Wednesday, October 15, 2008

जिंदगी के सिक्के का खोटा पहलू


आज ऑफिस में बैठे बैठे दरवाजे के बाहर नज़र पड़ी...एक बच्चा काफी देर से एक सिपाही के साथ खडा था! उत्सुकता वश अन्दर बुलाया...पता चला बच्चे पर चोरी का इल्जाम है और बाल अपराध शाखा में पूछताछ के लिए लाया गया है! एक दुबला पतला,सांवला सा करीब १२-१३ साल का लड़का आकर सामने खडा हुआ!

"क्या नाम है तुम्हारा?" मैंने उससे पूछा!
"आशीष" नीचे सर झुकाए उसने जवाब दिया!
कितने साल के हो?
१४ साल का
कहाँ तक पढ़े हो"
छठवी क्लास तक....
इतने में उसकी माँ भी पीछे पीछे आ गयी....
पढाई क्यों छोड़ दी?" मैंने आगे पूछा!
" पैसे कमाना था....इसलिए स्टेशन पर पोपकोर्न बेचने लगा!

" साहब...क्या करें? मेरा पति मर गया है...चार बच्चे हैं!सब नहीं कमाएंगे तो कैसे चलेगा? बच्चे की माँ बीच में बोली!
ये बताओ...चोरी करना कैसे सीखा? कब से कर रहे हो? कितनी बार पकडे गए हो?" मैंने इकट्ठे कई सवाल एक साथ किये!
" राधेश्याम ने जेब काटना सिखाया ....दो साल से चोरी कर रहा हूँ...दो बार सुधार गृह रह चुका हूँ!" नीची निगाह से आशीष ने बिना किसी लाग लपेट के बताया!
" सुधार गृह में रहने के बाद भी फिर से चोरी करते पकडे गए....क्या सीखा तुमने वहाँ? क्या फायदा हुआ वहाँ रखने का?" मैंने खीजकर पूछा!
" साब.. झाडू लगाना , बर्तन धोना, खाना बनाना और......इतना कहकर वह चुप हो गया और वापस नीचे देखने लगा!
" और क्या.....बोलो"
" और...ब्लेड नाखून में फंसाकर जेब काटना, ट्रेन की खिड़की से पर्स छीनकर भागना...." उसका सर अभी भी नीचे था !


मैंने ध्यान से उसे देखा....इतना मासूम चेहरा की अगर वह झूठ ही कह देता कि उसे पुलिस ने गलत पकडा है तो शायद उसकी बात पर मैं तुंरत विश्वास कर लेती ! उस बच्चे की कितनी गलती है जिसने शिक्षा के नाम पर जैसे तैसे छठवी क्लास पास की है...जिसकी माँ का कहना है कि पढ़ लिख कर क्या करेगा, जिसके दोस्त राधेश्याम जैसे चोर उचक्के हैं और जिसको पैसा कैसे कमाना चाहिए ये बताने वाला कोई नहीं है! और जिस सुधार गृह में उसे भेजा जाता है...वहाँ से वह चोरी करने के नए तरीके सीख कर आता है! सुधार गृह तो इन उभरते बाल अपराधियों के लिए ट्रेनिंग सेंटर का काम कर रहे हैं जहां उससे ज्यादा उम्र के बच्चे उसे पेशेवर बनने का हुनर सिखा रहे हैं....

मैं बच्चे को मेहनत करने और पढाई करने के लिए समझाती हूँ...बच्चा पहली बार मुस्कुरा कर सर हिलाता है...उसके गुटके के कारण बदरंगे दांत उसकी एक और बुरी आदत की पोल खोलते हैं! माँ भी वादा करती है की उसे स्कूल भेजेगी....दोनों चले जाते हैं ! पर मुझे मालूम है....शायद कुछ ही दिनों बाद ये बच्चा दोबारा कहीं और चोरी करता पकडा जायेगा! माँ को भी आदत हो गयी है..बच्चे के जेल जाने की! सचमुच लगता है , गरीबी से बड़ा गुनाह कोई नहीं है!

बच्चे के पीछे पीछे मैं भी बाल अपराध शाखा तक चली जाती हूँ....देखती हूँ वहाँ जमीन पर ऐसे ही तीन आशीष और बैठे हुए हैं! मन खराब हो जाता है! लिख तो रही हूँ ये सब, पर लिखने से क्या होगा....काश कुछ कर भी पाती...

54 comments:

"अर्श" said...

bahot hi badhiya subject ka title diya hai. bahot hi marmik hai ....

regards

eSwami said...

यह एक दु:खद वैश्विक सत्य है - अगाडी हो या पिछाडी, पूर्वी हो या पश्चिमी हर अर्थव्यवस्था में ऐसे लाखों बच्चे पल रहे हैं.

डॉ .अनुराग said...

रोज ऐसे कितने अनुभव से गुजरता हूँ.....जेब में फूटी कौडी नही....बीमारी इतनी बड़ी है ...तीन चार बच्चे ओर है....खून की जांच भी जरूरी है....फीस तो चलो मुआफ कर दो......पर दवा तो कोई मुफ्त में नही देगा ....मां को देखकर लगता है खद बीमार है ...कितनी बार रोज ऐसे हालातो से गुजरना पड़ता है......कुछ ऐसा ही कल हुआ था मेरे साथ एस्कोर्ट से लौटे वक़्त...सिदार्थ के ब्लॉग पर वही लिखा है.....

Puja Upadhyay said...

kuch bhi karna hamesha soch se shuru hota hai, chinta mat kijiye pallavi,aaj aapke dil me kuch karne ka khyal aaya hai. mujhe poori ummid hai ek din aap in logo ke liye kuch sarthak karengi.

श्यामल सुमन said...

पल्लवी जी,

यथार्थ का सजीव चित्रण है आपकी रचना में। "सचमुच लगता है , गरीबी से बड़ा गुनाह कोई नहीं है!" बिल्कुल ठीक कहा आपने। दो पंक्तियाँ भेज रहा हूँ-

खाकर के सूखी रोटी लहू बूँद भर बना।
फिर से लहू जला के रोटी जुटाते हैं।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman. blogspot. com

रंजू भाटिया said...

किसी बात को जब तक हम अनुभव करते हैं ..समझिये कुछ कर गुजरने की चाहत है हम में अभी बाकी ....दिल दुखा देते है इस तरह के प्रसंग

रश्मि प्रभा... said...

ek dukhad swapn .......

ताऊ रामपुरिया said...

" साब.. झाडू लगाना , बर्तन धोना, खाना बनाना और......इतना कहकर वह चुप हो गया और वापस नीचे देखने लगा!
" और क्या.....बोलो"
" और...ब्लेड नाखून में फंसाकर जेब काटना, ट्रेन की खिड़की से पर्स छीनकर भागना...." उसका सर अभी भी नीचे था !

यही कड़वी हकीकत है ! शायद कुछ तो किया जा सकता है पर बहुत कुछ नही ! कितने असमर्थ लोग हैं हम ?

सुशील छौक्कर said...

मैं तो रोज देखता हूँ सुबह आफिस जाते वक्त ऐसे बच्चों को। कोई पानी की थैली बेकता मिलता है और कोई .......। अभी कुणाल के आरकुट पर गया था जहाँ ये मिला।
अब जैसा भी चाहें जिसे हालात बना दें
है यूँ कि कोई शख़्स बुरा है, न भला है

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दुख होता है ..इन्हेँ कौन सुधारेगा और एक कमाऊ जीवन जीना सीखलायेगा ?

प्रदीप मानोरिया said...

पल्लवी जी आपकी काव्य रचनाओं में और आलेख में भी दोनों में आपके ह्रदय में बसी संवेदना स्पष्ट झलकती है .. अच्छी रचनाओं को पढ़वाने के लिए बहुत धन्यबाद .. मैं भी मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में रहकर कुछ छोटा मोटा लिख लेता हूँ मेरे ब्लॉग पर समय निकाल कर पधारें और टिपिया कर अपनी पसंद न-पसंद से अवगत कराएँ

Tarun said...

yehi hai zindagi aur yehi hai such, inki buniyaad itni majboot hoti hai ki ek-do baar ki baaton se asar nahi hota aur dusri haqiqat 'jinda rehne ki jaddojahat'.

दिनेशराय द्विवेदी said...

व्यवस्था के दुष्चक्र में
सारी संवेदनाएँ
हो जाती हैं हवा।
ताकते रह जाते हैं
हम
कहाँ गई?
क्या करें?

समीर यादव said...

बाल अपराध शाखा, बाल सुधार गृह, किशोर अपचारी संरक्षण अधिनियम, बाल विकास परियोजना और कुछ इसी नाम से चलायी और चलवायी जा रही सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की योजनाओं की दशा और दिशा क्या है, शायद आप कतई अपरिचित नहीं हैं. आपकी पीड़ा केवल "आशीष" को बाल सुधार गृह की स्थिति में देखकर नहीं अपितु पूरी व्यवस्था में स्वयं को निरीह पाने की है, क्योंकि जो समझता है उसे ही तो अधिक पीड़ा होगी.

राज भाटिय़ा said...

जब भी इन की ओर देखता हु तो दिल तडप उठता है; करना चाहु भी तो कुछ नही कर सकता,
धन्य्वाद

अमिताभ मीत said...

A very nice account. Some issues such as this one are our collective responsibility .... and hence, ironically, no one will ever take them up.

Manish Kumar said...

किसी बात को महसूस करने के बावजूद कुछ ना कर पाने की असहायता हम सबों को सालती है। बस हम सब अपना कार्य जिसके लिए हम जिम्मेवार हैं बढ़िया तरीकें से करें तो निश्चय ही ऐसी समस्याएँ समाज में कम होंगी।

Shiv said...

हालत बड़ी ख़राब है.
मुझे लगता है इन समस्याओं का समाधान न्यूक्लीयर डील में है.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

जल्दी से ये न्यूक्लियर डील हो जाए ताकि समाज का भला हो जाए. जब बिजली आएगी तो ये बच्चे वही खायेंगे, पीयेंगे, पहनेंगे और ओढेंगे.
आप के व्यंग्य बड़े ही मजेदार लगते हैं, आज शायद दूसरी बार ही आया हूँ. आप का चेहरा देख कर याद आया अरे ! यह तो वही है जिसके [ सपने हमें रोज़... :) मजाक कर रहा हूँ ] ब्लॉग पर एक बार अंग्रेज़ी भाषा पर एक व्यंग्य पढ़ा था. बहुत अच्छा था.
लिखती रहिये हम भी आते रहेंगे.

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहतरीन तहरीर...विषय भी अच्छा है...आपने समाज को बेहतर बनाने के लिए हम सबको ही मिलकर कम करना होगा...

RADHIKA said...

बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने ,बहुत अच्छी प्रस्तुति .

makrand said...

sincerely i am greatful in this materilistic world people of such beautiful heart r their
great compostion
regards

दीपक said...

गरिबी एक बहुत बडा अभिशाप है !!

मानवता के लिये अपमानजनक है यह सत्य !!

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत प्रभावी लिखा जी।

ललितमोहन त्रिवेदी said...

बच्चे के पीछे पीछे मैं भी बाल अपराध शाखा तक चली जाती हूँ....देखती हूँ वहाँ जमीन पर ऐसे ही तीन आशीष और बैठे हुए हैं! मन खराब हो जाता है! लिख तो रही हूँ ये सब, पर लिखने से क्या होगा....काश कुछ कर भी पाती...
पल्लवी जी !भगवान आपको ऐसा ही संवेदनशील बनाये रखे !इच्छा ही तो है जो पहले बलवती और फ़िर फलवती होती है !बहुत गहरे जाकर सोचती हैं आप !ये ज़ज्बा आपको बहुत ऊपर ले जाएगा !

siddheshwar singh said...

काश कुछ कर भी पाती...
यह संवेदनशीलता और छटपटाहट ही तो आज नहीं कल कुछ करेगी जरूर..यकीन है.

जितेन्द़ भगत said...

हालात के सामने सभी मजबूर हो जाते हैं और गरीबी तो सबसे बुरी मजबूरी है।
सोचना चाहता हूँ कि‍ ऐसे बच्‍चों के लि‍ए कुछ कि‍या जाए, ऐसी इच्‍छा शक्‍ति‍ भी है, तब उन दि‍नों आप जैसे लोग साथ देंगे तो समाज का एक हि‍स्‍सा जरुर अपंग होने से बच जाएगा।
ऐसे लेख काफी प्रेरणादायी होते हैं, लोगों के दि‍ल में कुछ तो सद् भावना जगती है। शुक्रि‍या।

डा० अमर कुमार said...

.

सही है पल्लवी, मेरा तो बेबाक अनुभव है
जिसको मैं यदा कदा ज़ाहिर भी करता रहा हूँ,
कि वर्तमान में देश केवल तीन ही बीमारियों से
जूझ रहा है...
अशिक्षा
गरीबी
उदासीनता

उदासीनता से मेरा तात्पर्य है प्रतिबद्धता की कमी..
जिसके चलते शोषण की महामारी अनवरत जारी है
और इसने एक नये किस्म के HIV को जन्म दिया,
वह है..राजनीतिज्ञ !

L.Goswami said...

पल्लवी जी यह कसूर किसी एक इन्सान का नही ,बल्कि पुरे समाज का है,पर कभी-कभी लोग गुनाह की आदत इस कदर डाल लेते हैं की मेहनत करने से कतराने लागतें हैं.
.... उत्साहवर्धन का बहुत धन्यवाद,अपना स्नेह पूर्ववत बनाये रखें.

विक्रांत बेशर्मा said...

पल्लवी जी, आपने ठीक ही कहा गरीबी से बढ़कर कोई गुनाह नही!कई बार हम चाह कर भी कुछ नही कर पाते!!खैर आपने एक सच को देखा और बयाँ भी किया ,हम में से कुछ लोग सच्चाई को देखकर भी अनदेखा कर देते हैं !हर बदलाव के लिए एक सोच ज़रूरी है,आपने सोचा है तो बदलाव भी आ ही जाएगा !!!!

BrijmohanShrivastava said...

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""

شہروز said...

aap bahut hi mauzun sawal uthati hain.

atyant marmik abhivyakti.

ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html

अनूप शुक्ल said...

संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति। आप अपनी संवेदना बनायें रखें। सौ को समझायेंगी उनमें से एक भी संवर गया तो आपको बहुत खुशी होगी! हो सकता है जिसको आप आज समझायें उसकी समझ में साल दो साल बाद आपकी बात खलबली मचाये।

मीत said...

गरीबी से बड़ा गुनाह कोई नहीं है!
its a true

कंचन सिंह चौहान said...

ye kah.n kam hai ki vichaar karti hai.n aap...ye samvedanshilata bani rahe

योगेन्द्र मौदगिल said...

संवेदनशील पोस्ट मगर ये दुर्व्यवस्था दूर हो सकती है क्या
बहरहाल आपको साधुवाद

Anonymous said...

aapki post par itne comment kiye ja chuke hai ki ab shayad kahne ke liye kuch bhi nahi hai,bas itna hi kahuga "DUKHAD SATYA"

Aapke karya kshetra me aap jaise jajbati vyaktiyo ko kam hi dekha hai.

-------------------Vishal

Shiv Nath said...

Aapka sochna aapke samvedansheel hone ka pramaan hai. Maine bhi ek kahani likhi hai bhikhariyon ke upar tatha use 'Kamleshwar Kahani puraskar' ke liye bheja hai. Isliye net par use publish karna uchit nahin. Waise, ye aapne jis tarah likha hai, sarahniya hai. vyangatmak lahajaa shayad itna prabhav nahi chhod pata. Is vishay par aapne achchha likha hai. Shayad, hum aage kuch kar paayein. Hamari jindagi to ab shuru hi hui hai. Aage hum shayad samaj ke liye kuch sarthak kar sake.

betuki@bloger.com said...

कटु सत्य कहा आपने। इस तरह के तमाम बाकयों से अक्सर लोगों को गुजरना पड़ता है। आप पुलिस अधिकारी हैं इसलिए कुछ दिनों में इस सबकी आदत हो जाएगी और न जाने कितने आशीष रोजाना आपके सामने से गुजर जाएंगे। पत्रकारों को भी अक्सर इस तरह की परिस्थितियों से दो चार होना पड़ता है। शुरूआत में बहुत बुरा लगता है लेकिन बाद में जैसे जीवन का हिस्सा लगने लगता है।

महेश लिलोरिया said...

सुंदर!
आरी को काटने के लिए सूत की तलवार???
पोस्ट सबमिट की है। कृपया गौर फरमाइएगा...
-महेश

ताऊ रामपुरिया said...

परिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
पिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !

योगेन्द्र मौदगिल said...

आप कहां हैं आजकल...?

Unknown said...

ish sambedna se bahut se deepak jaleh aur roshni pheley.

art said...

kaash ki thode aur log aapki tarah soch paate ,to jaroor koi kadam uthta......bas ,aise logo ke jevan ke dukho ka andaaza bhi koi nahi laga sakta
vichlit kar diya aapke aalekh ne........

travel30 said...

Aree pallavi ji koi nayi post nahi?? kaha chali gayi aap?


New Post :
खो देना चहती हूँ तुम्हें.. Feel the words

Unknown said...

kisi ne sahi kaha hai...

Maut de de magar badnasibi na de ya khuda tu kisi ko garibi na de...

regards,

hashim aik pathak...

विष्णु बैरागी said...

'काश कुछ कर पाती' कह कर मत रुक जाए । सम्‍वेदनशील मन और मन:स्थित तो ईश्‍वर ने आपको दी ही है, समुचित अनुकूल स्थितियां भी उपलब्‍ध कराई हैं । अपने पद और प्रभाव का उपयोग कर आप काफी कुछ कर सकती हैं । किरण बेदी का उदाहरण आपके सामने है ही । कोई जरूरी नहीं कि बडे काम से शुरुआत करें । अपनी नौकरी कोसुरक्षित रखते हुए आप छोटे स्‍तर पर कई काम कर सकती हैं ।
यह आपकी तीारी पोस्‍ट है जो मैं ने पढी है । अब मैं विश्‍वासपूर्वक कह पा रहा हूं कि अपनी इच्‍छाओं को क्रियान्वित करने के लिए ईश्‍वर सचमुच ही आपको माध्‍यम बनाना चाह रहा है ।
कामयाबियां आपके कदम चूमने को बेकरार हैं । लिल्‍लाह, आप कदम तो बढाइए ।

Anonymous said...

http://www.youtube.com/watch?v=kls42G_JsP8

अब जब बच्चों की बात हुई, तो अभी कुछ दिन ही पहले मैंने एक कविता सुनी थी, अशोक चक्रधर जी की. 'बूढे बच्चे ', you tube पे मैं ये लिंक दे रहा हूँ, जरूर सुनिए...

Dr. Amar Jyoti said...

'बुभुक्षितो किं न करोति पापम्
क्षीणा नरा: निष्करुणा भवन्ति।'

rush said...

v v touching..ur so right..to ACT is everything na..was moved

News4Nation said...

bahut hi dukhad hai,par hai to sach hi na!!!

omsingh shekhawat said...

ब्लॉग विचरण करते करते यहाँ पहुंचा लेकिन पता चला की वंहा पहुँच गया जहा मेरा बचपन था । समस्या तो गरीबी है ही दूसरी समयों को भी जनम देती है इसका मेरे हिसाब से तो एक इलाज़है एजूकेशनएजूकेशन एजूकेशन ...
इन बार इसलिए लिख दिया की की एदुव=काशन पर बहूत जोर देना होगा नही तो समय जस की तस् रहेगी वैसे लिखना कमसे कम समस्या को उज़ज़गर तो करता है अत पढ़ना और पढ़ना शुरू करो ....what do u do ?

Ravi Rajbhar said...

Apke vicharo ko naman.

Unknown said...

हर बालक के दिल में इच्छा होती है कुछ कर गुजरने की, लेकिन इस भारतीय सामाज में ब्याप्त कुरीतिया,कमजोरिया, हर इन्सान को अपांग बना देती है, माँ का आंचल , पिता का प्यार , बालक के सपने भारतीय समाज में व्याप्त भ्रस्टाचार में ही समावेश हो जाते है!

कुछ ऐसे ही हालातो से रूबरू होता हु,
गरीब बालक को अपाहिज पाता हु
चंद हाथो में जाती है दोलत
बस गरीब के बेटे को गरीबी
हालत में पाता हु!
न जाने वो दिन कब आयेगा,
जब हर गरीब का बेटा प्यार से
दुलारा जायेगा!
हर अधिकार में उसका हक होगा!