श्रीमान व्यंगेश्वर जी से तो आप सभी परिचित होंगे...अरे वही जो बड़े अच्छे अच्छे व्यंग्य लिखते हैं.! पूरी दुनिया में श्रेष्ठ व्यंगकारों में गिनती होती है इनकी! हमारा भी सौभाग्य है की हम इनके मित्रों में शामिल हैं! हमें इसलिए भी इनका मित्र बनना पड़ा क्योकि व्यंग इनके खून में रचा बसा है...न जाने कब किस पर व्यंग्य लिख डालें कोई भरोसा नहीं! बर्तनवाली,धोबी,अडोसी पडोसी,किराने की दूकान वाला,पानवाले से लेकर कप प्लेट, झाडू,कुर्सी वगेरह निर्जीव चीज़ें भी इनके व्यंग्य का शिकार होने से नहीं बच सकी हैं! इनकी माँ बताती हैं की जब ये पैदा हुए तो पैदा होते ही अस्पताल के कमरे को और डॉक्टरों को देखकर ऐसी व्यंग्य भरी मुस्कराहट फेंकी की डॉक्टर तिलमिला गया और इन्हें गोद में उठाकर प्यार तक नहीं किया !
लेकिन इसके दो साल बाद जब इनका छोटा भाई पैदा हुआ तो उसी अस्पताल में हुआ...डॉक्टर को पता चला तो उसने कमरे की हालत सुधार ली थी ताकि फिर से व्यंगेश्वर जी के कटाक्ष भरी नज़रों का सामना न करना पड़े...लेकिन दो वर्ष के व्यंगेश्वर अब बोलना सीख गए थे! डॉक्टर के सफ़ेद एप्रन पर पीला सब्जी का दाग देखकर अपनी तोतली आवाज़ में बोल पड़े " घल में निलमा (निरमा) नहीं आता क्या ?" डॉक्टर को बुरा लगा! बाद में पिता जी को बोल दिया" अगर अगला पैदा हो तो कोई और अस्पताल देख लेना"! व्यंग करने की आदत को देखकर ही पिता ने स्कूल में व्यंगेश्वर नाम लिखा दिया! तब से लेकर स्कूल की अव्यवस्था,मास्टरों का निकम्मापन,खेल की टीम सिलेक्शन में घपला आदि मुद्दों पर खूब व्यंग्य लिखे! बाद में जैसे जैसे बड़े होते गए, देश दुनिया का कोई ऐसा मुद्दा नहीं रहा जिस पर व्यंगेश्वर जी की कलम का वार न हुआ हो!
कल हम अचानक उनके घर जा पहुंचे...देखा व्यंगेश्वर जी बड़े चिंतित नज़र आ रहे थे! दस मिनिट तक भी जब पानी को नहीं पूछा तो हम जान गए की सचमुच कोई गहरा दुःख इनके मन को भेद रहा है!
हमने पूछा "क्या हुआ? कोई परेशानी है क्या?"
क्या बताएं...घोर पीडा हो रही है!"
अरे ....सिर विर दर्द कर रहा है क्या" हमने भी आतुरता में पूछा!
उन्होंने हिकारत से हमें देखते हुए कहा " तुम साले स्वार्थी जीव...अपनी पीडा के अलावा कुछ दिखाई देता है या नहीं"
हम खिसिया कर रह गए " माफ़ करिए...क्या किसी और को कोई तकलीफ है? बच्चे,भाभीजी तो स्वस्थ हैं"?
तुम कभी घर ,परिवार से आगे की सोचोगे की नहीं?" हिकारत अभी तक बरकरार थी!
सुनकर गुस्सा तो ऐसा आया की बोल दूं " भाड़ में जाये तेरी पीडा , एक तो तेरे कष्ट पूछ रहा हूँ ऊपर से बकवास कर रहा है" मगर याद आया की दर्द बाटने का एक उसूल है कि आपका क्लाइंट जितना दुखी होगा उतना ही बिफरेगा! इसका तात्पर्य कि दुःख बहुत ज्यादा है!ज्यादा दुःख बांटना यानी ज्यादा पुण्य प्राप्त करना!दूसरी बात ये कि व्यंगेश्वर जी कि खरी खोटी सुनाना यानी एक एक व्यंग्य खुद के ऊपर लिखवाना.....इन्ही सब बातों को सोचकर हमने बुरा नहीं माना और स्वर को भरसक कोमल बनाते हुए पूछा " कुछ तो बताइए...हुआ क्या?
देखते नहीं हो...देश में भ्रष्टाचार, मंहगाई, गरीबी कितना बढ़ गए हैं....
हम्म...हमने समर्थन किया!
क्या करूं दिल को बड़ी पीडा होती है अपने देश की ये दुर्दशा देखकर! जहां देखो वहाँ कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वत, लालफीताशाही का बोलबाला है...गरीब और गरीब हो रहा है...अमीर और अमीर हो रहे हैं! " कहकर व्यंगेश्वर जी फिर से सर पकड़कर बैठ गए!
हमारी ताली बजाने की इच्छा हुई!
" काश कोई ऐसा चमत्कार हो जाए ,देश से सारा भ्रष्टाचार ,गरीबी गायब हो जाए हे प्रभु, मेरे भारत देश में रामराज ला दो!" व्यंगेश्वर जी सचमुच दुखी थे! हम भी दुखी हो गए और थोडा खुश भी की फिर एक बार दर्द बांटने का अवसर प्रभु ने दिया!
हमने उन्हें ढाढस बंधाते हुए कहा " बुरा न मानिए मित्रवर..लेकिन आपको ऐसी प्रार्थना नहीं करनी चाहिए!भगवन जो करता है अच्छे के लिए करता है !"
" अजीब आदमी हो तुम! कैसी गद्दारों जैसी बात करते हो...."
अरे पूरी बात तो सुनिए.." हमने बीच में ही उनकी बात लपकी वर्ना एक गाली पड़ने के पूरे पूरे आसार थे!" ये बताइए आपने सबसे अधिक व्यंग्य किन मुद्दों पर लिखे"
" इन्ही राष्ट्रीय और सामजिक समस्याओं पर..." थोडा चिढ़कर उन्होंने जवाब दिया!
" और ये व्यंग्य ही आपकी जीविका चलते हैं...न केवल धन बल्कि इन्हें लिखकर आपको यश भी प्राप्त हुआ है"! हमने पूछा
" हाँ हाँ...कई पुरस्कार जीते हैं हमने" व्यंगेश्वर जी की की गर्व भरी वाणी फूटी!
" जिन समस्याओं पर लिखकर आपको ये यश और धन प्राप्त हुआ...उन्ही को लानत भेज रहे हैं आप? क्या शोभा देता है आप जैसे पढ़े लिखे व्यक्ति को? " हमने थोडा सा दुत्कार टाइप दिया!
"क्या मतलब आपका" व्यंगेश्वर जी थोडा चकराए!
" मतलब साफ़ है मेरे भोले मित्र...फ़र्ज़ करो यदि देश से ये सारी समस्यायें गायब हो जाएँ तो तुम्हारे पास व्यंग्य लिखने के लिए क्या मुद्दा रह जायेगा? कौन पढेगा तुम्हारे व्यंग्य? " हमने समझाया!"
हम्म...आपकी बात में तो दम है" व्यंगेश्वर जी थोड़े कन्विन्स हुए!
आप ही बताइए...सतयुग में क्या कोई भी महान व्यंग्यकार पैदा हो सका? नहीं न...क्योंकि रामराज में कोई अव्यवस्था नहीं थी!
" इसलिए मैं कहता हूँ...आपको तो प्रार्थना करनी चाहिए की ये समस्यायें सुरसा के मुख की तरह बढती जाएँ ताकि आपके पास विषयों का कभी अकाल न पड़े""
व्यंगेश्वर जी ने उठकर हमें गले लगा लिया और गदगद स्वर में बोले " मित्र..मैं तुम्हारा सदा आभारी रहूँगा! तुमने मेरा दुःख दूर कर दिया! अब मैं ऐसी फिजूल बातें कभी नहीं सोचूंगा"! इतना कहकर व्यंगेश्वर जी ने कागज़ कलम उठाया और शांत मन से व्यंग्य लिखने में जुट गए!
हम बहुत प्रसन्न हुए...हमने न केवल दर्द बांटा बल्कि इस बार तो दूर भी कर दिया! ईश्वर शीघ्र ही पुनः किसी का दर्द बांटने का अवसर प्रदान करे ...
लेकिन इसके दो साल बाद जब इनका छोटा भाई पैदा हुआ तो उसी अस्पताल में हुआ...डॉक्टर को पता चला तो उसने कमरे की हालत सुधार ली थी ताकि फिर से व्यंगेश्वर जी के कटाक्ष भरी नज़रों का सामना न करना पड़े...लेकिन दो वर्ष के व्यंगेश्वर अब बोलना सीख गए थे! डॉक्टर के सफ़ेद एप्रन पर पीला सब्जी का दाग देखकर अपनी तोतली आवाज़ में बोल पड़े " घल में निलमा (निरमा) नहीं आता क्या ?" डॉक्टर को बुरा लगा! बाद में पिता जी को बोल दिया" अगर अगला पैदा हो तो कोई और अस्पताल देख लेना"! व्यंग करने की आदत को देखकर ही पिता ने स्कूल में व्यंगेश्वर नाम लिखा दिया! तब से लेकर स्कूल की अव्यवस्था,मास्टरों का निकम्मापन,खेल की टीम सिलेक्शन में घपला आदि मुद्दों पर खूब व्यंग्य लिखे! बाद में जैसे जैसे बड़े होते गए, देश दुनिया का कोई ऐसा मुद्दा नहीं रहा जिस पर व्यंगेश्वर जी की कलम का वार न हुआ हो!
कल हम अचानक उनके घर जा पहुंचे...देखा व्यंगेश्वर जी बड़े चिंतित नज़र आ रहे थे! दस मिनिट तक भी जब पानी को नहीं पूछा तो हम जान गए की सचमुच कोई गहरा दुःख इनके मन को भेद रहा है!
हमने पूछा "क्या हुआ? कोई परेशानी है क्या?"
क्या बताएं...घोर पीडा हो रही है!"
अरे ....सिर विर दर्द कर रहा है क्या" हमने भी आतुरता में पूछा!
उन्होंने हिकारत से हमें देखते हुए कहा " तुम साले स्वार्थी जीव...अपनी पीडा के अलावा कुछ दिखाई देता है या नहीं"
हम खिसिया कर रह गए " माफ़ करिए...क्या किसी और को कोई तकलीफ है? बच्चे,भाभीजी तो स्वस्थ हैं"?
तुम कभी घर ,परिवार से आगे की सोचोगे की नहीं?" हिकारत अभी तक बरकरार थी!
सुनकर गुस्सा तो ऐसा आया की बोल दूं " भाड़ में जाये तेरी पीडा , एक तो तेरे कष्ट पूछ रहा हूँ ऊपर से बकवास कर रहा है" मगर याद आया की दर्द बाटने का एक उसूल है कि आपका क्लाइंट जितना दुखी होगा उतना ही बिफरेगा! इसका तात्पर्य कि दुःख बहुत ज्यादा है!ज्यादा दुःख बांटना यानी ज्यादा पुण्य प्राप्त करना!दूसरी बात ये कि व्यंगेश्वर जी कि खरी खोटी सुनाना यानी एक एक व्यंग्य खुद के ऊपर लिखवाना.....इन्ही सब बातों को सोचकर हमने बुरा नहीं माना और स्वर को भरसक कोमल बनाते हुए पूछा " कुछ तो बताइए...हुआ क्या?
देखते नहीं हो...देश में भ्रष्टाचार, मंहगाई, गरीबी कितना बढ़ गए हैं....
हम्म...हमने समर्थन किया!
क्या करूं दिल को बड़ी पीडा होती है अपने देश की ये दुर्दशा देखकर! जहां देखो वहाँ कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वत, लालफीताशाही का बोलबाला है...गरीब और गरीब हो रहा है...अमीर और अमीर हो रहे हैं! " कहकर व्यंगेश्वर जी फिर से सर पकड़कर बैठ गए!
हमारी ताली बजाने की इच्छा हुई!
" काश कोई ऐसा चमत्कार हो जाए ,देश से सारा भ्रष्टाचार ,गरीबी गायब हो जाए हे प्रभु, मेरे भारत देश में रामराज ला दो!" व्यंगेश्वर जी सचमुच दुखी थे! हम भी दुखी हो गए और थोडा खुश भी की फिर एक बार दर्द बांटने का अवसर प्रभु ने दिया!
हमने उन्हें ढाढस बंधाते हुए कहा " बुरा न मानिए मित्रवर..लेकिन आपको ऐसी प्रार्थना नहीं करनी चाहिए!भगवन जो करता है अच्छे के लिए करता है !"
" अजीब आदमी हो तुम! कैसी गद्दारों जैसी बात करते हो...."
अरे पूरी बात तो सुनिए.." हमने बीच में ही उनकी बात लपकी वर्ना एक गाली पड़ने के पूरे पूरे आसार थे!" ये बताइए आपने सबसे अधिक व्यंग्य किन मुद्दों पर लिखे"
" इन्ही राष्ट्रीय और सामजिक समस्याओं पर..." थोडा चिढ़कर उन्होंने जवाब दिया!
" और ये व्यंग्य ही आपकी जीविका चलते हैं...न केवल धन बल्कि इन्हें लिखकर आपको यश भी प्राप्त हुआ है"! हमने पूछा
" हाँ हाँ...कई पुरस्कार जीते हैं हमने" व्यंगेश्वर जी की की गर्व भरी वाणी फूटी!
" जिन समस्याओं पर लिखकर आपको ये यश और धन प्राप्त हुआ...उन्ही को लानत भेज रहे हैं आप? क्या शोभा देता है आप जैसे पढ़े लिखे व्यक्ति को? " हमने थोडा सा दुत्कार टाइप दिया!
"क्या मतलब आपका" व्यंगेश्वर जी थोडा चकराए!
" मतलब साफ़ है मेरे भोले मित्र...फ़र्ज़ करो यदि देश से ये सारी समस्यायें गायब हो जाएँ तो तुम्हारे पास व्यंग्य लिखने के लिए क्या मुद्दा रह जायेगा? कौन पढेगा तुम्हारे व्यंग्य? " हमने समझाया!"
हम्म...आपकी बात में तो दम है" व्यंगेश्वर जी थोड़े कन्विन्स हुए!
आप ही बताइए...सतयुग में क्या कोई भी महान व्यंग्यकार पैदा हो सका? नहीं न...क्योंकि रामराज में कोई अव्यवस्था नहीं थी!
" इसलिए मैं कहता हूँ...आपको तो प्रार्थना करनी चाहिए की ये समस्यायें सुरसा के मुख की तरह बढती जाएँ ताकि आपके पास विषयों का कभी अकाल न पड़े""
व्यंगेश्वर जी ने उठकर हमें गले लगा लिया और गदगद स्वर में बोले " मित्र..मैं तुम्हारा सदा आभारी रहूँगा! तुमने मेरा दुःख दूर कर दिया! अब मैं ऐसी फिजूल बातें कभी नहीं सोचूंगा"! इतना कहकर व्यंगेश्वर जी ने कागज़ कलम उठाया और शांत मन से व्यंग्य लिखने में जुट गए!
हम बहुत प्रसन्न हुए...हमने न केवल दर्द बांटा बल्कि इस बार तो दूर भी कर दिया! ईश्वर शीघ्र ही पुनः किसी का दर्द बांटने का अवसर प्रदान करे ...
35 comments:
मैं देख रहा हूँ की ये व्यंग लिखने वाले ब्लोग्गर सारे पाठक खीचे ले रहे हैं... तो हम तो यही मनाएंगे की समस्याएं ख़त्म हो और ये व्यंगकारों का काम भी ! :-)
गलत बात है हमने ऐसा कब कहा ?
maja aya padh kar...
बेहतर एवं सटीक व्यंग्य
दीपक भारतदीप
oodi baba ye to hamne socha hi nahi tha.... dhardhar vyangy nikla ye to..
aapka bhi jawab nahi.. vyangya par vyangya likh dala.. bhai waah
pallavi ji aapke blog ko pdhkr aur yhaan pr pahuch kr wastaw men main bahut hi khush hoon. aasha hai ki aap hamare blog pr jaroor hi vijit karengi .
:) क्या बढ़िया व्यंगकरिता है ..:) शानदार
sateek
ईश्वर शीघ्र ही पुनः किसी का दर्द बांटने का अवसर प्रदान करे ...
बेहतरीन व्यंग रचना ! बिना निंदा रस के ही सुस्वादु व्यंजन !
आनंद आया ! धन्यवाद !
इसे कहते हैं व्यंग...लपेट के मारना....मार की मार और लगने वाले के लगे भी नहीं...बहुत उम्दा...आप की शैली भाषा और कथ्य तीनो बेहतरीन हैं...आप ने लिखा है.."आप ही बताइए...सतयुग में क्या कोई भी महान व्यंग्यकार पैदा हो सका? नहीं न...क्योंकि रामराज में कोई अव्यवस्था नहीं थी!"
इस विषय पर एक बहुत रोचक व्यंग उपन्यास है डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी जी का"मरीचिका" कभी कहीं से मिले तो जरूर पढियेगा...आनंद आ जाएगा.
नीरज
वाह जी वाह व्यंगकार को ही लपेट लिया। एक अच्छा व्यंग लिखा हैं आपने।
''फ़र्ज़ करो यदि देश से ये सारी समस्यायें गायब हो जाएँ तो तुम्हारे पास व्यंग लिखने के लिए क्या मुद्दा रह जायेगा? कौन पढेगा तुम्हारे व्यंग?''
अगर सच में ऐसा हो जाए तो ब्लॉग पर लिखने के लिए भी कुछ नहीं रह जाएगा। है न!
विश्व में अन्तत: व्यंगकार ही बचेगा। बाबा तुलसी कह गये हैं -
"टेढ़ि जानि संका सब काहू। बक्र चंद्रमा ग्रसै न राहू।"
इनकी माँ बताती हैं की जब ये पैदा हुए तो पैदा होते ही अस्पताल के कमरे को और डॉक्टरों को देखकर ऐसी व्यंग भरी मुस्कराहट फेंकी की डॉक्टर तिलमिला गया और इन्हें गोद में उठाकर प्यार तक नहीं किया !
मशहूर व्यंग्य-लेखकों की
इस 'जन्म-दृष्टि' पर शोध किया
जाना चाहिए !...आपकी लेखनी का
प्रभाव-पथ प्रशस्त होता जा रहा है.
==========================
बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
क्या बतायूं...?ओर सब तो ठीक था बेचारे डॉ को क्यों छेडा उसने ?आपने दूसरी पोस्ट ऐसी लिखी है जिसमे डॉ को छेडा है....मै देख रहा हूँ सोचता हूँ की अब पुलिस वालो पर मै भी कोई पोस्ट लिख मारू ?"प्रतिशोध यू नो " .......
एक ओर अच्छी पोस्ट.....पर उसका फोटो देकर उसे सार्वजानिक कर दिया आपने.....
EEshwar se prarthana hai ki aap ko aise wyang likhne ke itane jyada suawasar na de.
व्यंगेश्वर जी ने कागज़ कलम उठाया और शांत मन से व्यंग्य लिखने में जुट गए!
बेहतरीन सटीक व्यंग रचना ..
अगर दुनिया की सभी समस्याएं खत्म हो जाएं तो व्यंग्यकारों को काम नहीं मिलेगा, लोगों की यह धारणा गलत है। सोचो यदि सभी समस्याएं खत्म हो गयी तो ये भी तो एक नई समस्या आ जायेगी कि कोई समस्या नहीं है। फिर भी व्यंग्य लिखा जा सकेगा।
पल्लवी जी का व्यंग्य प्यारा लगा। बधाई।
achhe lekh ke liye dhnyabad......
sundar sateek vyang!! Isko kehte hain goli se goli maarnaa!!!!
बहुत शानदार लिखा आपने पल्लवीजी -
-- लावण्या
बहुत ही अच्छा लिखा हे आप ने .
धन्यवाद
.
तुमने तो दिल ही खुश कर दिया, पल्लवी..
लेकिन एक बात तो है, गौर करने लायक..
समस्या न हो, तो भी व्यंगकार तो रहेगा
व्यंगकार रहे ना रहे,
व्यंगभरी मुस्कुराहटें कहाँ फेंकी जायेंगी
यह अच्छी सी पोस्ट भी व्यंगकार नामक मुर्गे से ही तो उपजी है..
रही बात रामराज्य की.. छोड़ो भी
सीता को रावणराज्य के एक वाटिका में अपने शोक के दिन गुजारने पड़े, जिसको सबों ने अशोक वाटिका का कंसोलेसन नेम दे रखा था
राम ने अग्निपरीक्षा ली,
जो किसी के भी सतीत्व पर करारा व्यंग है
बनवास दिया सो अलग,
अपनी छवि और सत्ता को बनाये रखने के लिये ही तो ! कुछ भी कहो,
मुझे तो यह पुरुषोत्तम का मर्यादा पर ही किया गया एक व्यंग ही लगता है
यह मनुष्य योनि ही एक भोंड़े व्यंग की उपज है
जय हो.. जय हो..
जय हो व्यंगेश्वर बाबा की
बहुत खूब! व्यंगेश्वर जी अपने बस में हों तब तो पाँचों उंगलियाँ घी में...
क्या विविधता है दुनिया में...... आप्के ब्लाग पर तो नया रंग ही दिखा
मान गए पल्लवी आपको और आपके व्यंग लेखन को !
एकदम चकाचक ! :)
व्यंग देखो, व्यंग करनेवाले को देखे, व्यंग देखनेवाले को देखो। अच्छा लिखा।
achha dard baanta srimaan vyangyeshwar ji ke saath........unhi ko vyangya bana diya,mazaa aa gaya
शानदार भी और जानदार भी...। आपने तो व्यंगेश्वर जी को आइना दिखा दिया... बधाई एक उत्तम पोस्ट की।
VYANGYMEVJAYTE.................
उत्तम पोस्ट ...रोचक,शानदार,व्यंगकरिता
aap ne to chor ke ghar hi daaka daal diya...
vaise aap ka vyang khub mazedar raha...par mujhe apni hi ek ghazal ka sher yaad aa gaya ye padh kar...
KAISA LAGE HUM BHI AGAR TERI TARAH HO JAYE? AAYINE KO USI KA AKS TO DIKHAYE...
अनूठा सोच अनूठी अभिव्यक्ति ! वाह !
बहुत बढ़िया व्यंग ।
पल्लवीजी आपकी हर रचनायों को
बधाई ।
जीवन में द्वंद से उपजता है व्यंग्य ...
लिहाजा जब तक जीवन है.. व्यंग्य कायम रहेगा.
इस अच्छे व्यंग्य के लिए बधाई.
Post a Comment