Sunday, September 14, 2008

शायद खुशियाँ सबको अच्छी नहीं लगतीं....


अभी हाल ही में राज भाटिया जी का लेख देखा....आदतों का गुलाम होने के विषय में! कल ही घर में काम करने वाली बाई ने बताया की उसकी बेटी बहुत परेशान है...पति कुछ नहीं करता , दिन भर शराब पीता है और मारपीट करता है! कई बार सोचती हूँ...कितने लोग सिगरेट, शराब, ड्रग्स ,तम्बाकू, गुटके की चपेट में हैं...इनके नुकसानों को जानते बूझते भी नहीं छोड़ पा रहे हैं...सबसे ज्यादा घर बरबाद होते हुए मैंने देखे हैं शराब की आदत से!कितनी औरतें दिन भर कमाती हैं और शराबी पति एक झटके में उस मेहनत को बोतल में भरकर पी जाता है....उसके बाद गाली गलोज , पिटाई का देर रात तक चलने वाला सिलसिला! पति शराब पीकर सोया हुआ है और पत्नी आंसू पीकर जागती रहती है! बच्चे भी सहमकर माँ से चिपक जाते हैं....कुछ साल बीतते हैं , पति कई बीमारियों का शिकार होकर हड्डियों का ढांचा बन चूका है! लेकिन घर की स्थिति नहीं बदलती है! अब बेटे ने बाप की जगह ले ली है!बोतल की खनखनाहट अभी भी घर में गूंजती है.....ये तो हुई निचले तबके के घरों की बात जो अशिक्षित हैं! उन परिवारों का क्या जो सिर्फ फैशन समझकर या स्वयं को हाई सोसायटी दिखाने के लिए जानते बूझते इस जहर को शरीर में उतार रहे हैं!कभी उन बच्चों से पूछिए जिनका पिता शराब के नशे में झूमता हुआ घर में कदम रखता है.....क्या एक लड़खडाता हुआ पिता अपने बच्चे के क़दमों को फिसलने से रोक पायेगा?! एक शौक के रूप में शुरू हुई आदत किस कदर इंसान को शिकंजे में ले लेती है!ये तब पता चलता है जब स्थिति भयावह हो जाती है......कई परिवारों का पैसा, मान सम्मान मिटटी में मिलते मैंने अपनी आँखों से देखा है!जाने कब और कैसे ख़त्म होगी इस दुनिया से नशे की लत......? ऐसे ही किसी शराबी पति से दुखी महिला से मिलने के बाद खराब मन से कभी एक कविता लिखी थी....


तीन सहमे, डरे, सिमटे हुए बच्चे
कसकर पकडे
एकदूसरे का हाथ
घर के कोने में बैठे हैं...

माँ भी अपना सूजा बदन लिए
दर्द से कराहती
आँखों में
दर्द,बेबसी,अपमान और
शर्म के आंसू लिए
औंधे मुंह पड़ी है

मोहल्ले के लोगों को
कुछ देर के लिए
अपनी जिंदगी को भूलकर
मौका मिल गया है हँसने का
आखिर देखना चाहते हैं सभी
मुफ्त का तमाशा

और...
बच्चों का पिता
नशे में चूर
दिन भर की कमाई
शराब के नाम कर आया है और
फर्श पर पड़ा है
खून उगलता हुआ

और... ख़ुशी के मारे
पास ही नाच रही है
शराब की एक बोतल
आधी भरी...
गुरूर से कहती हुई
तू खुश है मुझे पीकर
और मैं बहुत खुश हूँ
तेरा जिस्म,दौलत,सम्मान
और परिवार की खुशियाँ पीकर....

27 comments:

डॉ .अनुराग said...

मेडीसिन में एक टर्म है "alcohal abuse "ये लोग ऐसे ही होते है.....हम आप भले ही कितने शब्दों के जाल बुन ले ,कितने तर्क गढ़ ले पर सच यही है की आज भी हिन्दुस्तान में कित्न्नी औरते इस तरह के नकारा लोगो को झेल रही है ,बर्दाश्त कर रही है ओर बच्चो ,समाज की खातिर अपने उस घर को बचाने की एक तरफा कोशिश में बरसो से लगी हुई है ....दुर्भाग्य से इस देश में घरेलु हिंसा को कानून के रखवाले भी संजीदगी से नही लेते ,पिटकर आयी औरतो को वे समझा बुझा कर बिना रिपोर्ट कराये भेज देते है........कभी पद्मा सचदेव ने लिखा था की "एक औरत अपने जीवन में ढेरो पुल पार करती है "...ये पुल अब भी जिन्दा है ...बस कुछ जगह ये पैंट किए हुए ओर सजे हुए है......

Gyan Dutt Pandey said...

एक उदाहरण तो मेरे पास है - मणियवा

शेरघाटी said...

prose mein aapne jo sawaal uthaaya hai, waajib hai.bhai anuraag ne wahi bat kah di hai jo main kahta.

kavita mein jaldi baazi lagi.
kavita nahin ban paayi.

kirpa kar anytha na lijiyega.

waise aapke lekhan ke ik qadr daan ham bhi hain.

कुश said...

जानकार खुशी हुई की ब्लॉग्स में सामाजिक कुरीतीयो जैसे सवाल भी उठाए जाते है वरना पिछले कुछ समय से यहा के लोग सिर्फ़ महिला मुक्ति और मज़हब तक ही अटके हुए थे

जितेन्द़ भगत said...

वाजि‍ब बात लि‍खी गई है-

शराब की एक बोतल
आधी भरी...
गुरूर से कहती हुई
तू खुश है मुझे पीकर
और मैं बहुत खुश हूँ
तेरा जिस्म,दौलत,सम्मान
और परिवार की खुशियाँ पीकर....

फ़िरदौस ख़ान said...

मोहल्ले के लोगों को
कुछ देर के लिए
अपनी जिंदगी को भूलकर
मौका मिल गया है हँसने का
आखिर देखना चाहते हैं सभी
मुफ्त का तमाशा

शानदार...बहुत मार्मिक कविता है...

मीत said...

bilkul sahi likha hai aapne...
na jane kyon.. aisa hota hai...
par mujhe yaqeen hai ek din jarur badlav ayega...

ताऊ रामपुरिया said...

ज्वलंत सामाजिक समस्या पर ध्यान आकर्षित करने
के लिए आपको बहुत धन्यवाद ! हमेशा आपके लेख
कुछ ना कुछ मकसद लिए रहते हैं ! धन्यवाद !

MANVINDER BHIMBER said...

मोहल्ले के लोगों को
कुछ देर के लिए
अपनी जिंदगी को भूलकर
मौका मिल गया है हँसने का
आखिर देखना चाहते हैं सभी
मुफ्त का तमाशा
bahut sahi likha hai

रंजना said...

सजीव चित्रण किया है आपने.
कहते हैं देश तरक्की कर रहा है,आदमी सभ्य हो रहा है और औसत जीवन स्तर सुधर रहा है,पर आज भी १५-२० फीसदी यही जीवन जी रहा है.निम्न वर्ग में तो यह बिल्कुल ही आम बात है पर इस दर्द के साथ जो जीता है वही इसकी तासीर समझ सकता है.मैंने बहुत नजदीक से ऐसे बहुत सी जिंदगियां देखी हैं.

सुशील छौक्कर said...

यह समस्या एकसे कपडे पहने हर गली मोहल्ले मिल जाऐगी। और इसका शिकार औरत, बच्चे ही होते है। पता नही लोग इतनी शराब क्यों पिते है।खैर आपने ध्यान दिलाया इस समस्या पर इसके लिए शुक्रिया।
तीन सहमे, डरे, सिमटे हुए बच्चे
कसकर पकडे
एकदूसरे का हाथ
घर के कोने में बैठे हैं...
बिल्कुल ऐसा ही होता है। आपने सही तस्वीर पेश की।

महेन्द्र मिश्र said...

apki rachana saty par adharit lagi .kuch mazadoor mahilaye dinabhar shrm kar paise kamati hai par unke pati unki kamaai par darukhori karte hai .ye vaakye har jagah dekhane ko mil jate hai .
Pallavi ji badhaai.

Anonymous said...

कितनी औरतें दिन भर कमाती हैं और शराबी पति एक झटके में उस मेहनत को बोतल में भरकर पी जाता है....उसके बाद गाली गलोज , पिटाई का देर रात तक चलने वाला सिलसिला! पति शराब पीकर सोया हुआ है और पत्नी आंसू पीकर जागती रहती है!
कभी उन बच्चों से पूछिए जिनका पिता शराब के नशे में झूमता हुआ घर में कदम रखता है.....क्या एक लड़खडाता हुआ पिता अपने बच्चे के क़दमों को फिसलने से रोक पायेगा?!
bilkul sahii likha haen aapney sharaab se naa jaaney kitney ghar barbaad hotey haen , kitini mahilaa aur bachho kaa jeewan varth hotaa haen
aap nirantar likhey kyoki aap jis jageh haen us jageh kae naubhav bahut kuch sikhatey haen
aur
@kush
महिला मुक्ति और मज़हब par jo bhi baat kartey haen wo sab saamjik kuritiyon sae hee lad rahey haen
blog par kaun kyaa likhna chahtaa haen yae uska nij kaa faeslla hota haen aur kisae kyaa padhna achhalagtaa haen yae bhi nij hota haen

Abhishek Ojha said...

लोग कहते हैं की वो शराब पीते हैं... लेकिन शराब ही तो उन्हें पीती है...

छू गया ये लेख. ऐसी समस्याएं हर मुहल्ले में दिखती हैं.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

When will the Women & children of such abusees get a Fair treatment
& leada better life ?
Very good poem showing reality.
( sorry to comment in English, I'm away from my PC )

डा. अमर कुमार said...

.

छूटती नहीं है.. क़ाफ़िर मुँह की लगी हुई...ऎसा सुना पढ़ा करता हूँ, तो लोगों को अपनी इल्लत वा नाक़ामयाबी को ढकने का एक खूबसूरत मुल्लम्मा मिल जाता है ।



पर, मैं थोड़ा नाइत्तेफ़ाकी अर्ज़ करना चाहूँगा..
शराब के ठेके की ऊँची बोली लगवाने की नीति.. एक्साइज़ रेवेन्यू बढ़ा्ने के तौर तरीके क्या किसी को कुछ और सोचने पर मज़बूर क्यों नहीं करतीं ?
छोटे स्तर पर घरेलू शराब की भट्टियाँ अपनी माँग पूरी कर सकती हैं, लेकिन रेवेन्यू का चूना लग रहा हो.. तो वह शराब ग़ैरका्नूनी कहलाने लगती है । फिर शुरु होता है.. पुलिस व प्रशासन से लुकाछिपी का खेल.. जिसमें महारत हासिल कर उन पर ज़रायमपेशा का लेबल लगा दिया जाता है ।

दूसरी तरफ़ इसी रेवेन्यू का कुछेक फ़ीसदी मद्यनिषेध पर जाया करने का दिखावा चलता है.. बड़ेबाबू एस.बी सिंह सिर्फ़ इस बिना पर मई से मुअत्तल चल रहे हैं, कि वह मार्च तक अपना मद्यनिषेध बज़ट ख़र्च न कर पाये.. और मित्तल साहब इसलिये ज़वाबतलब किये गये की वह 2006-2007 के मुकाबले सत्र 2007-2008 में रेवेन्यू वसूली में लक्ष्य से पीछे क्यों रह गये !

यह नीति ही मदहोश सी एक गोल चौराहे का चक्कर लगा रही है..

इसकी जड़ तक कोई क्यों जाये ?

राज भाटिय़ा said...

अगर एक शराबी से पुछा जाये कि भाई तुम शराब क्यो पीते हो तो कारण मिल ही जाता हे, ओर उस का इलाज भी हो जाता हे, कुछ केसो को छोड कर, मेने कई शारबियो से दोस्त के नाते सवाल किये तो मे हेरान रह गया उन की बाते सुन कर,एक समय तक तो यह छोडना चाहते हे लेकिन उनके अपने ही उसे नही छोडने देते....मे चाहुगा इस विषय पर खुल कर बात होनी चाहिये...
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

वाह पल्लवी, बहुत ही प्रभावी रचना लिखी है. शराबखोरी की लत से बर्बाद होते घर चारों ओर फैले हैं. तुम्हारे संवेदनशील मन ने उन्हे शब्द दिये. इसे किसी अखबार से छपवाओ जन चेतना के लिए..एक बार फिर से आज- शाबास!!

admin said...

शराब की एक बोतल
आधी भरी...
गुरूर से कहती हुई
तू खुश है मुझे पीकर
और मैं बहुत खुश हूँ
तेरा जिस्म,दौलत,सम्मान
और परिवार की खुशियाँ पीकर....

बहुत सार्थक बात कह दी है आपने इन पंक्तियों में।
पर कमबख्त इंसान फिरभी नहीं समझता।

योगेन्द्र मौदगिल said...

सुघड़-सामयिक विडम्बना के सामाजिक विद्रूपण को सही पंक्तियां दी आपने...
किंतु ये विसंगति खत्म होंगी क्या..?

स्वाति said...

sarthak aur vicharottajak lekh jo sachhai bayan kar raha hai.

Manish Kumar said...

samvendansheel chitran kiya hai aapne sharabi vyakti ke parivaar ka...

is bimari ke prati aapki vyakt bhaavnaon se poorntah sahmat hoon.

रंजू भाटिया said...

देर से पढ़ा इस सुंदर लेख को उसके लिए माफ़ी .बहुत सही लिखा है आपने पल्लवी जी ...

आलोक कुमार said...

क्या एक लड़खडाता हुआ पिता अपने बच्चे के क़दमों को फिसलने से रोक पायेगा?
कभी नहीं....जो इंसान समाज से नहीं डरता उसे कम से कम अपने बच्चों से तो डरना ही चाहिए क्यूंकि माता-पिता के चरित्र का प्रभाव बच्चों पर ही पड़ता है !!

roushan said...

एक पुरानी समस्या जो न जाने कितने समय तक जरी रहेगी की ओर ध्यान खींचने के लिए साधुवाद. अब तो लगता है की मद्यनिषेध सरकारी प्राथमिकताओं से भी ओझल होता जब रहा है. बच जाती है, जैसा कि अपने याद दिलाया, एक तमाशाई भीड़ और कुछ आहत मनोदशाएँ. यूँ ही लिखती रहिये

Dev said...

Bahut acha likha hai..
Badhai..
http://dev-poetry.blogspot.com/

Ravi Rajbhar said...

Please...........................................mujhe rulaiye mat.