आज नल आने का दिन है....घासीराम मास्साब की कसरत का दिन! पूरी टंकी भरने के लिए डेड सौ बाल्टी भरकर ऊपर दूसरी मंजिल पर लाना कोई जिम जाने से कम है क्या? हाँ...ये अलग बात है की इस कसरत से घासीराम मास्साब के दाहिने हाथ की मसल तो सौलिड बन गयी पर बाया हाथ बेचारा मरघिल्ला सा ही है! सो अब मास्साब फुल बांह की बुश्शर्ट ही पहनते हैं! पांच बजे से बाल्टी चढानी शुरू की...अब जाके साढ़े छै बजे टंकी भरी! इस नल के चक्कर में मास्साब मंजन कुल्ला भी न कर पाए....ऊपर से मास्टरनी की चें चें...मास्साब को कितने दिन हो गए पानी भरते भरते पर आज तक सीढियों पर पानी गिराए बिना बाल्टी ऊपर चढाना न सीख पाए! मास्टरनी को भोर की बेला में भड़कने में महारत हासिल है! सूरज की किरणें, ओस की बूँदें, तितली, वगेरह वगेरह.. सुबह को आनद दायक बनाने वाले सारे आइटम मिलकर भी मास्टरनी की सुबह को कभी सुहानी न बना पाए! मास्टरनी के चिडचिडे स्वभाव से खुशियों को धराशायी होते दो पल नहीं लगते! खैर..मास्साब को सात बजे स्कूल जाना है सो मास्टरनी की चें चें पें पें को दर किनार करते हुए जल्दी जल्दी मंजन करा और चाय गटक कर निकल पड़े स्कूल की और!स्कूल पहुँचते ही मास्साब जल्दी जल्दी लपके मैदान की और जहां प्रार्थना प्रारंभ हो चुकी है...मास्साब ने अपने गंजे सर के आजू बाजू के बाल संवारे और हैड मास्टर के बगल में खड़े हो गए....हैड मास्टर ने घूरा की लेट काहे आये हो? मास्साब ने समझ कर दीन हीन सा मुंह बनाया और हाथ से बाल्टी पकड़ने का इशारा किया! हैड मास्टर ने मुंह बिचका दिया की ठीक ठीक है! घासीराम मास्साब पुरे वोल्यूम में प्रार्थना गा रहे हैं...." हे शारदे माँ....हे शारदे माँ " हैड मास्टर ने पुनः घूरा कि गला जरा कम फाडो ! मास्साब ने टप्प से मुंह बंद कर लिया! सिर्फ होंठ हिलते रहे! प्रार्थना ख़तम हुई....बच्चे लाइन बनाकर कक्षाओं की ओर चल पड़े! दस कदम तक लाइन चली फिर चिल्ल पों करते झुंड ही झुंड नजर आने लगे! अब किसी मास्टर के बाप के बस की नहीं है की इन होनहारों की लाइन दुबारा बनवा दे!
आहा ..क्या सुहाना द्रश्य है कक्षा का! घासीराम मास्साब कुर्सी पर बिराज चुके हैं! छात्र छात्राएं भी आकर टाट पट्टियों पर अपना स्थान ग्रहण कर चुके हैं!मास्साब ने जम्हाई लेते हुए बच्चों को पंद्रह मिनिट का समय दिया है ताकि सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाएँ! " गोपाल...." मास्साब ने आवाज लगायी! गोपाल कक्षा का मॉनिटर है...आवाज़ सुनते ही हाजिरी का रजिस्टर लेकर खडा हो गया! और मास्साब की तरफ से हाजिरी लेने लग गया! हाजिरी लेने भर से गोपाल अपने आप को आधा मास्टर समझता है....और घासीराम मास्साब का आधा काम कम हो जाता है! दोनों प्राणी खुश.. हाजिरी के बाद मास्साब ने घडी देखी! साला अभी भी आधा घंटा बाकी है! मास्साब बार बार सहायक वाचन की किताब खोलते हैं फिर बंद कर देते हैं....इत्ता आलस आ रहा है की मन ही नहीं कर रहा पढाने का! जम्हाई पे जम्हाई...अंत में मास्साब आगे बैठे बच्चे से कहते हैं...."चलो पढना शुरू करो जोर जोर से और जैसे ही दस लाइनें पढ़ लो अपने पीछे वाले को दे देना...मुझे कहना न पड़े!"लो जी ....मास्साब ने ऑटो मोड में डाल दिया कक्षा को! अब झंझट ख़तम...आधा घंटे तक बच्चे ही बक बक करते रहेंगे! मास्साब ने चश्मा पहन लिया...एक आध झपकी आ भी गयी तो अब सारा इंतजाम हो चूका है!
आगे बैठे खुशीराम ने पढना शुरू किया " एक थी चुरकी...एक थी मुरकी...."! ख़ुशी राम पढ़ रहा है! उसके पीछे बैठा गोपाल अपनी बारी के इंतज़ार में ठुड्डी पर हाथ धरे बैठा है! बाकी क्लास क्या करे....? कमला सरिता की चोटी खोलकर फिर से गूँथ रही है!कलुआ बोर हो रहा है सो सबसे पीछे बैठे बैठे टाट पट्टी को ही चीथे जा रहा है! कलुआ ने बोर हो हो के टाट पट्टी आधी कर दी है क्लास के पीछे कोने में टाट पट्टी की सुतलियों का ढेर लगा है! ढेर भी बड़े काम की चीज़ है....उस पर मजे से बैठा स्कूल का पालतू कुत्ता कचरू चुरकी मुरकी की कहानी सुन रहा है...संभवतः वही एकमात्र श्रोता है जो पढने वाले की मेहनत को सफल बना रहा है! प्रताप बुद्धू सरीखा मास्स्साब को एकटक देखे जा रहा है....जाने पी.एच. डी. ही कर मारेगा क्या? उसकी आँख मास्साब पर से नहीं हटती है! अचानक वो बगल वाले बजरंग से कहता है..." देखना अब सर लुढ़केगा मास्साब का" ! बजरंग जैसे ही मास्साब को देखता है...दन्न से मास्साब का सर कंधे पर लुढ़क जाता है!सारी कक्षा जोर से हंसती है! मास्साब चौक कर जाग गए हैं और गुस्से में हैं..." ए प्रताप तू ज्यादा पुटुर पुटुर मत किया करे!पढने लिखने में नानी मरती है तेरी....चल खडा हो जा " प्रताप बिना देर किये खडा हो गया है! बजरंग उसके पैर में चिकोटी काटता है! मास्साब अभी जगे हुए हैं और क्रोधित भी हैं.....एक चौक का टुकडा उठाकर मारते हैं बजरंग के सर पर !बजरंग के सर पर चौक पट्ट से पड़ी! अब मास्साब अपनी सारी चौक ख़तम करेंगे....उन्होंने कई टुकड़े करके रख लिए हैं! जगन पढ़ रहा है...." चुरकी ने मुरकी से कहा....." अबे , अभी तक ख़तम नहीं हुई तेरी चुरकी मुरकी!" हो गयी...मास्साब तीसरी बार चल रही है! जगन खी खी करदिया! मास्साब की चौक तैयार थी.....निशाना साधकर फेंकी जगन पर....जगन ने सर दायीं तरफ झुका लिया!चौक जाकर पड़ी उषा की नाक पर!उषा तिलमिला गयी....यूं भी सबसे लडाकू लड़की ठहरी क्लास की!भें भें करके रोना शुरू कर दिया! अब मास्साब घबराए! सिटपिटाते हुए बिटिया बिटिया करते पहुंचे उषा के पास!" मैं आपकी शिकायत अपने पापा से करुँगी....देख लेना! मेरेको कित्ती लग गयी!" उषा को बड़े दिनों बाद मौका मिला था मास्टर से उलझने का!वैसे भी क्लास के बच्चों के लड़ लड़के उकता गयी थी! मास्साब पूरे जतन से उषा को मनाने में जुट गए हैं...अभी उषा के पिताजी आयेंगे! पूरा स्कूल सर पर उठा लेंगे!उषा का लडाकू स्वभाव उसके पिता से ही उसमे ट्रांसफर हुआ है! मास्साब को पसीना आ गया उषा को मनाते मनाते पर उषा सुबक सुबक के ढेर करे दे रही है!मासाब उषा के आंसू पोछते हैं...वहाँ तक तो ठीक है पर अब नाक भी पोंछनी पड़ रही है! उषा भी रो रो के अब बोर हुई! आंसुओं की आखिरी खेप जैसे ही पूरी हुई...उषा के मुंह से निकला " एक तो अगले हफ्ते तिमाही परीक्षा है ..उसकी तैयारी भी नहीं कर पायी थी ऊपर से आपने मेरी नाक में दे दी!अब मैं क्या करुँगी?" मास्साब बिना एक भी क्षण की देरी किये बोले " अरे...बिटिया तू क्यों चिंता करती है परीक्षाओं की!मैं सब देख लूँगा तू तो मजे से रह!" उषा रानी अन्दर से भारी प्रसन्न हुईं पर प्रत्यक्ष में ऐसा मुंह बनाया मानो मास्साब पे एहसान पेल रही हों पढाई न करके! चलो अंततः उषा प्रकरण समाप्त होता है!
मास्साब फिर से कुर्सी पर बैठकर घडी देखने लग गए हैं! अब वो प्रतीक्षित क्षण आ गया है जिसका बच्चों और मास्साब दोनों को इंतज़ार था! आखिर घंटी बज गयी....एक पीरियड ख़तम हुआ! बच्चे एक दूसरे के ऊपर चौक और कागज़ वगेरह फेंक फेंक कर ऊधम करने में लग गए हैं!मास्साब दूसरा पीरियड लेने के पहले अध्यापक कक्ष में जाकर थोडा सुस्ता रहे हैं!पढ़ा पढ़ाकर मास्साब का सिर दुःख गया है! इसी प्रकार मास्साब ने कड़ी मेहनत से पढ़ाकर और सुस्ता कर दिन निकाल दिया है!
चलो...एक दिन की तनखा पक गयी....कहते हुए छुट्टी के बाद मास्साब घर पहुँच गए हैं! घर पर सब्जी का थैला बेताबी से मास्साब का इंतज़ार कर रहा है! मास्साब को घर पर गुस्सा होने या खीजने की सुविधा प्राप्त नहीं है!लगभग रिरियाते हुए मास्टरनी से बोले " अरे...जरा सांस तो ले लेने दो! थोडा फ्रेश तो हो लूं!" मास्टरनी गुर्राई " सब्जी लाने में तुम्हारी सांस रुक जायेगी क्या? और..ये फ्रेश व्रेश तुम स्कूल से ही होकर क्यों नहीं आते हो? अब देर न करो और जाओ...." मास्साब आदेश के पालन में चल पड़े सब्जी लाने!सब्जी लाकर रखी....!मास्टरनी द्वारा बताये गए अन्य घरेलु कार्यों को भी कुशलता से पूर्ण करने के बाद स्कूल के बच्चे ट्यूशन पढने आ गए!यही एक घंटा ऐसा था जब मास्साब को घर के कामों से मुक्ति मिलती थी...अरे इसलिए नहीं कि मास्साब पढ़ने में व्यस्त हो जाते थे! बल्कि चंदू, प्रकाश, मनोहर ,दीन दयाल आदि बच्चे मास्साब के हिस्से का कार्य ख़ुशी ख़ुशी कर देते थे! उन्हें कौन सा पढने में भारी रस आता था!घर कि छत धोकर,मास्साब कि लड़कियों के लिए बाज़ार से मैचिंग की बिंदी चूड़ी लाकर,मास्टरनी का धनिया साफ़ करके ही उन्हें परीक्षा में संतोष प्रद नंबर मिल जाते हैं!अच्छे नंबरों के लिए किताबों में सर खपाने की कोई ज़रुरत नहीं पड़ती!
शाम के वक्त मास्टरनी भजन मण्डली के सक्रीय सदस्य के रूप में मंदिर जाती हैं...जहां सक्रियता से अच्छे स्वास्थ्य हेतु निंदा रस का सेवन किया जाता है!इस खाली समय का उपयोग मास्साब आराम फरमाने में करते हैं!आज मास्साब रात की नींद भी अच्छी प्रकार से लेंगे क्योकी कल नल नहीं आएगा! मास्साब के चार बच्चे हैं...जिनमे सबसे छोटा पिंटू चार साल का है और पूरे समय मास्साब की गोद में लटका रहता है!बाकी बड़े बड़े हैं...मास्साब की उन्हें कोई ज़रुरत नहीं है! इसी एक घंटे में मास्साब टी.वी. पर समाचार देख लेते हैं! मास्टरनी के आने के बाद सीरियलों का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है! खैर मास्साब की जिंदगी का कोई भी दिन उठाएंगे तो बिना किसी परिवर्तन के सेम टू सेम यही दिनचर्या देखने को मिलेगी!फर्क केवल इतना है की जिस दिन नल नहीं आएगा मास्साब को सुबह में एक घंटा और सोने को मिलेगा!
नोट- ये कहानी पूरी तरह वास्तविक धटनाओं पर आधारित है!कुछ जीवित व्यक्तिओं से इसका गहरा सम्बन्ध है!वास्तविक पात्र भी पढ़कर पूरा आनंद ले सकें, इस प्रयोजन से पात्रों के नाम परिवर्तित कर दिए गए हैं!
30 comments:
घासीराम मास्साब जो कोइ भी हों पर उनकी दिनचर्या बड़ी रोचक लगी.
नहीं, नहीं, आपका लिखने का अंदाज़ रोचक लगा.
आपके सामने है ये दुनिया का कटु सत्य ! आपकी पोस्ट पढकर मन थोडा खुश हुआ है पर, मेरा ब्लोग भी देख लीजिये ..ऐसी ही अपमानजनक बातेँ बेबात सुननी पद रहीँ हैँ क्या करेँ ? और हाँ, होली की शुभकामनाएँ सभी को - स स्नेह, -
- लावण्या
हमने भी खूब पानी भरा है, पर शुक्र है सुबह नहीं शाम को .
जबरदस्त किस्सागोई है। अद्भुत। मजा आ गया पढ़कर!
एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिस में नल का न आना ही नायक के जीवन में मामूली परिवर्तन लाता है, बाकी सब कुछ चलता रहता है। मास्साब ने इसी को जीवन का सत्य मान लिया है कि जो कुछ बदलेगा ऊपर वाला ही बदलेगा। यह कहानी हमारे समाज के सामूहिक चरित्र का भी प्रतिनिधित्व करती है।
धन्य हैं तुम्हारे मास्साब पूरी बाँह की बुशर्ट बेचारे को मजबूरी में पहनना पड़ रही है और तुम्हें मजाक की सूझी है.
अजी मास्टर साहब अगर एक बांह में पूरी और एक में आधी शर्ट पहनते तो एक तो कपड़ा बचता और इसी बहाने एक नया फैशन शुरू हो जाता...मगर लगता है उन्हें जिंदगी में बहुत काम हैं. बच्चों का भविष्य निर्माण कर रहे हैं...नल आना उनकी जिंदगी में कई रंग ले कर आ सकता था...खैर. अब आपकी लेखनी की तारीफ़ कैसे करूँ आपने खुद ही कह दिया है की ये सत्य घटना है...सिर्फ नाम बदलने की काल्पनिकता के लिए थोड़े हम आपकी तारीफ़ कर देंगे...कुछ खुद से लिखिए फिर सोचेंगे :)
लिखने की शैली बहुत ही सुंदर है ... अच्छा लगा पढकर।
बढ़िया किस्सा है ..लगता है चाक के टुकड़े करके छात्रों पर मारना हर अध्यापक को ट्रेनिंग के दौरान सिखाया जाता है :) ..लिखने का ढंग आपका बहुत अच्छा है ..चित्र भी इस वास्तविक घटना के साथ साथ बनता गया :)
बड़े दिनो बाद आना हुआ.. और आना भी ऐसा क़ी बस बात ही ख़त्म है..
अब किसी मास्टर के बाप के बस की नहीं है की इन होनहारों की लाइन दुबारा बनवा दे!
इस लाइन के लिए तो 100 नंबर..
हास्य लेखन में जो प्रवाह होना चाहिए उस से कई ज़्यादा मिलता है.. बड़ी धमाकेदार पोस्ट है.. अति अति उत्तम.. जियो
दीदी, आपको कितना याद रहता है. घासू मास्साब की पोल खोल दी आपने. लेकिन वो एक बात भूल गई आप. कलुआ जब नहीं पढ़ पाया था तब घासू मास्साब ने मुझसे पढ़ने को कहा था. अभी जाकर मास्साब को बताता हूँ. सुनकर खुश हो जायेंगे. आखिर मास्साब का जिक्र कहीं तो हुआ. ब्लॉग पर ही सही.
नमस्ते दीदी. बाद में देखने आऊंगा कि घासू मास्साब ने कमेन्ट में क्या लिखा.
घासीराम मास्टर की अच्छी खासी धुलाई ............ प्राईमरी के मास्टर को पसंद आई!!!
प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर
उषा की तरह एक चाक हमें भी क्यों न पड़ गई स्कूली दिनों में?! इम्तहान में नफा हो जाता!
कुछ भी कहो, अपने घासीराम मास्साब का दिन रोचक है. मास्टरनी का भी जवाब नहीं!!
कित्ती मेहनत करते है हमारे मॉस साहब देखो तो.....नहीं का ??ओर मस्टराइन ???सोचता हूँ इन सबके के बीच हेअद्मास्तर का जिक्र आ जाता तो......चलिए खैर भोजन -वोजन नहीं होता आपकी पाठशाला में क्या ??
आपकी लेखनी के क्या कहने ...अब क्या कहूं .............बहुत ही जानदार और प्रभावशाली
Bandh kar rakhti hai aapki lekhni.Badhai.
क्या कहने मास्साब के और उनकी मास्टरनी के !!!!
पल्लवी जी आपने तो कमाल कर दिया...इतनी मजेदार कहानी बहुत दिनों बाद पढने को मिली...और सच कहूँ तो अपने बचपन का सरकारी स्कूल याद आ गया और याद आ गए संस्कृत के मास्टर साहेब जो आपकी कहानी के पात्र से इतने मिलते हैं की क्या कहूँ...
देर से आया उसके लिए माफ़ी लेकिन आनंद पूरा उठाया...
नीरज
बहुत ही रोचक कथा लिखी है पल्लवी जी आप ने.
बिलकुल चलचित्र कि भांति सही द्रश्य नज़र आये.
बेचारे मास्टर जी!
अंतिम नोट. भी ..बहुत बढ़िया है !:)
ये मास्साब तो हमें भी पढाते थे :-) मजा आ गया उनको याद करके.
बाप रे जब हमें ही इतना आनंद आया......... तब उन्हें यह सब पढ़ते हुए कितना आनंद आएगा जो इन घटनाओं से जुड़े हुए हैं.........बहुत ही जोशो-खरोश से भरी गुदगुदाती और दिल बहलाती रचना....!
are waah ekdam se mujhe mere primeri school men le ja kar patak diya aapne.
badi sundar rachana
khali panne
अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकारें...
hi pallavi di
sacchi me aapne bahut accha likha ahi.......or ye sach me sahi b mera khud ka anubhav raha hai gov.school ka waha yahi mahol rahta hai..he he he he
सबसे प्रभावी बात जो लगी वो ये कि छोटी सी छोटी बात को इतनी बारीकी से पिरोया है कि लगता है जैसे सामने हो रहा है सब कुछ ! दरी को उधेडने का विवरण हो या फिर , मास्टरनी का सुबह-2 का प्रसाद ! प्रिंसीपल का घूरने से तो ऐसा लगता है जैसे मैन अपने स्कूल के प्रांगढ में पहुचकर प्रार्थना में शरीक हो रहा हूँ !
संभवत: सरकारी स्कूलों की यह व्यथा हमेशा बनी रहेगी !!
मास्साब का एक रूप हमने भी वर्णीनित किया है अपने ब्लाग पर ,शायद घास्सीराम जी प्रभावित हों !
आपकी रचना शैली पर बहुत सारी बधाईयाँ !
दर्शन मेहरा
http://darshanmehra.blogspot.com
मास्साब ने ऑटो मोड में डाल दिया कक्षा को! superb.
:-)
रायसेन का बापू आश्रम का स्कूल और मास्साब याद आ गए :-)
enjoyed reading !!!
अनु
सरकारी स्कूल में पढ़ने का बस एक दिन का ही तजुर्बा है और जिन मास्साब ने हमारी कक्षा ली थी वो संयोग से घर में आने वाले ट्यूटर निकले। घर पर तो वो सामान्य शिक्षक नज़र आते रहे पर जब स्कूल में उन्हें देखा तो उनका रंग ढ़ंग भी कुछ आपके वाले मास्साब सा ही था।
harishankar parsai ka vyang "Vaisnav ki fislan" ki yaad taaza kara de. samasyen hai to unke karan bhi hai. achchhi prastuti hai.
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