Sunday, February 1, 2009

राजस्थान यात्रा- एक शरारत भरी शुरुआत

१५ तारीख से राजस्थान यात्रा पर निकली हुई थी! !यात्रा ख़त्म हुई पर खुमार अभी तक छाया हुआ है....शायद अभी कुछ दिन और रहेगा!जाने कितनी बार फोटो देख चुकी हूँ!मम्मी ,दोनों छोटी बहने गड्डू और मिन्नी, साथ में गड्डू की दोस्त अस्मिता और उसकी मम्मी हम छै लोगों का गैंग निकल पड़ा था राजस्थान घूमने! हमारे डेस्टिनेशन थे जोधपुर,जैसलमेर,माउन्ट आबू और उदयपुर ! यात्रा इतनी मजेदार और रोचक थी की लिखे बिना रह ही नहीं सकती! खासकर यात्रा की शुरुआत ही बड़ी जबरदस्त थी! हम लोग भोपाल से जोधपुर ट्रेन से गए !उसके बाद से हर जगह बाय रोड जाना था!ट्रेन में बैठते ही मम्मियों समेत हम सब मौज मस्ती के मूड में आ गए!बैठते ही जो ठहाके लगने शुरू हुए डब्बे में हर कोई एक एक बार हमें देखकर गया!और कोई मौका होता तो शायद हम असहज महसूस करते मगर यहाँ तो किसी की कोई परवाह नहीं थी!हमारे साथ जयपुर के एक अंकल आंटी बैठे थे!उन्होंने कहा की आप लोगों के आने से अच्छा लगा वरना कब से बैठे बैठे बोर हो रहे थे!तब हमने गौर किया की वाकई अगर हम लोग दो मिनिट को भी चुप हो जाएँ तो डब्बे में ऐसी घोर शान्ति थी मानो कोई अपहरण करके ले जा रहा हो!खैर उनकी इस बात से हमारी मस्ती को और बल प्राप्त हुआ!मगर हर किसी को कहाँ किसी की ख़ुशी सहन होती है!हमारे अगले केबिन में बैठे एक सज्जन को हमारे ठहाकों से तकलीफ थे! वे अचानक हमारी तरफ मुडे और बोले " अगर आपकी आज्ञा हो तो हम सो जाएँ?" छोटी बहन ने तपाक से उत्तर दिया " अवश्य सो जाइए" ! उस वक्त रात के मात्र नौ बजे थे! हम सब का दिमाग खराब...ये आदमी अभी से ही हम पर पाबंदी लगा रहा है!हमारे सपोर्ट में सामने बैठी जयपुर वाली आंटी आई और बोलीं " हम तो ग्यारह बजे खाना खाते हैं उसके बाद ही सोयेंगे!" हम खुश...जागने की एक वजह मिल गयी थी! जैसे तैसे वो सज्जन शांत हुए इतने में अगली साइड लोअर बर्थ पर लेटी एक आंटी बिफर गयीं " अब सब लोग बत्ती बंद करो और सो जाओ, मुझे सोना है!" अस्मिता बोली.." आप सो जाओ, हम लोग अभी से नहीं सोयेंगे!" आंटी ने इतनी भयंकर नफरत से हमें देखा की एक पल को तो हम सब सहम कर चुप हो गए!इतने में किसी के मोबाइल पर गाना बजा " अल्ला के बन्दे हंस दे.." इतने सुनना था की सब के सब फुल वोल्यूम में हंस दिए!आंटी क्रोध से उठ बैठीं!हमने इग्नोर मार दिया!इस यात्रा में हमने तीन चीज़ें नयी ईजाद की...इग्नोर मारना,अवोइड मारना और नेगलेक्ट मारना!सभी में चेहरे के एक्सप्रेशन अलग होते हैं!

खैर थोडी देर और हमने बातें कीं लेकिन आंटी जी की फटकार से थोडा डरे डरे भी थे! अब बातचीत खुसुर फुसुर में हो रही थी! आंटी जी ने अपनी बत्ती बुझाई और सो गयीं! हम दबे दबे हँसते रहे! इतने में धडाम की आवाज़ आई....ये क्या? देखा तो आंटी जी ने करवट बदली थी और नीचे गिर गयीं थीं!अब देखिये...हम बेचारों पर एक जुल्म और ढाया गया! खराबी करवट लेने की तकनीक में थी लेकिन इसका दोष आंटी ने हमारी बातों पर मढ़ दिया!" तुम लोगों की वजह से मैं गिर गयी...मार ही डालोगे क्या?" हम समझ ही न पाए की किसी की दबी दबी बातों की आवाज़ से कोई कैसे गिर सकता है! अंत में बहुत विचार विमर्श के बाद हमने खुद को क्लीन चिट दी की बातों से कोई नहीं गिरता है इसलिए फालतू का गिल्ट लादने की कोई ज़रुरत नहीं है! पर आंटी के गिरने के बाद हम सब खामोश हो गए और सो गए!

सुबह उठे तो जयपुर निकल चुका था!और अच्छी खासी ट्रेन पैसेंजर का रूप धारण कर चुकी थी!जयपुर से जोधपुर तक का सफ़र बार बार रुकते रुकाते करीब ७ घंटे में तय किया जबकि ४ घंटे में आराम से पहुंचा जा सकता है! जयपुर के बाद महसूस होने लगा था की अब राजस्थान में आ गए हैं!कोई खेत नहीं...कोई बड़े पेड़ नहीं!दूर दूर तक उजाड़ मैदान और कंटीले पौधे!पता चला की राजस्थान में लोग इतने कलरफुल कपडे इसलिए पहनते हैं ताकि हरियाली और वनस्पति न होने कि नीरसता से बचा जा सके! खैर दस बजे आंटी जी भी उठ गयीं...बाकी का सारा टाइम उन्होंने अपने झोले में लाये गए खाद्य पदार्थों का सेवन करने में खर्च किया! जोधपुर आते आते डब्बे में केवल ३-४ पैसेंजर ही रह गए थे!सो खाली डब्बे का फायदा उठाकर लगे हाथों ट्रेन में एक फोटो सेशन भी कर लिया!फोटो अपलोड करने में कुछ समस्या आरही है वरना ट्रेन का नज़ारा यहाँ ज़रूर दिखाती! दोपहर डेढ़ बजे हम लोग जोधपुर पहुँच गए!

इस बार ट्रेन यात्रा का विवरण....नेक्स्ट पोस्ट में आगे कि यात्रा के हाल लिखूंगी! जब तक आप हमसे या आंटी जी कि व्यथा से खुद को रिलेट कर सकते हैं!कई लोगों ने ऐसी यात्रा की होगी जो या तो हमारी तरह डांट खाए होंगे या आंटी की तरह दूसरों की मस्ती से परेशान हुए होंगे!अगली पोस्ट तक के लिए विदा....

26 comments:

नीरज गोस्वामी said...

अगली पोस्ट का इंतज़ार तो कर ही रहे हैं लेकिन आप से जोर लड़ने की योजना भी बना रहे हैं...राजस्थान दर्शन का कार्यक्रम बनाया और उसकी राजधानी हमारे जयपुर को छोड़ दिया...इस से बढ़ कर ना इंसाफी और क्या होगी बताईये ? चलिए सूचित ही कर दिए होते तब भी हम स्टेशन पर मिलने आ जाते...अब अगली यात्रा सिर्फ़ और सिर्फ़ जयपुर के लिए तय रखिये...जहाँ सिर्फ़ घूमने और हंसने का कार्यक्रम ही रहेगा...बस.
नीरज

रश्मि प्रभा... said...

ये हुई न बात.......अपने साथ हमें भी एक रोचक यात्रा करवा डाली,
सच में यात्रा के दौरान कई लोग ऐसे मिलते हैं,
खुमार हम पर भी चढ़ आया......

"अर्श" said...

वेसे राजस्थान की कुछ खास यात्रायें मैंने भी करी है ,आपकी लेख पढ़ के खो गए हम तो ,मौन्ताबू तो प्रिय है मेरा ... लेख पढ़ के मज़ा आयगा ... ढेरो बधाई आपको अगले लेख का इंतज़ार रहेगा...



अर्श

Puja Upadhyay said...

मजेदार रहा किस्सा, वही तो हम सोच रहे थे की आप इतने दिनों से कहाँ गायब हैं...ऐसा वाकया हम लोगो के साथ भी हुआ था, कॉलेज ट्रिप में कोलकाता जाना हुआ था, लगभग पूरी बोगी बुक थी, कुछ सीट्स बाकी लोगो की थी...रात के दो बजे तक हल्ला होते रहा हमारे तरफ़ तो. आगे के अनुभवों का इंतज़ार रहेगा.

रंजन (Ranjan) said...

इन्तजार रहेगा.. जोधपुर के किस्सो का..वैसे आगाज काफी अच्छा है..

अनिल कुमार वर्मा said...

पल्लवी जी, आपने तो ट्रेन के भीतर का पूरा खाका ही खींच दिया। सचमुच एक बार लगा कि हम भी उसी डिब्बे में सवार हैं और सब कुछ हमारी आंखों के सामने ही हो रहा है। इसी अंदाज में लिखती रहिए। हम भी जोधपुर घूमने के लिए तैयार हैं...

P.N. Subramanian said...

यात्रा विवरण बड़ा ही रोचक रहा. मस्ती नहीं होती तो फ़िर रोचक बन ही नहीं सकती थी. मस्ती रेजुविनेशन के लिए भी आवश्यक है.इग्नोर मारना,अवोइड मारना और नेगलेक्ट मारना भाव भंगिमा सहित, एक नई अनुभूति रही.आभार.

mamta said...

हम्म ! पल्लवी फोटो की कमी खल रही है पर आपने लिखा बड़े ही रोमांचक अंदाज मे है । अगली कड़ी मे कुछ फोटो भी लगाइयेगा ।

Abhishek Ojha said...

ऐसे यात्रिओं को परेशान करना अच्छी बात नहीं है. और वो भी पब्लिकली ब्लॉग पर डालना. आंटी कोर्ट नोटिस ना भेज दें. ब्लॉग रेल वाले भी पढ़ते हैं और पुलिस तो खैर ... :-)

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया रहा यह यात्रा वर्णन ..चित्र भी पोस्ट करे साथ ..

डॉ .अनुराग said...

छि छि...पुलिस वालो का ऐसे क्रत्य करना निहायत ही निंदनीय है.......ओर बुजुर्गो को परेशान करना कौन सी धारा है ? आप रेलवे में है इसलिए एक अबला को परेशां करती है.......इस प्रजातांत्रिक देश में किसी को भी अपनी पसंद की कॉलर ट्यून लगाने का हक है............
वैसे वो गाना सुना आपने ........ऐ मसाक कली ..... मस्का कली.....तुर फुर

संगीता पुरी said...

मजेदार विवरण.....अगली कडी की प्रतीक्षा में...

ताऊ रामपुरिया said...

ट्रेन यात्रा का रोचक विवरण. आगे का इन्तजार है.

रामराम.

purnima said...

आपको राजस्थान कैसा लगा .........
और जोधपुर...........
जोधपुर के लोग बहुत अच्छे हे .........
और मुझे यकीं हे आपकी यात्रा काफी सुखद रही होगी.......
अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा ......
पल्लवी जी ........

Ashish Maharishi said...

शुक्र है मैं उस डिब्बे में नहीं था..अल्लाह ने बचा लिया और हां डॉ अनुराग साहेब मसक कली वाली हेलो टच्यून मेरे सेल पर है..आप कॉल कर सकते हैं। ९८२६१३३२१७

जय हो

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत बढिया रहीँ यहाँ तक की बातेँ
अब आगे सचित्र लिखियेगा
- लावण्या

Gyan Dutt Pandey said...

आण्टीजी को मार डालना (?) कोई अच्छी बात नहीं है!

कुश said...

हम भी मौज मस्ती करते है.. पर इससे दूसरो को तकलीफ़ नही होने देते... ख़ासकर ट्रेन में या किसी और पब्लिक प्लेस पर तो बिल्कुल भी नही...

आगे का इंतेज़ार है.. हुकुम!:)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

यह कथा हम भी सुन रहे हैं। काफी रोचक अन्दाज है आपका। अगला अध्याय कब तक शुरू होगा?

अनूप शुक्ल said...

शुरुआत मजेदार है। फोटॊ का इंतजार है।
इस पोस्ट से यह सिद्ध हुआ कि बातों से कोई नहीं गिरता लेकिन किसी के गिरने से बातें बंद हो जाती हैं। मतलब बातें ज्यादा संवेदनशील हैं!:)

Shiv Nath said...

intezaar aage ki vivaran kaa.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज ही यात्राओं से लौटा हूँ, पढ़ रहा हूँ।

RDS said...

आपके यात्रा वृतांत से बरबस श्याम बेनेगल के टी वी धारावाहिक 'यात्रा' का स्मरण हो आया | दुनिया में सर्वाधिक रेल पथ हमारे देश में हैं और निश्चित तौर पर भारतीय रेलें चलता फिरता भारत महोत्सव है |

असली आनंद अगर लेना हो तो साधारण स्लीपर डिब्बा श्रेष्ठ चुनाव है | ए सी या शताब्दी के कोचों में एक समानांतर लेकिन पृथक मौन प्रेमी संस्कृति चलती है | हवाई यात्राएं तो इस सुख से अछूती रह जाती है |

लेख सिद्ध करता है कि संवेदना और गहन निरीक्षण लेखिका में कूट कूट कर भरा है जो पाठक को सहज ही अपना सहभागी बना लेता है |

Puja Upadhyay said...

aam aadmi kho jaata hai to uski report police station me likhate hain...police wale hi kho jaayein to kahan report likhwayein??
kahan gayab hain ji? baaki kahani kab sunaiyega? ham intezaar kar rahe hain :)

सुशांत सिंघल said...

अरे, अब आगे भी तो बोलो न?

सुशान्त सिंहल

सुशांत सिंघल said...

"ऐसे पहुंचे हम मुंबई" शीर्षक से मैने भी एक रेलयात्रा वृत्तान्त लिखा था, शायद आपको मजेदार लगे!

http://sushantsinghal.blogspot.com/2009/01/blog-post_5290.html