Thursday, May 19, 2011

वो किसी मुकम्मल ग़ज़ल में एक बे-बहर शेर की तरह था


वो अलग था,सबसे अलग
सारे भाई बहन जब परीक्षा की तैयारी में
हलकान हो रहे होते
वो छत पर आम की गुठली चूसता
माउथ ऑर्गन बजा रहा होता

जब स्कूल के दोस्त लड़कियों के नमक की बातें करते
वो गुड्डी, रिंकी, लाली और
चुनमुन के साथ नहर किनारे
साइकल रेस लगा रहा होता...


जब सारा मोहल्ला दुर्गा जी की झांकियां सजाने में
जन्माष्टमी के भजन गाने में और
गणेश जी का चंदा इकठ्ठा करने में पगलाया रहता
वो गली के पिछवाड़े
दो पिल्लों को अपने मुंह को
चाटने दे रहा होता

जब सब लड़के अपना रिजल्ट देखने
बोर्ड के आगे सर फुटौव्वल कर रहे होते
वो माँ के धोये निचोड़े कपडे
आँगन में डोरी पर फैला रहा होता

वो मुश्किल से सेकण्ड डिविज़न पास होता
वो गणित की किताब में मंटो को छुपाये रहता
पिता कहते कि वो अटपटे ढंग का लड़का था
माँ कुछ नहीं कहती
पर हैरानी से कभी उसे
कभी बाकी बच्चों को देखती रहती

एक दिन ग़ालिब ने कहा
वो किसी मुकम्मल ग़ज़ल में
एक बे-बहर शेर की तरह था
ऐसा शेर जिसमे शायर ने
अपने ख़याल नहीं बल्कि
अपने ख्वाब और रूह डाली थी...
और वही ग़ज़ल का
मतला भी था....

41 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

मेरे ब्रीफकेस में दस दिन से है डेनियल गोलमैन की - वर्किंग विथ इमोशनल इण्टेलीजेंस।
और मैं उस पुस्तक को ब्राउज करने के आधार पर कह सकता हूं कि यह बन्दा सफल होगा, अपनी शर्तों पर।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जो लोग दुनिया की रीत से अलग होते हैं वही ज़िंदगी में कुछ अलग हासिल करते हैं ...सुन्दर रचना

vandana gupta said...

और वही ग़ज़ल का
मतला भी था....

वाह …………गज़ब्…………बस वही मुकाम पाते हैं।

"अर्श" said...

pahali baar be-bah'r she'r ko matlaa bante dekhaa hai. wakai khwaab aur rooh shamil honge she'r me to matla bananaa hi tha . khubsurat behad khubsurat.

प्रवीण पाण्डेय said...

अलबेला है, जीतेगा।

सागर said...
This comment has been removed by the author.
सागर said...

http://kalam-e-saagar.blogspot.com/2010/03/7.html

Anonymous said...

waah....ise kehte hai unique!! banda bhi...nazm bhi....kya baat hai....

सागर said...

बचा लो ऐसी जाति को जो लुप्त प्राय हो रहे हैं.
जो हाशिये पर है उनको रोको

सन्दर्भ इसी लिए था.

कविता बहुत खुबसूरत है...
चरित्र चित्रण के बाद अंतिम पैरा तो कमाल का है.

डॉ .अनुराग said...

अरसे बाद तुम्हारा टच लौट रहा है ...अहिस्ता आहिस्ता .कम्प्लीट तो नहीं ..रस्मी तौर पे तारीफ नहीं करूँगा क्यूंकि .आखिरी पैरा ओर बेहतरीन हो सकता था ..कनटीन्यूटी में .

Manoj K said...

यह वह है जो आम से अलग है .. हर बंद यह बनना चाहता है.. में भी !!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

ऎसे लडके या तो बहुत आगे चले जाते हैं या बहुत पीछे रह जाते है... दुनिया उनके साथ नहीं चलती।

sonal said...

ek aisaa hee bandaa khoyaa hai maine bhi....

अमिताभ मीत said...

ग़ज़ब ! एकदम ग़ज़ब !! लाजवाब कर दिया !!!

Anonymous said...

नही समझ में आई. ये मतला ये कुछ कठिन शब्द...नही समझ पाती .पर...बहुत कुछ वो लगा एकदम मुझ -सा ही.सचमुच ऐसिच थी मैं बचपन में और............आज तक वो बच्चा मुझसे दूर नही जा पाया. हा हा हा 'वो' बड़ा प्यारा बच्चा है.दीन दुनिया से बेखबर...अलग उसकी अपनी दुनिया में जो सचमुच ज्यादा सुन्दर है.
एक ख़ूबसूरती सी झलक रही है इस कविता में जैसे....रुसी लेखक लिखते हैं. बिलकुल वैसी ही.पल्लवी जी ने लिखी है.उन्हें कहियेगा उनको पढ़ कर अच्छा लगा.

pallavi trivedi said...

इंदु जी... किसी ग़ज़ल में उसका पहला शेर " मतला' कहलाता है!जो की सबसे महवपूर्ण होता है ग़ज़ल में! और दूसरा शब्द " बे-बहर " आपको कठिन लगा होगा शायद! दरअसल एक ग़ज़ल का हर शेर एक जैसे मीटर में या सीधे शब्दों में कहें तो जैसे दोहा या चौपाई तब सही माना जाता है जब उसमे सोलह या बारह मात्राएँ हों! इसी तरह शेर में भी होता है! उनमे मात्रा की जगह बहर शब्द प्रयोग किया जाता है! इसीलिए जो शेर निर्धारित रिदम या बहर में न हो उसे बे-बहर कहते हैं! मुझे आशा है मैं अपनी बात समझा सकी हूँ! हांलाकि मैं भी इस बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानती...इसलिए अन्य कोई भी जानकार लोग इसे ज्यादा अच्छी तरह समझा सकें तो बेहतर रहेगा!

RAJESH PANDEY said...

कुछ बे-बहार जिंदगानी भी इसी तरह मुक्कमल अर्थ की तलाश में होती हैं.

RAJESH PANDEY said...
This comment has been removed by the author.
rashmi ravija said...

दुनिया की नज़रो में वो सफल या असफल हो सकता है...पर उसे खुद से कभी शिकायत नहीं होगी.
बढ़िया लिखा है.

Pawan Kumar said...

बे-बहर जैसा दिखने वाला वो लड़का .... कमाल का होगा. वैसे जो पोर्टेट आपने खींचा है वो लाजवाब है.अच्छा विम्ब बनाया है आपने...

मीनाक्षी said...

बहुत खूबसूरत भाव लिए हुए रचना को और उसके नायक को बे- बहर शेर सा देखना भी मन मोह गया..भीड़ से अलग अपनी एक पहचान...

निवेदिता श्रीवास्तव said...

वो भीड़ से अलग है यही उसकी पहचान है .....
पहली बार आपको पढ़ा ,बहुत अच्छा लगा ....

समीर यादव said...

इसे पढकर मैं डॉ अनुराग के पहले के ओपिनियन से सहमत हूँ कि आप नज्म के साथ गद्य से अधिक प्रभावी हैं. अधिक सहज और ऐसी अल्हडता जो परिपक्वता को भी सुकून दे.

कुश said...

जो भी हो पट्ठा बड़ा सही है... है ना ?

udaya veer singh said...

khubsurat shilp ,aabhar .

वाणी गीत said...

ये कुछ अजूबे से लोग संभावनाएं जगाये रखते हैं जीवन की ...अपने होने की वर्ना तो सब इसी व्यवस्था के हिस्से बन जाते हैं ...
मुकम्मल ग़ज़ल का बेबहर शेर ...बहुत खूब !

Smart Indian said...

कुछ शेर बे-बहर ही रह जाते हैं। सुन्दर कविता!

Anupama Tripathi said...

लीग से हट कर बहुत सुंदर कविता ..
सुंदर अभिव्यक्ति .

सदा said...

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ... ।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

माँ कुछ नहीं कहती
पर हैरानी से कभी उसे
कभी बाकी बच्चों को देखती रहती

क्या बात है, बहुत सुंदर

Unknown said...

पहली बार आपको पढ़ा ,बहुत अच्छा

Unknown said...

पहली बार आपको पढ़ा ,बहुत अच्छा

M VERMA said...

लाजवाब रचना ..

Vaanbhatt said...

दिल ने हमसे जो कहा, हमने वैसा ही किया...
फिर कभी फुरसत में सोचेंगे बुरा था या भला...
ऐसे लोग ज़िन्दगी जीते हैं...बाकी ढोते लगते हैं...

mridula pradhan said...

वो किसी मुकम्मल ग़ज़ल में
एक बे-बहर शेर की तरह था
ऐसा शेर जिसमे शायर ने
अपने ख़याल नहीं बल्कि
अपने ख्वाब और रूह डाली थी...
और वही ग़ज़ल का
मतला भी था....
ekdam kamaal ki lekhni hai.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

माँ कुछ-कुछ कहती है
थोड़ा सा मैं भी कहता हूँ
बाकी जो बचा ....सब पड़ोसी कह देते हैं
मैं जानता हूँ
वह बे-बहर है
पर बहरा नहीं
....ठीक से देखा जाय
तो वह खुद में एक शेर है
जंगल में अकेला
जी हाँ ! यह मेरा
एकलौता लड़का है
जो सेकेण्ड डिवीजन से आगे नहीं जाता कभी
पर अपनी उम्र से आगे ज़रूर जाता है.

पल्लवी जी एक नए तरीके की रचना ......सार्थक रचना.

डा० अमर कुमार said...

.पहली बार पढ़ा, उतना ठीक न लगा,
आज दुबारा पढ़ा.. लय में जमने के आसार हैं ।

@ डॉ. अनुराग:
ग़ज़ल में आखिरी पैरा..
आखिरी पैरा ?
हुँह !

गौतम राजऋषि said...

गलत निर्णय ले लिया क्या कि आज सारे छुटे हुये पोस्ट पढ़ूँगा...इतने बदल-बदल कर ज़ायके मिल रहे हैं कि ...

पोस्ट से ज्यादा दिलचस्प टिप्पणियाँ लगी| खासकर इन्दु जी को ग़ज़ल की बारीकी समझाना, अनुराग जी का मुडियाया हुआ बयान....डा० अमर का ग़ज़ल के पैरे पे मुँह बिचकाना....
वैसे नज़्म का हीरो है कौन?

Ravi Rajbhar said...

wow....so touching mam.

shyam gupta said...

सुन्दर नज़्म...

लकीरों पर चला क्या चला, क्या चलना कहिये।
बहा धारा में जो, उसका क्या बहना कहिये।
मोडदे रुख हवाओं के खींच दे कुछ लकीरें नयी,
उसका चलना,चलना है , श्याम चलना कहिये॥

रविकर said...

मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच