सुनो मांओ
बाहर रिमझिम बरसात हो रही है
मत बांधो अपने नन्हे मुन्नों को
घर के अन्दर किताबों,वीडियोगेम और कार्टूनों में
तुमने शायद देखा नहीं
तुम्हारे नन्हे की आँखें खिड़की के बाहर टिकी हुई हैं
क्या तुम्हे उसकी आँखों की प्यास नज़र नहीं आती?
उसे निकलने दो घर के बाहर
खेलने दो गीली मिटटी में
भीग लेने दो जी भर कर
यकीन मानो,
ये मिटटी उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी
उसे देखने दो
बारिश में भीगता पिल्ला
कैसे अपने रोंये खड़े करके कांप रहा है
शायद वह उसे किसी सूखी जगह पर रख दे
उसे सुनने दो
बूंदों का मीठा संगीत
शायद ये संगीत उसकी आत्मा में
सरगम बनकर उतर जाए
उसे छूने दो
भीगे हुए रंगबिरंगे फूलों को
शायद फूलों की कोमलता
उसके ह्रदय को भी कोमल बना दे
उसे जानने दो
मिटटी में एक इंच नीचे ही
केंचुए भी रहते हैं
जो हमारे दोस्त हैं
शायद वह केंचुओं से डरना छोड़ दे
उसे महसूस करने दो
मिटटी की सौंधी महक
शायद वह जान पाए
इससे अच्छा कोई इत्र नहीं बना
और जब वह उछल रहे हों
पानी के छींटे उडाते हुए
चुपके से उनका एक फोटो खींच लो
सहेज लो इन पलों को अपनी स्म्रतियों में
शायद ये सबसे अनमोल तस्वीर होगी
उसके लिए भी और तुम्हारे लिए भी...
42 comments:
पूरी दुनियां घूम लो, पर जो सबक आम की टेरी से टपकती पानी की बूंदों से मिलता है, वह कहीं सर्राटेदार जिन्दगी से मिलता है?
मायें ही नहीं, सबके लिये सिफारिश है यह कविता!
बड़ी प्यारी सिफारिश है.
बधाई पल्लवी जी। इतनी ख़ूबसूरत सिफारिश तो माँ को मान लेनी चाहिए थी।
पिता जी तो जब ढाई बरस का था तो नदी ले जाते थे और नदी पर झुके पेड़ से मुझे पानी में छोड़ देते थे बाद में खुद कूद कर मुझे निकाल लाते थे। ऐसे ही तैरना सीखे हम।
आप की कविता ने पचास साल पीछे पहुँचा दिया। हुई न टाइम मशीन?
आपका आह्वान इस देश के नौनिहालों को साहसी, प्रयोगधर्मा एवं समस्याओं से संघर्ष कर उन पर जीत प्राप्त करने वाला बनायेगा।
इस देश की सभी माओं से ऐसे आह्वान की बहुत जरूरत है।
बहुत अच्छा लिखा है
उसे सुनने दो
बूंदों का मीठा संगीत
शायद ये संगीत उसकी आत्मा में
सरगम बनकर उतर जाए
बहुत खूब पल्लवी जी अति उत्तम रचना बधाई हो आपको
यह सिर्फ़ बच्चों के लिए ही नही सबके लिए है.मिटटी से जुड़कर ही मन की कोमल भावों संवेदनाओं को समझा महसूश किया जा सकता है.बहुत सुंदर शिफारिश है यह आपकी.
बहुत ही प्यारी सिफारिश लिखी है ..आपने इस कविता में ..
और जब वह उछल रहे हों
पानी के छींटे उडाते हुए
चुपके से उनका एक फोटो खींच लो
सहेज लो इन पलों को अपनी स्म्रतियों में
शायद ये सबसे अनमोल तस्वीर होगी
उसके लिए भी और तुम्हारे लिए भी...
यही याद ही तो है जो इसको पढ़ कर जहन में कोंध गई :)
यकीन मानो,
ये मिटटी उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी
बहुत सुंदर ! बीते समय की याद .. !
शुभकामनाएं !
उसे महसूस करने दो
मिटटी की सौंधी महक
शायद वह जान पाए
इससे अच्छा कोई इत्र नहीं बना
ekdum anuthi si rachna hai..
bahut achi lagi..
apna bachpan yad aa gaya waise to ab bhi barish ane par mujhe koi bhigne se nahin rok pata maa bhi nahin...
jari rahe
कितने सुन्दर विचार हैं-
उसे महसूस करने दो
मिटटी की सौंधी महक
शायद वह जान पाए
इससे अच्छा कोई इत्र नहीं बना
आपने बहुत ही न्यारी- प्यारी-सी तस्वीर लगाई है इस पोस्ट के साथ।
शुक्रिया।
आहा बोले तो जन्मदिन के अगले ही दिन सिफारिश रख दी आपने.............
वैसे हमने अपने नन्हे को छोड़ दिया है......आपकी सिफारिश पर ...धाँसू कविता........
बहुत ही प्यारी सिफारिश और फोटो भी बहुत प्यारी लगाई है।
सच पल्लवी आजकल के बच्चे बारिश का वो मजा कहाँ लूटते है जो हम लोगों ने बचपन मे लूटा है।
उसे महसूस करने दो
मिटटी की सौंधी महक
शायद वह जान पाए
इससे अच्छा कोई इत्र नहीं बना
उत्तम रचना .बधाई
बहुत अच्छी सिफारिश है आपकी पल्लवी जी। साधुवाद।
धरती तो मां है, और मां अपने बच्चों को कभी नुकसान पहुंचा ही नहीं सकती।
barish mein bheenge bachchon ko aapne pehle bh qaid kiya tha . Prakriti ke kareeb rahne se bachchon ko kya badon ko bhi bahut kuch achcha mehsoos karne ko milta hai.
मुझे बहुत प्यारा नाम लगा **सिफारिश** ओर इस के साथ साथ आप की कविता भी बिलकुल सिफारिश जेसी मिठ्ठी लगी. धन्यवाद
सिफारिश तो बहुत ही अच्छी है। पर हमारी बेटी तो पानी से ही दूर भागती है। पर आपकी यह सिफारिश अपनी पत्नी को जरुर पढवाऊंगा। इसे पढकर शायद वह मुझे ना रोके बच्चों की तरह भीगने से।
उसे देखने दो
बारिश में भीगता पिल्ला
कैसे अपने रोंये खड़े करके कांप रहा है
शायद वह उसे किसी सूखी जगह पर रख दे
उसे सुनने दो
बूंदों का मीठा संगीत
शायद ये संगीत उसकी आत्मा में
सरगम बनकर उतर जाए
अति सुन्दर रचना। दिल को छू लिया।
उसे देखने दो ...,उसे सुनने दो ...,उसे छूने दो ...,उसे जानने दो ...,उसे महसूस करने दो ...क्या कहने हैं पल्लवी जी !बहुत प्यारी नज़्म है !छोटी छोटी बातों को इतना बड़ा कर देना कोई आपसे सीखे और यकीनन मैं ग़लत नहीं कह रहा हूँ !
वाह ! क्या खूब लिखा है आपने।
आपकी सिफ़ारीश से पुरा इत्तेफ़ाक है !!
उसे महसूस करने दो
मिटटी की सौंधी महक
शायद वह जान पाए
इससे अच्छा कोई इत्र नहीं बना
आदि को बताऊगा ये सभी.. जरुर..
रंजन
aadityaranjan.blogspot.com
बहुत अच्छी कविता। सुन्दर फोटो!
उसे देखने दो
बारिश में भीगता पिल्ला
कैसे अपने रोंये खड़े करके कांप रहा है
शायद वह उसे किसी सूखी जगह पर रख दे
पढ़ कर अच्छा लगा
आपने जो कहना चाहा वो स्पष्ट है
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यदि कोई भी ग़ज़ल लेखन विधि को सीखना चाहता है तो यहाँ जाए
www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी
एक नर्म दिल पुलिस साहिबा की नसीहत माँओँ के साथ हरेक को याद रहेगी :)
बहुत प्यारी बात कही आपने पल्लवीजी
-लावण्या
क्या कहूं? तस्वीर जितनी प्यारी है कविता भी उतनी ही प्यारी है. बहुत अच्छा लगा देख कर,पढ़ कर. यही तो सही शिक्षा है, जो अधिकतर माताएं देना भूल गई हैं अपने बच्चों को.
क्या कहने हैं पल्लवी जी , इतनी ख़ूबसूरत सिफारिश तो माँ को मान लेनी चाहिए..
Bahut hi khoobsurt sifarish Pallavi ji.... sach
aap to kabhi hamare blog pe aayi hi nahi pallavi ji... aisi bhi kya narazgi :-)
New Post :
I don’t want to love you… but I do....
bahut pyari rachna hai mam...really beautiful.....
:)
उसे महसूस करने दो
मिटटी की सौंधी महक
शायद वह जान पाए
इससे अच्छा कोई इत्र नहीं बना
बहुत अच्छी सिफारिश की है आपने!!
इसके लिए शायद आप सभी की बधाई की पात्र हैं.
आपकी इस सिफारिश से शायद कुछ को असली बचपन मिल जाए
Soooo beautful..itne madhur shabd..pyare se.man ko lubha dene waali yeh sifaraish...really great!!
.
पल्लवी,
ऎसी कवितायें लिखने की अब सोचता ही कौन है ?
तुमने सोचा ही नहीं, बल्कि व्यक्त भी किया, अभिभूत हूँ ।मेरे मन में एक स्वार्थ जग रहा है, पर यहाँ नहीं बताओँगा ।
इतनी अच्छी कविता है, फिर भी..
बधाई न दूँगा, शाबासी भले ले ले ।
साधुवाद भी न कहूँगा, पर सलाह तो दे ही सकता हूँ..दिमाग खराब होने का अंदेशा हो जाता है..
बस ऎसी ही रचनायें देती रह..
वरना.. यह उम्र तो प्रीतम आन मिलो लिखने की मानी जात्ती रही है..
बुढ़वे तक जहाँ तहाँ बिसूरते देखे जा सकते हैं..
तुम यह लालच न करना..
ख़ुश रह, ख़ुशियाँ बिखेरती रह..
यथार्थ से जुडी...माटी की सोंधी महक लिए हमारी नज़्म....आपकी सोच और लेखन
से जरुर हमारे profession को भी नए आदर्श मिल रहें हैं. निरंतर रहें....
पल्लवी जी, आपने माटी की याद दिला दी। बेजोड़ कविता रच दिया आपने। बधाई...।
एक कविता याद आई
किसकी है ये याद नही पर...
खुलो तपो भीगो गल जाओ
तभी तुम्हे प्रकृति का आशीष मिलेगा
तभी तुम्हारे प्राणो में पलाश का फूल खिलेगा
सच कहें भीगना बारिश में ..क्या बात है अलौकिक आनंद जिसने महसूस किया है वही जान पाएगा वो आनंद.
माओं के नाम कि गयी इस छोटी सी सिफारिश ने मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया खिड़की से झाँक कर देखा बादलों का ताज़ा हाल और याद आया कि मेरे पास रेनकोट भी है.
तो क्या हुआ जिनके पास रेनकोट होते हैं क्या वो नही भीग सकते?
सच कविता भी बहुत सुंदर है और अहसास भी
और हाँ साथ वाली बच्ची की फोटो भी
कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है । –रामधारी सिंह दिनकर
...उपजहि अनत, अनत छबि लहहीं ( रचना उत्पन्न हो कवि के मन में, पर शोभा पाए अन्य लोगों के मन में )
तुलसी
बढ़िया कविता है ..
Bahut vyast rahta hoon.Kisi parichit ne charcha ki thi sun kar aacha laga aur dekh kar bhi subhkamnayen
Shiv mohan lal shrivastav ,Hyderabad
really its awesome....
u really hav a poet in u....
बहुत ही प्यारी सिफारिश....
thank u
Really Bahpan ki sab bate ...
Kash aap hamare bachpan me hoti...to aur masti kar pate ham...shayd maa aap ki bat man jati...
I love this poem....
पल्लवी जी, पढ़कर अच्छा लगा बालसुलभ मनोदशा का सुंदर, सहज चित्रण।
यकीन मानो,
ये मिटटी उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी
...
केंचुए भी रहते हैं
जो हमारे दोस्त हैं
टिप्पणी विशेषत: इसलिये भी, कि कुछ ऐसा ही हाल ही में प्रकाशित शोध में भी प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है। मैंने कुछ दिन पहले इसे पढ़ा था - शायद जिस दिन प्रकाशित हुआ था, तभी। कहीँ ऐसा तो नहीँ कि वे आपकी कविता से ही प्रेरित हुए हों ;) । मेरे विचार से इसका सन्दर्भ आपकी आपकी इस कविता के साथ ठीक ही रहेगा
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