वो खामोश नज्में कहता था मेरे लिए
मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी
वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी
वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था
वो किसी लैला की बात किया करता था
मैंने लैला को अपने अन्दर सुलगते देखा था एक रोज़
एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था
वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है
46 comments:
Pallavi Ji,
Namaste,Bahut pyari nazm likhi hai aapne, shadon ka prayog bhi sunder kiya hai, Badhaai.....
Surinder Ratti
वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है
सारा दर्द सिमट आया इन पंक्तियों में....सुन्दर अभिव्यक्ति
वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था
zabrdasttttttttttttttttttt..... akhir ki do lines bhi bahut jyada pasand aayeen ..
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था-----------
सुन्दर अभिव्यक्ति
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी
कुछ कहने को नहीं रहा जबरदस्त ...
बिलकुल मेरी पसंद की रचना
वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी
soch ka dayara gazab ka hai.
एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था
kin lafzon mein tarif karoon........har sher dil mein utarta ja raha hai ...........kise chhodun aur kise pakdun...........bahut hi sundar abhivyakti.
बहुत ही सुन्दर रचना ।
चाह को जिस तरीके उपमाएं देकर शब्दों में पिरोया गया है ... बहुत खूब.
वैसे तो सब ठीक है बस एक बात समझ में नहीं आई....
आरम्भ में प्रेम उच्चतम स्तर पर....और अंत में पीड़ा....
ऐसा क्यों....?
दोनों ही अभिव्यक्ति अपने चरम पर....
कुंवर जी,
khoobsooorat bayaaan...
वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है
बहुत मार्मिक है .....
बहुत सुंदर भाव
वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है
बहुत दर्द भरा है इन पंक्तियों में ।
सुन्दर रचना ।
लोग पहले एक दुसरे से मुतास्सिर होते है फिर दोस्ती करते है .........तुम जब नज़्म कहती हो....मुझे वही पल्लवी याद आती है ....जहाँ नज़्म हमारी दोस्ती की पहली शर्त थी ..गुजरे वक़्त के साथ जिंदगी की मसरूफियत यूँ बढ़ी के नज़्म पीछे कही पीछे चली गयी...अब वो मूड या तो फुरसत से बनता है या फिर अचानक .किसी रवां से दिन .मेरे लिए गुलज़ार केटेलिस्ट की माफिक है .मोबाइल में बजेगे या रेडिओ में ..
बड़े दिनों बाद वही नज़र आई .....काश ये मूड बना रहे .....थोड़ी छुट्टी बढवा लो यार !!
wah...kya baat hai........
har lafz khoobsoorat.
सुन्दर रचना! अंतिम पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया!
सुन्दर रचना ...अंतिम पंक्ति गहराई लिए हुए ...लाजवाब
सुंदर रचना..मुझे तो बहुत अच्छी लगी आपकी यह प्रस्तुति..आभार
bahut achha laga pad kar
bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
waah ek naayaab nazm bahut sundar...
प्रेम और पीड़ा का सदियों से गहरा नाता है...यही इस रचना में दिखाई दे रहा है..जो मन को छू गया.
beautiful, touchy
क्या कहूं. शब्द मौन हैं.....दिल खामोश....
behad umda nazm likhi hai apne...
इश्क़ की दास्ताँ बढ़ते हुए सूफी हो गई
जिसके लिए भी है बहुत सुंदर है. इतनी सहज और सरस जैसे शांत झरने से गिरता पानी.
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
waah ek naayaab nazm bahut sundar..
ए
मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी
वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी
वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था
वो किसी लैला की बात किया करता था
मैंने लैला को अपने अन्दर सुलगते देखा था एक रोज़
एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था
वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है
its ultimate writting, oh God! what a creation. each word speaks thousand words, pallavi ji, God bless u and ur creativity. its really awesome, beautiful, touching etc etc.
वाह, अहसास को शब्दों में कितनी ख़ूबसूरती से पैबस्त किया जा सकता है !
वो खामोश नज्में कहता था मेरे लिए
मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी
bahut sundar panktiyan hain !
बड़ी ज़िन्दा नज़्म है तसव्वुरात की। अच्छा लगा!
खामो
श अंतरंग प्रेम की दासतां को बहुत सुंदर शब्दों में बांधा है अतुलनीय अकल्पकनीय अतिसुंदर
वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था
बहुत ही सुंदर नज्म.....
एक-एक शेर कोहिनूर सा है.
अद्भुत, बेनजीर.
कैसे-कैसे भाव हैं। बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ना।
so touching.......!
wah kya najm likhi hai aapne. subhanallah
सुन्दर.......
Beautiful :)
I love reading hindi blogs but i guess i have never given any comments on any blog till now..Par pallavi ji aapki is nazm ko padhne ke baad barbas ungliyaan chal gayee aur yahi kah rahi hai Beutiful!!!!! bahut hi pyarri rachna hai yeh aapki aur shabdo ne to zaadu kar diya hai yahn.
मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी
वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी
वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था
एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था
Laga Amrita pritam ne dobara se likhna suru kar diya..
beast of luck pallavi ji... Awesome!!
waah ...maza aa gaya
एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था.
----पढ़ते ही दिल में एक दर्द सा होता है ...
बहुत ही खूबसूरत नज़्म.. कितना कुछ कह गयी है आप इस नज़्म में ..एक एक शब्द की अपनी ही दास्ताँ है .. वाह वाह .. दिल से बधाई ..लगा कि अमृता प्रीतम को पढ़ रहा हूँ ..
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
पल्लवी जी
आपकी लावण्या जी के सौजन्य से मिली दो लघु कथाएँ विश्वा के अक्टूबर के अंक में लगाई जा रही हैं लेकिन विश्वा के पास आपका डाक का पता नहीं है इसलिए अंक भेजना संभव नहीं होगा | यदि आप चाहती हैं कि अंक आपको भेजा जाए तो अपना डाक का पता और इमेल का पता दोनों भेजें |विश्वा के कुछ अंक आप hindi. org पर देख सकती हैं |
रमेश जोशी
संपादक विश्वा
joshikavirai@gmail
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