आज यही सवाल मुझे तुमसे पूछने का मन कर रहा है " तुम बताओ न..बारिश में हिचकी क्यों आती है?"
कितनी अजीब सी बात है न कभी जिस जगह हम दूसरे को खड़ा देखते हैं... खुदा के हिसाब किताब में हमें भी उस जगह पर कभी न कभी ज़रूर खड़े होना पड़ता है! तब बीता हुआ वक्त बहुत तेज़ी से जिस्म और दिमाग में सरगोशी करता है! तुम्हारी हिचकियों की वजह का नाम भी मैं जानती थी इसलिए जानकर भी जवाब देने से बचती थी... मगर मेरी हिचकियों की वजह तुम हो.. तुम ये कभी जान न पाओगे !
साल पे साल बीतते जाते हैं.. हम मशीन या कभी कभी उससे कुछ ज्यादा की तरह जिंदगी जीते या यूं कहो जिंदगी को काटते जाते हैं! पर हैरत होती है सोचकर कि इन गुज़रे सालों का एक आवारा लम्हा मशीन से इंसान बना जाता है!ऐसे लम्हों की दिमागी स्तर पर कोई कीमत नहीं...मगर दिल के अनमोल खजाने तो यही हैं बस! तुम पढ़ते तो सोचते जाने क्या क्या लिख रही है!
बरसात रुकने का नाम नहीं ले रही है और हिचकी भी... तुम कहते थे ना कि जिंदगी में अगर तुम तकलीफ में होगी तो ये बात मुझे किसी और से पता नहीं चलना चाहिए! मैं सुनकर कितनी खुश हुई थी... इसलिए नहीं कि तुम मेरा दुःख बांटने आओगे बल्कि इसलिए कि अपने दर्द को तुमसे बात करने की वजह बना लूंगी मैं! पर इस लम्बे अरसे में तुमसे बात न हुई... तुम कहीं ये तो नहीं सोचते कि इतने साल मैं रोई ही नहीं?
जब बारिश आती है तो कुछ काटता है..! न मालूम क्या... शायद आंसू ही पैने हो जाते हों!
साल पे साल बीतते जाते हैं.. हम मशीन या कभी कभी उससे कुछ ज्यादा की तरह जिंदगी जीते या यूं कहो जिंदगी को काटते जाते हैं! पर हैरत होती है सोचकर कि इन गुज़रे सालों का एक आवारा लम्हा मशीन से इंसान बना जाता है!ऐसे लम्हों की दिमागी स्तर पर कोई कीमत नहीं...मगर दिल के अनमोल खजाने तो यही हैं बस! तुम पढ़ते तो सोचते जाने क्या क्या लिख रही है!
बरसात रुकने का नाम नहीं ले रही है और हिचकी भी... तुम कहते थे ना कि जिंदगी में अगर तुम तकलीफ में होगी तो ये बात मुझे किसी और से पता नहीं चलना चाहिए! मैं सुनकर कितनी खुश हुई थी... इसलिए नहीं कि तुम मेरा दुःख बांटने आओगे बल्कि इसलिए कि अपने दर्द को तुमसे बात करने की वजह बना लूंगी मैं! पर इस लम्बे अरसे में तुमसे बात न हुई... तुम कहीं ये तो नहीं सोचते कि इतने साल मैं रोई ही नहीं?
जब बारिश आती है तो कुछ काटता है..! न मालूम क्या... शायद आंसू ही पैने हो जाते हों!
" काले घुमड़ते बादलों में छुपकर कोई रोता है क्या...?" ये तुम्हारा दूसरा सवाल था बारिश पर!
" कोई नहीं रोता... बच्चे बादलों में एक दूसरे पर गुब्बारे फोड़ते हैं!" फिर से सवाल को हंस के उड़ाया था मैंने! शायद आज तुम अपने बच्चों के साथ बारिश में खेलते हुए मेरी बात याद करते होगे और सोचते होगे...कितना सही कहती थी मैं! और मैं तुम्हारा सवाल याद करके सोचती हूँ...तुम ही सही थे!
आज ये सवाल मैं पूछना चाहती हूँ..मगर किससे पूछूं ?
बारिश की बूंदों के साथ तुम घुलते जाते हो मेरे अन्दर! शायद यही वजह होती है मेरे बारिश में भीगने की और कभी कभी नहीं भीगने की! बारिश मुझे बहुत अच्छी लगती है...ये मुझे खुद से मिलाती है , तुमसे मिलाती है!तुम रोज़ नहीं आ सकते इसलिए बारिश.. तुम रोज़ आ जाया करो!
बारिश तेज़ हो रही है...और तेज़! और तुम याद आ रहे हो ..तेज़ और तेज़! कभी ऐसी ही किसी बरसात में तुम्हे जीते हुए एक नज़्म लिखी थी...
जेहन से जाती ही नहीं
वो भीगी शाम
छलक उठी थी
अश्कों में डूबकर
" कोई नहीं रोता... बच्चे बादलों में एक दूसरे पर गुब्बारे फोड़ते हैं!" फिर से सवाल को हंस के उड़ाया था मैंने! शायद आज तुम अपने बच्चों के साथ बारिश में खेलते हुए मेरी बात याद करते होगे और सोचते होगे...कितना सही कहती थी मैं! और मैं तुम्हारा सवाल याद करके सोचती हूँ...तुम ही सही थे!
आज ये सवाल मैं पूछना चाहती हूँ..मगर किससे पूछूं ?
बारिश की बूंदों के साथ तुम घुलते जाते हो मेरे अन्दर! शायद यही वजह होती है मेरे बारिश में भीगने की और कभी कभी नहीं भीगने की! बारिश मुझे बहुत अच्छी लगती है...ये मुझे खुद से मिलाती है , तुमसे मिलाती है!तुम रोज़ नहीं आ सकते इसलिए बारिश.. तुम रोज़ आ जाया करो!
बारिश तेज़ हो रही है...और तेज़! और तुम याद आ रहे हो ..तेज़ और तेज़! कभी ऐसी ही किसी बरसात में तुम्हे जीते हुए एक नज़्म लिखी थी...
जेहन से जाती ही नहीं
वो भीगी शाम
छलक उठी थी
अश्कों में डूबकर
याद है मुझे तुम्हारी ठंडी छुअन
जिसके एहसास से मैं
आज भी सिहर उठती हूँ
जिसके एहसास से मैं
आज भी सिहर उठती हूँ
उफ़,तुम्हारी वो सिसकियाँ
सीधे दिल में उतर रही थीं
पूरे पहर खामोश थे हम
और शाम गीली हों रही थी
अरसा बीत गया...
पर माज़ी की वो भीगी शाम
खिंची चली आई है
मेरे आज का सिरा पकड़कर
यूं तो जिस्म सूखा है पर
रूह तो आज तक भीगी हुई है
शायद आखिरी मुलाकातें ऐसी ही होती हैं....
41 comments:
जब बारिश आती है तो कुछ काटता है..! न मालूम क्या... शायद आंसू ही पैने हो जाते हों!
सच पल्लवी बहुत खूब लिखा है ,बारिश तो बहाना होती है ....और हर मौसम का हर दौर में मतलब बदल जाता है ....वही बूंदे मीठे से खारी हो जाती है
आज कुछ काम नहीं है करने को, लेकिन सबसे ज्यादा आज ही ये काम किया तुम्हें सोचा और थकान ऐसी आई है जितना दिहाड़ी मजदूर को भी दिन भर पत्थर ढोने में नहीं आती होगी.
जेहन से जाती ही नहीं
वो भीगी शाम
छलक उठी थी
अश्कों में डूबकर
याद है मुझे तुम्हारी ठंडी छुअन
जिसके एहसास से मैं
आज भी सिहर उठती हूँ hr shab baarsh ki bunnnnnnndh ki trahe paak hai bahut khubsrat
बीता हुआ वक्त बहुत तेज़ी से जिस्म और दिमाग में सरगोशी करता है! ---- यही होता है...और जीने का सबब मिल जाता है...
रूह भीगी है।
शायद आखिरी मुलाकातें ऐसी ही होती हैं....
हम्म!! बहुत भावपूर्ण लेखन....
बारिश और पूरी आप हैं..तुम्हारी हिचकियों की वजह की वजह का नाम भी में जानती थी. देर तक जेहन को सुहाने वाली.
बहुत ही भाव पुर्ण रचना, धन्य्वाद
मगर मेरी हिचकियों की वजह तुम हो.. तुम ये कभी जान न पाओगे !
जिंदगी में अगर तुम तकलीफ में होगी तो ये बात मुझे किसी और से पता नहीं चलना चाहिए
रूह तो आज तक भीगी हुई है
आख़िरी मुलाक़ात जैसा कुछ होता भी है क्या ???
तथाकथित आख़िरी मुलाकातों के बाद तो हम ज्यादा मिलने लगते हैं ... सपनों में ,नीदों में और कभी-२ तो हल्की सी झपकी में भी...
ग़ज़लों से प्यार हो जानी की एक वजह मुझे हमेशा से ये भी लगी की "दर्द मीठा सा लगने लगता है , उस जाने वाले का किसी वक़्त में अपनी जिन्दगी में शामिल होना ही सूकून देने लगता है .. और आपके भीतर के इंसान को बहार के इंसान से मुलाक़ात करने का प्लेटफार्म मिल जाता है "
आपकी इस पोस्ट को "ग़ज़ल" से कम न कह पाऊंगा मैं ....
डूब के लिखना इसी को कहते हैं न!
आखिरी मुलाकात और उसकी यादें उम्र भर टीसती हैं।
जब बारिश आती है तो कुछ काटता है..! न मालूम क्या... शायद आंसू ही पैने हो जाते हों!
bahut dinon se aisi koi baat nahi suni thee.... waah
ये कैसी कशिश है और कैसी अनुभूति -प्रवाहमयी लेखनी का मखमली अहसास !
मांजी =माजी ?
कुछ....
अच्छा है
जो लफ़्ज़ों में बयान नहीं हो पा रहा है
बस ,,,
अभिवादन कह रहा हूँ .
यूं तो जिस्म सूखा है पर
रूह तो आज तक भीगी हुई है..
nishabd....
यूं तो जिस्म सूखा है पर
रूह तो आज तक भीगी हुई है ..
एक कशिश सी महसूस होती है पढ़ने के बाद .. डोर तक सनाते में देखने को मन करता है ...
Finishinglines are really touching.
Good one .
Bahut khoobsurat likha hai ...!
lag raha hai.....dil ki kisi purani potali se nikla taja ahsas ho.
इन गुज़रे सालों का एक आवारा लम्हा मशीन से इंसान बना जाता है!
और खुद से पहचान करा जाता है...
सुन्दर लिखा है..
बहुत सुंदर लिखा है पल्लवी! शायद बारिश मन को भीगने को ही आती है.
घुघूती बासूती
बारिश मुझे बहुत अच्छी लगती है...ये मुझे खुद से मिलाती है
, तुमसे मिलाती
bahut sundar .
शायद आखिरी मुलाकातें ऐसी ही होती हैं....
ये मुलाकातें आखिरी नहीं हुआ करती पल्लवी जी ...
आखिरी दम तक यही तो साथ रहती हैं ....
सरमाया बन कर .....
bahut khoob. suunadar abhivayakti
बारिश में भीगी हुई रचना
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण
bhut sundar rachna mam
बहुत सुन्दर..हर पंक्ति ख़ूबसूरत..
बहुत खूबसूरत .... दिलकश...
wow..so good..
सॉरी पिछला कमेन्ट गलती से पोस्ट हुआ था ...
इसे स्वीकार कीजिये .
पता नहीं इस बारिश का क्या रिश्ता है जेहन के कोने में बैठे हुए मरे हुए जिन्दा यादो को छेड़ता रहती है .. ख्याल बूंदे पर सवार होकर तैरते है .
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
रचना पसन्द आयी। व्यवहारिकता की कोई काट नहीं है शायद!
अरसा बीत गया...
पर माज़ी की वो भीगी शाम
खिंची चली आई है
मेरे आज का सिरा पकड़कर
यूं तो जिस्म सूखा है पर
रूह तो आज तक भीगी हुई है
शायद आखिरी मुलाकातें ऐसी ही होती हैं..
बेहतरीन
इसका नाम ,रूह से मुलाकात , भी हो सकता है.
pahli baar pada aap ko...
sabhi rachnaaye laajbaab hai...
jnm din mubark ho ....akhtar khan akela kota rajsthan
पल्लवी जी,
आरज़ू चाँद सी निखर जाए,
जिंदगी रौशनी से भर जाए,
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की,
जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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ब्लॉग समीक्षा की 32वीं कड़ी..
पैसे बरसाने वाला भूत...
One can easily understand ,how much load now-a-days police department have ? they even can't check their account on birthday.Happy (belated) birthday.
यह लेख /नज़्म इसीलिए सफल है क्योंकि भाषा शैली में एक अनौपचारिकता है जिसका प्रयोग निजता के वर्णन में किया गया है ,और यह अनौपचारिकता पाठक को उस बारिश में भिगा देती है |हां एक बात ज़रूर है कि बीच बीच में उर्दू के प्रयोग में वैसा महसूस नहीं होता ,जैसा कि पात्रों के प्रश्न उत्तर के समय लगता है|
shaayad aakhiri mulaakaaten aisi hi hoti hain. chot pahunchaane waali najm. itni khoobsurat najm likhne ke lie shukriya. chot pahunchaane waali najm. itni khoobsurat najm likhne ke lie shukriya
बहुत सुंदर लिखा है पल्लवी जी
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