गर्व से माँ बाप का मस्तक उठाया था
जब क्लर्क के एक्जाम में मैं फर्स्ट आया था
पर जल्द ही दुनिया ने आइना दिखा दिया
सच्चाई से बच्चों का पेट भर न पाया था
ईमान और गैरत से जब बात न बनी
चापलूसी का हुनर तब काम आया था
पहली बार घर पे मैं मिठाई ले गया
जब सौ रुपये में फाइल को आगे बढाया था
गहराते हुए आसमान से नज़रें फेर के
चढ़ते हुए सूरज को सज़दे करके आया था
बिक गया ईमान तो दिल संग हो गया
बेबस का काम भी मैं मुफ्त कर न पाया था
पता न चला मजबूरी कब शौक बन गयी
ख़ुशी ख़ुशी मैं हर गुनाह करता आया था
करके गुनाह मैंने आहें खरीद लीं
बेटे ने कल नशे में मुझपे हाथ उठाया था
क्यों चुभने लगी कान में उन सिक्कों की खनक
जिनके लिए खुद को कभी मैं बेच आया था
जब क्लर्क के एक्जाम में मैं फर्स्ट आया था
पर जल्द ही दुनिया ने आइना दिखा दिया
सच्चाई से बच्चों का पेट भर न पाया था
ईमान और गैरत से जब बात न बनी
चापलूसी का हुनर तब काम आया था
पहली बार घर पे मैं मिठाई ले गया
जब सौ रुपये में फाइल को आगे बढाया था
गहराते हुए आसमान से नज़रें फेर के
चढ़ते हुए सूरज को सज़दे करके आया था
बिक गया ईमान तो दिल संग हो गया
बेबस का काम भी मैं मुफ्त कर न पाया था
पता न चला मजबूरी कब शौक बन गयी
ख़ुशी ख़ुशी मैं हर गुनाह करता आया था
करके गुनाह मैंने आहें खरीद लीं
बेटे ने कल नशे में मुझपे हाथ उठाया था
क्यों चुभने लगी कान में उन सिक्कों की खनक
जिनके लिए खुद को कभी मैं बेच आया था
40 comments:
आज की रचना के बारें क्या कहूँ हर शब्द बहुत कुछ कह रहा हैं। मुझे आपकी यह रचना बहुत ही पसंद आई। मैं भी कुछ इसी प्रकार की रचना लिख रहा हूँ कई हफ्तों से पर आज तक पूरी नही हुई हैं। खैर आपने लिख दिया तो अच्छा लगा पढकर।
क्यों चुभने लगी कान में उन सिक्कों की खनक
जिनके लिए खुद को कभी मैं बेच आया था
बहुत ही उम्दा।
आपके ब्लोग का नया रुप भी पसंद आया।
क्या सच्चाई से लिखा है ..बहुत अच्छा पल्लवी जी..दुनिया भी अजीब है
hi your blog is interesting to read, and try to post more. www.cambohistory.blogspot.com
सच में ब्लॉग कम से कम मेरे मन में एक पुलिस वाले की सवेदनशील छवि तो बना रहे है.
कलर्क , कचहरी और पुलिस वाले...
खैर ये बताइये इतने दिनों तक कहाँ गायब रहीं ?
महोदया बहुत ही प्रासंगिक और खूबसूरत अभिव्यक्ति है . बधाई .
करके गुनाह मैंने आहें खरीद लीं
बेटे ने कल नशे में मुझपे हाथ उठाया था
क्यों चुभने लगी कान में उन सिक्कों की खनक
जिनके लिए खुद को कभी मैं बेच आया था
पहली बार घर पे मैं मिठाई ले गया
जब सौ रुपये में फाइल को आगे बढाया था
वाह..पल्लवी जी...अब आप कविता भी लिखने लगी और वो भी कमाल की...बधाई...
नीरज
पहली बार घर पे मैं मिठाई ले गया
जब सौ रुपये में फाइल को आगे बढाया था
बहुत गजब की अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !
samaj ki kadvi sachhai bayan karti ek umda rachna.
swati
पता न चला मजबूरी कब शौक बन गयी
ख़ुशी ख़ुशी मैं हर गुनाह करता आया था
करके गुनाह मैंने आहें खरीद लीं
बेटे ने कल नशे में मुझपे हाथ उठाया था
क्यों चुभने लगी कान में उन सिक्कों की खनक
जिनके लिए खुद को कभी मैं बेच आया था
बहुत गजब की अभिव्यक्ति !
kadave satya ki kavita..........!
बिक गया ईमान तो दिल संग हो गया
बेबस का काम भी मैं मुफ्त कर न पाया था
--यही भीतरी भाव होते होंगे जो मजबूरी में अपना इमान बेच देते हैं.
बहुत उम्दा रचना!!
बहुत सुन्दर कविता, सच्चाई से रूबरू करवाती हुई, बधाई ....
बिक गया ईमान तो दिल संग हो गया
बेबस का काम भी मैं मुफ्त कर न पाया था
बहुत शानदार.
आपके एहसास सच्चाई के काफी करीब हैं
बोये पेड़ बबूल का, आम कहां से होय!
कड़वी सच्ची कहती भावपूर्ण है यह कविता ..बहुत सही लिखा है आपने
उम्दा और हर युवा के दिल को छू जाने वाली रचना। शानदार।
करके गुनाह मैंने आहें खरीद लीं
बेटे ने कल नशे में मुझपे हाथ उठाया था
wartaman ki sthiti bahot hi sundar dhang se nibhaya aapne...
dhero badhai aapko...
बहुत बढ़िया.
जनाब ! मेरी और से बदाई स्वीकारें। बहुत दिनों में बहुत शानदार सच बयान करती रचना देखने को मिली है।
बेटे ने कल नशे में मुझपे हाथ उठाया था...
बिलकुल सही जेसा खाओ गे वेसा ही पाओगे भी.. एक बहुत ही सुंदर लेख, आप का एहसास पंसद आया.
धन्यवाद
रिश्वतखोरी पर बेहज संजीदा पोस्ट-
आरंभ तो यहीं से होता है-
जल्द ही दुनिया ने आइना दिखा दिया
सच्चाई से बच्चों का पेट भर न पाया था
पर लत लग जाए तो बुराई बन जाए-
बेबस का काम भी मैं मुफ्त कर न पाया था
और रिश्ते भी दगा दे जाते हैं कि जिसके लिए किया वहीं से दुत्कार मिला, फिर -
चुभने लगी कान में उन सिक्कों की खनक।
कविता में एक सुंदर संदेश के साथ सुंदर कहानी भी है। अनुराग जी ने सही कहा-
एक पुलिस वाले की सवेदनशील छवि:)
देर आयद दुरुस्त आयद....दिनों बाद पोस्ट....पर जोरदार. सहजता आपकी रचनाओं का गहना है.
दीपावली की देर से सही शुभकामनाएँ पल्लवी जी और कटु सत्य का आइना रच गई आपकी कविता !
अच्छा लिखा है। साबित यही होता है कि मनुष्य को हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है।
एहसास, संवेदनाऐ यही तो कविता है,क्लर्क के एक्जाम में फर्स्ट आया ,ये तो आज के समाज की त्रासदी है
.
मनमोहक है, यह बदला हुआ कलेवर
और ज़्यादा निखरा है, लेखनी का बेबाक तेवर
कविता दिल को छूती है
किसी के पश्चाताप को बख़ूबी उकेरती है
पर मेरी निगाह में पतन के औचित्य को सिद्ध नहीं करती है..मैं तो इस विलाप को अनसुना कर सज़ा अवश्य ही देता
मेरी एक FIR दर्ज़ नहीं हो रही है
ज़रा अपने स्तर से सहायता करो
मेरी गोद ली हुई लड़की, रख़्शंदा कहीं गुम हो गयी है । अंतिम बार वह दुर्गा पूजा पर एक गुलाबी साड़ी में देखी गयी थी..किसी लड़के से बातचीत करने का ज़िक्र तो किया था पर, आगे का ब्यौरा उपलब्ध नहीं है
बिक गया ईमान तो दिल संग हो गया
बेबस का काम भी मैं मुफ्त कर न पाया था...
pallavi ji it's realy truth..
it's such a nice poem...
touch my heart...
keep it up...
बहुत खूब.. ब्लॉग का नया कलेवर वाकई खूबसूरत है.. बस आपकी वो गरबे वाली ड्रेस में जो फोटो थी वो नज़र नही आ रही...
....pallvi!!
पहली बार आया...चिट्ठा चर्चा से जान कर.सुंदर रचना.वर्दी वालों में कोई और तो जुड़ा
shabd nahi milte hain kaise karuin mai bayan
mai apna shabd-shabd tere naam kar aaya tha
tere naam kar aaya tha.......akshay-man
संजीदा रचना...आज के दौर का सही चित्रण किया है आपने. मजबूरी में अपना ईमान बेचने वाले आख़िर में वाकई ऐसे हो जाते हैं की दूसरे की मजबूरी भी नज़र नहीं आती. ब्लॉग का नया लुक भी अच्छा लगा, पर अपनी फोटो भी लगा दे तो बेहतर रहेगा
निस्सन्देह, थोडे में अपनी बात (वह भी व्यंजना के सम्पूर्ण तीखेपन से) कहने के लिए गजल अवैकल्पिक माध्यम है किन्तु आपकी यह गजल पढकर मैं अपना आग्रह दोहरा रहा हूं - क़पया, अपने अनुभवों के खजाने से 'मानव कथाएं' सार्वजिनक करें और इस तैयारी से करें कि उन्न्हें पुस्तकाकार दिया जा सके ।
इस समय तो झनझना देनेवाली इस गजल के लिए साधुवाद ।
आपकी कलम यशस्वी बने और उससे अधिक यशस्वी बने नौकरी करते हुए आपकी सेवाएं ।
लफ़्ज बा लफ़्ज सच्चाई है !लिखते रहे ऐसी ही शुभकामानायें है
बहुत बढ़िया पल्लवी जी...
सादगी और बिना शब्दाडंबर के बहुत बड़ी और कड़ी बात कह दी आपने...
achha laga..bhawnao ko aapne jis tarah net ke panno par ukera hai ..wakai ye kabiletarif hain...likhte rahiye...
bahut dinon ke baad aapka blog dekha.
aapki sarjana ki shresth hoti hui nirantarta preetikar hai. badhaaiyan !
Bilkul hakikat .
shabd nahi aapki tarif ke liye.
kash...............kash mere desh ki police aapki jaisi hoti. to desh ki stithi kuchh aur hoti.
hme aapar garv hai .
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