वो सुबह बिस्तर से कूदकर उठती ...सूरज की अगवानी करने के लिए! उसे पसंद नहीं था कि उसके उठने के पहले एक तोला सोना भी धरती पर बिखरे! बचपन में एक बार पापा ने बड़े प्यार से उसे बिस्तर से उठाया था और अपने गोद में बाहर बागीचे में ले गए थे...आँखे उसकी बंद करके! " ..." जब मैं कहू तब आँख खोलना " पापा ने कहा था! ठीक पांच मिनिट बाद उसने आँखें खोली थीं और बस पूरब से उतरती किरनों के जादू में गिरफ्तार होकर रह गयी थी! तब से आज तक सूरज ने हमेशा उसका इंतज़ार किया है! काला घुप्प आसमान देखते ही देखते कैसे लाल, ऑरेंज और फिर सुनहरे रंग की चूनर तान लेता है! जैसे काले दुपट्टे को किसी रंगरेज ने रंग कर आसमान में उड़ा दिया हो! और बादलों के बीच से जब सुनहरी रेखा झांककर देखती फिर उसके घर की छत पर जैसे ही उतरती , वो ऊपर की तरफ चेहरा करके खड़ी हो जाती और धूप का एक टुकड़ा उसका चेहरा चूम लेता ! शाम को भी वह स्कूल से आते ही भागकर छत पर जाती ..वहां मुंडेर पर धूप बैठी उसका इंतज़ार करती मिलती! थोडा सा सोना उसके मुंह पर मलकर सूरज विदा लेता! "विदा मेरे सबसे अच्छे दोस्त..." वो खुशी से भरकर चिल्लाती...
एक दिन उसने अपने बचपन के दोस्त को एक राज बताया था ... " उसका नाम भी सूरज है...और बताते बताते शरमा कर रह गयी थी " अब उसकी जिंदगी में एक और सूरज शामिल हो गया था! कई बार वो बावली सी सुबह सुबह दौडी जाती और सूरज को उठाकर बाहर बालकनी में खड़ा कर देती...फिर दोनों सूरजों को बारी बारी देखती...! ऊपर वाला सूरज मुस्कुरा देता और बालकनी वाला निरीह सा चेहरा बनाकर दोबारा सोने की इजाज़त मांगता! वो ऊपर देखकर चिल्लाती.. "मेरा वाला तुमसे अच्छा है!"
वो बहुत खुश थी... सूरज के चेहरे पर भी उसे वैसा ही तेज और ताप महसूस होता जो वो बचपन से महसूस करती आई थी!क वो उसे खत लिखती... उसके लिए हाथ से रूमाल काढती , उसे प्यार करती तो बस करती ही जाती! उसकी देह की गंध अपने सीने से चिपकाए सोती और सुबह किरनों का हार पहनकर उस गंध को सुनहरा बना देती! ए दिन सुबह छत पर एक किरन उतरी और उसने उसे कहा " सूरज के अंदर बहुत आग है...नज़दीकी बढ़ाओगी तो झुलस जाओगी.." उसने गुस्से में किरन को मोड दिया और रूठकर चल दी!
कई दिन बीते...किरनों से उसकी सुलह हो गयी थी! एक दिन एक खत आया... सूरज जा चूका था! हमेशा के लिए! वह रोई..बिलखी! इतने आंसू झरे कि किरने भी भीग कर अपने रंग खो बैठीं! सूरज पूरब से पश्चिम तक जाते जाते उसके उदास मुख पर चमक लाने की कोशिश करता! पर वो चमक वापस नहीं आई! उसने सूरज का खत जला दिया और साथ में उंगलियां भी जला बैठी ! उँगलियों पर मलहम लगाये वह सोच रही थी.... क्या सचमुच सूरज नज़दीक आने पर झुलसा देता है?"
कई साल बीत गए इस घटना को... अब भी वो सुबह उठकर सूरज को उगता देखती है! पर जैसे ही किरनें उसका मुख चूमने की कोशिश करती हैं..वह सहमकर पीछे हट जाती है! फिर खिडकी के पीछे से छुपकर सूरज को धरती के नज़दीक आता देखती है! फिर बुदबुदाती है.. " तुम भी मेरे नज़दीक आकर मुझे झुलसा दोगे न ? सूरज अपना आंसुओं से भीगा मुंह फेरकर अस्त होने लगता है और वो किरन जिसने लड़की को आगाह किया था..अपने किये पर पछताती है! इस हिले हुए भरोसे को अब वो कहाँ से वापस लाये..? उसके साथ पूरा आसमान खुदा से फ़रियाद करता है कि लड़की के जीवन को फिर से प्यार और विश्वास से महका दो... लड़की सुनती है और डबडबाई आँखों के साथ खिडकी बंद कर देती है!
24 comments:
बहुत सुन्दर , मार्मिक कहानी ।
उसने गुस्से में किरन को मोड दिया और रूठकर चल दी! - अच्छा प्रयोग है.
बहुत ही सुन्दर लगी ये रचना.
""और वो किरन जिसने लड़की को आगाह किया था..अपने किये पर पछताती है! इस हिले हुए भरोसे को अब वो कहाँ से वापस लाये..? उसके साथ पूरा आसमान खुदा से फ़रियाद करता है कि लड़की के जीवन को फिर से प्यार और विश्वास से महका दो... लड़की सुनती है और डबडबाई आँखों के साथ खिडकी बंद कर देती है!""
पल्लवी जी ,अभी तो इसकी गिरफ्त में हूँ ,नहीं जानता का क्या लिखूं जो मौजू जान पड़े, पहली दफा आपको पढ़ा है ,यक़ीनन बहुत सी चुप्पियों को आपसे आवाज़ मिल रही है, बहुत उम्दां ........मालिक करम बनाए रक्खे , may Lord cherish Thee
रोज सोना लुटाने वाला सूरज आज उदासी लेकर आता है।
VASTVIKTA KO LIKH DIYA HAI SHABDON ME DHAL KAR .SARTHAK KAHANI .AABHAR
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achcha laga padhna...
bahut sundar pallavi
Bahut badiya
पल्लवी जी बहुत अच्छी कहानी, जैसी कि उम्मीद रहती है आपसे | आपके लेखन में कभी कोई त्रुटी नहीं रहती पर इस बार एक शब्द कुछ सही नहीं लगा हो सके तो ठीक कर लीजियेगा | "
एक बार पापा ने बड़े प्यार से उसे बिस्तर से उठाया था और अपने गोद में बाहर बागीचे में ले गए था", इसमें जो आखिरी शब्द है 'था' उसकी जगह 'थे' का प्रयोग होना चाहिए |
प्रतीकात्मक तरीके से कही गई शानदार दास्ताँ ,
बयां करने ढंग बहुत खुबसूरत .
मनोज सक्सेना.जी...आपने मेरी त्रुटी की ओर ध्यान दिलाया ! बहुत बहुत शुक्रिया.. अभी ठीक करती हूँ !
इस प्रेम कथा को पढ़ गुलज़ार का वो गीत याद आ गया..
थका-थका सूरज जब, नदी से हो कर निकलेगा
हरी-हरी काई पे , पाँव पड़ा तो फिसलेगा
तुम रोक के रखना, मैं जाल गिराऊँ
तुम पीठ पे लेना मैं हाथ लगाऊँ
ओ साथी रे ..दिन डूबेना
ऐसा क्यों होता है...
भरोसे क्यों टूटते हैं..?
छोड़िये वाहियात सवाल हैं...? इनका जब कोई जवाब ही नहीं हैं तो..
जैसे फ़ीदरी टच अचानक भीग गया हो .....
बहुत सुंदर कहानी ... विश्वास टूटता है तो ऐसे ही उदासी छा जाती है ...
ओह ! झकझोर कर देर तक सोचने पर मजबूर कर गई आपकी कहानी । शैली प्रभावपूर्ण है पल्लवी जी । शुक्रिया
Wah wah
Wah wah
lovely.................
nice expression!!!
anu
सुन्दर रचना.
Good expression! Everything seems perfect. Pls see my blog also on Hindi stories:
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सोचने पर मजबूर कर गई कहानी
bahut sunder kahani dil ko chu gayi
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