आज बरसों बाद तुम्हे देखा
अच्छे लग रहे थे काली टीशर्ट और जींस में
पर तुम्हे कह भी न पायी
बस...यादें खींच कर ले गयीं बीते दिनों में
अभी कल की ही तो बात थी
तुम शामिल थे मेरी ढलती शामों और
उनींदी रातों में
हमारी ख्वाहिशों ने साथ ही तो
मचलना सीखा था
याद है...
उस रात नंगे पाँव लॉन में टहलते हुए
तुम बेवजह ही हँसे थे
मेरे सरदारों वाले जोक्स पर , और
चाँद भी बादलों पर कोहनी टिकाये
खिलखिला दिया था...
आज भी याद है वो वीराना चर्च
जहां एक रोज़ हमने अपनी धड़कनें बदली थीं
और सलीब पर टंगा ईसा
हौले से मुस्कुराया था
एक डूबती शाम को
अच्छे लग रहे थे काली टीशर्ट और जींस में
पर तुम्हे कह भी न पायी
बस...यादें खींच कर ले गयीं बीते दिनों में
अभी कल की ही तो बात थी
तुम शामिल थे मेरी ढलती शामों और
उनींदी रातों में
हमारी ख्वाहिशों ने साथ ही तो
मचलना सीखा था
याद है...
उस रात नंगे पाँव लॉन में टहलते हुए
तुम बेवजह ही हँसे थे
मेरे सरदारों वाले जोक्स पर , और
चाँद भी बादलों पर कोहनी टिकाये
खिलखिला दिया था...
आज भी याद है वो वीराना चर्च
जहां एक रोज़ हमने अपनी धड़कनें बदली थीं
और सलीब पर टंगा ईसा
हौले से मुस्कुराया था
एक डूबती शाम को
चिनार के तले
तुमने अपने लबों से सुलगाया था
मेरे सर्द लबों को
सूखी पत्तियां चरमराकर जल उठी थीं
और तुम कह उठे थे जज्बाती होकर
हमारा ये रिश्ता
पाक है एक इबादत की तरह
मासूम है किसी दुधमुंहे बच्चे की हंसी जैसा
और सच्चा है माँ की दुआओं जितना
और आज....
क्योंकि कोई और बैठती है
तुम्हारी कार की फ्रन्ट सीट पर
सिर्फ इसी लिए हमारा रिश्ता
बन गया एक नाजायज़ रिश्ता
ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ना...?
तुमने अपने लबों से सुलगाया था
मेरे सर्द लबों को
सूखी पत्तियां चरमराकर जल उठी थीं
और तुम कह उठे थे जज्बाती होकर
हमारा ये रिश्ता
पाक है एक इबादत की तरह
मासूम है किसी दुधमुंहे बच्चे की हंसी जैसा
और सच्चा है माँ की दुआओं जितना
और आज....
क्योंकि कोई और बैठती है
तुम्हारी कार की फ्रन्ट सीट पर
सिर्फ इसी लिए हमारा रिश्ता
बन गया एक नाजायज़ रिश्ता
ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ना...?
40 comments:
उस रात नंगे पाँव लॉन में टहलते हुए
तुम बेवजह ही हँसे थे
मेरे सरदारों वाले जोक्स पर , और
चाँद भी बादलों पर कोहनी टिकाये
खिलखिला दिया था...
bahut khub, par meindard aur khushi ki dastan kehti bahut sundar kavita
ज़िंदगी... कैसे है पहेली.. हाय!
कभी ये हंसाये... कभी ये रुलाये! हाय!
सुंदर कविता!
वैसे रिश्ता हमेशा एक ही नाम से जाना जाता है, लेकिन परिस्िथतियॉं उसे नया नाम, नई पहचान दे देती है। रिश्तों के बदलाव को सही अंकित किया है आपने-
और आज....
क्योंकि कोई और बैठती है
तुम्हारी कार की फ्रन्ट सीट पर
सिर्फ इसी लिए हमारा रिश्ता
बन गया एक नाजायज़ रिश्ता
very nice
क्योंकि कोई और बैठती है
तुम्हारी कार की फ्रन्ट सीट पर
सिर्फ इसी लिए हमारा रिश्ता
बन गया एक नाजायज़ रिश्ता
Its really very tough to compose your inner feelings into words with such a a simplicity.
Very well said. Keep it up....
आज भी याद है वो वीराना चर्च
जहां एक रोज़ हमने अपनी धड़कनें बदली थीं
और सलीब पर टंगा ईसा
हौले से मुस्कुराया था
सुंदर अति सुंदर ! शुभकामनाएं !
yaadon ko taja kar diya ,
jo college ke dino me bitayi thi
Aapki post nahin khul rahi hai, kshma karen padh nahin paya is liye kya pratikriya dun.Shayad font ki koi problem hai.
और आज....
क्योंकि कोई और बैठती है
तुम्हारी कार की फ्रन्ट सीट पर
सिर्फ इसी लिए हमारा रिश्ता
बन गया एक नाजायज़ रिश्ता
bahur sunder
bahut accha likha hai ji aapne ye kavita badaiyan
और आज....
क्योंकि कोई और बैठती है
तुम्हारी कार की फ्रन्ट सीट पर
सिर्फ इसी लिए हमारा रिश्ता
बन गया एक नायज़ रिश्ता
bahut sunder rachana
relation are never illicit, it s the perception of individual or group of people who feels the so becaz of mental weakness
regards
बहुत अच्छी कविता है भावनाओं का सुंदर चित्रण किया है आपने. कविता वही अच्छी होती है जो सीध्हे हो समझ में आए ताकि उसका असर हो. हाँ मुझे ये कहना था की कविता अधूरी है कार की फ्रंट सीट पर जो आ बैठी है उसका कथन बहुत महत्वपूर्ण होगा ......
bahut hi badhiyaa
.
ना, पल्लवी.. कविता बेशक दिल को छूती है,
पर इसमें निहित मूल भावना से मैं सहमत नही हो पा रहा हूँ ।
यह रिश्ता शायद ही कभी टूट पायेगा,क्योंकि ऎसे अनोखे रिश्ते टूटा नहीं करते । इसे कोई नाम देने की कोशिश ही इसे ज़ायज़ या नाज़ायज़ बनाती है ।
आकर्षण व प्रेम इसे मरने नहीं देता, पर कुछ पा लेना ही है, यह अभिलाषा इस रिश्ते को जीने नहीं देती ।
पाक रिश्ते कभी नहीं टूटते, वे नाजायज भी नहीं होते।
सचा प्यार कभी नही भुलता, ओर ना ही उस पर आंखे झुकनी चाहिये,तो फ़िर केसे नाजायज होगा, हां अगर प्यार सिर्फ़ दिखावा हो तो सब कुछ हो सकता है.
धन्यवाद
अनुभूति जब ग्राउण्ड रियालिटी से टकराती है तो इस तरह की सुन्दर कविता निकलती है।
डा.अनुराग की कविता पढी थी और आज आपकी ..
दोनोँ ही आकर्षक लगीँ :)
कुछ रिश्ते अपने एहसास लिए हमेशा दिल में ही रहते हैं ..आपकी यह कविता बहुत पसंद आई .सच के करीब है यह बहुत
कविता का शिल्प, शैली और भाव उत्तम है. विषय, प्रस्तुतीकरण रचनाकार की थाती है. सरोकार से पाठक अपने को अवश्य जोड़कर देखता है. स्वागत है आपका बहुत दिनों बाद कोई पोस्ट आयी.
रिश्तों की मौत तभी होती है जब वह जायज-नाजायज की हदों को भी पार कर जाएं। जब तक आप किसी रिश्ते को जायज या नाजायज मान रहें हैं तब तक वह रिश्ता कायम रहता है।
Vah Pallavi ji ,
Kya kahne hain.
ati sundar aur sukshm anubhuti aur kamaal ki shaleen abhivyakti.
Badhaiyan dil se.
Kal se ek saptaah tak aapke shahar me rahna hai.
Man aur samay ho to call karke mile. Khushi Hogi.
Kafi din ke baad aapka blog dekha hai, nai sajavat aur photo Mohak hain.
Aapki lekhni se Jharne jhar rahe hain aajkal...................
बहुत अच्छी कविता है।
rishte rishte hote hain, ajeeb nahi, sirf anubhav achche, bhure aur ajeeb hote hain... bahut achchhii kavita likhi hai
regards
कुछ रिश्ते ऐसे भी होते जिनको कोई नाम नहीं दिया जा सकता। बहुत ही सुन्दर रचना लिखी है आपने।
हमारा ये रिश्ता
पाक है एक इबादत की तरह
मासूम है किसी दुधमुंहे बच्चे की हंसी जैसा
और सच्चा है माँ की दुआओं जितना
देर से आने के लिए मुआफी .....कही कही बीच से उठायूं तो नज़्म सी लगती है......जैसे यहाँ
एक डूबती शाम को
चिनार के तले
तुमने अपने लबों से सुलगाया था
मेरे सर्द लबों को
सूखी पत्तियां चरमराकर जल उठी थीं
वैसे सच कहूँ ......ये मेरी favourite है इन सब लफ्जों के बीच
ओर कहीं कही एक कविता सी.......जैसे
और तुम कह उठे थे जज्बाती होकर
हमारा ये रिश्ता
पाक है एक इबादत की तरह
मासूम है किसी दुधमुंहे बच्चे की हंसी
और सच्चा है माँ की दुआओं जितना
ओर यहाँ .....फ़िर एक मासूम सी कविता .......
उस रात नंगे पाँव लॉन में टहलते हुए
तुम बेवजह ही हँसे थे
मेरे सरदारों वाले जोक्स पर , और
चाँद भी बादलों पर कोहनी टिकाये
खिलखिला दिया था...
हम सब के बीच कही गहरे तक ....एक ओर इंसान होता है जो दौड़ती भागती जिंदगी में ...कभी कभी हमसे मिलता है....वैसे भी कविता का अर्थ है ऐसा लिखना जो निजी न होकर सबका लगे ....
"मेरे सर्द लबों को
सूखी पत्तियां चरमराकर जल उठी "
वापस अपने पसंदीदा लफ्जों की तरफ़ लौटता हूँ....
behad khoobsoorat...dard bhi muskurahat bhi aur anchhuye se shabdon me bheege se ahsaas. bahut acchi lagi khas taur se...
मेरे सर्द लबों को
सूखी पत्तियां चरमराकर जल उठी थीं
आज भी याद है वो वीराना चर्च
जहां एक रोज़ हमने अपनी धड़कनें बदली थीं
और सलीब पर टंगा ईसा
हौले से मुस्कुराया था
keep it up
एक अच्छी गुलजारिश रचना
हाँ अंत में ये नाज़ायज़ शब्द कुछ जँचा नहीं। नए रिश्तों के पनपने के बाद पुराने रिश्ते बासी जरूर हो जाते हैं पर क्या वे नाज़ायज़ कहे जाएँगे ?
अजीब रिश्ते ही कहेंगे, नाजायज क्यों?
ऐसी यादें शायद सबके साथ होती हैं... ठीक ऐसी हो न हो, भावनाएं तो ऐसी होती ही हैं. खूब ढाला है आपने शब्दों में.
Sach rishte bahut azeeb hote hai... kabhi kabhi bahut ulajh jata hu in risto ke pher mein.. kuch aise log hai jinke liye hamesha yeh dukh rahega ki yeh mere rishtedaar kyon na hue.. aur kuch aise log hai jinhe dekh kar hamesha lagta hai ki hai yeh mere rishtedar kyon hue...
bahut achi kavita hai.. bahut hi achi.. blogging mein aaj kal sab apne beete hue sunahre pal ko yaad kar rahe hai.. woh sunahre pal jab unke pas the to unhe kabhi nahi pata tha ki yeh sunahare pal hai jo kal bahut yaad aayege :-)
Rohit Tripathi
bahut hi sundar, pallavi ji.
gazab ki paipakwata,gazab ki sonch,puri lekhani me mili hai bahot hi umda hai magar jo rishte pak hai wo hamesha pak hi hote hai jaisa mera manana hai chahe wo hasil ho ya na ho..
एक डूबती शाम को
चिनार के तले
तुमने अपने लबों से सुलगाया था
मेरे सर्द लबों को
सूखी पत्तियां चरमराकर जल उठी थीं
bahot hi shandar ,aur umdda rachana hai bahot bahot badhai aapko...
regards
और तुम कह उठे थे जज्बाती होकर
हमारा ये रिश्ता
पाक है एक इबादत की तरह
मासूम है किसी दुधमुंहे बच्चे की हंसी
और सच्चा है माँ की दुआओं जितना
Amazing lines
Wonderful poem
कार की फ्रंट सीट पर बैठने कर हक हमारा समाज केवल एक को ही देता है पर यही समाज रिश्तों की दुनिया को नहीं समझ पता है और अपनी तरह सोचते हुए ही सभी को वैसा ही समझ लेता है.... बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है जो एक झटके में सबसे पवित्र रिश्ते को ही नाजायज़ कर देने की भ्रान्ति की ओर ध्यान खींचती है....
बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता। ज्यादा कुछ लिखने की जरुरत ही नहीं महसूस हो रही। सब कुछ तो बयां कर रही है यह कविता। यह पंक्तियां खास पसंद आईं--
आज भी याद है वो वीराना चर्च
जहां एक रोज़ हमने अपनी धड़कनें बदली थीं
और सलीब पर टंगा ईसा
हौले से मुस्कुराया था
ultimate....superb....tareef ke liye shabd kam hain
I’m impressed by the way you beautifully portrayed the slice of life which is encountered by most of us....But I don’t know why I’m saying this ... this poem is not for blogs in other words not for everybody that dilutes the intensity moment which this poem is capturing flawlessly .
Keep writing
Regards
Divya Prakash Dubey
www.esakyunhotahai.blogspot.com
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