?
-कहीं यह हमारी झिझक तो नहीं...अहम इस हालात में कहाँ से अपना पेंच लड़ायेगा तो उसे छोड़ देते हैं...मगर कौन जाने!!! जिसे आजकल छोड़ो वो ही दोषी निकलता है.
तुम तो जानती होगी, पुलिस में जो हो... :)
बहुत सुंदर पल्लवी जी ,आनंद आगया ,बेहद कोमल संवेदनाएं और आपका अंदाजे बयां सभी कुछ उम्दा .
बहुत दिनों बाद संयोग से आप रू ब रु हुईं ,मेरी शुभकामनायें
सादर, डॉ.भूपेन्द्र
ज़िंदगी मे ऐसी ही छोटी-छोटी खुशियां बहार ला देती जिस पर वक़्त का कभी कोई असर नही होता।कभी न भूल पाने वाले ऐसे पल सभी की ज़िंदगी मे आते है मगर उनको महसूस करना और उसी खूबसूरती से सबके सामने रखना,ये हर किसी के बस का नही।बहुत सुन्दर लिखा आपने,सच मे जी चुरा ले गया वो टूंटे दांत वाला लड़का।
पल्लवी जी,
वो बच्चा नहीं कोई देवदूत था...देखिएगा वो फिर आपको किसी दिन मार्निंग वॉक पर ज़रूर मिलेगा...तब उसकी साइकिल पर बैठने की खुद ही इ्च्छा जता कर उसे खुश कर दीजिएगा...
जय हिंद...
mazaa aa gaya padh kar....
छोटी छोटी खुशियाँ जिंदगी को खुशनुमा बना देती है बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढना अच्छा लगा ..
आपकी पोस्ट से हमें एक लड़का याद आ गया। जिसने मुझे कहा कि भूख लगी है एक रुपया दे दो ब्रेड खानी है। और हमने दो रुपये का सिक्का उसे दे दिया। और वही लडका चंद पल बाद ब्रेड खाता हुआ और एक रुपया का सिक्का मेरे को देकर चला गया। वैसे आपको उसकी साईकिल पर बैठ जाना चाहिए था।
कई दृश्य आँखों के आगे एक साथ आ गए आपकी पोस्ट पढ़कर ..मार्मिक चित्रण.
pahli baar aapke blog par aana hua aur aapka lekh dil ko choo gaya.
sach zindagi ki khushiyan to in chote chote lamhon mein chupi hoti hain bas hum hi unhein pakad nhi pate hain........kitna sukun milta hai na us waqt jab aise pal aate hain.
विगत कई दिनों से सोच रहा था कि आपका लिखा पढ़ूंगा फुरसत से...चिट्ठा-चर्चा पे इस खूबसूरत पोस्ट का जिक्र खींच लाया आज ही।
महिला-वर्दी-शब्दों की जादूगरी...अनूठी त्रिवेणी!
कुछ पुराने पोस्टों में झांकने जा रहा हूँ...
पल्लवी जी , बहुत दिनों बाद आपको पढ़ने का अवसर मिल रहा है ! संस्मरण बहुत रोचक है और घटना में छुपी संवेदनशीलता से मन जुड़ा जाता है !हर छोटी घटना में बड़ी बात तलाश लेना विशिष्टता है आपकी !
bahut pyaari post...bada khoobsoorat andaaj hai lautne ka.
dher sa pyaar umad aaya us toote daant wale ladke par, aapko bhi kahan mil jaate hain aise log. post padh kar hamari bhi subah khushnuma ho gayi :)
बहुत ही रोचक, मार्मिक किस्सा
बात सही है कि पता नहीं छोटी छोटी इच्छाएं पूरा करने से हमें हमारे अन्दर से ही कौन रोक देता है?
मेरे विचार से भी आपको कुछ दूरी तक सायकल पर बैठने का प्रयास करना था। ऐसी ही छोटी-छोटी खुशियां, पता नहीं किसकी दुनिया में बहार ला देती हैं
बी एस पाबला
GURIYA ITS ULTIMATE.
शुभ अभिवादन! दिनों बाद अंतरजाल पर! न जाने क्या लिख डाला आप ने! सुभान अल्लाह! खूब लेखन है आपका अंदाज़ भी निराल.खूब लिखिए. खूब पढ़िए!
पल्लवी जी.. जितना खूबसूरत आपकी वो सुबह थी.. उससे भी ज्यादा खूबसूरत आपने लिखा है, मेरे पास तारीफ़ के लिए अल्फाज़ नहीं हैं... उस लड़के की पप्पी आपने भले ही न ली हो, लेकिन ब्लॉग पर उसके लिए कंप्यूटर पर उंगलियां चलाकर उसपर ढेर प्यार तो लुटा ही दिया..
Aap police mein service karti hun Aaj hi newspaper mein aapke baare mein padha bahut hi achha laga. Police ki jo chhavi bani hai usse hatkar jo chhavi banane ka aapka prayas hai bahut hi sarahaniya hai. kash sabhi aapki jaise samvedansheel hokar sabke dard ko samjh pate. Main bhi bhopal se hun.
Bahut shhubhkanayen
kya baat ...us bachhe ke nazakt ko badi komalta se aapne likha hai ........
मेरा दिल भी गूगली वूग्ली बुश हो गया
your story was so good that i could not stop myself from writing my comments thereon.
i have experienced such incident when the people have touched my heart like any thing. I just tell you once incident. i was driving a car when stopped my car at a junction to allow the other driver to cross. I think he was trying to cross the road since long. But while crossing the road, the other car driver gave a smile and a salute to me. I can never forget that moment and smile on his face. I always think to respond in the same manner, but in hurry i often forget.
These small small gesture matters a lot...........
It takes a very sensitive person to welcome such thoughtful moments.. You are very unique police official, who has heart of a child.. Who else will offer to hold a cycle for a poor hardworkign boy.. Salute to you..
Pls remain like this.. Indian police need more peopel like you than any other kinds..
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