ये भी भला कोई बात हुई ... परीक्षा हॉल में गए ! बुद्ध जैसी गंभीर शकल बनाकर कुर्सी पर बैठ गए और पेपर मिलने के इंतज़ार में चेहरे पर अभूतपूर्व शान्ति ओढ़कर बैठ गए ! पेपर मिलने पर भी चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन नहीं .. दिल में कोई खलबली नहीं .. मुंह नहीं सूखता ! तीन घंटे सरवायकल के मरीज़ टाइप एक दिशा में सर झुकाए कॉपी रंगते रहे ! बीच में न पानी , न सू सू , न गुटका ..न बगल वाले का कोई असेसमेंट ! हश... ये भी कोई तरीका हुआ परीक्षा देने का !
पेपर देना सीखना है तो हमारे पप्पू से सीखिए ! ठीक पंद्रह मिनिट पहले हॉल में पहुँचते हैं ! सबसे हाय हैलो करते हुए अपना रोल नंबर ढूंढते हुए अपनी टेबल पर पहुँचते हैं ! एडमिट कार्ड से रोल नंबर देखकर टेबल पर पड़े रोल नंबर को मैच करने के बाद संतुष्ट होकर कुर्सी पर बैठते हैं ! पड़ोसी की तैयारी का जायजा लेते हैं ... उसे घबराता देख सांत्वना देते हैं " इत्ते सरल पेपर में क्या घबराना बे .. मैं तो रात को पिक्चर देखकर आया और बस उठकर चला ही आ रहा हूँ !" इत्ता बोलकर मुंह छिपाकर पप्पू खुद को ही आँख मार देते हैं ! अभी दस मिनिट बाकी हैं ! पप्पू ने अब अपना एक पाउच निकाला है जिसमे तीन चार तरह के पेन , पेन्सिल, रबड़ , शार्पनर आदि परीक्षोपयोगी स्टफ़ है ! सारे पेन छिड़क छिड़क कर देख रहे हैं पप्पू , पेन्सिल की नोक हथेली में चुभा चुभा कर देख रहे हैं पप्पू , मेज पर पसीना पोंछने के लिए रूमाल बिछा रहे हैं पप्पू !घडी उतार कर मेज के दायें कोने पर रख ली है पप्पू ने ! पप्पू ने दो बार मास्साब से पक्का कर लिया है कि पेपर तीन ही घंटे का है ना ? पप्पू को देखकर स्वर्ग लोक के देवता गदगद हो रहे हैं !
आखिर पेपर मिल जाता है ! पप्पू पेपर पढने से पहले दूसरे लोगों के चेहरे के भाव देखते हैं ताकि पेपर खोलने से पहले ही अंदाजा लग जाए कि पेपर बनाने वाले ने क्या कसम खाके पेपर बनाया है ! सबके पेपर पढ़ चुकने के बाद पप्पू आराम से पेपर खोलते हैं ! पेपर पढ़ते हुए पप्पू कभी मुस्कुराते हैं , कभी थूक गुटकते हैं , कभी दोनों मुट्ठियाँ हवा में लहरा कर उत्साहित होते हैं ! पप्पू अब बारी बारी से सारे पेन एक बार फिर चैक करते हैं , रूमाल से हथेलियों का पसीना पोंछते हैं और पानी मांगते हैं ! मास्साब पानी पिलवाते हैं ! फिर पप्पू सोचते हैं कि एक बार सू सू का कार्य भी निपटा ही दिया जाए तो फिर बढ़िया रिदम बनेगी कॉपी लिखने की ! मास्साब बुरे मन से आज्ञा देते हैं ! पप्पू टहलते टहलते बाथरूम जाते हैं ! फारिग होकर टहलते टहलते वापस आते हैं ! अब तक पंद्रह मिनिट निकल चुके हैं ! अब पप्पू लिखने बैठते हैं ! पप्पू अचानक देश के वित्त मंत्री की तरह नज़र आने लगे हैं ! चिंता सवार हो गयी दिखती है ! पप्पू ने पड़ोसी की तरफ एक नज़र डाली है और अपनी कापी अपने हाथ से छुपा ली है !
यहाँ ये बात गौर करने की है कि पप्पू को दस प्रश्नों में से मात्र दो ही आते हैं आधे अधूरे से! पप्पू पूरी गति से पेन चलाते हैं ... राणा सांगा देख ले तो उसे अपनी तलवार की गति पर क्षोभ पैदा हो जाए! अभी पढ़ाकू बच्चे अपनी आधी कॉपी भर पाए हैं , इतने में पप्पू की आवाज़ गूंजती है " सर सप्लीमेंट्री कॉपी " ! पढ़ाकुओं का पसीना छूट पड़ता है! सब पप्पू को देखते हैं और अपनी बची हुई आधी कॉपी देखकर थूक गटकते हैं! पप्पू किसी को नहीं देखते ...फिर से भिड़ जाते हैं अपना पेन भांजने में! पप्पू दिमाग पर पूरा जोर डालकर उन दो प्रश्नों के उत्तर याद करने की कोशिश करते हैं ...फिर दिमाग के जाने किस खंडू खांचे से निकाल कर ज्ञान की पंजीरी कॉपी पर बिखरा देते हैं!
एक पढ़ाकू बाकी बचे दो पन्ने लिखकर अपनी पहली सप्लीमेंट्री लेने का मन बना रहा है! इतने में फिर से पप्पू की आवाज़ गूंजती है " सर सप्लीमेंट्री " और पढ़ाकुओं के सीने पर गाज बनकर गिरती है! पप्पू इधर उधर की गपोड़पंती ढपोला रायटिंग में लिखना प्रारम्भ करते हैं! सर भी उत्सुक होकर पप्पू के पास आकर खड़े हो जाते हैं और उसकी कॉपी देखने की कोशिश करते हैं! पप्पू हाथ से कॉपी ढक लेते हैं !सर खिसिया कर अपना रास्ता नापते हैं! इस प्रकार पप्पू पूरी पांच सप्लीमेंट्री भरते हैं! पप्पू की कॉपी विविधताओं का अनोखा संगम है हमारे देश की तरह ! इसमें गीत , चुटकुले, डायलौग , प्रार्थनाएं और काल्पनिक कथाओं के साथ जीवन का गहन दर्शन भी है !पप्पू का जीवन दर्शन इन दो पंक्तियों में समझा जा सकता है
" गाय हमारी माता है
हमको कुछ नहीं आता है "
यही दर्शन पप्पू ने कॉपी के आखिरी पन्ने पर चिपका दिया है !
बाहर निकलकर सबने पप्पू को घेर रखा है और पूछ रहे हैं " कैसा गया पेपर? " पप्पू बाल झटकते हुए कहते हैं " यार इससे सरल पेपर तो मैंने जिंदगी में नहीं देखा ! टाइम कम पड़ गया नहीं तो दो कॉपी और लगतीं मुझे " इतना बोलकर पप्पू बढ़ लेते हैं!
मनोरंजन के एकमात्र साधन अप्सराओं के नृत्य से बुरी तरह उकताए हुए स्वर्ग के देवता खुश होकर फूल बरसाते हैं ... पप्पू सर पर गिरे फूल को जेब में रख लेते हैं और शाम को गुल्ली को भेंट कर देते हैं और प्रसन्न भाव से अगले पेपर के लिए शर्ट पेंट प्रेस करने लगते हैं !
पेपर देना सीखना है तो हमारे पप्पू से सीखिए ! ठीक पंद्रह मिनिट पहले हॉल में पहुँचते हैं ! सबसे हाय हैलो करते हुए अपना रोल नंबर ढूंढते हुए अपनी टेबल पर पहुँचते हैं ! एडमिट कार्ड से रोल नंबर देखकर टेबल पर पड़े रोल नंबर को मैच करने के बाद संतुष्ट होकर कुर्सी पर बैठते हैं ! पड़ोसी की तैयारी का जायजा लेते हैं ... उसे घबराता देख सांत्वना देते हैं " इत्ते सरल पेपर में क्या घबराना बे .. मैं तो रात को पिक्चर देखकर आया और बस उठकर चला ही आ रहा हूँ !" इत्ता बोलकर मुंह छिपाकर पप्पू खुद को ही आँख मार देते हैं ! अभी दस मिनिट बाकी हैं ! पप्पू ने अब अपना एक पाउच निकाला है जिसमे तीन चार तरह के पेन , पेन्सिल, रबड़ , शार्पनर आदि परीक्षोपयोगी स्टफ़ है ! सारे पेन छिड़क छिड़क कर देख रहे हैं पप्पू , पेन्सिल की नोक हथेली में चुभा चुभा कर देख रहे हैं पप्पू , मेज पर पसीना पोंछने के लिए रूमाल बिछा रहे हैं पप्पू !घडी उतार कर मेज के दायें कोने पर रख ली है पप्पू ने ! पप्पू ने दो बार मास्साब से पक्का कर लिया है कि पेपर तीन ही घंटे का है ना ? पप्पू को देखकर स्वर्ग लोक के देवता गदगद हो रहे हैं !
आखिर पेपर मिल जाता है ! पप्पू पेपर पढने से पहले दूसरे लोगों के चेहरे के भाव देखते हैं ताकि पेपर खोलने से पहले ही अंदाजा लग जाए कि पेपर बनाने वाले ने क्या कसम खाके पेपर बनाया है ! सबके पेपर पढ़ चुकने के बाद पप्पू आराम से पेपर खोलते हैं ! पेपर पढ़ते हुए पप्पू कभी मुस्कुराते हैं , कभी थूक गुटकते हैं , कभी दोनों मुट्ठियाँ हवा में लहरा कर उत्साहित होते हैं ! पप्पू अब बारी बारी से सारे पेन एक बार फिर चैक करते हैं , रूमाल से हथेलियों का पसीना पोंछते हैं और पानी मांगते हैं ! मास्साब पानी पिलवाते हैं ! फिर पप्पू सोचते हैं कि एक बार सू सू का कार्य भी निपटा ही दिया जाए तो फिर बढ़िया रिदम बनेगी कॉपी लिखने की ! मास्साब बुरे मन से आज्ञा देते हैं ! पप्पू टहलते टहलते बाथरूम जाते हैं ! फारिग होकर टहलते टहलते वापस आते हैं ! अब तक पंद्रह मिनिट निकल चुके हैं ! अब पप्पू लिखने बैठते हैं ! पप्पू अचानक देश के वित्त मंत्री की तरह नज़र आने लगे हैं ! चिंता सवार हो गयी दिखती है ! पप्पू ने पड़ोसी की तरफ एक नज़र डाली है और अपनी कापी अपने हाथ से छुपा ली है !
यहाँ ये बात गौर करने की है कि पप्पू को दस प्रश्नों में से मात्र दो ही आते हैं आधे अधूरे से! पप्पू पूरी गति से पेन चलाते हैं ... राणा सांगा देख ले तो उसे अपनी तलवार की गति पर क्षोभ पैदा हो जाए! अभी पढ़ाकू बच्चे अपनी आधी कॉपी भर पाए हैं , इतने में पप्पू की आवाज़ गूंजती है " सर सप्लीमेंट्री कॉपी " ! पढ़ाकुओं का पसीना छूट पड़ता है! सब पप्पू को देखते हैं और अपनी बची हुई आधी कॉपी देखकर थूक गटकते हैं! पप्पू किसी को नहीं देखते ...फिर से भिड़ जाते हैं अपना पेन भांजने में! पप्पू दिमाग पर पूरा जोर डालकर उन दो प्रश्नों के उत्तर याद करने की कोशिश करते हैं ...फिर दिमाग के जाने किस खंडू खांचे से निकाल कर ज्ञान की पंजीरी कॉपी पर बिखरा देते हैं!
एक पढ़ाकू बाकी बचे दो पन्ने लिखकर अपनी पहली सप्लीमेंट्री लेने का मन बना रहा है! इतने में फिर से पप्पू की आवाज़ गूंजती है " सर सप्लीमेंट्री " और पढ़ाकुओं के सीने पर गाज बनकर गिरती है! पप्पू इधर उधर की गपोड़पंती ढपोला रायटिंग में लिखना प्रारम्भ करते हैं! सर भी उत्सुक होकर पप्पू के पास आकर खड़े हो जाते हैं और उसकी कॉपी देखने की कोशिश करते हैं! पप्पू हाथ से कॉपी ढक लेते हैं !सर खिसिया कर अपना रास्ता नापते हैं! इस प्रकार पप्पू पूरी पांच सप्लीमेंट्री भरते हैं! पप्पू की कॉपी विविधताओं का अनोखा संगम है हमारे देश की तरह ! इसमें गीत , चुटकुले, डायलौग , प्रार्थनाएं और काल्पनिक कथाओं के साथ जीवन का गहन दर्शन भी है !पप्पू का जीवन दर्शन इन दो पंक्तियों में समझा जा सकता है
" गाय हमारी माता है
हमको कुछ नहीं आता है "
यही दर्शन पप्पू ने कॉपी के आखिरी पन्ने पर चिपका दिया है !
बाहर निकलकर सबने पप्पू को घेर रखा है और पूछ रहे हैं " कैसा गया पेपर? " पप्पू बाल झटकते हुए कहते हैं " यार इससे सरल पेपर तो मैंने जिंदगी में नहीं देखा ! टाइम कम पड़ गया नहीं तो दो कॉपी और लगतीं मुझे " इतना बोलकर पप्पू बढ़ लेते हैं!
मनोरंजन के एकमात्र साधन अप्सराओं के नृत्य से बुरी तरह उकताए हुए स्वर्ग के देवता खुश होकर फूल बरसाते हैं ... पप्पू सर पर गिरे फूल को जेब में रख लेते हैं और शाम को गुल्ली को भेंट कर देते हैं और प्रसन्न भाव से अगले पेपर के लिए शर्ट पेंट प्रेस करने लगते हैं !
10 comments:
न विषय सही, पर निर्विकार भाव तो पप्पू से सीखा ही जा सकता है।
पप्पू का लिखा पढ़ने की कोशिश मे 4-5 बार फेल होने के बाद हमारे इगजामिनर साहब "हम पप्पू के पप्पू हमारे" मंत्र का जाप करके पन्ने गिनकर उन्हें पास कर देते हैं। इसी प्रक्रिया ने आज तक पप्पू जी को यहाँ लाकर खड़ा किया है और आगे भी तरक्की के रास्ते पर लेकर जाएगी। आईएऐस न बने तो प्रोफेसर लग जाएँगे, वह नहीं तो बड़े वकील बन जाएँगे और अगर वकालत की किस्मत अच्छी हुई तो राजनीति में चले जाएँगे। जहां भी जाएँ, उनकी तो मौज ही मौज रही है, आसपास वाले भले अपनी किस्मत को रोएँ।
.. राणा सांगा देख ले तो उसे अपनी तलवार की गति पर क्षोभ पैदा हो जाए! :D
लिखना यहीं है.
हा हा हा हा हा हा..........अपनी परीक्षाओं के दिनों के पप्पू टाइप सप्लीमेंट्री कापियां भरनेवाले याद हो आए।
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी यह रचना आज सोमवारीय चर्चा(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) में शामिल की गयी है, आभार।
बहुत खूब |
बहुत सुंदर
:)
मुस्कुराहट के लिए काफी है... :D
बेचारा राणा सांगा :)
पप्पू जी का रिजल्ट आने के बाद पप्पू जी कैसे व्यवहार करते है इसका भी अगर इसका भी जिक्र हो जाये तो मजा आ जाये.....
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