Wednesday, November 5, 2014

और फिर पप्पू कवि बन गए ...

पप्पू जब बेरोजगारी से उकता गया ( वैसे नहीं उकताया कि काम करने को मरा जा रहा हो , बल्कि पैसों की जुगाड़ न होने से उकताया था ) तो उसने नाना प्रकार के कामों में हाथ डालना चाहा मगर पप्पू को देखते ही समस्त कार्य स्वयं पतली गली से निकल भागते थे ! कोई भी भला काम पप्पू के मुँह नहीं लगना चाहता था ! पप्पू भी सभी कामों से नफरत ही करता था ! काम भी कोई करने की चीज़ होते हैं ! जो जीवन में कुछ नहीं कर पाते , वही लोग काम करते हैं ! अगर साला पैसों के लिए काम का मुंह न देखना होता तो पप्पू थूकता है दुनिया के सारे कामों पर ! खाने ,पहनने का इंतजाम तो पिताजी गाली बक के भी कर देंगे मगर गुटका , कलकतिया पान और मोबाइल रीचार्ज का खर्चा तो दुनिया का कोई बाप न उठाएगा और फिर पप्पू के पिता जी तो थोड़े ज्यादा बेरहम बाप थे !

मेहनत के काम पप्पू से होए नहीं ..कि पप्पू की मांस पेशियाँ " नागमती विरह " वाली नागमती को भी लज्जित करके छोड़ दें ! दिमाग वाले काम पप्पू से होयें नहीं ..कि आराम कर करके पप्पू का दिमाग विकलांग कोटे में शुमार होने लग गया था तो अब तो भैया कोई चले नहीं ! अब पप्पू करे तो करे क्या ?

ऐसा कोई काम जिसमे न तो मेहनत लगे और न दिमाग ... पप्पू के दिमाग ने अपनी टूटी टांग से खलबलाना शुरू किया और पप्पू ने जगह जगह ऐसे कार्य की तलाश शुरू कर दी ! पप्पू ने फेसबुक के रोज़ चक्कर मारने शुरू किये कि शायद कोई युक्ति सूझ जाए कि यहाँ एक से एक बल्लम तफरी करने आते हैं ! इन फेसबुकी बल्लमों ने पप्पू को जीवन की एक नयी राह दिखाई !आखिर पप्पू ने दुनिया के करोड़ों सम्मान जनक कार्यों में से एक काम के गले में जयमाला डाल दी !

पप्पू नयी विधा की कवितायें लिखने लगा ..और ऐसी वैसी नहीं साहब , क्या तो भी जालिम कवितायें रचीं पप्पू ने ! पप्पू एकलव्य बनकर कुछ महारथियों से चुपचाप अतुकांत जो दरअसल "बेतुकांत" थीं , कविताओं की ट्रेनिंग लेने लगा ! पप्पू ने पहले इन आधुनिक कविताओं पर अत्याधुनिक टिप्पणी करनी शुरू कीं ! जब उसने देखा कि उसकी टिप्पणियों पर कविता से ज्यादा लाइक आ रहे हैं तो उसके हौसलों को पंख लग गए ! उसने शीघ्र ही एक घंटे में पचास कविताओं की बुलेट स्पीड पकड़ ली ! पप्पू कविता रचने को तप कर्म से कम नहीं समझता था ! पूर्ण विधि विधान से कविता करने बैठता था ! सबसे पहले पादुकाएं दरवाजे पर उतारता था , पादुकाओं के समीप ही दिमाग भी उतारकर रख देता था ! जिस चीज़ की आवश्यकता न हो उसे दूर ही रखना भला है ! फिर पूरे आराम से पलंग पर लेटकर कंप्यूटर गोदी में रखकर चने मुरमुरे खाते हुए लेखन साधना करता था ! कंप्यूटर पप्पू के सो जाने के बाद उसकी चरण वंदना करता !

फिर वो चमत्कार भी घटित हुआ जो मानव सभ्यता के इतिहास में कभी नहीं हुआ था !रात को पप्पू के सो जाने के बाद उसकी लिखी कविताओं के मन में वह प्रश्न उत्पन्न होने लगा जो आज तक सिर्फ चिंतनशील मानवों को ही मथे रहता था और वो प्रश्न था " मैं कौन हूँ और मेरे जन्मने का क्या उद्देश्य है ?" इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए बेचैन कवितायें आपस में सारी रात विमर्श करतीं ...एक दूसरे से खुद का अर्थ समझतीं ! नाकाम होने पर अपनी अपनी लाइनों में घुसकर खर्राटे भरने लगतीं और सारी मगजमारी का काम पाठकों पर छोड़ देतीं !

जल्द ही पप्पू फेसबुक की सेलिब्रिटी बन गया ... उसकी एक एक कविता पर पाठक मक्खियों की तरह झूम जाते ! वो अपनी तीन लाइन की कविता से लोगों के दिमाग का दही करने में सक्षम था ,पांच लाइन की कविताओं से उन्हें उनकी बुद्धि की औकात दिखाने की काबिलियत रखता था और सोनेट से दुनिया भर के कवियों को हीनभावना से ग्रसित करने की कूबत भी रखता था ! बुद्धिहीन ये समझ कर कि ज़रूर कोई गहरी बात लिखी है , वाह वाह करके चलते बनते थे ! वे उसकी गहराई में जाने लायक अपनी बुद्धि का सामर्थ्य नहीं पाते थे इसलिए उनका टाइम भी खोटी नहीं होता था सिर्फ लाइक खोटी करने से काम बन जाता था !सबसे ज्यादा मरण बुद्धिजीवियों का था , अगर न समझें तो मूर्ख साबित हों और समझना तो खैर इस दुनिया के पांच सौ आई क्यू वाले इंसान के बस के भी बाहर था !तो होता यूं कि बुद्धिजीवी उस आधुनिक कविता का अपने हिसाब से अटरम शटरम अर्थ निकालते थे ! इस प्रक्रिया में वे समय , लाइक और कमेन्ट तीनों चीज़ें खोटी करते थे !

अल्प समय में ही पप्पू की कवितायें पत्रिकाओं में छपने लगीं , पप्पू स्टार बन गया ! बड़े बड़े लेखक लेखिकाएं जिन्होंने कलम घिसने में अपनी जवानी और बुढापा दोनों गर्क कर दिया था , बर्न वार्ड में भरती हो गए ! पप्पू पुरस्कार जीतने लग गया ! पप्पू कविताओं की समीक्षा करने लग गया ! पप्पू ने एक महान कार्य और कर दिया था जिसके लिए सदियाँ सदियों तक उसका यशोगान करा करेंगी ! पप्पू ने रोजगार के लिए बुद्धि और परिश्रम पर निर्भरता का अंत किया था !

हम भी बुद्धिजीवी ही मानते हैं खुद को सो पप्पू को फ़ॉलो करते हैं और बाकायदा कमेन्ट भी करते हैं !अभी अभी पप्पू की एक कविता पर कमेन्ट चिपका कर आये हैं ! कविता और कमेन्ट इस प्रकार हैं !

पप्पू की कविता ---

कौन जीता है यूं
जैसे जीता है वो
कौन मरता है यूं
जैसे मरता है वो

इस जीने मरने के बीच
जीने मरने का भेद स्वयं चकित है...

हमारा कमेन्ट ...

"जीने मरने के बीच जो " वो " है ..वही स्रष्टि है , वही रचियता है और वही जीवन है और वही साक्षात म्रत्यु भी "

हमें उम्मीद है .जैसे पप्पू के दिन फिरे , हमारे भी अवश्य फिरेंगे ! हम भी पादुकाओं के समीप दिमाग उतारकर कमेन्ट करने लगे हैं और अभी अभी हमने गिने ! हमारे कमेन्ट पर डेढ़ सौ लाइक्स आ गए हैं !

अभी अभी पप्पू ने फेसबुक पर एलान किया है कि वह शीघ्र ही कहानियां और समीक्षाएं लिखने के काम में भी उतरने वाला है !
.........( पप्पू पंती )

8 comments:

Rajendra kumar said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.11.2014) को "पैगाम सद्भाव का" (चर्चा अंक-1790)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

Asha Lata Saxena said...

वैसे तो दिमाग कोबाहर रख दिया जाए तो कोई कार्य नहीं हो सकता पर पप्पू का केस कुछ अलग सा है पर यदि इस तरह भी कोई कार्य किया जा सकता है तो बुरा क्या है |भगवान सब का सोच पप्पू जैसा करदे कम से कम कविता का सृजन तो होगा |

रश्मि शर्मा said...

Bahut badhiya..ise fb me bhi padha hai shyad

mohan intzaar said...

जी थोड़ा डरा डरा सा हूँ टिप्पणी देने से हिचकिचा रहा हूँ कहीं पप्पू करार न दिया जाऊँ....बहुत सुंदर वर्णन... मंगल कामनाएँ

रवि रतलामी said...

पप्पूपंती अचानक छः महीने के लिए ग़ायब क्यों हो जाती है भई? अबकी बार थाने में रोज हाजिरी लगानी होगी नहीं तो एसटीएफ में एफआईआर दर्ज कर दी जावेगी :)

आज के तथाकथित कवि और उनकी उतनी ही तथाकथित कविताओं पर मारक व्यंग्य. :)

वाणी गीत said...

पप्पू जी को काम तो मिला !

दिगम्बर नासवा said...

पप्पू की मस्त कहानी है ... पर ये किसकी जुबानी है ...
पप्पू की तो नहीं लगती ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत सुन्दर...उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले