Thursday, August 7, 2008

किस्सा -ए -होस्टल ( भाग २)

पिछली बार वो तीन दिन होस्टल में और इस बार का अनुभव मात्र तीन घंटे का था...दिल्ली के एक गर्ल्स होस्टल का! साल भर पहले सबसे छोटी बहन मीडिया का कोर्स करने के बाद दिल्ली में नौकरी कर रही थी! और वहीं के एक गर्ल्स होस्टल में रह रही थी! उसी दौरान दिल्ली किसी काम से जाना हुआ!काम सुबह से शाम तक का ही थी...रात को भोपाल के ट्रेन थी! इसलिए शाम के तीन घंटे मैंने अपनी बहन के साथ उसके होस्टल में बिताए!

उसके कक्ष में उसके अलावा तीन लडकियां और थीं ..जो की लगभग २१-२२ साल की होंगी और सभी किसी न किसी प्राइवेट संस्थान में कार्यरत थीं!मैं वहाँ पहुंची...दीदी दीदी कहकर तीनों ने खूब सम्मान दिया! थोडी देर तो बेचारी मेरी उपस्थिति का ख़याल करते हुए सोशल और घरेलू इशूस पर बातें करती रहीं! लेकिन आधे घंटे में ही ये इशूस गायब हो गए और अब शुरू हुईं असली इशूस पर चर्चा! हम अपनी हंसी को छुपाने के लिए एक पत्रिका में मुंह घुसाए रहे!
पहली- पता है..आज पूरे १५ दिन हो गए ऑफिस जाते जाते पर अभी तक एक भी ड्रेस रिपीट नहीं की! और अभी एक हफ्ता तो और निकल जायेगा!
दूसरी- तू 15 दिन के बात कर रही है, मुझे एक महीना हो गया!
तीसरी- चलो छोडो ये बात...इस सन्डे को मूवी देखने चलें!
दूसरी- इसके पास ज्यादा ड्रेस नहीं है इसलिए टॉपिक बदल रही है!
सब की सब खी खी करके हंस पड़ीं! तीसरी का मुंह उतर गया! कुछ मिनिटों तक खामोश रही! शायद मुँहतोड़ जवाब देने की तैयारी कर रही थी! उठकर गयी और अलमारी में से एक पैकेट उठाकर लायी! उसके अन्दर एक पिंक कलर का टेडी बीयर था! पहली और दूसरी के मुंह से आह निकल गयी!
" ए दिखा न...कब लिया ,कहाँ से लिया"
" हर्षित ने दिया" तीसरी ने गर्व से इठलाते हुए कहा !आगे बोली.."तुझे भी तो विकी ने एक टेडी बीयर दिया था न..जरा दिखा"
दूसरी थोडा सकपकाई " रहने दे न...चल छोड़"
"अरे नहीं प्लीज़ दिखा न...हम तो सब दिखा देते हैं एक तू है की भाव खाती है" तीसरी इतनी जल्दी पीछा नहीं छोड़ने वाली थी!
पहली ने भी तीसरी का साथ देते हुए दूसरी पर जोर डाला!
दूसरी मन मसोस कर उठी और अपनी अलमारी में से एक भूरे रंग का टेडी बीयर उठा लायी! जो की साइज़ में पिंक टेडी बीयर का चौथाई था! और सस्ता भी दिख रहा था! तीसरी के चेहरे पर कटाक्ष भरी मुस्कराहट आ गयी!
पहली बोली " कुछ भी हो..हर्षित की बात ही अलग है"
" विकी भी मुझे इतना ही बड़ा टैडी बियर दे रहा था पर मैंने तो कह दिया..न रे बाबा..छोटा दो! मैं कहाँ होस्टल में इतना बड़ा रखती फिरूंगी!" दूसरी ने सफाई देने की कोशिश की जिसे पहली और तीसरी ने अपनी व्यंग भरी मुस्कराहट से असफल कर दिया!

आगे करीब उनकी एक घंटे की बातों से हमें पता चला कि तीनों के एक एक अदद बॉय फ्रेंड हैं और उनमे से दो के पहले भी एक एक अदद बॉय फ्रेंड रह चुके हैं! तीनों होस्टल में खाना बनाने वाले लड़के की स्मार्ट नेस पर फ़िदा हैं और एक लडकी को अपनी खूबसूरती पर खासा घमंड है जिसका बयान वो कुछ इन शब्दों में करती है! " सचमुच यार सुन्दर होना भी एक मुसीबत है...रोज एक नया लड़का पीछे पड़ जाता है.. इससे तो तुम लोग ज्यादा सुखी हो!जब चाहे कहीं भी जा सकती हो कोई टेंशन ही नहीं!" पता नहीं चला इसने अपनी सुन्दरता की तारीफ़ की या बाकी दोनों की बुराई करी!
दोनों लडकियां सुनकर कुढ़ जाती हैं, उनमे से एक बोलती है " ऐसा नहीं है वो तो हम लोग बोल्ड हैं..सही कर देते हैं पीछे आने वालों को! तेरे जैसे गेले बने रहे तो हो गया काम"
अब हिसाब बराबर हो गया है! बातचीत के दौरान ये हिसाब बराबर करने का सिलसिला लगातार चलता रहता है!
हमारी ट्रेन के आने में डेढ़ घंटा बाकी है....इस दौरान एक और दिलचस्प वाकया घट गया!
चटपटी बातों का दौर जारी ही था तभी पहली के बॉय फ्रेंड गौरव का फोन आ गया! लपक कर फोन उठाया...बात शुरू हुई जिसमे गौरव ने कहा कि वो होस्टल के सामने वाली एस.टी.डी. पर इंतज़ार कर रहा है! इतना सुनते ही पहली के जिस्म में ग़ज़ब की फुर्ती आ गयी! जब से झुतरी बनी बैठी थी पलंग पर! झटके से उठी और नहाने चल दी! दूसरी बोली " अब नहा क्यों रही है..ऐसे ही चली जा न..बेचारा नीचे ठण्ड में इंतज़ार कर रहा है" ( आपको बता दें कि ये घटना जनवरी की है)"
वो कहे का बेचारा...बेचारी तो मैं जो इतनी ठण्ड में ठंडे पानी से सर धो रही हूँ" कहकर पहली स्नान करने चल दी! करीब बीस मिनिट बाद गीले बालों में वापस आई! इस बीच गौरव का फोन लगातार बजता रहा! जिसे किसी ने नही उठाया! अब शुरू हुई कपडों की कवायद! दस मिनिट की मशक्कत और सहेलियों के मार्गदर्शन के बाद एक स्लीवलेस ड्रेस सिलेक्ट हुई! इसी बीच दूसरी ने कह दिया " भला हो गौरव का...आज नहा तो ली वरना दो दिन से तो बाथरूम का मुंह नहीं देखा था"तीसरी हस दी...पहली सजने में व्यस्त थी इसलिए लोड नहीं लिया! दूसरी बोली " बाल तो पोछ ले"
" नहीं..गीले बाल ज्यादा अच्छे लगते हैं , गौरव को वेट लुक ही ज्यादा अच्छा लगता है!" इतना कहकर पहली नीचे जाने लगी! इतने में दूसरी ने फिर चुटकी ली " अरे...कोई माचिस तो लेती जा..गौरव तो अब तक जम गया होगा"
पहली ने पीछे मुड़कर देखा और इतराती हुई चल दी! बाकी दोनों जोर से ठहाका लगाकर हँस दी!

अब हमारी ट्रेन का टाइम हो गया था...पत्रिका से मुंह हटाया और चल दिए!ट्रेन को भी उसी दिन टाइम पर आना था...काश थोडा लेट हो गयी होती तो इसका क्या बिगड़ जाता!गौरव से मुलाक़ात का किस्सा नहीं जान पाए, इसका अफ़सोस रहा!
तो ये था होस्टल का दूसरा अनुभव! इसके बाद हम एक साल और पुलिस अकादमी के होस्टल में रहे! वहाँ के काफी किस्से हैं जो एक पोस्ट में नहीं समा सकते इसलिए फिर कभी किश्तों में बताएँगे....नमस्ते!

30 comments:

अंगूठा छाप said...

" सचमुच यार सुन्दर होना भी एक मुसीबत है...रोज एक नया लड़का पीछे पड़ जाता है.. इससे तो तुम लोग ज्यादा सुखी हो!जब चाहे कहीं भी जा सकती हो कोई टेंशन ही नहीं!"



really great pallavi...



tum wakai kamaal kar rahi ho...

keep it up!!

बालकिशन said...

वाह ये तीन घंटे तो उन तीन दिनों से ज्यादा रोचक निकले.
बहुत बढ़िया.

आनंद said...

बढ़ि‍या वर्णन...

- आनंद

Udan Tashtari said...

जब से झुतरी बनी बैठी थी पलंग पर...हा हा!! बहुत मजेदार!!

-बढ़िया चित्रण किया है.

Prabhakar Pandey said...

सुंदरतम चित्रण। कमाल का लेखन।

डॉ .अनुराग said...

दो किस्से याद आये
...हमारे एक दोस्त की जाकेट थी बड़ी स्टाइलिश सी ,सूरत में ठंडी कम पड़ती थी ,न के बराबर फ़िर भी हम सब लंबे ,पतले मोटे ,उसी जाकेट को पहनकर अपनी अपनी डेट पर जाते थे ..एक दिन उसकी girlfriend ने पूछा ...सच्ची सच्ची बतायो ये जकेट किसकी है ?(गिर्ल्स हॉस्टल तो दो ही थे आख़िर लड़के उसे पहनकर वही से पिक उप करने जाते थे )...
एक कैसेट बनाई गई अपने आप अलग अलग गानों को चूस करके बीच में अमिताभ की आवाज में कविता....इत्ती पोपुलर हुई की उसकी कई कॉपी बनी.....हर लड़की के कमरे में एक....

दिनेशराय द्विवेदी said...

निष्कर्षः मोहब्बत में आदमी को कुल्फी भी होना पड़ता है।

Abhishek Ojha said...

ye hua na mast anubhav... ab jaake real hostel lag raha hai :-)

अबरार अहमद said...

कमाल का अनुभव है। हां एक बात तो जरूर कहना चाहूंगा कि हास्टल लाइफ के अपने मजे हैं। अब तक हमे गल्स हास्टल का अनुभव नहीं था। आपके माध्यम से थोडा ही सही मगर हो गया।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहत सच्चा ब्योरा दिया आपने
पल्लवी जी :)
- लावण्या

रंजू भाटिया said...

पहले भी लिखा था होस्टल के अनुभव पढ़ कर लगता है कि कुछ मिस कर दिया जिंदगी में :) अच्छा लगा इसको पढ़ना

Pragya said...

"जब से झुतरी बनी बैठी थी पलंग पर! झटके से उठी और नहाने चल दी!"
कहाँ से लाती हो मजेदार शब्द???
बहुत बढ़िया येक्सपिरीअंस रहा!! अब आगे का इन्तेज़ार है..

vipinkizindagi said...

रोचक वर्णन...बढ़िया चित्रण........

स्वाति said...

atyayant hi sajeev chitran hai.esa lagta hai ki amne samne baith kar bat ho rahi ho. ese padh kar saraswati shishu mandir me padhai ke doran bitae gaye pal yad aa gaye.

Unknown said...

Pallaviji,
Saw yr work and interacted with yr feelings as peotess and writer.Good and simple work which touches directly yr feelings.

Keep it up.

With Best Wishes.

kamalnayan

ललितमोहन त्रिवेदी said...

रोचकता का प्रवाह इतना अच्छा है कि एक बार शुरू करने के बाद पूरी पढ़े बिना नहीं रहा जाता ,गज़ब का observationहै ! लगता है वहीं होस्टल में किसी कोने में बैठा देख रहा हूँ !भाषा शब्दों को चित्र में बदल देती है !
यहीं पर लेखन सार्थक होता है !अनुपम !

Manish Kumar said...

बहुत मज़ेदार रही तीन मित्रों की ये आपसी बातचीत! आपने परोसा भी बड़े सलीके से है।

नीरज गोस्वामी said...

रोचक वर्णन...आप की शब्दों पर पकड़ बहुत जबरदस्त है...प्रेम की गर्मी के सामने भला सर्दी क्या करेगी..???
नीरज

राज भाटिय़ा said...

वाह लड्किया भी कम तो नही, लडको से ? हम उन्हे मासुम समझते हे,ओर वो हमी को उल्लु बनाती हे,
इसी बीच दूसरी ने कह दिया " भला हो गौरव का...आज नहा तो ली वरना दो दिन से तो बाथरूम का मुंह नहीं देखा था"
धन्यवाद एक सच्चा ओर रोचक किस्सा सुनाया, धन्यवाद

रंजन गोरखपुरी said...

बहुत रोचक वर्णन है! पढ के गर्ल्स हास्टल जाने की तमन्ना पूरी हो गई!! :)

Unknown said...

बहुत दिलचस्प. एक चुटकुला याद आ गया,
एक स्कूल छात्रा ने अपनी सहेली से पुछा, 'यह लड़के अकेले में क्या बात करते हैं?
सहेली ने जवाब दिया, 'वही जो हम करते हैं'.
'हाय राम, ऐसे होते हैं यह लड़के?'

राकेश जैन said...

aapka anubhav bahut lazmi hai.... esa hota hai aksar, main to kahunga boyz bhi kam nahi hain aaj kal in sab baton ko lekar..

कुश said...

किस्सा ए होस्टल तो हमेशा ही लाजवाब होते है..
आपकी पोस्ट में एक मज़ेदार बात होती है.. नए नये शब्द मिल जाती है.. "झुतरी" शब्द बढ़िया लगा.. हालाँकि इस बार भी इसका मतलब नही पता..

Sanjeet Tripathi said...

इंट्रेस्टिंग।
बढ़िया प्रवाहपूर्ण लिखा है आपने।
बात कहने का अंदाज़ बढ़िया है आपका।
रही बात गर्ल्स हॉस्टल की तो आह-वाह ;)

admin said...

हॉस्टल लाइफ का जवाब नहीं। वह ऐसे अनुभव होते हैं, जिनकी कोई तुलना नहीं। मैंने भी एक माह सागर विश्वविद्यालय के हास्टल में गुजारे हैं, मैं आपके मन की भावनाओं को समझ सकता हूं।

समय चक्र said...

सच्चा ब्योरा ...इसको.. पढ़ना अच्छा लगा,,,,बहुत बढ़िया......

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

इलाहाबाद के गर्ल्स हॉस्‍टेल (W.H.) से छन कर कुछ बातें हमारे हॉस्टेल तक भी आ जाती थीं। आपका वर्णन उनकी सत्यता पर मुहर लगा रहा है।...सच में प्रकृति ने हमारे बीच मानसिक स्तर पर बहुत सी समानताएं दी हैं।
एक और सुन्दर पोस्ट के लिए हमारी बधाई स्वीकारें...

Ila's world, in and out said...

हा हा हा,मज़ा आया पढ कर.आपकी लेखन शैली बहुत सहज है.अब बाकी का कब पढवायेंगी?

شہروز said...

in dino shayad aapki vyasta badhi hui hai atirikt,
naya kuch padhne ko nahin mila.
baqi aur cheezon ki tarah ye post bhi khoob hai,
parsayi ji, aur bhi kai naam hain, padh jayen jo bhi mile.

Om Sapra said...

achhi katha shalli hai, bhasha bhi prabhavshali hai.
badhai-
shubhkamnayen-
ishwar kare aap aur achha likhte rahen-
-om sapra, delhi-9