Tuesday, June 1, 2010

कुछ बहके बहके से अल्फाज़....जाने किसके लिए


वो खामोश नज्में कहता था मेरे लिए
मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी

वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी

वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था

वो किसी लैला की बात किया करता था
मैंने लैला को अपने अन्दर सुलगते देखा था एक रोज़

एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था

वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है

46 comments:

SURINDER RATTI said...

Pallavi Ji,

Namaste,Bahut pyari nazm likhi hai aapne, shadon ka prayog bhi sunder kiya hai, Badhaai.....
Surinder Ratti

SURINDER RATTI said...
This comment has been removed by the author.
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है


सारा दर्द सिमट आया इन पंक्तियों में....सुन्दर अभिव्यक्ति

स्वप्निल तिवारी said...

वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था

zabrdasttttttttttttttttttt..... akhir ki do lines bhi bahut jyada pasand aayeen ..

स्वाति said...

बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था-----------
सुन्दर अभिव्यक्ति

sonal said...

मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी
कुछ कहने को नहीं रहा जबरदस्त ...
बिलकुल मेरी पसंद की रचना

vandana gupta said...

वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी
soch ka dayara gazab ka hai.

एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था
kin lafzon mein tarif karoon........har sher dil mein utarta ja raha hai ...........kise chhodun aur kise pakdun...........bahut hi sundar abhivyakti.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर रचना ।

पवन धीमान said...

चाह को जिस तरीके उपमाएं देकर शब्दों में पिरोया गया है ... बहुत खूब.

kunwarji's said...

वैसे तो सब ठीक है बस एक बात समझ में नहीं आई....

आरम्भ में प्रेम उच्चतम स्तर पर....और अंत में पीड़ा....

ऐसा क्यों....?

दोनों ही अभिव्यक्ति अपने चरम पर....

कुंवर जी,

Rajeysha said...

khoobsooorat bayaaan...

दिनेशराय द्विवेदी said...

वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है
बहुत मार्मिक है .....

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर भाव

डॉ टी एस दराल said...

वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है

बहुत दर्द भरा है इन पंक्तियों में ।
सुन्दर रचना ।

डॉ .अनुराग said...

लोग पहले एक दुसरे से मुतास्सिर होते है फिर दोस्ती करते है .........तुम जब नज़्म कहती हो....मुझे वही पल्लवी याद आती है ....जहाँ नज़्म हमारी दोस्ती की पहली शर्त थी ..गुजरे वक़्त के साथ जिंदगी की मसरूफियत यूँ बढ़ी के नज़्म पीछे कही पीछे चली गयी...अब वो मूड या तो फुरसत से बनता है या फिर अचानक .किसी रवां से दिन .मेरे लिए गुलज़ार केटेलिस्ट की माफिक है .मोबाइल में बजेगे या रेडिओ में ..
बड़े दिनों बाद वही नज़र आई .....काश ये मूड बना रहे .....थोड़ी छुट्टी बढवा लो यार !!

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah...kya baat hai........

varsha said...

har lafz khoobsoorat.

nilesh mathur said...

सुन्दर रचना! अंतिम पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया!

Ra said...

सुन्दर रचना ...अंतिम पंक्ति गहराई लिए हुए ...लाजवाब

विनोद कुमार पांडेय said...

सुंदर रचना..मुझे तो बहुत अच्छी लगी आपकी यह प्रस्तुति..आभार

Shekhar Kumawat said...

bahut achha laga pad kar

bahut khub

http://kavyawani.blogspot.com/

दिलीप said...

waah ek naayaab nazm bahut sundar...

मीनाक्षी said...

प्रेम और पीड़ा का सदियों से गहरा नाता है...यही इस रचना में दिखाई दे रहा है..जो मन को छू गया.

Sanjeet Tripathi said...

beautiful, touchy

Rohit Singh said...

क्या कहूं. शब्द मौन हैं.....दिल खामोश....

sanu shukla said...

behad umda nazm likhi hai apne...

के सी said...

इश्क़ की दास्ताँ बढ़ते हुए सूफी हो गई
जिसके लिए भी है बहुत सुंदर है. इतनी सहज और सरस जैसे शांत झरने से गिरता पानी.

संजय भास्‍कर said...

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

संजय भास्‍कर said...

waah ek naayaab nazm bahut sundar..

mai... ratnakar said...


मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी

वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी

वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था

वो किसी लैला की बात किया करता था
मैंने लैला को अपने अन्दर सुलगते देखा था एक रोज़

एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था

वो एक रोज़ टांगा गया था मज़हब की सलीब पर
और सदियों से वो मेरे सीने पर क्रॉस बनकर झूल रहा है




its ultimate writting, oh God! what a creation. each word speaks thousand words, pallavi ji, God bless u and ur creativity. its really awesome, beautiful, touching etc etc.

Arvind Mishra said...

वाह, अहसास को शब्दों में कितनी ख़ूबसूरती से पैबस्त किया जा सकता है !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वो खामोश नज्में कहता था मेरे लिए
मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी

bahut sundar panktiyan hain !

Himanshu Mohan said...

बड़ी ज़िन्दा नज़्म है तसव्वुरात की। अच्छा लगा!

अनिल कुमार हर्ष said...

खामो
श अंतरंग प्रेम की दासतां को बहुत सुंदर शब्‍दों में बांधा है अतुलनीय अकल्‍पकनीय अतिसुंदर

http://anusamvedna.blogspot.com said...

वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था

बहुत ही सुंदर नज्म.....

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

एक-एक शेर कोहिनूर सा है.
अद्भुत, बेनजीर.

अनूप शुक्ल said...

कैसे-कैसे भाव हैं। बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ना।

VIVEK VK JAIN said...

so touching.......!

Unknown said...

wah kya najm likhi hai aapne. subhanallah

Abhishek Agrawal said...

सुन्दर.......

Poonam Nigam said...

Beautiful :)

Vivek Mishra said...

I love reading hindi blogs but i guess i have never given any comments on any blog till now..Par pallavi ji aapki is nazm ko padhne ke baad barbas ungliyaan chal gayee aur yahi kah rahi hai Beutiful!!!!! bahut hi pyarri rachna hai yeh aapki aur shabdo ne to zaadu kar diya hai yahn.

मैं बदन के रोम रोम से सुना करती थी

वो अपनी आँखों से सहलाता था मुझे
मैं घूँट घूँट उसके इश्क को पिया करती थी

वो कुछ अधूरी सी इबारत लिख गया था मेरी धडकनों पर
मैंने उन्हें अपना नाम पता बनाकर पूरा किया था

एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था
Laga Amrita pritam ne dobara se likhna suru kar diya..
beast of luck pallavi ji... Awesome!!

crazy devil said...

waah ...maza aa gaya

Anujgujjar said...

एक रात उसने मेरी कुंवारी रूह को समेटा था
बाहर बरामदे में मोगरा ओस से भीग भीग गया था.


----पढ़ते ही दिल में एक दर्द सा होता है ...

vijay kumar sappatti said...

बहुत ही खूबसूरत नज़्म.. कितना कुछ कह गयी है आप इस नज़्म में ..एक एक शब्द की अपनी ही दास्ताँ है .. वाह वाह .. दिल से बधाई ..लगा कि अमृता प्रीतम को पढ़ रहा हूँ ..

आभार
विजय
------------
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

joshi kavirai said...

पल्लवी जी
आपकी लावण्या जी के सौजन्य से मिली दो लघु कथाएँ विश्वा के अक्टूबर के अंक में लगाई जा रही हैं लेकिन विश्वा के पास आपका डाक का पता नहीं है इसलिए अंक भेजना संभव नहीं होगा | यदि आप चाहती हैं कि अंक आपको भेजा जाए तो अपना डाक का पता और इमेल का पता दोनों भेजें |विश्वा के कुछ अंक आप hindi. org पर देख सकती हैं |
रमेश जोशी
संपादक विश्वा
joshikavirai@gmail