रोज़मर्रा के जीवन में भी अचानक कभी कुछ ऐसा देखने को मिल जाता है जो यकीन दिला जाता है कि हम सभी इंसानों के बीच ऐसा कुछ है जो हमें एक दूसरे से जोड़े रखता है! अनायास ही नितांत अपरिचित चेहरे अपने से लगने लगते हैं...और सभी एक धागे से बंधे हुए से लगते हैं.!
मैं बांटना चाहूंगी अपना कल का अनुभव....बाज़ार से घर लौट कर आ रही थी तो देखा रास्ते में एक क्रेन आड़ी खड़ी हुई है जिसके कारण रास्ता बंद है और गाडी आगे नहीं जा सकती थी! ड्रायवर ने उतरकर पता किया तो मालूम हुआ कि एक पेड़ खतरनाक स्थिति में खडा है और उसे गिराने के लिए नगर निगम की क्रेन आई है...मैं वहीं गाडी रोक कर पेड़ के गिरने का इंतज़ार करने लगी...एक व्यक्ति ने एक मोटे रस्से को पेड़ की ऊंची डाल से बाँधा , इसके बाद क्रेन ड्रायवर क्रेन स्टार्ट करके उसे खींचने लगा ....लेकिन खट की आवाज़ हुई और रस्सा टूट गया ! रस्से बाँधने वाले और क्रेन ड्रायवर ने एक दूसरे को निराशा भरी आँखों से देखा और फिर से रस्सा बाँधने की तैयारी शुरू हुई! अब तक मैं भी उत्सुक हो चुकी थी की देखें इस बार पेड़ गिर पाता है या नहीं...एक बार फिर वही प्रक्रिया दोहराई गयी.....और जैसे ही क्रेन स्टार्ट हुई...वही खट की आवाज़ और रस्सा फिर टूट गया...! ओह...अच्छा नहीं लगा!
तभी मैंने गौर किया....की मेरी ही तरह कई राहगीर वहाँ रुके हुए हैं और इस प्रक्रिया को देख रहे हैं! जो दो पहिया वाहन वहाँ से निकल सकते थे...उन्होंने भी अपनी गाडियां रोक दी थीं! अब शुरू हुआ रस्से बाँधने वाले का हौसला बढाने का सिलसिला! सब तरफ से " शाबाश" ," इस बार हो जायेगा" आदि आवाजें आने लगीं! रस्सा बाँधने वाले ने एक बार फिर रस्सा कस के बाँधा और जैसे ही ड्रायवर ने क्रेन स्टार्ट की...भीड़ में से किसी ने चिल्लाया " गणपति बब्बा...." और ड्रायवर सहित सारे लोग चिल्ला उठे " मोरिया" ! ड्रायवर ने पूरे जोश में क्रेन आगे बढाई और एक बार फिर असफलता...! उन दोनों के साथ भीड़ से भी निराशा भरी आवाजें आयीं....
फिर से गणपति जी की जय जय कार के साथ काम शुरू हुआ....लेकिन लगातार चार बार रस्सा टूटा!
लेकिन अब क्रेन वाले अकेले नहीं थे...करीब सौ अनजाने लोग उनका हौसला बढा रहे थे और रस्सा पकड़ने में मदद भी कर रहे थे ! इस वक्त जैसे सभी को कोई और काम याद नहीं था ...सिवा इसके की ये पेड़ गिरना है
!आम तौर पर ट्रैफिक लाईट के ग्रीन होने का भी वेट न करने वाले लोग घर जाना भूल कर पिछले २० मिनिट से इस प्रक्रिया का हिस्सा बने हुए थे....मैं भी पेड़ गिरने के बाद ही वहाँ से जाना चाहती थी!फाइनली पांचवी बार रस्सा नहीं टूटा बल्कि एक जोर की आवाज़ के साथ पेड़ नीचे गिर गया! सभी लोग ख़ुशी से झूम उठे...कुछ ने करीब जाकर क्रेन ड्रायवर और उसके साथी को बधाई दी , कुछ ने वहीं से हाथ हिला दिया! दो मिनिट के बाद सब अपने अपने रास्ते चल दिए...और सड़क अपने पुराने ढर्रे पर लौट आई...मैं भी आगे चल दी!
मैं सोचती जा रही थी...वो क्या चीज़ है जो अनजान होते हुए भी हमें एक दूसरे से जोड़े रखती है? शायद हम एक जैसे हैं इसलिए दूसरे के प्रयत्नों में हमें अपने प्रयत्न दिखाई देते हैं... जब कोई और हिम्मत हारता है तो हम सब उसकी हिम्मत बढाते हैं क्योकी उसके अन्दर भी हमें अपना सा ही एक अक्स नज़र आता है.....खैर कारण जो भी हो , मुझे बहुत अच्छा लगा! घर पहुँचने को ही थी...तभी ड्रायवर बोला " मैडम...जब चौथी बार भी पेड़ नहीं गिरा तो मैं दुखी हो गया था!" मैंने धीरे से कहा " मैं भी!"
41 comments:
aah! kyo is tarah ki post koi aur blogger nahi likh pata..
aapko 100 mein se 100 number is post ke liye...
कुश...तुम्हारे सौ नंबर से याद आया....ये मेरी सौवी पोस्ट है!:)
पल्लवीजी
शायद आप ही कुछ अलग लिखती हैं।
जो एक आम इसांन से जुड़ी ताकत हो ।
सौवी पोस्ट पर बधाई ।
बढिया लिखा है।बधाई।
arey waah.. 100vi post ke liye ek aur baar badhai...
चलिए आज आपने एक शतक पूरा कर लिया, यह जानकर ख़ुशी हुई! बधाइयाँ।
Pallavi ji yeh bahut achi baat hai aapke lekhoki ki weh aam jeevan se nikal kar aate hai.. jise har koi mahsus sa kar leta hai ki haan ab aisa hua ab aisa hua type.. bahut acha likha aapne aise hi likhte rahiye 100 kya aap 10,00000 ka aakda chuyegi.... :-) hav a nice day
बेशक ये इक डोर ही है जो हम सभी को बांधे है!! अंतिम पंक्तियां खूब रहीं!
अच्छा लेख... बधाई!
bahut sundar........
मैं भी पोस्ट की मध्य से यह सोचने लगा था कि कौन सी बार में पेंड़ हटेगा!
shatak kii badhaayii...aapko
nice written,
congrates.
एकता में बहुत शक्ति है ..यही आपकी लिखी इसी घटना ने बताया और .जब इस तरह अनजान लोग एक हो कर मुसीबत का सामना करे तो पेड़ क्या पहाड़ भी गिरा सकते हैं :) १०० पोस्ट के लिए बधाई ..खूब लिखे :)
sach mein kuch to hai jo jode rakht hai humein...
shayad ehsaas...
achi post ke liye badai..
अच्छे लेखन और सौंवी पोस्ट की बधाई ।
पल्लवी जी
आप की लेखन शैली बहुत विलक्षण है...अनुराग जी की तरह बहुत साधारण सी लगने वाली घटना को आप असाधारण रूप दे देती हैं...काश हम सब हमेशा ऐसे ही एक जुट हो कर रहें और समस्या के पेड़ों को यूँ ही मिल कर उखाड़ते रहें...
नीरज
आपने एक घटना का कितना सुन्दर वर्णन किया है। नीरज ने ठीक कहा कि आप और अनुराग जी कैसे एक साधारण घटना को एक असाधारण रुप दे देते हो। मै भी सहमत हूँ उनकी बात से। और हाँ आपकी सौवी पोस्ट के लिए आपको बधाई।
"इस वक्त जैसे सभी को कोई और काम याद नहीं था ...सिवा इसके की ये पेड़ गिरना है!"
देखने का नजरिया है... मैं तो सोचता कि 'देखो किसी के पास कोई काम ही नहीं है ! कितने बेकार लोग हैं हिन्दुस्तान में !' :-)
हम्म अच्छा विश्लेषण किया है आपने एक आम सी घटना पर जनता के आचरण का।
प्रेरणादायक लेख है। सौवीं पोस्ट पर बधाई।
भाई आप की पोस्ट पढते समय ऎसा लगता हे जेसे हम भी वही कही हो , जब पांचबी बार पेड टुट्गा तो मे भी लपका बधाई देने के लिये, ओर सॊवी पोस्ट के लिये बधाई, गणपति बब्बा...." मोरिया
जरुर बताना सही लिखा या गलत
धन्यवाद
गणपति बब्बा...." मोरिया
बहुत ही बढ़िया लेखन.ऐसे ही लिखती रहो!!
१०० वीं पोस्ट की खास बधाई और शुभकामनाऐं.
.
रोजमर्रा घटने वाली एक साधारण से प्रसंग में
सकारात्मकता ढूँढ़ लेना एक अच्छा बल्कि उत्साहवर्धक
संदेश दे रहा है । सौ पोस्ट तक का सोपान चढ़ते जाने का
हौसला कोई यूँ ही तो न मिला होगा । बधाई !
अपने सोच को सकारात्मक रखने का यह एक सहज
उदहारण है.....मै भी अभिषेक भाई की तरह सोचता
कि देखो हमारे देश में लोगो को कितनी... फुरसत है..
सामान्य में से कोई सन्देश निकाल लेना आपकी सोच एवम
लेखन को प्रतिबिंबित कर रही है....निरंतर रहें..!
पेड़ गिराने में आपके अव्यक्त सहयोग के लिए उस ड्राइवर और रस्सी बाँधने वाले की ओर से धन्यवाद।
आप आयीं,... और गिरते पेड़ की ख़बर सारी दुनिया में छायी... तो फ़िर ग्रहण करें मेरी बधाई... साथ ही सौवीं पोस्ट जो आयी। बेहतरीन।
असाधारण लेखन शैली है आपकी ! शतक के लिए बधाई !
शुभकामनाएं !
बहुत खूब, आपने भी शतक लगा ही दिया! बधाई!
बसे पहले देरी के लिए मुआफी .....दरअसल कल ब्लॉग में कही स्त्री के कपड़ो की उठक पठक थी कही इस्राइल ओर फिलिस्तीन की जंग ......जिंदगी प्लांड नही होती गर कुछ उसमे होता है तो वो भी हमारे मुताबिक नही हो पाता इसलिए चलती फिरती रोजमर्रा की जिंदगी ही हमें अलग अलग मौको पर अलग अलग संदेश देती है....उसी सड़क पर ढेरो लोग होगे जिन्होंने कोई सबक नही लिया होगा......
नीरज जी ओर सुशील जी का शुक्रिया अदा करते हुए मै इस शतक पर आपको मुबारकबाद देता हूँ.....
बहुत खूब.
सौंवी और दमदार पोस्ट के लिए बधाई.
सच बड़ी ताकतवर है ये अनजान डोर.
मेरे साथ भी एक बार ये वाकया हुआ है.
हुआ यूँ कि एक बार हावडा ब्रिज पर खड़े होकर आसमान की तरफ़ ताक रहा था यूँही ५-१० मिनटों बाद क्या देखता हूँ की मेरे पीछे भी करीबन १०० लोग खड़े होकर आसमान तक रहें है.
ये भी शायद इसी अनजानी डोर का ही कमाल था?
पल्लवी जी सैकड़ा मुबारक हो। ऐसी कई सौ पोस्टें और लिखें। आप लोगों को लिखते देख ही तो हमें भी ऊर्जा मिलती रहती है। पोस्ट बहुत सुंदर और प्रेरक है।
Pallavi, 100th post ke liye badhai, Achi ekta ki misaal wali baat hai. aur baaki shayad isliye keha hai
hum sab chori se bandhe ek dori se.....
शतक की बधाई
साधारण सी लगनेवाली घटना में असाधारण तत्त्व तलाश लेना.यही अच्छे गद्यकार की निशानी है.
ऐसी एकता बरक़रार रहे हम में, तो और क्या चाहिए.
इसे पढ़ते हुए कृष्ण चंदर का व्यंग्य जामुन का पेड़ याद आता रहा.ये आपके लेखन की श्रेष्ठता का परिचायक है.
अच्छा लिखा, बधाई।
आप किसी भी चीज को अपने नजरिए से देख सकते हो। आप कह सकते हो कि आधा गिलास खाली है। आपको आधा गिलास भरा हुआ भी दिख सकता है। एेसा ही एक सच आपने देखा। फिर उसे दूसरों में भी बांटा। बधाई। सेंचुरी पोस्ट के लिए भी।
सच बोलती हरेक पँक्ति और सच्चे जज़्बात लिये लिखे शब्द दिल को गहरे तक छू गये
१०० वीँ पोस्ट की ढेरोँ बधाई व आगे के रास्तोँ के लिये, शुभकामनाएँ :)
स स्नेह,
- लावण्या
सच कहा पल्लवी जी आपने, हम सब एक दूसरे से बंधे हुए हैं | कोई तो डोर है जो बांधे हुए है हम सब को एक दूसरे से और इसका अहसास होता रहता है हम सब को वक्त वक्त पर। एक साधारण सी घटना का अति सुंदर वर्णन, बधाई इस पोस्ट के लिए और आपके शतक पूरा करने के लिए भी |
शानदार...बेहद उम्दा...
sach bahut baar aisa lagta hai ki duniya itani bhi buri nahi hai.... balki achchhi hi hai shayad
लिखने की यही अदा मुझे आपके पास ले आई थी।
इस तरह की बातें समाज के एक सुखद अर्थ को इंगित करती हैं. इस तरह की बातें और सामने आनी चाहिये.. अच्छा लिखा आपने...
Post a Comment