कल बहुत देर तक डिस्कवरी चैनल देखते रहे! कोई शो था जिसमे दुनिया के सबसे साफ़ सुथरे शहरों के बारे में बताया जा रहा था! अहा...क्या शहर थे! बड़ा मजा आ रहा था देखने में!ऐसी चमचमाती हुई सड़कें कि चप्पल धरने का मन ही न करे! एक बच्चा सड़क पर चलते चलते अचानक मुंह के बल गिर पड़ा.....पर जब उठा तो हम हतप्रभ रह गए! उसकी माँ को मुंह या कपडे झाड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ी! बच्चा वैसा का वैसा नया नवेला दिख रहा था! हमने सोचा एक हमारा इण्डिया है सड़क पर चलो तो साला चप्पल के अन्दर से भी पैरों में धूल चरण पखारने चली आती है और हमारे यहाँ का कोई नौनिहाल अगर सड़क पर औंधे मुंह गिर जाए तो ऐसा लगता है मानो दस बीस दिन से तो नहाया ही नहीं है! कपडे इत्ती जोर जोर से झाड़ेगी उसकी माँ कि पीटने का काम भी उसी झाड़ने में संपन्न हो जाता है! नौनिहाल बहुत देर तक मुंह में कुछ चबाता रहेगा...माँ के पूछने पर कहेगा " धूल किर्र किर्र कर रही है अभी तक" उसे भी किरकिराने में बड़ा आनंद आता है! हमारे यहाँ तो घर भी इत्ते नहीं चमचमाते जैसे कि दूसरे देशों की रोड चमक रही थीं! प्रोग्राम ख़तम होते ही हम चिंतन मोड़ में आ गए!
आखिर क्या कारण है हमारे देश की ऐसी दुर्दशा का! क्यों मेरे महान देश में पग पग पर गंदगी की बहार छाई हुई है! सरकारी मशीनरी...भारत के जाहिल लोग....यहाँ की आबोहवा ! नाना प्रकार से हमने सोचकर देखा कभी इस करवट कभी उस करवट!. .हमें ही कुछ करना होगा...हम इस देश से गंदगी का नामो निशाँ मिटाकर रहेंगे! हमारे देश में भी बच्चे सड़कों पर लोटेंगे बिना गंदे हुए! सरकार पर हमारा बस चलने का नहीं....और कीचड में से स्नान कर छपर छपर करते बाहर आये सूअरों को रोक पाना तो हमारे अब्बा के भी बस का नहीं! हम एक जागरूकता अभियान चलाएंगे और नागरिकों को सिविक सेन्स का पाठ पढ़ाएंगे! हाँ हाँ ...यही ठीक होगा! और इस प्रकार एक सुन्दर भारत का सपना देखते देखते हम सो गए! अगली सुबह उठते ही अपना प्रण याद आ गया! आज ही से शुरुआत करेंगे अपने अभियान की.....जब तक हमारे देश के नागरिक गण नहीं सुधरेंगे तब तक कुछ भी न हो सकेगा! तो गुनीजनो.....इस प्रकार हम सुबह सुबह ऐसा संकल्प लेकर अग्रसर हो लिए अपने कर्तव्य पथ पर!
चार कदम चलते ही अभियान की शुरुआत करने का मौका मिला! एक बुड्ढे सज्जन दिखाई दिए सड़क पर थूकते हुए! छि छि....इसीलिए तो गंदगी है सड़कों पर! हम लपक कर उन सज्जन के पास पहुंचे...गला साफ़ किया और हिम्मत करके बोले " सर...आप यहाँ क्यों थूक रहे हैं?"
" हुह" तो का तुम्हारी खुपड़िया पर थूकें?" बुड्ढे बाबा हमी पर उबल पड़े!
अरे हम पर क्यों थूकोगे.....इतना कहकर हम अपनी खुपड़िया बचाते हुए खिसक लिए वहाँ से! गुस्सा तो बहुत आया डोकरे पर.....खुद ऐसे हैं तो बच्चों को जाने क्या सिखाया होगा! वो तो जाने क्या क्या और करते होंगे दूसरों की खोपड़ी पर!
खैर जैसे तैसे मन को शांत किया और आगे बढे...थोड़ी दूर पर देखा तीन बच्चे सड़क के किनारे लाइन से बैठे हुए थे हाथ में पानी की बोतल थामे! आपस में हंसी मजाक करते हुए दीर्घ शंका का निवारण किया जा रहा था! ये तो दो दो छटांक के बच्चे हैं...इनसे क्या डरना! और हम पहुँच लिए उन नादान बच्चों को नागरिकता का पाठ पढ़ने! बड़ी मुलायम आवाज़ में हमने पुकारा " बच्चो...."
बच्चों ने भी एक स्वर में जवाब दिया " क्या है...."
" आप लोग क्या कर रहो हो यहाँ पर "
बच्चे खी खी करके हंस दिए..." देख नहीं रहे हो...." और तीनों की नज़र नीचे की तरफ झुक गयी , ये दिखाने के लिए की वे क्या कर रहे थे! छि छि...मन घिन से भर उठा! फिर भी हार न मानी! हिम्मत करके हम फिर बोले " यहाँ ये करना गन्दी बात होती है "
" तो क्या आपके सर पे कर दें ?" बच्चे खी खी करते हुए बोले! आज तो लगता है हमारे सर पर आफत आई जान पड़ती है! इत्ते में कचरा बीनती उन तीनों बालकों की अम्मा आ गयी! आते ही फनफनाई ...." क्यों परेसान कर रहे हो मेरे छोकरों को.....?"
" नहीं...वो ...मैं तो...." हम पसीना पोंछते इत्ता ही बोल पाए! भगवान् कसम बहुत डर गए कहीं ये कचरे की टोकरी सर पर ही न उल्टा दे! माँ को देख बच्चे भी लाड में आ गए.... एक बच्चे ने पानी की बोतल में से पानी हमारे ऊपर छिड़का! हम घबरा गए! बाकी के दोनों बच्चों ने भी बोतल टेढ़ी की , हम भागे वहाँ से ...भागते भागते भी तीनों की बोतलों का पानी हमारी टीशर्ट पर छिडकाया जा चूका था! भागते भागते पीछे मुड़कर देखा...तीनों बच्चे हंसी के मारे जमीन पर लोटपोट हो रहे थे!
हे ईश्वर क्या करने निकले थे और तूने ये क्या हाल कर दिया! भाड़ में गया जागरूकता अभियान...लौटते वक्त एक आदमी को दीवार गीली करते देखा....एक आंटी जी को घर का कचरा पौलिथिन में भरकर दूसरे के घर के सामने डालते देखा! पर हम तो भैया अब चुप्प पड़कर रह गए! एक तो वैसे ही पौटी धोने के पानी से स्नान कर चुके हैं! अब किसी ने कचरा वचरा पटक दिया तो बची खुची इज्जत भी चली जायेगी! घर आते आते तक दोबारा वही बुड्ढे सज्जन दिखाई दिए....हम नज़र फेरकर चलते रहे! पर इस बार वो हमारे पास आये और बोले " बेटा...तुम सही कह रहे थे! मुझे फिर से थूकना है! कहाँ थूकूं? "
" किसी डस्टबिन में थूकिये और कहाँ" हमने थूक गटकते हुए जवाब दिया!
हमें तो कहीं दिखाई नहीं देता...जरा तुम ही चलकर दिखा दो"
" हाँ हाँ ...क्यों नहीं चलो हमारे साथ" हम दोबारा हलके से जोश में आये! करीब एक किलोमीटर तक बुजुर्गवार के साथ भटकने पर भी डस्टबिन नहीं खोज पाए! अंत में हार मानकर हमने कहा " जी...जहां आपका मन करे वहाँ थूकिये! सारा शहर आपका है!" बुड्ढे बाबा ने गर्व से भरकर हमें देखा और सड़क पर थूकार्पण कर दिया!
हम घर लौटे....गेट खोलकर घुस ही रहे थे कि इतने में सर पर कुछ गीला गीला लगा! हाथ लगाया तो गीला गीला सफ़ेद पदार्थ हाथ में चिपक गया! ऊपर देखा तो एक गौरैया उड़ रही थी! पता नहीं हमें भ्रम हुआ या सचमुच में ही हमें देखकर चोंच खोलकर मुस्कुरा रही थी! राम ही जाने.....हमने भी अपना गन्दा हाथ बगल वाले अंकल की दीवार पर पोंछ दिया!
आखिर क्या कारण है हमारे देश की ऐसी दुर्दशा का! क्यों मेरे महान देश में पग पग पर गंदगी की बहार छाई हुई है! सरकारी मशीनरी...भारत के जाहिल लोग....यहाँ की आबोहवा ! नाना प्रकार से हमने सोचकर देखा कभी इस करवट कभी उस करवट!. .हमें ही कुछ करना होगा...हम इस देश से गंदगी का नामो निशाँ मिटाकर रहेंगे! हमारे देश में भी बच्चे सड़कों पर लोटेंगे बिना गंदे हुए! सरकार पर हमारा बस चलने का नहीं....और कीचड में से स्नान कर छपर छपर करते बाहर आये सूअरों को रोक पाना तो हमारे अब्बा के भी बस का नहीं! हम एक जागरूकता अभियान चलाएंगे और नागरिकों को सिविक सेन्स का पाठ पढ़ाएंगे! हाँ हाँ ...यही ठीक होगा! और इस प्रकार एक सुन्दर भारत का सपना देखते देखते हम सो गए! अगली सुबह उठते ही अपना प्रण याद आ गया! आज ही से शुरुआत करेंगे अपने अभियान की.....जब तक हमारे देश के नागरिक गण नहीं सुधरेंगे तब तक कुछ भी न हो सकेगा! तो गुनीजनो.....इस प्रकार हम सुबह सुबह ऐसा संकल्प लेकर अग्रसर हो लिए अपने कर्तव्य पथ पर!
चार कदम चलते ही अभियान की शुरुआत करने का मौका मिला! एक बुड्ढे सज्जन दिखाई दिए सड़क पर थूकते हुए! छि छि....इसीलिए तो गंदगी है सड़कों पर! हम लपक कर उन सज्जन के पास पहुंचे...गला साफ़ किया और हिम्मत करके बोले " सर...आप यहाँ क्यों थूक रहे हैं?"
" हुह" तो का तुम्हारी खुपड़िया पर थूकें?" बुड्ढे बाबा हमी पर उबल पड़े!
अरे हम पर क्यों थूकोगे.....इतना कहकर हम अपनी खुपड़िया बचाते हुए खिसक लिए वहाँ से! गुस्सा तो बहुत आया डोकरे पर.....खुद ऐसे हैं तो बच्चों को जाने क्या सिखाया होगा! वो तो जाने क्या क्या और करते होंगे दूसरों की खोपड़ी पर!
खैर जैसे तैसे मन को शांत किया और आगे बढे...थोड़ी दूर पर देखा तीन बच्चे सड़क के किनारे लाइन से बैठे हुए थे हाथ में पानी की बोतल थामे! आपस में हंसी मजाक करते हुए दीर्घ शंका का निवारण किया जा रहा था! ये तो दो दो छटांक के बच्चे हैं...इनसे क्या डरना! और हम पहुँच लिए उन नादान बच्चों को नागरिकता का पाठ पढ़ने! बड़ी मुलायम आवाज़ में हमने पुकारा " बच्चो...."
बच्चों ने भी एक स्वर में जवाब दिया " क्या है...."
" आप लोग क्या कर रहो हो यहाँ पर "
बच्चे खी खी करके हंस दिए..." देख नहीं रहे हो...." और तीनों की नज़र नीचे की तरफ झुक गयी , ये दिखाने के लिए की वे क्या कर रहे थे! छि छि...मन घिन से भर उठा! फिर भी हार न मानी! हिम्मत करके हम फिर बोले " यहाँ ये करना गन्दी बात होती है "
" तो क्या आपके सर पे कर दें ?" बच्चे खी खी करते हुए बोले! आज तो लगता है हमारे सर पर आफत आई जान पड़ती है! इत्ते में कचरा बीनती उन तीनों बालकों की अम्मा आ गयी! आते ही फनफनाई ...." क्यों परेसान कर रहे हो मेरे छोकरों को.....?"
" नहीं...वो ...मैं तो...." हम पसीना पोंछते इत्ता ही बोल पाए! भगवान् कसम बहुत डर गए कहीं ये कचरे की टोकरी सर पर ही न उल्टा दे! माँ को देख बच्चे भी लाड में आ गए.... एक बच्चे ने पानी की बोतल में से पानी हमारे ऊपर छिड़का! हम घबरा गए! बाकी के दोनों बच्चों ने भी बोतल टेढ़ी की , हम भागे वहाँ से ...भागते भागते भी तीनों की बोतलों का पानी हमारी टीशर्ट पर छिडकाया जा चूका था! भागते भागते पीछे मुड़कर देखा...तीनों बच्चे हंसी के मारे जमीन पर लोटपोट हो रहे थे!
हे ईश्वर क्या करने निकले थे और तूने ये क्या हाल कर दिया! भाड़ में गया जागरूकता अभियान...लौटते वक्त एक आदमी को दीवार गीली करते देखा....एक आंटी जी को घर का कचरा पौलिथिन में भरकर दूसरे के घर के सामने डालते देखा! पर हम तो भैया अब चुप्प पड़कर रह गए! एक तो वैसे ही पौटी धोने के पानी से स्नान कर चुके हैं! अब किसी ने कचरा वचरा पटक दिया तो बची खुची इज्जत भी चली जायेगी! घर आते आते तक दोबारा वही बुड्ढे सज्जन दिखाई दिए....हम नज़र फेरकर चलते रहे! पर इस बार वो हमारे पास आये और बोले " बेटा...तुम सही कह रहे थे! मुझे फिर से थूकना है! कहाँ थूकूं? "
" किसी डस्टबिन में थूकिये और कहाँ" हमने थूक गटकते हुए जवाब दिया!
हमें तो कहीं दिखाई नहीं देता...जरा तुम ही चलकर दिखा दो"
" हाँ हाँ ...क्यों नहीं चलो हमारे साथ" हम दोबारा हलके से जोश में आये! करीब एक किलोमीटर तक बुजुर्गवार के साथ भटकने पर भी डस्टबिन नहीं खोज पाए! अंत में हार मानकर हमने कहा " जी...जहां आपका मन करे वहाँ थूकिये! सारा शहर आपका है!" बुड्ढे बाबा ने गर्व से भरकर हमें देखा और सड़क पर थूकार्पण कर दिया!
हम घर लौटे....गेट खोलकर घुस ही रहे थे कि इतने में सर पर कुछ गीला गीला लगा! हाथ लगाया तो गीला गीला सफ़ेद पदार्थ हाथ में चिपक गया! ऊपर देखा तो एक गौरैया उड़ रही थी! पता नहीं हमें भ्रम हुआ या सचमुच में ही हमें देखकर चोंच खोलकर मुस्कुरा रही थी! राम ही जाने.....हमने भी अपना गन्दा हाथ बगल वाले अंकल की दीवार पर पोंछ दिया!
36 comments:
इस शानदार व्यंग्यात्मक आलेख के लिये धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें
छी छी.. पुलिस वाली होकर इत्ता डरती हैं? रोकिये ऊ बच्चा लोग को अभी हम हप्फ करके डरा कर आते हैं.. :)
वैसे एक बात भी पूछनी थी, वो बच्चा लोग लोटपोट कर हंस रहे थे तक तो ठीक था, मगर क्या वहीँ लोटपोट हो रहे थे जहाँ पौटी कर रहे थे यह क्लीयर नहीं है.. :P
शानदार व्यंग्य
BADHAI IS KE LIYE AAP KO
SHAKHE KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
लघुशंका करते हुए बच्चे को पीछे से आवाज़ मत लगा देना.. कही करते करते ही पीछे मुड गया तो आपका टी शर्ट वार्म फील करेगा..
हम तो हंस के लोट भी हुए और पोट भी.. इस बार बड़े दिनों बाद मस्त वाली पोस्ट मिली है.. और शीर्षक तो वही पुलिसिया अंदाज़ में है जी..
पढने पोस्ट.. टिपियाने कूल !
खतरनाक लेख। :)
देख इसी लिए तो लोग कहते हैं....अच्छे बच्चे समाज सेवा के चक्कर में नहीं पड़ते............हे हे हे हे हे ......
सभी आपके सिर के पीछे पड़े हुए हैं....शान्दार व्यंग वैसे केवल हमारा ही सुधर जाए तो वो भी काफी है...."
बढ़िया व्यंग...हमारा देश तो है ही ऐसा. इन बातों पर सरकार कोई टैक्स या जुर्माना लगा दे तो कम हो सकती है ये आदतें वरना...सब चलता है
बहुत खूब.बहुत सफ़ाई से आप वो सब कह गई जो हम्मे से बहुत से लोगों के लिये ज़रुरी है.बिल्कुल उसी तरह जिस तरह से आपने बगल वाले अंकल की दीवार पर हांथ पोछा.सच कंहू तो आपकी पोस्ट खत्म होने के साथ ही शुरु होती है.शानदार शब्दों का मानो जादू दिखा रही हैं आप.
vijay prakhashji tax ya jurmana to trafic ke niyam todane valo par bhi laga hai par trafic ka hal to maloom hai na,kyon khane ka ek naya rasta sujha rahe hai.
bahut sateek vyang par aapke is jaajbe ko salam,ki aapke dil ko dukhata to hai,aur aapne koshish to ki,kam se kam un logo se to behatar hai,jo yah kahte nahi thakate ki dekho videshon ki sadake aur pichch se thukate hai sadak par.
ek achchhi post ke liye badhai...
हर विधा में गजब का लिखते हो भाई। शानदार व्यंग्य ।
एक बार दीवार गीली करने का अपराध बोध हम भी स्वीकारते है ......ओर एक बार नदी गीली करने का भी.....पर परिस्थितिया ऐसी थी ....जीवन में कभी कभी प्रेशर बहुत बढ़ जाता है .ओर सड़क पर दूर दूर तक कोई आस नजर नहीं आती......मोबाइल शौचालय नाम की चीज कभी किसी ने सुझाई थी.......वो महाशय नोबेल प्राइज़ पाने के हकदार थे .पर ऐसे आदमियों को कोई सीरियसली नहीं लेता .....
Yah ek bahut hi samyik vishay par aapne socha aur likha. aap dhanyawad ki patra hain. Badhai.
कुछ दिनों पहले मनीषा पांडे ने अपने लेख में पूरे हिंदुस्तान को खुला शौचालय होने की बात कही थी। आज आपनी मज़ेदार शैली पर हमारी ट्रेडमार्क प्रवृतियों पर चुटकी ली है। क्लाइमेक्स भी मजेदार रहा।
ये पुलिस वालों का हाल है तो हम साधारण लोगों का क्या होगा :)
Nice article. I appreciate the issue raised therein. Someone said that Mumbai is big toilet not only children, you can find adults also using road as toilet.It is very disgusting............
चलिए इस विषय पर किसी ने बात तो आरंभ की।
हंसी हंसी में आपने सार्थक बात कही. पर यकीन मानिए कई बार डस्टबिन होते हुए भी लोग यहाँ वहाँ गन्दगी फैलाते हैं. उनके बच्चे भी यही करेंगे आगे जा के.
इस शानदार व्यंग्यात्मक आलेख के लिये धन्यवाद
पल्लवी जी , बहुत बढ़िया और शानदार हास्य -व्यंग लेख लिखा है ।
हंसी हंसी में गहरी बातें लिख डाली ।
बेशक हम भारतियों को कोई नहीं सुधार सकता ।
शायद हम खुद भी नहीं।
बस हम ही सुधर जाएं तो बहुत कुछ हो जाएगा। दूसरों को सुधारने में तो स्वयं के बिगड़ने का खतरा अधिक रहता है। जैसा कि आपके साथ हुआ।
"हे ईश्वर क्या करने निकले थे और तूने ये क्या हाल कर दिया! भाड़ में गया जागरूकता अभियान...लौटते वक्त एक आदमी को दीवार गीली करते देखा....एक आंटी जी को घर का कचरा पौलिथिन में भरकर दूसरे के घर के सामने डालते देखा! पर हम तो भैया अब चुप्प पड़कर रह गए! एक तो वैसे ही पौटी धोने के पानी से स्नान कर चुके हैं! अब किसी ने कचरा वचरा पटक दिया तो बची खुची इज्जत भी चली जायेगी!"
ekdum sahi soch..
maza aa gaya ji...
kunwar ji,
इस आंदोलन में हम आपके साथ हैं। मजाक नहीं, सिरियसली:)
मजेदार और मस्त लेख
हालाँकि आपने जो भी लिखा वह खुला सत्य है,पर आपके अंदाजे बयां ने इसे अद्भुद हास्य व्यंग्य बना दिया...हंस हंस कर हाल बेहाल हो गया...
बहुत बहुत बहुत ही लाजवाब...बेहतरीन !!!
एक हमारा इण्डिया है सड़क पर चलो तो साला चप्पल के अन्दर से भी पैरों में धूल चरण पखारने चली आती है
हिफाजत के पलों में रचनात्मक सोच
अभी धुल जमी है, नहा के आता हूँ. और पान भी थूकना है अभी तो... बाद में टिपियाया जाएगा. :)
बड़ा ही शानदार पोस्ट है....पर धुल हमारे देश के वातावरण मे है.सो हमारे यहां सड़के लंदन की तरह नहीं दिख सकती पर हां ...दिमाग में जो धुल खैर वर्षों से जमी पड़ी है...उसे हटाने का कोई कोई ही प्रयास करता है..
व्यंगात्मक लेकिन सच्ची तस्वीर बताता लेख काश हमारा हिन्दुस्तान की दशा सुधार पाते
हा हा :)
ऐफ़ै कैफ़े चलेगा.. लेकिन चलिये आपने कोशिश तो की.. और वो भी Daring one..
बाकी ये राज़ ही है कि बच्चे आपसे क्यू नही डरते? :P
कुश के सजेशन पर ध्यान दीजियेगा..
आपकी लास्ट पोस्ट जैसा ही हास्य है इसमे भी.. बहुत सुन्दर.. मज़ा आ गया पढकर.. अब चाय पीकर आते है..
pallavi ji
aapne bahut hi kjaagrut lekh likha hai .. is desh ka yahi haal hai ..,mai bahut der se aapki posts padh raha tha , aap wakayi bahut accha likhti hai ..meri badhyi kabool kare..
aabhar aapka
vijay
P.S. aap bhopal me kaha posted hai , mai aate rahta hoon bhopal me kaam ke silsile me . kabhi samay mile to milna ho jayenga ..
पल्लवी जी डंडा हाथ में रखा कीजिये .....और दे दनादन .....यहाँ सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलने वाला ......!!
नागरिकों कि मानसिकता पर करारा व्यंग है...लिखने शैली बहुत बढ़िया है....
इस लेख पर एक मुहावरा याद आ गया....चौबेजी बनाने चले थे छब्बे और रह गए दूबे...
लेकिन बहुत विचारणीय पोस्ट है...काश कुछ जागरूकता आ सके..
बहुत सुन्दर व्यंग्यात्मक लेख है ! पढके बहुत मज़ा आया । पर इस तरह का लेख जब भी पढता हूँ, जाने क्यूँ हसीं के साथ साथ थोडा दुःख भी होता है कि आखिर हमारा देश ऐसा क्यूँ है ? क्या हम कभी नहीं सुधर सकते ?
शानदार व्यंग्यात्मक आलेख :)
धन्यवाद :)
बढ़िया व्यंग......
hahahahahhaha.....
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