बीता महीना चुनाव के कारण बहुत व्यस्तता भरा बीता! एक तो बला की गर्मी , ऊपर से चुनाव. इससे ज्यादा भयावह कॉम्बिनेशन नहीं हो सकता! इतनी गर्मी में घूम घूम कर तीन बार तो लू लग गयी! हांलाकि जिसने जो सलाह दी..एक आध छोड़कर सब पर अमल भी किया! कैरी का पना, नीबू पानी, सत्तू ..सब कुछ पिया! साथ में प्याज भी रखी! पर ज्यादा काम न आये! बस कैलेंडर में तारीखें काट काट कर तीस अप्रैल गुज़र जाने का इंतज़ार करते रहे! चुनाव हो जाने के बाद जो पहला काम किया वो ये की उस रात शायद बारह घंटे से कुछ ज्यादा ही सोयी होउंगी! अब थोडा रिलेक्स महसूस हो रहा है....गाडी वापस पटरी पर आ गयी है! इस बीच कुछ लिखना पढना भी नहीं हो पाया! लेकिन अभी दो दिन पहले एक मजेदार वाकया हुआ....जो लिखने का मसाला दे गया! वही लिखे दे रही हूँ!
मैं बाज़ार से गुज़र रही थी...इतने में हमारे एक टी.आई. साहब का फोन आया! या तो सिग्नल प्रोब्लम रही होगी या आस पास भीड़ भड़क्का , जिसके कारण आवाज़ ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी! टी.आई. साहब ने कहा " आज हमने एक चोर पकडा है!" हम गलती से सुन बैठे की एक शेर पकडा है! हो सकता है की दोष हमारे कानो का हो जिसे हमने सिग्नल की कमी या भीड़ भड़क्के पर थोप दिया है! जैसे ही हमने सुना, हम तो एकदम चमक गए! मन ही मन सोचा...अरे वाह जिसे हम आज तक लल्लू टाइप का समझते रहे...इसने तो कमाल कर दिया! सीधे शेर पकड़ लिया! हमें गर्व हुआ की विश्व का सबसे बहादुर टी.आई हमारे पास है! खैर हमने कहा " अच्छा....कैसे पकडा?"
टी.आई साहब बोले " कुछ नहीं साहब....यही थाने के पास घूम रहा था ...पकड़ लिया!" अब तक आर्श्चय हमारा स्थायी भाव बन चुका था हम बोले " अरे गज़ब...थाने के पास कैसे आ गया?...." आगे कुछ और पूछते इससे पहले ही टी. आई साहब ने आगे जोड़ा " साहब ...वो गूंगा बहरा भी है" अब तो आश्चर्य के मारे आँखें फट कर बाहर निकलने को थी " अरे तुम्हे कैसे पता चला की गूंगा है?" हमने पूछा! टी.आई . ने बड़े आराम से जवाब दिया " अरे साहब ...कुछ बोल ही नहीं रहा!" हम्म....सही है , दहाड़ नहीं रहा होगा तभी इसे लग रहा है की गूंगा है! हमने सोचा.. फिर हमने पूछा " गूंगा तो ठीक...पर तुम तो ये बताओ की तुमने ये कैसे जाना कि ये बहरा है?" टी. आई. ने उतने ही आराम से जवाब दिया " हम कुछ कहते हैं तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है!" वाह भाई वाह...कितना समझदार और बहादुर टी.आई है हमारा .....हम उससे बड़े प्रभावित हुए! फिर हमने पूछा " अब क्या करोगे उसका?" " साहब एक आध दिन रखते हैं थाने पर...फिर देखते हैं क्या करना है!" इतना सुनकर तो हम इतना घबराए कि फोन हाथ से छूटने को हुआ! एक पल को हवालात में बैठा हुआ शेर हमारी आँखों के आगे घूम गया! हमने कहा " नहीं नहीं ...जल्दी वन विभाग वालो को फोन करो...उन्हें सुपुर्द करो!" टी.आई. बोला " क्यों करें वन विभाग वालो को सुपुर्द ..हमने पकडा है! और वैसे भी उसके पास से कोई लकडी वकडी नहीं मिली है....मोबाइल मिले हैं!"
अब हमने अपने कानो को खुजाया और कहा " किसकी बात कर रहे हो"
" चोर की ...उसके पास से मोबाइल मिले हैं!" टी.आई. ने कहा!
" तो आपने चोर पकडा है...जो गूंगा बहरा है" हमने कन्फर्म किया
" जी सर...आपने क्या समझा?"
बड़ी मुश्किल से हंसी काबू में करते हुए हमने जवाब दिया " शेर"
अब तो वो भी हँसने लगा...हमने कहा टी.आई साहब दस मिनिट बाद फोन लगाना , हम जरा हंस ले!
खैर बाद में हमने सारी बात समझ ली....लेकिन अब इन मुए कानों पर कभी आँख बंद करके विश्वास नहीं करेंगे! मान लो कहीं बीच में फोन कट जाता और हम ये बात अपने अधिकारियों और प्रेस को बता देते तो......?
मैं बाज़ार से गुज़र रही थी...इतने में हमारे एक टी.आई. साहब का फोन आया! या तो सिग्नल प्रोब्लम रही होगी या आस पास भीड़ भड़क्का , जिसके कारण आवाज़ ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी! टी.आई. साहब ने कहा " आज हमने एक चोर पकडा है!" हम गलती से सुन बैठे की एक शेर पकडा है! हो सकता है की दोष हमारे कानो का हो जिसे हमने सिग्नल की कमी या भीड़ भड़क्के पर थोप दिया है! जैसे ही हमने सुना, हम तो एकदम चमक गए! मन ही मन सोचा...अरे वाह जिसे हम आज तक लल्लू टाइप का समझते रहे...इसने तो कमाल कर दिया! सीधे शेर पकड़ लिया! हमें गर्व हुआ की विश्व का सबसे बहादुर टी.आई हमारे पास है! खैर हमने कहा " अच्छा....कैसे पकडा?"
टी.आई साहब बोले " कुछ नहीं साहब....यही थाने के पास घूम रहा था ...पकड़ लिया!" अब तक आर्श्चय हमारा स्थायी भाव बन चुका था हम बोले " अरे गज़ब...थाने के पास कैसे आ गया?...." आगे कुछ और पूछते इससे पहले ही टी. आई साहब ने आगे जोड़ा " साहब ...वो गूंगा बहरा भी है" अब तो आश्चर्य के मारे आँखें फट कर बाहर निकलने को थी " अरे तुम्हे कैसे पता चला की गूंगा है?" हमने पूछा! टी.आई . ने बड़े आराम से जवाब दिया " अरे साहब ...कुछ बोल ही नहीं रहा!" हम्म....सही है , दहाड़ नहीं रहा होगा तभी इसे लग रहा है की गूंगा है! हमने सोचा.. फिर हमने पूछा " गूंगा तो ठीक...पर तुम तो ये बताओ की तुमने ये कैसे जाना कि ये बहरा है?" टी. आई. ने उतने ही आराम से जवाब दिया " हम कुछ कहते हैं तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है!" वाह भाई वाह...कितना समझदार और बहादुर टी.आई है हमारा .....हम उससे बड़े प्रभावित हुए! फिर हमने पूछा " अब क्या करोगे उसका?" " साहब एक आध दिन रखते हैं थाने पर...फिर देखते हैं क्या करना है!" इतना सुनकर तो हम इतना घबराए कि फोन हाथ से छूटने को हुआ! एक पल को हवालात में बैठा हुआ शेर हमारी आँखों के आगे घूम गया! हमने कहा " नहीं नहीं ...जल्दी वन विभाग वालो को फोन करो...उन्हें सुपुर्द करो!" टी.आई. बोला " क्यों करें वन विभाग वालो को सुपुर्द ..हमने पकडा है! और वैसे भी उसके पास से कोई लकडी वकडी नहीं मिली है....मोबाइल मिले हैं!"
अब हमने अपने कानो को खुजाया और कहा " किसकी बात कर रहे हो"
" चोर की ...उसके पास से मोबाइल मिले हैं!" टी.आई. ने कहा!
" तो आपने चोर पकडा है...जो गूंगा बहरा है" हमने कन्फर्म किया
" जी सर...आपने क्या समझा?"
बड़ी मुश्किल से हंसी काबू में करते हुए हमने जवाब दिया " शेर"
अब तो वो भी हँसने लगा...हमने कहा टी.आई साहब दस मिनिट बाद फोन लगाना , हम जरा हंस ले!
खैर बाद में हमने सारी बात समझ ली....लेकिन अब इन मुए कानों पर कभी आँख बंद करके विश्वास नहीं करेंगे! मान लो कहीं बीच में फोन कट जाता और हम ये बात अपने अधिकारियों और प्रेस को बता देते तो......?
60 comments:
So, It was hear say, not admissible evidence. इसीलिए अदालतें कानों सुनी पर विश्वास नहीं करतीं।
हाहा... मजेदार वाकया...
चुनाव की थकान के बीच ऐसे वाकये काफी सुकून भरे रहे होंगे ?
प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर
वाह वाकई मजेदार वाकया सुनाया आपने। लेकिन दोष बेचारे टीआई का नहीं, आपके कानों का था। शायद आप चुनाव की वजह से ज्यादा मसरूफ रही होंगी। इसीलिए यह गफलत हो गई। वैसे पढ़कर मजा आ गया।
मजेदार रहा पढकर काफी अच्छा लगा
वाक़ई ज़ोरदार
---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
ye bhi khoob rahi :)
pad kar mazza aa gaya sach chunav ki thakan sochane ki takat khatm kar sakti hai.
यह शिकार कथा वाकई रोचक है।
-----------
SBAI TSALIIM
वाक्या मजेदार है। :-)
वैसे आजकल के चोर भी तो शेर से कम कहाँ होते है। चोरी करते वक्त जरा भी नही डरते है।
टी.आई. सीनियर ब्यूरोक्रेट होता तो उसे जंगल भी भेज देता..."येस सर" कह, बिना जुबां लड़ाए.
चुनाव और गर्मी से निपट कर आप लौट आयीं...अच्छा लगा...बहुत रोचक संस्मरण लिखा है...मजा आ गया...
नीरज
:) मजेदार रहा यह अनुभव ..चुनाव की थकावट यूँ उतारी आपने :)
pahalaa chunaaw fir upar se garmi uffff ... khairiyat se laut aayee achhi baat hai ye sasmaran bhi khub rahaa badhaayee aapko..
arsh
sach me acha narration tha...vaise ek chunavee chor sher se zyaada bhayaawah hoga
www.pyasasajal.blogspot.com
हा हा ! कान तो अपने आप खुल गए होंगे उसके बाद :-)
पहले पल्लवी को प्रणाम
बाद में टिप्पणी
जो भी सुनता वही हंस लेता
और क्या होता
आपको याद होगा मैंने आपको एक बार चैट में कहा था कि पुलिस वाले रस्सी का सांप और सांप की रस्सी बना देते हैं। कहिए याद है न । आज साबित हो गयी। हमारी कही। लेकिन लेख हो या घटना है मजेदार।
इसके लिए धन्यवाद
आपको निमंत्रण है ' चौखट ' पर आने का।
बहुत मजेदार..वैसे शक हुआ है तो कान के डॉक्टर को समय रहते दिखा लेने में कोई बुराई नहीं है. :)
एक बात और, अगर शेर भी होता तो एक पुलिस वाले के सामने उसकी क्या मजाल कि दहाड़े.. :)
गर्मी के मारे शेर भी चोर छाप हो गये हैं! आंख चुराऊ - गूंगे - बहरे!
वाह क्या शेर मारा है.. !! शुभानल्लाह
एक तो आपके साथ हुए वाकये को पढ़ कर हंस रही हूँ... दूसरा इस बात को सोच कर हंस रही हूँ की वाकई अगर प्रेस में खबर पहुँच जाती तो???
हा.. हा.. हा...
मजा आ गया...
मीत
बडा रोचक वाकया रहा.
वैसे लू लगने से भी कानों मे भी कुछ परेशानी हो जाती है और लगता है इसी वजह से चोर को कानों ने शेर सुन लिया होगा?:)
रामराम.
लू का असर कानो पे .........एक पेपर पबिलिश हो जायेगा....
यह पोस्ट पढकर तो वाकई में मजा आ गया...हा हा हा!!!
गुलमोहर का फूल
क्या खूब गलत फ़ेमेली सॊरी गलत फ़ेहमी हो गयी.
वैसे भोपाल में शेर कहां. अरेरा हिल्स पर सभी गीदड और लक्कडभग्गे ही तो है.
हां, इब्राहिमपुरा में एक शेर खां ज़रूर है.
very interesting post....
वास्तविक घटनाओं से चुटकुले कैसे बन जाते हैं यह घटना इस बात का उदाहरण है. इस बात का भी की पुलिस वाले सदा ही कितने तनाव में रहते है.
पल्लवी जी ये घटना वाकई मजेदार है... आपकी सारी थकान मिट गई होगी... वैस आपको अपने टी आई पर शेर पकड़ने का भरोसा करना भी चाहिए.... क्योकि पुलिस कार्यशैली पर एक कहानी है कि एक बार शेर को पकड़ना था तो पुलिस एक गधे को पुलिस स्टेसन में पीट रही थी और कह रही थी कबूल कर कि तू शेर है...
bahut majedaar ghatana hai .bahut maja aur hansi bhi aai padhkar pahli baar aapke blog par aai thi bahut chha laga.:)
मजेदार संस्मरण,
आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
फिर हमने पूछा " अब क्या करोगे उसका?" " साहब एक आध दिन रखते हैं थाने पर...
ha....ha....ha...ha..ha
maja aa gaya kissa padhkar!
isiliye main suni huyi baaton par vishvas nahin karta ... chaahe TV channels kuchh bhi kahen.
बडा रोचक वाकया रहा..
main to bhaagkar apni patni ko bulane gaya... aur isse pehle ki usko dopeher ki badhiya neend se uthane ki himmat karta.. dubara aake padha... aur baat muh me hi reh gayi..."aake dekho...tumhare ilaake me sher bhi pakad lete hain police wale".....
:) padh kar maza aaya...
regards
N
ये भी खूब रही:)
अभी टिपण्णी लिखते हैं, १० मिनट बाद. रुको ज़रा हंस ले पहले :D
वाह,वाह!
क्या शेर सुनाया, बहुत खूब.
अरे वाह जिसे हम आज तक लल्लू टाइप का समझते रहे...इसने तो कमाल कर दिया! सीधे शेर पकड़ लिया! हमें गर्व हुआ की विश्व का सबसे बहादुर टी.आई हमारे पास है!
हा हा ................ वाह क्या शैली है ! मज़ा तो तब आता जब यह यह प्रेस को release हो जाता !
अच्छी लगी आपकी कहानी ....यूँ ही लिखती रहें ....!!
भई वाह.... मुझे हंसता देख पत्नी ने पूछा ऐसा क्या पढ़ लिया..? तो मैंने उन्हें भी सुनाया अब हम दोनों ठहाके लगा रहे हैं..... मजेदार घटना.. इसे कहते हैं प्रामाणिक सहज हास्य.. वाह..
फिर उस 'शेर' सोरी
उस चोर का क्या हुआ ? :)
गूँगा बहरा ही सही, होगा तो खतरनाक ही ..
बहुत मुस्कुराये पल्लवी जी ..
अब गर्मी कैसी है वहाँ पर ?
स ~ स्नेह,
- लावण्या
Mazzedar ghatana thi..vaise aisi ghatanye to police valo ke saath khoob hoti hai.age bhi hongi jo ham logo ko padne ko milengi.pallavi ji maere father bhi Dy.sp hai.ham log bhi aisi ghatanye se bakeef hai vasi aata mazza hai.aapne yaad taza kar di.pehli bar aapke blog par aye bahut achcha lga.fursat mai hamare blog par bhi datak de.
LAUGHING SOO LOUDLT ...HEHEHE,,TOOOOOO CUTE
पल्लवी जी!
नमन.
रोचक प्रसंग, सरस शैली...मजा आ गया.... वैसे भारतीय पुलिस जो न करे थोडा.
इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े आपके पाठक मन मसोस रहे होंगे कि काश यह बात पहले पता चल जाती तो आधे घंटे का एक विशेष बुलेटिन बनाया जा सकता था।
वाकई बहुत मजेदार घटना है।
॥दस्तक॥|
गीतों की महफिल|
तकनीकी दस्तक
bahut hi rochak vaakya hai ........padhkar accha laga........
apna sneh aise hi banaye rahain..........
अक्षय-मन
ऐसे रोचक 'हादसेÓ जिंदगी में होते रहते हैं. बात उन दिनों की है जब मैं ईटीवी लखनऊ में था. मुरादाबाद में राबर्ट वढेरा के भाई की अचानक डेथ हो गई थी. कारण साफ नहीं हो रहा था. टीवी में फ्लैश चल रहे थे. ईटीवी का मुरादबाद में कोई रिपोर्टर नही था सो निअरेस्ट अमरोहा के अपने रिपोर्टर को मुरादाबाद से रिपोर्ट करने को कहा. ईटीवी के एचक्यू हैदराबाद से रात दस बजे के बुलेटिन में लाइव के लिए उसे लाइनअप
किया. मामला सिविल लाइन थाना का था तो वहां के एसओ से भी बात की. बस यही गड़बड़ हो गई. न्यूजरूम को रिपोर्टर का नंबर देने के बजाय दरोगा का नंबर दे दिया. लाइव न्यज एंकर ने कहा सीधे चलते हैं मुरादाबाद वहां हमारे संवाददाता ....मैजूद हैं...हां बताइए .. उधर से आवाज आई जय हिंद सर सेक्यारिटी की सब तैयारी कर ली गई है...बाकी सब सवालों के जवाब में यही उत्तर मिल रहा था ... कप्तान साब बताएंगे.... जैसे तैसे समअप कर एंकर दूसरी खबर की ओर बढ़ गया. लखनऊ में बैठा मैं ये तमाशा देख रहा था. तमतमा कर मुरादाबाद संवाददाता का फोन किया . अबे.. सब प्रश्न बता दिए थे फिर क्या अंटशंट बक रहे थे और ये जय हिंद और कप्तान साहब क्या होता है? उधर से जवाब मिला ..क्या सर हैदराबाद से तो फोन आया ही नहीं, हैदराबाद से मेरी कोई लाइव बातचीत नहीं हुई. मेरा माथा ठनका..दरअसल गलती से रिपोर्टर की जगह दरोगा जी का फोन नं. न्यूजरूम को दे दिया था और क्रास फायरिंग में बेचारे दरोगा जी फंस गए थे.
lovely post....
hope u are out of loo....
Bechara TI, vaise!!hahah
http://bharatmelange.blogspot.com
kaafi majedar ......
vaise kaafi dino baad blog street me aaya . dekha , duniya badal cuki hai....
:) :)
bahut hi dilchasp vaakya ...
Aabhar
Vijay
Pls read my new poem : man ki khidki
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
काफी अच्छा लगा...बहुत बहुत धन्यवाद...
:)
lagta hai aajkal sheron ko pakadne ka kaam bahut badh gaya hai, tabhi to likhne ki fursat nahin milti...
ham jara tafrih karne aa gaye the ki mohtarma thik to hain, ya goonge bahre sher se kuch raaz ugalva rahi hain, mafia wagairah ke :)
kuch likhiye na...kittne din ho gaye...please
pallavi ji aap hain kahan...???? Mahino se koi post nahin umeed hai shkushal hongi...
Neeraj
aapka blog kafi achha hai
rachnaye bhi kafi rochak hai
badhai
बहुत खूब...पढ़ने के बाद हंसी को रोक न सकी और आसपास के लोग ऐसे देख रहे थे मानों मैं पागल हो गई हूं....खैर जबर्दस्त लेख है खुद मेरी थकान भी दूर हो गई..।
सुधी सिद्धार्थ
क्या बात है जी, आप मई के बाद नजर ही नहीं आ रहीं है।
लगता है दो जून की रोटी के चक्कर में जुलाई-अगस्त भी बिचारे ठिले जा रहे हैं, अभी सितंबर मुंह बाये खडा है कि पल्लवी जी आएं और अपने ब्लॉग पर कुछ परोसें :)
अब कुछ लिखिये भी !
इतनी व्यस्तता भरी जिंदगी में से ऐसे हंसी के
पल ढूंड लेना और फिर उन्हें दूसरो से बांटना
यह बात अभिव्यक्त करता है के आप कितने जिंदादिल इंसान हो जो मुसीबतों में भी मुस्कराना
जानते हो....बहुत वधाई.....डॉ. अमरजीत कौंके
www.amarjeetkaunke.blogspot.com
hahahhahahhaha......
are baap re.....ab aage koi post nah padhunga...pet dukha gaya hansh..hansh ke.
Thanku very much for this nice post.
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