अपने दिल के गुलशन में मैंने
रोपा था तेरी याद का एक पौधा
मोहब्बत की खाद
अश्कों के पानी से
सींच सींच कर पाला बड़े प्यार से
आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा
देख,कितने फूल आये हैं इसमें
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....
जाते जाते समेट ली थी
तुम्हारी आहट मैने
अपने आगोश में,
हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को
तुम्हे पता है न..
.मुझे अँधेरे में अकेले डर लगता है!
51 comments:
आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा
देख,कितने फूल आये हैं इसमें
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....
बहुत गहनतम भावाभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं
तुम्हे पता है न मुझे अकेले में डर लगता है....!
बहुत खूब
जाते जाते समेट ली थी
तुम्हारी आहट मैने
अपने आगोश में,
हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को
बहुत खुबसूरत लिखा है आपने पल्लवी जी भाव बहुत अच्छे लगे इस रचना के ..
wow!
"हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को"
कमाल का लिखा है. ये आखिरी पंक्ति बेहद खूबसूरत है.
Aapki ye nazm padi , dil ko kuch chooo sa gaya .
bahut hi umda lines.
great work, keep it up.
regards
vijay
please visit my blog : poemsofvijay.blogspot.com and give your comments .
thanks
अच्छा लगा जी। भाव हमें भी ऐसे घेरते हैं। पर शब्द साथ नहीं देते। :(
मोहब्बत की खाद
अश्कों के पानी से
सींच सींच कर पाला बड़े प्यार से
"very loving soft felings"
Regards
अपने दिल के गुलशन में मैंने
रोपा था तेरी याद का एक पौधा
मोहब्बत की खाद
अश्कों के पानी से
सींच सींच कर पाला बड़े प्यार से
बहुत ही सुंदर लाइनें हैं.
सुंदर रचना.
क्या बात है पल्लवी जी
अत्यन्त सुंदर शब्दों को भावो की माला में पिरोया है आपने । वाकई दिल को छू गई आपकी कविता।
स्वाति
तुम्हे पता है न..
.मुझे अँधेरे में अकेले डर लगता है!
bahot khub, kya likha hai aapne bahot hi gahari bat likhi hai aapne .dhero badhai...
अरे वाह आपके शब्द तो मुलायम हैं .
जाते जाते समेट ली थी
तुम्हारी आहट मैने
अपने आगोश में,
हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को
jaut amazing!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
superb pallavi.....
आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा
देख,कितने फूल आये हैं इसमें
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....
waah dil ko chu liya,bahut sundar
bahut hi anokha ehesaas.......
sundar kakpna....
accha chitran hai...........
http://akshaya-mann-vijay.blogspot.com/
जाते जाते समेट ली थी
तुम्हारी आहट मैने
अपने आगोश में,
हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को
तुम्हे पता है न..
मुझे अँधेरे में अकेले डर लगता है!
बहुत बढ़िया.
तूब हो तो उजास है
अंधेरा है अकेलापन
डर लगता ही है।
प्रेम सहारा चाहता है, स्नेह चाहता है और मासूमीयत इसकी पूँजी होती है, बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ-
तुम्हे पता है न..
.मुझे अँधेरे में अकेले डर लगता है।
आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा....
भाई आप की कविता के लिये जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है, बहुत सुन्दर, अति सुन्दर , दिल को छू गई.
धन्यवाद
आप पुलिस में होकर भी इतनी संवेदनशील रचना लिख लेती हैं...याने भविष्य में अब पुलिस से डरने की कोई जरुरत नहीं है...लाजवाब रचना...वाह...
नीरज
बड़े प्यार से पाला गया पौधा है !
सुन्दर!
बहुत खूब!
जाते जाते समेट ली थी
तुम्हारी आहट मैने
अपने आगोश में,
हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.बहुत खूब
simply great... blog ka naam kuch ehsaas se badalkar bahut saare ehsaas rakh lijiye...
आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा
देख,कितने फूल आये हैं इसमें
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....
Nice lines
क्या बात है पल्लवी जी.... बेहतरीन.... साधुवाद.....
तुम्हे पता है न..
.मुझे अँधेरे में अकेले डर लगता है!
wah pallavi ji wah.. bahut sundar likhi hai kavita.. acha aapne sab ka link add kiya links mein mere blog ka link kyn nahi add kiya :-(
बडी सुँदर कविता और
उतने ही प्यारे चित्र हैँ
पल्लवी जी
स्नेह,
- लावण्या
फिजा में बिखरी हुई
खुशबू की मानिंद
निश्छल अभिव्यक्ति.
=================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
वाह! क्या खूब कहा! एक नही कई अहसास हैं
अच्छा लगा यह एहसास.
sooo moving..dil ko touch kar gayi..esp the ending.,,magic in ur words
बेहतर रचना
bahut badiya hai,kavita padkar maja aagaya
आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा
देख,कितने फूल आये हैं इसमें
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....
सुंदर रचना...
आप बहुत अच्छा लिखती हैं, शुभ कामनायें |
- आदरसहित
नवीन शर्मा
सुंदर भावो की सुंदर शब्दों में अभिवयक्ति के लिए बधाई
मैंने मरने के लिए रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है ????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
आप पढना और ये बात लोगो तक पहुंचानी जरुरी है ,,,,,
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते हैं
अक्षय-मन
रेशमी एहसास की अति सुंदर अभिव्यक्ति !
kaha rah gayi aap? no new post? election duty?
New Post :- एहसास अनजाना सा.....
aaj kai dino ke baad apka blog dekha wah kya kavita likhi hai apne badhai
जाते जाते समेट ली थी
तुम्हारी आहट मैने
अपने आगोश में,
हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को
तुम्हे पता है न..
.मुझे अँधेरे में अकेले डर लगता है!
बहुत ही शानदार नज़्म है ,बधाई !!!!!!
aap kahan hain aajkal ?
बेहतरीन,
आपकी कविता ने मुझे भी किसी की याद में गुम कर दिया, बस डर लगने का काम मेरा नही हुआ करता था.
आपको बधाई
बहुत सुंदर भाव
पल्लवी जी आप तो ब्लॉग पर छा गई हैं। यकीन मानिए जितने कमेंट आपकी पोस्ट पर आ रही है, वो काफी अधिक है। दिग्गज ब्लॉग को पसीने आ रहे हैं।
आशीष
नये साल की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर रचना...
नये साल की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा
देख,कितने फूल आये हैं इसमें
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....
beautiful lines!
God bless
RC
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....
aapki rachan kafi sunder he
Pallavi ji
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