मैं तुम्हारे साथ सुरों से बंधी हुई हूँ! न जाने कौन से प्रहर में कौन सा कोमल सुर आकर हौले से मेरे तार तुमसे बाँध गया! शायद उस दिन जब तुम भैरव के आलाप के साथ सूरज को जगा रहे थे तभी रिषभ आकर मेरे दुपट्टे के सितारों में उलझ गया होगा या फिर उस दिन जब मैं सांझ की बेला में घंटियाँ टनटनाती धूल के बादल उड़ाती गायों को यमन की पकड़ समझा रही थी तब शायद निषाद आवारागर्दी करता हुआ तुम्हारे काँधे पर जाकर झूल गय
ा होगा!
तुमने एक बार कहा था कि " आसमान से सुर बरसते हैं... बस उसे सुनने के लिए चेहरे पर नहीं दिल में कान होना चाहिए " फिर जिस दिन तुमने रात को छत की मुंडेर पर बागेश्री के सुरों को हौले से उड़ा रहे थे तब मेरे दिल में भी कान उग आये थे! और दो आँखें भी जिनसे मैंने पूरी श्रष्टि के कोने कोने से सुरों को बहकर तुम्हारे पास आकर पालथी लगाकर बैठते देखा था!
और तुम्हे याद है वो रात जब आखिरी पहर चाँद ने हमसे सोहनी की फरमाइश की थी और बादलों पर ठुड्डी टिकाये चांद तक हमने एक तराना पहुँचाया था ..तब तुम्हारे साथ मींड लेते हुए मैंने मेरी आत्मा को तुम्हारी आत्मा में घुलते देखा था! मेरी आँख की कोर से निकले आंसू को गंधार ने संभाला था और एक सुर भीगकर हवा में गुम हो गया था!
सुरों की माला हमने एक दूसरे के गले में पहनायी है! षडज से निषाद तक हमारी साँसें एक लय में गुंथी हुई चल रही हैं! मुझे नहीं जाना है ताजमहल, न ही देखना है इजिप्ट के पिरामिड कि मैंने तुम्हारे साथ विश्व के सात आश्चर्यों की यात्रा कर ली है!
तुमने एक बार कहा था कि " आसमान से सुर बरसते हैं... बस उसे सुनने के लिए चेहरे पर नहीं दिल में कान होना चाहिए " फिर जिस दिन तुमने रात को छत की मुंडेर पर बागेश्री के सुरों को हौले से उड़ा रहे थे तब मेरे दिल में भी कान उग आये थे! और दो आँखें भी जिनसे मैंने पूरी श्रष्टि के कोने कोने से सुरों को बहकर तुम्हारे पास आकर पालथी लगाकर बैठते देखा था!
और तुम्हे याद है वो रात जब आखिरी पहर चाँद ने हमसे सोहनी की फरमाइश की थी और बादलों पर ठुड्डी टिकाये चांद तक हमने एक तराना पहुँचाया था ..तब तुम्हारे साथ मींड लेते हुए मैंने मेरी आत्मा को तुम्हारी आत्मा में घुलते देखा था! मेरी आँख की कोर से निकले आंसू को गंधार ने संभाला था और एक सुर भीगकर हवा में गुम हो गया था!
सुरों की माला हमने एक दूसरे के गले में पहनायी है! षडज से निषाद तक हमारी साँसें एक लय में गुंथी हुई चल रही हैं! मुझे नहीं जाना है ताजमहल, न ही देखना है इजिप्ट के पिरामिड कि मैंने तुम्हारे साथ विश्व के सात आश्चर्यों की यात्रा कर ली है!
13 comments:
उम्दा गद्य कविता सी पंक्तियाँ...
और, सात आश्चर्य क्या, कभी कभी तो समूचे ब्रह्मांड की यात्रा पूर्णता का सा भान होता है..
दिल को छूती हुयी ... संगीत के शाश्वत रंगों और रागों की ह्रदय से सजी खूबसूरत पोस्ट...
गहरे प्रभाव डालती हुयी पंक्तियाँ..
well written .congr8s JOIN THIS-WORLD WOMEN BLOGGERS ASSOCIATION [REAL EMPOWERMENT OF WOMAN
निषाद , भैरव , सोहनी के साथ सुरों की मधुरिम यात्रा !
"मुझे नहीं जाना है ताजमहल, न ही देखना है इजिप्ट के पिरामिड कि मैंने तुम्हारे साथ विश्व के सात आश्चर्यों की यात्रा कर ली है!"
अतिसुन्दर,,,अच्छा लगा पढकर...|
मेरे ब्लॉग पर भी पधारे-
"मन के कोने से..."
आभार..!
पल्लवी, जो आज सोचती हो वही कल सोचोगी इस बात की कोई गारंटी नहीं है. आज लगता है कि कुछ नहीं देखना सब यहीं सिमट गया है, कल छटपटाहट हो सकती है कहीं न जा पाने की और तब तुम्हारे ही कहे हुए शब्द दोहराए जाएँगे कि तुमने यह कहा था या वह. सो जो कहो सोच कर कहो.
घुघूतीबासूती
जियो गुरु
दिल को छू हर एक पंक्ति....
romantic and melodious...
anu
Sureela post :)
खूबसूरत सुरों का समागम ....
पल्लवी मैम... भई वाह... जवाब नहीं आपका.. !!
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