Sunday, October 13, 2013

पप्पू भये उदास

पप्पू आज सुबह से भयंकर वाला उदास है ! वो होता यूं है कि पप्पू नित्य की तरह मुंह में सीटी चाल में उछाल वाले भाव के साथ जागते हैं ! उठके बालों को झटका वटका देते हैं ...आईने में बाल संवारते हैं, तभी मकानमालिक चले आते हैं किराया मांगने ! जाने क्या हुआ मकानमालिक के जाने के बाद कि पप्पू उखड जाते हैं  ! वैसे पप्पू की जगह कोई भी होता तो उखड़कर न जाने कहाँ जा पड़ता , पप्पू तो फिर भी उखड़कर घर में ही डले हैं ! कोई तरीका है कि सुबह सुबह चले आये किराया मांगने ! तकाजा करने का भी एक वक्त होता है ...ये थोड़े कि हर कभी मुंह उठाये चले आओ! अगर सात महीने का भी किराया है तो भी हम तो कहते हैं कि  उसका भी एक वक्त है, कायदा है बल्कि बाकायदा संहिता है !

पप्पू का मूड इस कदर खराब हुआ कि उन्होंने मुट्ठियाँ भींच लीं ...दांत पीसे , भुजाएं फड़कायीं और गुर्र गुर्र किट किट की आवाजें निकालीं ! बगावती तेवरों का ये आलम था कि उन्होंने उस दिन मंजन कुल्ला भी नहीं किया , पहला विद्रोह था ये नियम कायदों से ! पप्पू हुंकार भरते कमरे के इस छोर से उस छोर तक घूमे , पप्पू ने ज़मीन पर इस कदर लोट लगाईं कि सामने नाली में मौज मानते, खेलते कूदते  सूअर भी डिप्रेशन में आ गये ! ! उन्होंने तय किया कि पप्पू से लोट लगाने की नयी तकनीक सीखेंगे ! पप्पू फर्श पर इस  धमक के साथ कूदे कि चूहों ने डर  के मारे हाय एलर्ट ज़ारी कर दिया ! एक घंटे तक पप्पू कमरे भर में तांडव करते रहे .. ..शंकर जी जिस चट्टान पर बैठे धूनी रमाये थे , अचानक वो चट्टान कांपने लगी ! थोड़ी देर में लस्त पस्त होकर पप्पू ज़मीन पर बैठ गए ! तब शंकर जी ने राहत की सांस ली !

पप्पू एंग्री यंग मैन बनकर एक घंटे में बोर हो गए ...उन्होंने मन ही मन बिग बी को सलाम ठोका फिर चुपचाप बिस्तर पर जाकर चित्त लेट गए ! गुस्सा धीरे धीरे उदासी में परिवर्तित होने लगा ! गुस्सा ज्यादा देर टिकाने लायक ऊर्जा का अभाव था पप्पू की देह में , इसलिए देह के लिए भी उदासी का वरण करना ज्यादा सुविधाजनक था !

उदास होकर पप्पू पहले धीमे धीमे क़दमों से ठोड़ी पर हाथ धरे हुए कमरे में मंडराते रहे फिर खिड़की से टेका लगाकर खड़े हो गए ! शून्य में घूरने की कोशिश की मगर शून्य कहीं नज़र नहीं आया ...पप्पू और उदास हो गए कि जीवन में पहली बार शून्य में देखने की ज़रुरत पड़ी और साला पूरे मोहल्ले में कहीं शून्य नहीं है ! पप्पू ने कागज़ पर एक शून्य बनाया और एक मिनिट तक उसे घूरा ! फिर पप्पू ने सोचा " पता नहीं लोग शून्य में क्यों घूरते हैं ?"

 पप्पू फिर बिस्तर पर लेट गए ... पप्पू ने मोबाइल पर दर्द भरे नगमे का एल्बम खोला  और एक दर्द से सना गाना सिलेक्ट किया " मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये . बड़ी चोट खायी जवानी पे रोये " पप्पू ने गाने को अपने साथ जोड़कर जस्टिफाय किया " मुहब्बत केवल लड़की से ही थोड़े होती है , मैंने भी  जिंदगी से मुहब्बत की है , मैं जवान हूँ और चोट खाया हुआ हूँ ! हाँ हाँ ये गाना मेरे लिए ही बना है " पप्पू से दो बार से ज्यादा गाना नहीं झिल सका ! अगला गाना आया "हा बेवफा हरगिज़ न थे पर हम वफ़ा कर न सके " साला ये भी मुहब्बत का गाना ! पप्पू ने फिर जस्टिफाय किया " ठीक तो है ... मैं तो मकानमालिक का किराया चुकाना चाहता हूँ पर कंगाली आड़े आ रही है , मैं भी मजबूरी में वफादार नहीं हो पा रहा हूँ ! हाँ हाँ , ये गाना बिलकुल मेरे लिए ही है ! पप्पू को अब हर गाने में खुद को ढूँढने में आनंद आने लगा ! अब के गाना आया " दम मारो दम , मिट जाए ग़म " पप्पू उछल पड़ा " ये हुई न बात ..उदासी सम्प्रदाय के लिए प्रेरक गीत तो यही है " पप्पू ने गुटका पाउच उठाया और फांक लिया ! अगला गाना था " पप्पू कांट डांस साला .... " पप्पू उदासी के मारे गदगद हो गए ! क्या बात है ... ऐसे दुखी मन से कोई कैसे नाच सकता है ? पप्पू ने फिर तो डिस्को से लेकर आयटम सौंग्स तक कई गाने सुने और दर्द को जीते चले गए ! 

दो घंटे लगातार गीत सुनने के बाद पप्पू फिर एक बार बोर हुए ! उदासी के बादल थे कि छांटने का नाम नहीं ले रहे थे ! पप्पू की भूख भी मर गयी थी ...फिर भी पप्पू ने सोचा शायद अच्छे भोजन से फील गुड हारमोन सीक्रेट होता हो ..तो चलो बिना मन के ही कुछ खा लिया जाए ! पप्पू झट अपनी फटफटिया उठाकर चटोरी गली पहुँच गए ! दो प्लेट आलू टिक्की , बीस पानी पूरी और एक प्लेट रबड़ी खाने के बाद पप्पू ने दबाकर एक कलकतिया पान खाया ! घर आकर फील गुड हारमोन का लेटकर इंतज़ार करने लगे पर हारमोन का " हा" भी नहीं निकला ! पप्पू कचकचाये  ... " बिना मन और भूख के खाकर आया पर ये कम्बखत फील गुड हारमोन भी जाने कहाँ मर गया है  !"

अभी तो पूरी शाम बाकी थी ! पप्पू के दिमाग में एक बार आया कि कहीं चलकर पैसों का इंतजाम कर लिया जाए फिर पप्पू ने सोचा इस ग़म की बेला में कहीं जाना उचित नहीं है ! पप्पू फिर बिस्तर पे पसर गए !फिर पप्पू को ध्यान आया कि कुछ हंसी ठठ्ठा हो ले तो शायद बेचैन रूह को कुछ करार आये !पप्पू ने तीन घंटे मिस्टर बीन देखा .. बिना मन के पेट पकड़ पकड़ कर हँसे ! पर तीन घंटे बाद फिर वही उदासी का आलम ! हाय पप्पू ...अब क्या करे?

पप्पू ने सोचा ..अब सो लिया जाये , नींद तो आने से रही पर कोशिश तो की जा सकती है ! पप्पू चादर तानकर बिस्तर पर लमलेट हो गए ! फिर पप्पू ने भारी मन से खर्राटे मारे , भारी मन से कैटरीना के सपने देखे , रात में दो बार सू सू करने उठे और आकर फिर छूटा हुआ सपना कंटिन्यु किया ! अगले दिन पप्पू जब उठे तो मन हल्का हो चूका था ! एक पहाड़ सा दिन पप्पू ने घोर उदासी में काटा था ! सुबह देवदास ने पप्पू की बालकनी पर बीयर वर्षा की !

पप्पू ने एक फुल दिन उदास रहकर उन लोगों के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया है जो कहते रहते हैं " ये पप्पू साला कभी उदास नहीं होता "  

Wednesday, September 25, 2013

पप्पू महिमा

ये भी भला कोई बात हुई ... परीक्षा हॉल में गए ! बुद्ध जैसी गंभीर शकल बनाकर कुर्सी पर बैठ गए और पेपर मिलने के इंतज़ार में चेहरे पर अभूतपूर्व शान्ति ओढ़कर बैठ गए ! पेपर मिलने पर भी चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन नहीं .. दिल में कोई खलबली नहीं .. मुंह नहीं सूखता ! तीन घंटे सरवायकल के मरीज़ टाइप एक दिशा में सर झुकाए कॉपी रंगते रहे ! बीच में न पानी , न सू सू , न गुटका ..न बगल वाले का कोई असेसमेंट ! हश... ये भी कोई तरीका हुआ परीक्षा देने का !

पेपर देना सीखना है तो हमारे पप्पू से सीखिए ! ठीक पंद्रह मिनिट पहले हॉल में पहुँचते हैं ! सबसे हाय हैलो करते हुए अपना रोल नंबर ढूंढते हुए अपनी टेबल पर पहुँचते हैं ! एडमिट कार्ड से रोल नंबर देखकर टेबल पर पड़े रोल नंबर को मैच करने के बाद संतुष्ट होकर कुर्सी पर बैठते हैं ! पड़ोसी की तैयारी का जायजा लेते हैं ... उसे घबराता देख सांत्वना देते हैं " इत्ते सरल पेपर में क्या घबराना बे .. मैं तो रात को पिक्चर देखकर आया और बस उठकर चला ही आ रहा हूँ !" इत्ता बोलकर मुंह छिपाकर पप्पू खुद को ही आँख मार देते हैं ! अभी दस मिनिट बाकी हैं ! पप्पू ने अब अपना एक पाउच निकाला है जिसमे तीन चार तरह के पेन , पेन्सिल, रबड़ , शार्पनर आदि परीक्षोपयोगी स्टफ़ है ! सारे पेन छिड़क छिड़क कर देख रहे हैं पप्पू , पेन्सिल की नोक हथेली में चुभा चुभा कर देख रहे हैं पप्पू , मेज पर पसीना पोंछने के लिए रूमाल बिछा रहे हैं पप्पू !घडी उतार कर मेज के दायें कोने पर रख ली है पप्पू ने ! पप्पू ने दो बार मास्साब से पक्का कर लिया है कि पेपर तीन ही घंटे का है ना ? पप्पू को देखकर स्वर्ग लोक के देवता गदगद हो रहे हैं !

आखिर पेपर मिल जाता है ! पप्पू पेपर पढने से पहले दूसरे लोगों के चेहरे के भाव देखते हैं ताकि पेपर खोलने से पहले ही अंदाजा लग जाए कि पेपर बनाने वाले ने क्या कसम खाके पेपर बनाया है ! सबके पेपर पढ़ चुकने के बाद पप्पू आराम से पेपर खोलते हैं ! पेपर पढ़ते हुए पप्पू कभी मुस्कुराते हैं , कभी थूक गुटकते हैं , कभी दोनों मुट्ठियाँ हवा में लहरा कर उत्साहित होते हैं ! पप्पू अब बारी बारी से सारे पेन एक बार फिर चैक करते हैं , रूमाल से हथेलियों का पसीना पोंछते हैं और पानी मांगते हैं ! मास्साब पानी पिलवाते हैं ! फिर पप्पू सोचते हैं कि एक बार सू सू का कार्य भी निपटा ही दिया जाए तो फिर बढ़िया रिदम बनेगी कॉपी लिखने की ! मास्साब बुरे मन से आज्ञा देते हैं ! पप्पू टहलते टहलते बाथरूम जाते हैं ! फारिग होकर टहलते टहलते वापस आते हैं ! अब तक पंद्रह मिनिट निकल चुके हैं ! अब पप्पू लिखने बैठते हैं ! पप्पू अचानक देश के वित्त मंत्री की तरह नज़र आने लगे हैं ! चिंता सवार हो गयी दिखती है ! पप्पू ने पड़ोसी की तरफ एक नज़र डाली है और अपनी कापी अपने हाथ से छुपा ली है !

यहाँ ये बात गौर करने की है कि पप्पू को दस प्रश्नों में से मात्र दो ही आते हैं आधे अधूरे से! पप्पू पूरी गति से पेन चलाते हैं ... राणा सांगा देख ले तो उसे अपनी तलवार की गति पर क्षोभ पैदा हो जाए! अभी पढ़ाकू बच्चे अपनी आधी कॉपी भर पाए हैं , इतने में पप्पू की आवाज़ गूंजती है " सर सप्लीमेंट्री कॉपी " ! पढ़ाकुओं का पसीना छूट पड़ता है! सब पप्पू को देखते हैं और अपनी बची हुई आधी कॉपी देखकर थूक गटकते हैं! पप्पू किसी को नहीं देखते ...फिर से भिड़ जाते हैं अपना पेन भांजने में! पप्पू दिमाग पर पूरा जोर डालकर उन दो प्रश्नों के उत्तर याद करने की कोशिश करते हैं ...फिर दिमाग के जाने किस खंडू खांचे से निकाल कर ज्ञान की पंजीरी कॉपी पर बिखरा देते हैं!

एक पढ़ाकू बाकी बचे दो पन्ने लिखकर अपनी पहली सप्लीमेंट्री लेने का मन बना रहा है! इतने में फिर से पप्पू की आवाज़ गूंजती है " सर सप्लीमेंट्री " और पढ़ाकुओं के सीने पर गाज बनकर गिरती है! पप्पू इधर उधर की गपोड़पंती ढपोला रायटिंग में लिखना प्रारम्भ करते हैं! सर भी उत्सुक होकर पप्पू के पास आकर खड़े हो जाते हैं और उसकी कॉपी देखने की कोशिश करते हैं! पप्पू हाथ से कॉपी ढक लेते हैं !सर खिसिया कर अपना रास्ता नापते हैं! इस प्रकार पप्पू पूरी पांच सप्लीमेंट्री भरते हैं! पप्पू की कॉपी विविधताओं का अनोखा संगम है हमारे देश की तरह ! इसमें गीत , चुटकुले, डायलौग , प्रार्थनाएं और काल्पनिक कथाओं के साथ जीवन का गहन दर्शन भी है !पप्पू का जीवन दर्शन इन दो पंक्तियों में समझा जा सकता है
" गाय हमारी माता है
हमको कुछ नहीं आता है "
यही दर्शन पप्पू ने कॉपी के आखिरी पन्ने पर चिपका दिया है !


बाहर निकलकर सबने पप्पू को घेर रखा है और पूछ रहे हैं " कैसा गया पेपर? " पप्पू बाल झटकते हुए कहते हैं " यार इससे सरल पेपर तो मैंने जिंदगी में नहीं देखा ! टाइम कम पड़ गया नहीं तो दो कॉपी और लगतीं मुझे " इतना बोलकर पप्पू बढ़ लेते हैं!

मनोरंजन के एकमात्र साधन अप्सराओं के नृत्य से बुरी तरह उकताए हुए स्वर्ग के देवता खुश होकर फूल बरसाते हैं ... पप्पू सर पर गिरे फूल को जेब में रख लेते हैं और शाम को गुल्ली को भेंट कर देते हैं और प्रसन्न भाव से अगले पेपर के लिए शर्ट पेंट प्रेस करने लगते हैं !

Thursday, April 25, 2013

आँखों देखा हाल और हम हुए बेहाल ... जय हो सन्तों की

संतों के संत ,भगवानों के भगवान , सदी के महानतम पुरुष का पंडाल सजा हुआ है! संत शिरोमणि का प्रवचन शुरू हो चुका है! अहा ..क्या भक्ति की गंगा प्रवाहित हो रही है! लोग के चेहरे गीले हो चुके हैं ....अब पता नहीं प्रेम अश्रुओं से या मई माह के पसीने से!
 लोग बाग़ खिंचे चले आये हैं दूर दूर से पुण्य कमाने! वो बात अलग है कि इस पुण्य नाम की अनदेखी वस्तु को कमाने के चक्कर में एक दिन की धन की कमाई को ज़रूर लात मार आये हैं! और तो और पिछले दो दिनों की कमाई चढ़ावे के रूप में समर्पित करने ले आये हैं! और भी पिछले दो दिनों की कमाई  ले आये हैं संत महाराज महाराज की लगाई हुई स्वास्थ्य वर्धक दवाइयां , चूरन,  गोली , अचार , पापड़ , जूस , स्वामी जी के गुणगान की पुस्तिकाएं आदि आदि दुकानों पर ख़र्चा करने के लिए! पब्लिक को विश्वास है कि इस दवाइयों के सेवन के बाद किसी के बाप में हिम्मत नहीं है जो उन्हें सौ साल का होने से रोक ले!और चार घण्टे का प्रवचन सुनने के बाद उन्हें स्वर्गलोक में जाने और वहाँ कुछ दिन मौज करके पुनः भूलोक पर किसी रईस के घर पैदा होने से अच्छे खां भी नहीं रोक सकते! पब्लिक आये जा रही है ....खांसते ,कूलते लोग , हाँफते कांपते लोग , किनकिनाते बच्चों को धकियाते  लोग , भीड़ में एक दुसरे को ठूंसा मारते लोग , गाली गलौज करते लोग ...बाप रे चहुँ ओर लोग ही लोग !

संत श्री चालू हैं ... " फिर द्वारिकाधीश मुस्कुराते हुए बोले ...हे द्रौपदी ....."  इतने में संतश्री म्यूट हो गए! लाईट गुल हो गयी ...माइक ने साथ छोड़ दिया!महाराज की निर्मल मुखमुद्रा सडनली चेन्ज हो गयी ...चेहरे की सारी मांस पेशियाँ किसी खडूस मास्टर की तरह सख्त हो उठीं! चेले दौड़े आये ..महाराज छूटते ही उनपे गरियाए !जी भर के उनकी ऐसी तैसी की! जितनी गाली बचपन से आज तक सीखीं थीं ,सबका रिवीज़न कर डाला ! एक चेला धीरे से बुदबुदाया ...महाराज ,माँ की गाली तो न दें" महाराज जी ने जो आँखें तरेर के देखा तो बेचारा चेला मंच के नीचे कूद पड़ा!

खैर माइक चालू हुआ ... जनता फिर से भक्ति के समुद्र में गोते लगाने लगी!महाराज एक कांच के केबिन में बैठे प्रवचन दे रहे हैं ... और जनता खुल्ले में बैठी ये सोच के अपने भाग्य को सराह रही है कि बेचारे महाराज जी कितनी गर्मी में हमारे लिए कष्ट उठा रहे हैं! भोली ,मूर्ख जनता की आँखें श्रद्धा के कारण मायोपिया का शिकार हो चुकी हैं ,,उन्हें केबिन में महाराज जी के पीछे फिट किया एयर कंडीशनर नज़र नहीं आता!

 कन्हैया अपने पूरे परिवार सहित पधारा है ...जिसमे झुकने से अपनी मूल लम्बाई के आधे हो गए पिता जी , गर्भवती पत्नी और पांच माह का मुन्ना भी शामिल हैं! मुन्ना ने रो रो के आसपास बैठी जनता के पुण्य लाभ में व्यवधान डालना शुरू कर दिया है! बगल में बैठे पप्पू कुबड़ा का पारा हाई हो चला है! उसने अल्टीमेटम दिया कि " अगर अब के ये मुन्ना रोया तो उठा के बाहर पटक देगा " कन्हैया सहम गया है ,पप्पू कुबड़े को सब जानते हैं और सब डरते भी हैं ,पप्पू दो मर्डर कर चुका है ,तीन लूट और चोरियों का तो कोई हिसाब नहीं! अभी अभी जमानत पे छूटा तो माँ ने जबरदस्ती प्रवचन सुनने भेज दिया! वैसे पप्पू भी धार्मिक है ..हर मंगलवार उपास रहता है ..शनिवार को शनि महाराज के कमंडल में बगल के किराने की दुकान से निकालकर तेल डालता है! 

कन्हैया ने अपनी पत्नी को मुन्ना को बाहर ले जाने को कहा है ...पत्नी आँखें नचा नचाकर जाने क्या बडबडायी कि कन्हैया खुद मुन्ने को बगल में दबा कर पंडाल के बाहर जाकर खड़ा हो गया!

 इतने में कन्हैया के बापू को खांसी का दौरा शुरू हुआ ... पहले तो कुबड़े के डर के मारे गले में ही घोंटते रहे फिर अचानक अनेक पदार्थों के साथ खांसी अपने पूरे वेग में बाहर निकली और कुबड़े सहित आसपास बैठे अनेक भक्तों को तर कर गयी! बापू अपना हश्र सोचकर बेहोश हो गए! उनके बेहोश होते ही कुबड़ा फूट लिया आधे प्रवचन में ही ... अड़ोसी पडोसी भी मुंह फेर कर भक्ति सागर में समाने का उपक्रम करने लगे!

कन्हैया दौड़ा दौड़ा आया ...एक तरह खांसते बापू ...दूसरी तरफ फुल वोल्यूम में रोता मुन्ना! मगर क्या जिगर वाला परिवार था ...आधा पुण्य किसी को मंज़ूर नहीं था! पूरे परिवार ने सलाह मशवरे के बाद तय किया कि चाहे जान चली जाए पर पुण्य की आखिरी बूँद तक निचोड़ कर जायेंगे! बापू को खांसते खांसते प्यास लगी तो कन्हैया की पत्नी ने झट से बगल वाले की नज़र बचाकर उसकी पानी की बोतल अपने घटा से आँचल में छुपा ली! बोतल की निगरानी कर रहे बालक ने तत्काल अपनी माँ को सूचित किया ! फिर क्या था ..बोतल की असली मालकिन ने आँचल पे धावा बोला  ..घटा बिखर गयी ...बोतल के पानी से गीली होकर बरस भी गयी! " आग लगे ..तेरी ठठरी बंधे ..तू मसान पहुंचे ...." बोतल की मालकिन पूरे जोश में थी! कन्हैया की पत्नी भी प्रवचन सुन सुन कर बोर हो रही थी ...युद्ध उसे भी ज्यादा रुचिकर प्रतीत हुआ! दोनों महिलायें सुरुचिपूर्ण ढंग से युद्धकला का प्रदर्शन करने लगीं ! किसी फूटी किस्मत वाले ने बीच में टोक दिया ..." सुनो ..महाराज जी द्वारिकाधीश की कथा सुना रहे हैं " " अरे भाड़ में जाएँ द्वारिकाधीश ...यहाँ इस नासपीटी ने  बोतल चुरा ली ,तुझे कथा की पड़ी है! " फूटी किस्मत चुपचाप होकर पुण्य बटोरने में भिड़ गया! 

शाम होने को आई ... जाने कितनों को चक्कर आया , कितने लस्त पस्त हो गए , कितनों के सामान चोरी हुए ,कितनों की सुन्दर कन्याओं को महाराज जी ने भाव विभोर होकर गले लगाया ! प्रवचन  होते ही महाराज जी ने काजू ,किशमिश हवा में उछाल दिए! उन पुण्यकारी मेवों को लूटने के चक्कर में कितनों के सर फूटे ,कितनों के हाथ दूसरों की चप्पल के नीचे दुच गए,कितने मिटटी ,कीचड़ लगे मेवे भक्ति भाव से खाते देखे गए!

जनता के जाने के बाद महाराज जी ने तसल्ली से कत्था ,चूना रगड़ा , अपने सामने चढ़ावे और बिक्री से आये धन को गिनवाया और तिजोरी में रखवाकर चाबी धोती में खोंसी और लाल बत्ती लगी गाडी में बैठ के शहर का त्याग किया!

हमारी भी गर्मी में महाराज जी के इंतजाम में लगी ड्यूटी ख़तम हुई ....हमने महाराज जी को दिल की गहराइयों से कोसा और दुआ मांगी कि इस साले का रास्ते में एक्सीडेंट हो जाए! मगर अगले दिन खबर पढ़ी कि फलानी जगह महाराज जी का प्रवचन का लाभ सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उठाया ! हमने पेपर फोल्ड किया और सो गए, जैसे जनता सो रही है कुम्भकर्णी नींद में!

Tuesday, April 2, 2013

सिर्फ और सिर्फ प्रेम


कुछ लोग प्रेम रचते हैं ...प्रेम की कानी ऊँगली पकड़कर जीवन की नदी की मंझधार बीच चलते रहते हैं! वो एक ऐसी ही कवियित्री थी! लोग कहते थे , वो प्रेम पर कमाल लिखती थी! वो कहती थी प्रेम उससे कमाल लिखवा लेता है! उसके कैनवास पर प्रेम की विराट पेंटिंग सजी हुई थी! सामने ट्रे में न जाने कितने रंग सजे रहते ..मगर वो केवल प्रेम के रंग में कूची डुबोती और रंग देती सारा आकाश! जब कोई नज़्म उसके दिल से निकलकर कागज़ पे पनाह पाती तो पढने वाले की रूह प्रेम से मालामाल हो जाती!

समय सरकते सरकते उस मुहाने पे जा पहुंचा ,जिसके बाद सिर्फ युद्ध फैला पड़ा था दूर दूर तक! अंतहीन ..ओर छोर रहित युद्ध! लोगों ने नज्में दराजों में बंद कर दीं और नेजे ,भाले और तलवारें अपने कंधों पे सजा लिए! प्रेम का रंग छिटक कर न जाने कहाँ दूर जा गिरा था! क्रान्ति के शोर में मुहब्बत की बारीक सी मुरकी खामोश हो गयी! वीरों का हौसला बढाने कवियों ने क्रान्ति पर कलम चलानी शुरू कर दी! चारों और वीर रस की धार बह चली!

मगर वो अभी भी प्रेम रच रही थी! सिर्फ और सिर्फ प्रेम! अब उसकी नज्में कोई न पढता! मगर वो अपने पागलपन में डूबी कागजों पे मुहब्बत उलीचती जा रही थी! लोगों ने समझाया . " समय की मांग है कि अब तुम जोश भरी नज्में लिखो! " वो सर ऊपर उठाकर देखती और प्रेम की एक बूँद कागज़ पर गिरा देती! जब लोग उसे धिक्कार कर चले जाते तो वो अपनी ताज़ा लिखी नज़्म से कहती " वक्त के इस दौर को तुम्हारी सबसे ज्यादा ज़रूरत है "

न जाने कितने लोग मरे ...कितनों के घर काले विलाप से रंग गए! सैनिक दिन भर युद्ध करते और स्याह रातों में अपनी माशूकाओं के आये ख़त सीने पर रखकर सो जाते! उन रातों को वीर रस की नहीं सिर्फ प्रेम के रस की दरकार होती!

वक्त गवाह है .... उस कवियित्री की नज्मों ने सिर्फ जगह बदली थी! जो नज्में कभी उन सैनिकों ने अपनी माशूकाओं को अपने चुम्बनों में लपेटकर सौंपी थीं ,अब वे नज्में सैनिकों की माशूकाएं ख़त में लपेटकर पहुंचा रही थीं! प्रेम रुका नहीं था, मरा नहीं था और कहीं खोया भी नहीं था ...लगातार बह रहा था और सैनिकों के लहू से तपते जिस्मों पर ताज़ी ओस की बूंदों की तरह बरस रहा था!

सुन रहे हो ओ प्रेम ... " जब सबसे भयानक और सबसे बुरा दौर होता है तब तुम्हारी ज़रूरत भी सबसे ज्यादा होती है "