Saturday, May 16, 2015

अथ श्री कॉकरोच, कॉकरोचनी कथा

एक दिन एक सरकारी ऑफिस में अलमारी के पीछे निवास करने वाले कॉकरोच और कॉकरोचनी चिंता में डूब गए ! उन्होंने स्वीपरों को आपस में बात करते सुना कि सरकार ने सफाई अभियान चलाया है , सभी सरकारी कार्यालयों के अन्दर और बाहर से सारी गंदगी हटा दी जायेगी ! कीड़े मकोड़े भी बेमौत मार दिए जायेंगे !
दोनो प्राणी चिंता में डूब गए ! दोनों को पूरे दिन नींद न आये ! रात भर हाय हाय करें ! अब क्या होगा ?
दोनों ने आंसू भरी आँखों और भारी ह्रदय से अपने पुश्तैनी घर को छोड़कर पलायन करने की सोची और बगल के ऑफिस के स्टोर रूम में बक्से के पीछे एक कुटिया बना ली ! पूरा स्टोर घूमकर देखा , कोई और कॉकरोच न दिखा ! वे दुबारा चिंता में डूब गए ! " यहाँ तो ज्यादा मारकाट हुई है , लगता है "
कौकरोचनी को सुबह होते ही अपने पुराने घर की याद सताने लगी ! वो शोक के मारे मुच्छी लहराकर बोली " चलो प्रिय ..एक चक्कर लगा आयें ! दिन होते ही वापस आ जायेंगे "
दोनों जने आतंकवादी झाडुओं , स्प्रेओं और चप्पलों से छुपते छुपाते पुराने ठिकाने पर पहुंचे ! वहाँ देखा तो एक दूसरा कॉकरोच कपल अपना आशियाना बना चुका था ! कौकरोचनी के गुस्से का ठिकाना न रहा ! जिस घर में वो ब्याह कर आई , यहीं सास ससुर की अर्थी सजी , यही वह पहली बार माँ बनी , आज उसके सपनों के घर में कोई और घुस आया है !
दोनों मियाँ बीवी मूंछ कसकर नए घुसपैठियों को ललकारने लगे ! नयी कौकरोचनी ने डरते हुए बताया कि वे तो सरकार की घोषणा से घबड़ाकर बगल के ऑफिस के स्टोर रूम से भागकर यहाँ शरण लेने आ गए हैं !
दो मिनिट को सन्नाटा छा गया ! तभी एक झींगुर और झींगुरनी ने नेपथ्य से एक दोगाना सुनाया जिसका भावार्थ यह था कि " हे मूर्खो .. जिसको स्वच्छता रखनी होती है वह सरकार के आदेश का इंतज़ार नहीं करता ,जिसके यहाँ कॉकरोच पुश्तों से रहते आये हैं उसकी सात पीढ़ियों का भविष्य वैसे ही उज्जवल है और वैसे भी वे सरकारी कॉकरोच हैं इसलिए चिंता का त्यागकर आनंद मनाएं "
दोनों जोड़ों को यह सुनकर राहत मिली ! चारों ने एक साथ बड़े बाबू की मेज पर झिंगा ला ला बोल बोलकर समूह नृत्य किया और पार्टी मनाकर अपने अपने आशियाने को कूच किया !
अगले दिन सुबह दोनों ने बड़े बाबू को जब बगल की दीवार पर गुटखा थूकते और छोटे बाबू को समोसा खाकर परदे से हाथ पोंछते देखा तब उनकी जान में जान आई !
अगले दिन उन दोनों ने समाज सेवा करते हुए ऑफिस के चूहों , मच्छरों और छिपकलियों को भी झींगुर झींगुरनी का दोगाना मुफ्त में सुनवाया ! सभी प्राणियों में हर्ष छा गया !और वे सभी निश्चिन्त होकर सुखपूर्वक निवास करने लगे !

7 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एहसास हो तो गहराई होती ही है ....
, मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

काक्रोच को माध्यम बनाकर आपने बढ़िया व्यंग्य किया है सरकारी तंत्र पर .

dj said...

जिसके यहाँ कॉकरोच पुश्तों से रहते आये हैं उसकी सात पीढ़ियों का भविष्य वैसे ही उज्जवल है और वैसे भी वे सरकारी कॉकरोच हैं इसलिए चिंता का त्यागकर आनंद मनाएं "

वाह !बहुत ही शानदार प्रस्तुति पल्लवी जी। मज़ेदार व्यंग्य।

Gyan Dutt Pandey said...

काक्रोच की आने वाली कई पीढ़ियां सुरक्षित हैं। पक्का।

अनूप शुक्ल said...

वाह !

Unknown said...

लोक जीवन का सत्य असत्य और सुखद परमार्थ की विवेचना एवं लोक-कलाओं का फल सुफल भी, सभी कुछ यहीं पर सुलभ हैं..

Jyoti Dehliwal said...

पल्लवी जी, स्वच्छ्ता अभीयान का असली चेहरा प्रस्तुत किया है आपने! बधाई...