एक मुट्ठी धूप, चन्द कतरे रात के
एक बूढा आसमान और
उस पर टंगे चाँद को
समेटते हो अपने जेहन में और
रच देते हो एक नज़्म
कभी मेरे घर आकर देखो
यहाँ भी है एक बूढा बाप
शायद एक आध मुट्ठी अनाज भी मिल जाये
चन्द कतरे आंसुओं के
टूटी खाट के सिरहाने पड़े हैं
और एक चाँद यहाँ भी है जो
अक्सर भूखा सोता है
क्यों नहीं लिखते एक नज़्म
उधडी और फटी जिंदगियों पर..
मोहब्बत और बेवफाई पर
रंग दिए हैं तुमने ढेरों कागज़
आँखें भर आती हैं लोगों की
जब पढ़ते हैं तुम्हारी दर्द में डूबी नज़्म
कभी आओ इधर भी और देखो
मेरी माँ पड़ी है बिस्तर पर खून उगलती
मांग रही है दिन रात मौत की दुआ
पर कमबख्त वो भी नहीं फटकती इधर
क्यों नहीं लिखते एक नज़्म
मौत की इस बेवफाई पर...
तुम जानते हो ,
कोई नहीं देखना चाहता
चाँद ,तारों की हसीन दुनिया के परे
जब फूल और तितली पर बन सकती है
एक उम्दा नज़्म तो फिर
क्यों कोई नाली में भिनकते मक्खी मच्छर
और फटी एडियों पर लिखे कोई कविता
पर तुम लिखो....
कोई पढ़े या न पढ़े
पर तुम्हे मिल जायेगा कोई न कोई पुरस्कार
आखिर निर्णायकों का ज़रूरी है
संवेदनशील होना भी...
अक्सर भूखा सोता है
क्यों नहीं लिखते एक नज़्म
उधडी और फटी जिंदगियों पर..
मोहब्बत और बेवफाई पर
रंग दिए हैं तुमने ढेरों कागज़
आँखें भर आती हैं लोगों की
जब पढ़ते हैं तुम्हारी दर्द में डूबी नज़्म
कभी आओ इधर भी और देखो
मेरी माँ पड़ी है बिस्तर पर खून उगलती
मांग रही है दिन रात मौत की दुआ
पर कमबख्त वो भी नहीं फटकती इधर
क्यों नहीं लिखते एक नज़्म
मौत की इस बेवफाई पर...
तुम जानते हो ,
कोई नहीं देखना चाहता
चाँद ,तारों की हसीन दुनिया के परे
जब फूल और तितली पर बन सकती है
एक उम्दा नज़्म तो फिर
क्यों कोई नाली में भिनकते मक्खी मच्छर
और फटी एडियों पर लिखे कोई कविता
पर तुम लिखो....
कोई पढ़े या न पढ़े
पर तुम्हे मिल जायेगा कोई न कोई पुरस्कार
आखिर निर्णायकों का ज़रूरी है
संवेदनशील होना भी...
44 comments:
आपने निशब्द कर दिया है पल्लवी जी...
पहले हसा के फिर संजीदा करती है आप.. आपके ब्लॉग की एक बेहतरीन पोस्ट है ये..
पता नहीं; मौत के क्या उसूल हैं। कभी मारती है झटका। कभी रेतती है हलाल - धीरे धीरे तिल तिल कर निकालते हुये जीवन तत्व।
पता नहीं क्या है यह।
कभी मेरे घर आकर देखो
यहाँ भी है एक बूढा बाप
शायद एक आध मुट्ठी अनाज भी मिल जाये
चन्द कतरे आंसुओं के
टूटी खाट के सिरहाने पड़े हैं
और एक चाँद यहाँ भी है जो
अक्सर भूखा सोता है
क्यों नहीं लिखते एक नज़्म
उधडी और फटी जिंदगियों पर
कहने को छोड़ा ही नही आपने, बस न सिर्फ़ सोचने पर मजबूर कर दिया है बल्कि अपने अपने गरीबां में झाँकने को बेबस कर दिया है, हम यही तो करते हैं, खूबसूरती में जीते हैं, बदसूरती को छिपा कर नज़र अंदाज़ करके सोचते हैं की ये दुनिया बड़ी खूबसूरत है, ऊँचे ऊँचे महलों चमकती सड़कों पर दौडती लश्कारे मारती गाड़ियों के परे भीं भीं भिनकती सिसकती जिंदगी हमें कहाँ दिखाई देती है....बहुत बहुत बहुत शानदार....आपने सचमुच आज मुझे हैरान कर दिया है...
ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई लिखी है आपने इस रचना में पल्लवी जी ..भावुक कर दिया इस कविता ने
bejod kavita rach dali hai aapne...
apka tahe dil se shukriya itni chai or sachi kavita se prichay karwane ke liye...
likhti rahen yun hi...
कभी मेरे घर आकर देखो
यहाँ भी है एक बूढा बाप
शायद एक आध मुट्ठी अनाज भी मिल जाये
चन्द कतरे आंसुओं के
टूटी खाट के सिरहाने पड़े हैं
और एक चाँद यहाँ भी है जोअक्सर भूखा सोता है
निशब्द कर दिया इसने
मर्मांतक !
पल्लवी बहुत सुंदर लिखा है। बधाई।
Bahut hi sundar aur marmik post pallavi ji.. bahut sundar sach nishabd kar diya aapne
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A Pearl in my Stony - Life
बहुत ही अच्छा लिखा आपने। एकदम झकझकोर दिया। यह एक सच्चाई हैं। जो आपने बयान कर दी। वाकई जिदंगी जीना बहुत कठिन हैं।
यहाँ भी है एक बूढा बाप.......अक्सर भूखा सोता है
कभी आओ इधर भी ......कमबख्त वो भी नहीं फटकती इधर
मार्मिक अभिव्यक्ति है। सभी जीवन के विभिन्न पक्ष हैं. कविता तो सभी पर लिखी जाएगी।
सुंदर रचना,स्वतंत्र अभिव्यक्ति
लिखता कहाँ हूँ
और पढता भी कौन है
पढकर भी कौन कुछ करता है
अपनी ही कुलबुलाहट है
मेरी बेबसी है
गहरी उदासी में
गुंचों के वर्क...ज़ख्म सहला जाते है
बड़ी-बड़ी बातों पर
लिखी जाती हैं बड़ी रचनाएँ,
पर जिन बातों की तरफ़ आपने
इशारा किया है उन्हें छोटी क्यों
मान लेते हैं हमारे कलमकार ?
नज़्म की नब्ज़ को एहसास का नया
वेग देने का आपका ख्याल दरअसल
मुझे ख़ुद एक तल्ख़ नज़्म की मानिंद लगा.
=================================
बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
तुम ओर डी एस् पी अपनी प्रोफाइल बदल डालो ...कई बार चेक किया की प्रोफाइल तो ग़लत नही है....शुक्रिया पल्लवी जब तक तुम जैसे लोग अपनी सवेदनशीलता बचाए रखेगे ,मुझे यकीन है मेरा देश साँस लेता रहेगा
चलो कोई तो है जिसकी संवेदना मृत नहीं!
मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थ्थू...! इस चलन को तोड़ने का ऐलान करने वाली आपकी कविता सच्चाई की ओर ध्यान खींचने वाली अनमोल कृति है। बधाई।
बहुत ही सुंदर,झकझोर कर संवेदनाओं को जगा देने वाली पंक्तियाँ मंत्रमुग्ध कर गयीं..बहुत बहुत सुंदर.
बार बार पढ़ी--बहुत अच्छी लगी
दिल दिमाग दोनों पर असर डालने वाली रचना है. बधाई !
Jindagi ki ek sachhai ye bhi hai....bahut khoob likha hai
अब क्या बोले , कुछ शव्द ही नही मिल रहे , इतनी भावुक कविता आप ने लिखी हे, बहुत कुछ सोचने पर मजबुत करती हे,काश हम सब ऎसा ही सोचे तो कितना अच्छा हो.
धन्यवाद
आपने अच्छा लिखा है। पर कविता का अंत और बेहतर हो सकता था। एक निर्णायक जो संवेदनशील हो क्या वो कल्पना में रची बसी दुनिया के तिलिस्म में यथार्थ की कोरी सच्चाईयों को नहीं पहचान पाएगा?
दूसरे हम सब की क्या ऍसी प्रकृति नहीं है कि जिसे हम वास्तविक जिंदगी में झेलते हैं, सहते हैं उससे कुछ अलग कल्पना की दुनिया में पाने और जीने की आशा रखते हैं ये जानते हुए भी के ये सब भ्रम है , छलावा है...
तल्ख लेकिन अच्छी अभिव्यक्ती है!
थोडी व्यापक नज़रें कीजिये, हर किस्म का आसमां मिलेगा...
खुशी होगी कहीं पर गम भी होंगे,
विसाल-ओ-हिज्र के आलम भी होंगे
अजब सी ़कौम है शायर की "रंजन"
रकीबों में कई हमदम भी होंगे
पल्लवीजी,
मार्मिक कविता है
सँवेदनाएँ बकरार रखेँ !
-लावण्या
यकीन करना मुश्किल है कि इस खाकी वर्दी में ऐसा दिल छिपा बैठा है जो भावनाओं की कद्र जानता है , पर हकीकत तो यह रचना ही बता रही है।
इससे ज्यादा क्या कहूं साहिब
उफ़ ! कितनी बदनाम है खाकी वर्दी, लोगों को लगता है की इंसान ही नहीं होते !
खैर छोडिये, हाँ नज्म तो ऐसी नहीं लिख सकते लेकिन आपने जो बात कही वो जरूर कर सकते हैं... और जरूर करेंगे !
Bahut Accha likha hai
देश को गर्व होना चाहिए ऐसे युवा प्रतिभा पर जिसकी सोच इतनी परिपक्व है....आप ने कमाल की रचना लिख डाली है...बधाई
नीरज
बेहतरीन लिखा है आपने
बहुत शानदार..मार्मिक ..बहुत सुंदर लिखा है। बधाई।
Lovely poetry!
पर तुम लिखो....
कोई पढ़े या न पढ़े
pallavi ji ...aapko parna bahut achcha laga.....fursat se fir se kabhi aapko parne ka khhayal abhi leker ja rahi hoo....
archana
क्या लिखूं और क्या न लिखूं ! पुलिस, लड़की ,संवेदना ,कैसे निभा लेती हैं इतना सब !मार्मिक अभिव्यक्ति !माँ, बाप पर कौन सोचता है इतना !एक बेहतरीन नज़्म !
एक मुट्ठी धूप, चन्द कतरे रात के
एक बूढा आसमान और
उस पर टंगे चाँद को
समेटते हो अपने जेहन में और
रच देते हो एक नज़्म
Behad khoobasoorat ehasas. bahut badhiya.
एक मुट्ठी धूप, चन्द कतरे रात के
एक बूढा आसमान और
उस पर टंगे चाँद को
समेटते हो अपने जेहन में और
रच देते हो एक नज़्म
Behad khoobasoorat ehasas. bahut badhiya.
bahut Khub. Aap sada pallavit pushit hoti rahein aur apne blog se hamein mahkaati rahein.
Police wali
kya thappad mara hai
wah ab lag rahi ho tum sahi mai asli police wali
pahle b thi par
is rang mai jamti ho
katl
behisaab katl
bhagwaan tumko khush rakhe aur tumhari sachayee imaandari ko buri nazro se bachaye
sajda hai tumko
bejod bahot hi shandar rachana hai bahot sundar ,padhkar bahot hi gahara anubhaw mila isse bahot hi sundar...........badhai.....
regards
Arsh
ये तो ज़िंदगी की कविता है
कभी मेरे घर आकर देखो
यहाँ भी है एक बूढा बाप
शायद एक आध मुट्ठी अनाज भी मिल जाये
चन्द कतरे आंसुओं के
टूटी खाट के सिरहाने पड़े ह
shayad main bahut tareef nahi kar sakunga ,....coz i think m very little to give comments on u....
but fir bhi kuch kahna chahunga ....
is se achha bhavnatmak chitran maine is situation ka nahi dekha.... gr8....
आपके कवित्त को प्रनाम्...
ati uttam ...sundar bahut sundar
vehatareen post
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
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